ई नया बरस का आता है पान-छ दिन के लिए पूरा सिस्टमे बिगाड़ देता है. ऊपर से केवल नया बरस ही नहीं आता, पुराना चल भी जाता है. ई तीन-चार दिन में अईसा-अईसा सीन सब मिलता है देखने को कि बस पूछिए ही मत. पूरा साल मुंह में पान दबाकर रखने वाला पब्लिक सब चार दिन पहिले से पाने खाना बंद कर देता है. कहता है डिस्को में जाना है आ अईसे में दांत-वोंत साफ़ रहना चाहिए. लीजिये पूछिए ई चिरकुट सब से कि पूरा साले तो पान खाता है बाकी चार दिन के लिए अँगरेज़ बनकर का साबित करना चाहता है?
पचास-बावन का उमर वाला भी का कपड़ा चेंज हो जाता है. जींस पहिनता है औउर जीन का जैकिट डालकर चलता है. गर्मी का दिन में धूपी चश्मा भले ही न पहिने बाकी किर्समस का दिने से सबेरे आठे बजे से ही धूपी चश्मा पहिनता है. आ चाहे बिकट कोहरा छाया हो. ऊ सब भूल जाएगा. हम कहते हैं ई कौन हिसाब है कपड़ा पहिनने का? देखी-देखा पाप औउर देखी-देखा पुन्नि? तुम्हरा उम्र में औउर तुम्हरा बेटा का उम्र में कौनौ फरक है कि नाही?
पिछला चार दिन से बेटा डेली पार्क इसट्रीट जा रहा है. रात के नौ बजे रोजे चल देता है. अपना माई से बोलकर जाता है कि साथी सब के साथ जा रहा है डिस्को में. दू बरस हो गया इसको एक ही किलास में अटके हुए. इतना डेडीकेशन पढाई में देखाता त आज दसवीं का इंतिहान का तैयारी कर रहा होता. डाऊट होता है कि कौनौ रेस्टूरेंट कम बार में कैबरे देखने जाता है. अजीब हालत हो गया है. ई महिना में न जाने कौन-कौन से देश से नर्तकी सब भारत में आता है. किसी रेस्टूरेंट में मिश्र से त किसी रेस्टूरेंट में उज्बेकिस्तान से. हम कहते हैं ई लोग अपना देश छोड़कर भारत में नाचेगा नहीं त का नया साल नहीं आएगा? त भारत का पुराना साल में रह जाएगा और बाकी देश में नया साल में पहुँच जाएगा?
अजीब हालत हो गया है. बारह बजा नहीं कि जो धूम-धड़ाका शुरू हुआ. बम्ब-पटाका छोड़ रहा है सब. ऊ भी इतना बड़ा तादात में कि पूछिए ही मत. दिवाली में बम्ब-पटाका बंद है हमरे शहर में. बाकी ई नया साल के लिए बंद नहीं है. हम पूछते हैं काहे जी? काहे नहीं नया साल के उपलक्ष में जो कुछ आतिशबाजी करता है पब्लिक सब, उसको काहे नहीं अरेस्ट करता है पुलिसवा सब? अलग-अलग प्रावधान है का कानून में भी? ई का जबाब कौन देगा? हम कहते है पटाका नहीं फोड़ोगे तो त का नया साल नहीं आएगा? अभी दस दिन त हुआ जब कोपेनहैगेन में बिकट हडकंप मचाया था पब्लिक सब कि बाताबरण खराब हो रहा है. दस दिन में ही भूल गया सब? स्थिति चेंज हो गया का?
इहाँ चाह-पान का बिक्री बंद हो गया है. किसी चीज का बिक्री हो रहा है त ऊ है दवा का और दारू का. अईसा नज़ारा देखने को मिल रहा है दारू का दूकान पर सब कि पुछिए ही मत. आ लम्बा-लम्बा लाइन. बाप रे बाप. देखकर लगता है कि अईसा का हो गया है? कोई देखेगा त सोचेगा कि केरासिन का दूकान पर गरीब सब दू-दू लीटर केरासिन के लिए लाइन लगाया होगा. कोई बोतल पैंटे में खोंसते हुए नज़र आता है त कोई झोला में रखते हुए. हम पूछते हैं ईसा का नया साल है त कौनौ किताब में लिखा है कि दारू पीना ज़रूरी है? बाकी सुनेगा कौन?
एही पब्लिक सब दारू पीएगा औउर पिकनिक पे जाएगा. एक्सीडेंट का हालत ई है अगला चार दिन में हर दूसरा घंटा में एक एक्सीडेंट होगा. दारू पीकर गाड़ी चलाएगा सब और पिकनिक मनायेगा. देखकर लगता है जैसे कौन कहता है कि पब्लिक सब मंहगाई से परेशान है? मंहगाई से परेशानी होती त पब्लिक का ई हालत थोड़े न होता. बिकट कन्फ्यूजन होता है पब्लिक सब को देखकर. पिछला चार दिन में पब्लिक को देखकर सिद्धू जी महराज का पब्लिक का बारे में कहीं पर कहा गया बात ध्यान हो आया. पब्लिक का बारे में महाराज कहते हैं;
"ओये सुन ले गुरु, ये पब्लिक भी क़माल है. लोग सुबह उठकर अखबार देखते हैं और जिस दिन कहीं कोई ब्लास्ट न हो, कोई डिजास्टर न हो, उस दिन पेपर पटककर झट से कह देते हैं, क्या यार आज पेपर विच कोई मज़ा नहीं आया. इसकी दिमाग की बत्ती का तो मती पूछो, न जाने कब इसकी बुद्धि सटक जाती है और बड़े से बड़े पोलिटिकल पहलवानों को भी पार्लियामेंट के बाहर पटक आती है. क्यों करता है देश की तरक्की की बातें, इससे ये पब्लिक कट जाती है. अरे यार ये पब्लिक भी कोई पब्लिक है गुरु, जो दस किलो फ्री चावल से पट जाती है."
खैर, अब पब्लिक है. सुनते है लोकतंत्र वाली पब्लिक है. अईसे में जो करेगी और कहेगी, ठीके कहेगी और करेगी. आप सब लोगन को नए बरस की हार्दिक शुभकामनाएं. मस्त रहिये. पान खाते रहिये और रंग जमाते रहिये.
नोट:
मिसिर बाबा कह रहे थे कि संजय बेंगानी जी को हमरे लेखन से लगाव टाइप हो गया है. पता नहीं मिसिर बाबा सच बोल रहे थे या फिर हमको उकसा रहे होंगे ताकि एकाक गो लेख ले सकें. ब्लॉगर हैं. अईसे में ई मनई कुछ भी कर सकता है. बाकी फिर सोचते हैं कि जो लिखे हैं, ऊ भी कौन काम आएगा? गल्ला का ड्रावर में पड़े-पड़े फट जाएगा आ इससे बढ़िया तो ईहे है कि मिसिर बाबा को दे दें. ब्लॉग पर छाप लेंगे
नया साल मुबारक।
ReplyDeleteअब जनता दस किलो चावल मे बिक रही है तो शिकायत काहे करती है....देस तरक्की करे या न करें पर तरक्की तो हो रही है...भले नेता लोगो की हो रही है.....;))
एक बोतल दारू में बिकने से तो दस किलो चावल में बिकना ठीक है ना… :)
ReplyDeleteअरे रतिराम जी; हम तो बेंगानी जी से पहले से कह रहे हैं कि इस ब्लॉग का नाम शिवकुमार मिश्र और रतिराम का ब्लॉग कर दिया जाये!
ReplyDeleteपर ये छोटका भाई माने तब न!
देखा, कथे से रंगे हाथों में जब कलम आती है तो ससूरी क्या क्या उगलने लगती है, एकीदम रंग चढ़ जाता है.
ReplyDeleteयह नया साल कोनो हिन्दु लोगन का त्योंहार थोड़े ही है जो पटाखे फोड़ने पर परतिबन्द लगाए. खूब फोडो, परयाबरण पर तो अब अगले साल आँसू बहाना है.
रतिरामजी, हैपी-न्यू-इयर भेज रहें है. संकल्प लें कि ऐसे ही कथे से रंगे कागद पर बोल-पेन खिसते रहेंगे और मिसिर बाबू को पान के साथ फिरि टाइप में देते रहेंगे. नहीं देंगे तो दूरयोधनवा की डायरी में चोरी-चकारी करेंगे. ई आदत कोई ठीक थोड़े ही है :)
जय हो मिस्र जी की.....नए साल में कुछ कुछ बदले बदले से नजर आ रहे है सरकार.....एक ठो फोटू बदल के लगा दीजिये ...आप भी
ReplyDeleteरत्तीराम जी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.
ReplyDeleteसुख आये जन के जीवन मे यत्न विधायक हो
सब के हित मे बन्धु! वर्ष यह मंगलदयक हो.
(अजीत जोगी की कविता के अंश)
कौन से देसकाल से तअल्लुक रखते हैं ये रत्तीराम काका..? फरिया दिया जाय तो कुछ संदेह मिटे!
ReplyDeleteजो भी हो, यही है सर्वहारा की आवाज(जै गुएवारा)
और किसी से तो पता नहीं, अपने बेटे से तो हारा जरूर लग रहा है..
अभी तनिक जल्दी में हूँ.. बाकी फिर कभी!
नव वर्ष की शुभकामनायें
तो रतिराम जी भी सिद्धू जी महाराज के फैन है.. खैर जो भी हो रति बाबु की नज़र बड़ी कमाल है.. वो सब भी देख डाला जो हम नहीं देख पाए थे..
ReplyDeleteरतिराम जी आप एक दम ठीक बतिया रहे हैं. भाई कल के दिन तो समझे में नहीं आ रहा था की - कौन बाप है? कौन बेटा है? कौन माँ है और कौन बेटी? सबके पास एके राग था --"न्यू इयर". भाई रात भर ऐसा हो हल्ला किये हैं की मत पूछिये........... हमने अपने कुछ लोगो से पूछ लिया की भाई हमलोगों में होली से पहले संवत पूजन होता है सायद अपना --"न्यू इयर" उसी दिन होता है. भाई इस बात को सुनकर अपने लोगो ने हमें तो कनफुजिया दिया है और बोल दिए तुमको सी. ये. कौन बना दिया है,? और बहुते तर्क दे दिए हैं.
ReplyDeleteभाई इतना हि नहीं आज तो हमारे सभी सहयोगी भी आफिस नहीं आये उनसे पूछा क्यों नहीं आये भाई? जबाब था...... मंदिर जायेंगे, क्या भैया आज भी आफिस आ गए? एन्जॉय कीजिये. ----- भाई सायद पूर्णिमा तो कल था...... पर भगवन के मंदिर में भीढ़ आज है ......खैर सब ठीके हैं -...... लोग एन्जॉय टाइप तो कर ले रहें हैं नहीं तो कहाँ और कैसा फुरशत ....... संस्कृति तो हमारी देन है और हम इसे बदल दे तो क्या है. .......
आपको भी नव वर्ष मंगलमय हो.
ReplyDeleteरति राम उर्फ़ मति भ्रष्ट भईया...का है की अब आप लगता है सठिया गए है...का कहा ?? अभी चालीस वें में चल रहे हैं...ही ही ही ही...हम को आप का बात सुन के लगा की आप सठियाये हुए हैं...पूछिए काहे...वो का है की आज का टाईम में अकल की बात जो करता है उसे सठियाया हुआ मान लिया जाता है....हम भुगत भोगी हूँ इसीलिए कह रहा हूँ...आप कौनसा ज़माने की बात कर रहे हैं...सर पर दो हज़ार दस आ खड़ा हुआ है और आप अभी भी सतयुग में जी रहे हैं...चुपचाप पान लगाईये और सबकी हाँ में हाँ मिलाईये...आप ही बताईये छोकरा लोग नया साल में दारु नहीं पिएगा तो कब पिएगा...साल में सौ दौ सो मौके ही तो आते हैं बिचारों के पास खुल के दारु पीने के लिए ,उसमें भी आप अपनी टांग अड़ा रहे हैं...आपके टाईम पर डिस्को नहीं थे तो इन छोकरों का क्या कसूर? याद नहीं जब छमियां का नाच देखने मेला में जाया करते थे आप और आपके दद्दा अपने सर पे हाथ मार कर कहते थे कलजुग आ गया है कलजुग...ससुरे रति राम की मति भ्रष्ट हो गयी है...
ReplyDeleteरति राम जी गोलोक वासी होने का समय निकट है...अब तो भगवान का नाम लो और आज के छोकरों को भगवान् भरोसे छोड़ दो...समझ गए ना...इसी में निर्मल आनंद है...
नीरज
पुनश्च: ये अलग बात है की हम कल दारू और शोर से पीछा छुड़ा कर रात दस बजे के शो में फिल्म 'थ्री-इडियट' देखने चले गए...बाहर आये तो रात का सवा बजा हुआ था और सड़कों पे सन्नाटा था...इसे कहते हैं समझदारी...बढ़िया धाँसू फिल्म भी देख ली और शोर का हिस्सा भी नहीं बने...
ठंढ़ा एतना था कि हम त न ए बजे से रजाइए में घुसिआए हुए थे। कुछ पते नहीं चला कि पार्क इसट्रीट में एतना कुछ हो रहा है। कल्हे इ बता दिए होते त ... अब छोड़िए ... आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनववर्ष पर आपको हार्दिक शुभकामनाये और ढेरो बधाई ...
ReplyDeleteनये वर्ष की शुभकामनाओं सहित
ReplyDeleteआपसे अपेक्षा है कि आप हिन्दी के प्रति अपना मोह नहीं त्यागेंगे और ब्लाग संसार में नित सार्थक लेखन के प्रति सचेत रहेंगे।
अपने ब्लाग लेखन को विस्तार देने के साथ-साथ नये लोगों को भी ब्लाग लेखन के प्रति जागरूक कर हिन्दी सेवा में अपना योगदान दें।
आपका लेखन हम सभी को और सार्थकता प्रदान करे, इसी आशा के साथ
डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
जय-जय बुन्देलखण्ड
नववर्ष पर आपको हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteअरे भाया, हमरा भी येही हाल होई गवा। कम्फ़िटरवा हलकान पडा था :)उई में देर से टिपिकली कर रहे हैं:)
ReplyDeleteमाननीय रतिरामजी को हैप्पी न्यू ईयर कह रहे हैं।
ReplyDeleteअईसा नज़ारा देखने को मिल रहा है दारू का दूकान पर सब कि पुछिए ही मत. आ लम्बा-लम्बा लाइन. बाप रे बाप. देखकर लगता है कि अईसा का हो गया है? कोई देखेगा त सोचेगा कि केरासिन का दूकान पर गरीब सब दू-दू लीटर केरासिन के लिए लाइन लगाया होगा. कोई बोतल पैंटे में खोंसते हुए नज़र आता है त कोई झोला में रखते हुए. हम पूछते हैं ईसा का नया साल है त कौनौ किताब में लिखा है कि दारू पीना ज़रूरी है? बाकी सुनेगा कौन?
ReplyDeleteअरे एकदम्मे दुरुस्त कहे रतिराम बाबू....ऐसा विवेचना लिख दिए की अंखियों के आगे सबेई सीन बाय सीन साक्षात कर दिए...
भिस तो बहुते मिला इ नया साल प लेकिन अइसा भिस कहीं नहीं मिला. रतिरामजी और बाबा सिद्धू जी महाराजका कम्बीनेशन तो एकदमे डेडली है.
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