आई पी एल में खिलाड़ी बिकने के लिए तैयार थे. कुछ खरीद लिए गए तो कुछ को किसी ने पूछा ही नहीं. नहीं पूछा माने बिलकुल नहीं पूछा. जिन्हें नहीं पूछा गया ऐसे लोगों के लिए खरीदार मोल-भाव करने के लिए भी राजी नहीं हुए. वैसा भी नहीं हुआ जैसा बाज़ार ख़त्म होने के समय आनेवाला ग्राहक दुकानदारों के साथ करता है. मोल-भाव में चालीस परसेंट कम बोलता है तो भी दूकानदार उसे सबकुछ देकर चला जाता है. वैसा भी नहीं हुआ.
आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी नहीं बिके. वेस्टइंडीज के भी पूरे नहीं बिक सके. श्रीलंका, न्यूजीलैंड, बरमूडा, कनाडा, बंगलादेश, मालदीव, अफगानिस्तान, चीन, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, नामीविया, सूडान, इरान, ईराक, जापान, दक्षिण कोरिया, सीरिया, लीबिया और न जाने कहाँ-कहाँ के खिलाडियों को किसी खरीदार ने नहीं पूछा.
इन देशों की सरकारों ने भारत के ऊपर या फिर खरीदारों के ऊपर आरोप नहीं लगाया. किसी ने नहीं कहा कि वे भारत से रिश्ता तोड़ लेंगे. किसी ने नहीं कहा कि वे अब भारत में बना हैन्डीक्राफ्ट का सामान नहीं खरीदेंगे या अब वे भारत से आयातित चीनी का शरबत नहीं पीयेंगे. और तो और किसी ने यह भी नहीं कहा कि वे भारतीय साफ्टवेयर इंजीनीयरों को अपने देश में काम नहीं करने देंगे या वे अब भारतीय कॉल सेंटर में फ़ोन नहीं करेंगे.
लेकिन पकिस्तान एक ऐसा 'मुलुक' है जो बाकी सबसे अलग है. वहाँ की न केवल सरकार बल्कि, जनता, नेता, क्रिकेट खिलाड़ी, हॉकी खिलाड़ी, कबड्डी खिलाड़ी, डॉक्टर, इंजिनियर, ड्राईवर, कंडक्टर,अफसर, वकील, पत्रकार, पुलिस, सेना, आतंकवादी, नदी,सड़क, मस्जिद, पुल, मकान और न जाने कौन-कौन भारत से रिश्ता तोड़ने के लिए तैयार है.
कहते हैं कि ये उनके खिलाड़ियों की बेईज्जती है जो उन्हें किसी ने नहीं खरीदा. तुर्रा ये कि उनके खिलाड़ी वर्ल्ड चैपियन हैं. बता रहे हैं कि शाहिद आफरीदी विश्व के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं. उन्हें तो कम से कम खरीदना चाहिए था. ऐसा नहीं होने से केवल खिलाडियों का ही नहीं, पूरे पकिस्तान का अपमान हुआ है.
पकिस्तान का अपमान इस बात पर निर्भर करता है कि उनके खिलाड़ियों को नहीं खरीदा गया? अगर क्रिकेट खिलाड़ियों की खरीद-बिक्री पर ही देश का मान-अपमान टिका है तो फिर पाकिस्तान का मान तब-तब चार गुना बढ़ जाना चाहिए था जब-जब इनके खिलाड़ी बिके हैं.
अरे भाई, माना कि आई पी एल में किसी ने नहीं खरीदा लेकिन पहले तो लोग पाकिस्तानी खिलाड़ियों को 'खरीदते' रहे हैं और ये खिलाड़ी बिकते भी रहे हैं. कितना मान बढ़ गया था तब, पाकिस्तान का?
जो खिलाड़ी बिके नहीं वे कह रहे हैं; "यह हमारे खिलाफ साज़िश है."
गज़ब शब्द है ये साज़िश भी. कभी-कभी लगता है जैसे इस शब्द का आविष्कार पकिस्तान में ही हुआ होगा. और पकिस्तान की वजह से ही यह शब्द अमर हो जाएगा. इस देश में या दुनियाँ में कुछ भी होता है उसे ये बेचारे साज़िश बताते हैं. यह देश ऐसा है जहाँ नेता जीता है तो साज़िश की वजह से, मरता है तो साजिश की वजह से. क्रिकेट टीम मैच जीत जाती है तो साज़िश की वजह से और हार जाती है तब तो साज़िश होनी ही है. यहाँ तक कि बाढ़ आती है तो भी साज़िश की वजह से और सूखा पड़ जाता है तो उसमें भी साज़िश है.
अब वहाँ के लोग कह रहे हैं कि इस साजिश का बदला ले लेंगे. कैसे लेंगे? कह रहे हैं कि भारत में होनेवाले हॉकी वर्ल्डकप का बहिष्कार कर देंगे. कबड्डी टीम को भारत नहीं आने देंगे. आई पी एल का टेलीकास्ट पकिस्तान में नहीं होने देंगे.
मैं कहता हूँ इतना सबकुछ करने की क्या ज़रुरत है? भारत को नीचा दिखाने का सबसे बढ़िया तरीका है कि पकिस्तान अपना एक प्रीमियर लीग शुरू कर ले.
क्या कहा? पैसा कहाँ से आएगा? अरे भाई आई एस आई ने जो नकली भारतीय नोट छापे हैं उन्हें असली डालर में कन्वर्ट कर लो. क्या कहा? ऐसा संभव नहीं है?
तो फिर भैया एक ही रास्ता है. बराक ओबामा से पकिस्तान सरकार कहे कि; "अमेरिका पकिस्तान को अपना प्रीमियर लीग शुरू करने के लिए पैसा दे."
अगर अमेरिका प्रीमियर लीग शुरू करने के लिए पैसा नहीं देता तो शिक्षा वगैरह के प्रसार के लिए अमेरिका से जो पैसा मिला है वो प्रीमियर लीग में लगा दो. एक बार शुरू कर लो जो होगा देखा जाएगा.
आखिर पहले भी तो अमेरिकी सहायता राशि से हथियार खरीदे गए हैं.
सोचिये ज़रा क्या सीन होगा? पकिस्तान प्रीमियर लीग की शुरुआत होगी. बड़े धूम-धाम के साथ. उदघाटन समारोह में गाने वगैरह गाने के लिए उन कलाकारों को बुला लो जो भारतीय रीयलिटी शो में हिस्सा ले चुके हैं. उसको तो पक्का बुलाना जिसके घर में हिमेश रेशम्मैया रोटी खाना चाहते थे.
साथ ही पाकिस्तानी स्टैंड-अप कॉमेडियन लोगों को बुला लो जो भारतीय शो में पार्टिसिपेट करके मुंबई हमले के बाद अपने 'मुलुक' वापस चले गए हैं. अताउल्लाह खान को बुला लेना. वो स्टेज पर गायेगा; "अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का..."
आतिशबाजी का कान्ट्रेक्ट तालिबानियों को दे देना. विकट आतिशबाजी करेंगे तालिबानी. क्या कहा? उनके साथ सेना लड़ रही है. कोई बात नहीं. डॉक्टर अब्दुल कादिर खान को बुला लेना. वे चार ठो न्यूक्लीयर बम फोड़ देंगे. आतिशबाजी का कोरम पूरा हो जाएगा.
कुल मिलाकर "मस्त महौल में जीने दे" टाइप वातावरण हो जाएगा. बिलकुल झक्कास उदघाटन.
अब विदेशी खिलाड़ी तो पकिस्तान में खेलने से रहे. आठ दस टीम बनेगी तब जाकर प्रीमियर लीग चालू होगा. क्रिकेटर कम पड़ेंगे ही. इमरान खान, जावेद मियाँदाद, तसलीम आरिफ वगैरह को रिटायरमेंट से वापस आने के लिए उकसा दो. सरफ़राज़ नवाज़ को तो पक्का लाना. साज़िश शब्द उनसे ही परिभाषित है. पाकिस्तानी क्रिकेट में तीन-चौथाई साज़िश का क्रेडिट उन्हें ही जाता है.
टीम का नाम भी बढ़िया रखना. जैसे वजीरिस्तान वैरियर्स, करांची बाम्बर्स, लाहौर शूटर्स, स्वात चार्जर्स, और नोर्थ-वेस्ट गनरनर्स, रावलपिंडी बादशाह...
अब सरकार पैसा दे रही है तो टीम के मालिक भी सरकारी लोगों को ही बनाना. रहमान मलिक को रावलपिंडी बादशाह का मालिक बना देना और इमरान खान को उसी टीम का कैप्टेन. टीम का मालिक और कैप्टेन एक-दूसरे से भिड़ते आये हैं. यहाँ भी भिड़ लेंगे. इमरान खान अपने क्रिकेटीय अचीवमेंट का जो डोस्सियर रहमान मलिक को देंगे, रहमान मलिक उसे रिजेक्ट कर देंगे. यह कहते हुए कि डोस्सियर पूरा नहीं है.....
एक टीम शेरी रहमान को ज़रूर देना. उन्हें सरकार में लाने का यही तरीका है कि उन्हें किसी चीज की मालकिन बना दिया जाय.
कुल मिलाकर विकट प्रीमियर लीग बनेगी. जितनी टीमें होंगी और जितने खिलाडियों की खरीदारी होगी सब का दस परसेंट मिस्टर टेन परसेंट को घर पहुंचा देना.....
अब पूरा प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनावावोगे क्या?
जितना दिमाग भारत पर हमला करवाने के लिए लगाते हो, उसका आधा भी लगा दोगे तो बड़ी झक्कास प्रीमियर लीग बनेगी...
मेरी तरफ से आल द बेस्ट!!
Saturday, January 23, 2010
पकिस्तान प्रीमियर लीग
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मैंने जूता भिगोकर मारा था
ReplyDeleteआपने तो कपड़े में लपेटकर मारा है
वो भी मखमल वाले… धन्य हो गुरुदेव आप :)
मज़ा आ गया पढ़कर..आपकी जानकारी जिसको आपने चरणबद्ध तरीके से पिरोया है काबिले तारीफ है...बधाई..
ReplyDeleteमस्त मस्त भाई. इस से ज़रा छोटा लिखा करो तो हम जैसे नासमझों के समझ में भी आ जाए. जब तक आखिर तक पहुँच भी जाते हैं तो शुरुआत भूल जाते है. कहा है आप से कई बार की उम्दा किस्म के मंदबुद्धि हैं.
ReplyDeleteपाकिस्तान के हुक्मरान को फैक्स कर देता हूँ, क्या खूब आइडिया है.
ReplyDeleteएक मिनट ठहरें, फैक्स किसको करूँ? वहाँ की सेना को, सरकार को या तालिबानों को?
अच्छा पाकिस्तान वालो के पास फैक्स भी है.. मुलुक तो तरक्की कर रहा है..
ReplyDeleteजो मैं कहा चाहती थी,शब्दशः संजय बेंगानी जी ने कह दी...अब मैं क्या कहूँ ???? अब तो दुआ कर सकती हूँ की यह आलेख उन लोगों तक पहुंचे,जिन्हें इसे क्रियान्वित करनी है...और वहां की सारी जनता,इन्क्लूसिव तालिबानी,इस महत अभियान को देश का गौरव बढ़ने वाले जिहादी कार्यक्रम मान इस में दिलो जान से जुट जाएँ....इसी बहाने कुछ दिन तो सही भारतीय बाह्य आतंरिक अशांति के अपने कार्यक्रम को शिथिल करें...
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है,एकदम लाजवाब !!!!
गलत जगह आपने यह काम किया है. इसे तो सीधे ही आईएसआई के मुखिया को भेजना चाहिये था.
ReplyDeleteअब पूरा प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनावावोगे क्या? जितना दिमाग भारत पर हमला करवाने के लिए लगाते हो, उसका आधा भी लगा दोगे तो बड़ी झक्कास प्रीमियर लीग बनेगी...
ReplyDeleteमेरी तरफ से बेस्ट ऑफ़ लक.
bharat sarkaar fund kar bhi daeti par kyaa kartey saara kasaab ki dae rakeh mae kharch ho rhaa haen
majboori haen bhaiyaa varnaa niyat bharat ki saaf hi rehtee haen !!!!!!!!!!!!!
लाजवाब एकदम लाजवाब !!!!
ReplyDeleteशानदार! लाजवाब!!
ReplyDeleteवाह क्या आइडिया है सर जी...!
ReplyDeleteआपको पाकिस्तान वाले बहुत दुआएं देंगे। उनके आँसू अब शायद सूख जाँय। बहुत जल्द वे नये उत्साह से काम शुरू कर देंगे।
उनकी ओर से शुक्रिया का सन्देशा आ ही रहा होगा। आपको बधाई।
'पहले भी तो बिकते रहे हैं' . हा हा ! और टीम के नाम तो गजब ढाएँगे. वैसे देखिये आप सरेआम पाकिस्तान का अपमान कर रहे हैं... गनीमत है वहां हिंदी ब्लॉग लिखने पढने वाले नहीं है. हिंदी की ट्रेनिंग तो वैसे ही चलती रहती है, आना जाना भी लगा रहता है. मुलुक' के आकाओं ने हिंदी पढ़-पढवा लिया तो समझते रहिएगा. :)
ReplyDeleteहमरी तरफ से उ लोगन को बेस्ट ऑफ लक!!
ReplyDeleteदादा छा गये आप तो, क्या गजब आईडिया दिये हैं, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों को भी कुछ आईडिया-फाईडिया दे देते तो ......
ReplyDeleteअगर फैक्स का जुगाड़ हो जाये तो हमरा नाम जरूर दे देना हम वहां फ़ोकट में खेल आयेंगे...आप तो देखें ही हैं हम कितना बढ़िया गेंद बाज़ी करता हूँ...नहीं खिलाने पर इत्ता गुस्सा काहे करते हैं वहां के लोग ? हमें देखो अभी गणतंत्र दिवस पे ससुरे हमारी कोलोनी में गोस्वामी मेमोरियल (मेमोरियल इस लिए ताकि हारने और जीतने वाला दोनों हमें याद रखे) क्रिकेट टूर्नामेंट में हम से ग्यारह हज़ार रुपये लेकर भी हमें नहीं खिलाये...बोले आपका मार्केट वेल्यु डाउन है...आपका भरोसा नहीं है...आप कुल जमा पचास मैच में पांच रन से अधिक रन नहीं बनाये हैं...और गेंद बाज़ी...गैंदा फूल जैसी है...अपना विकिट आपके मातहत आपसे परमोशन लेने की चाह में आपको यूँ ही सौंप देते हैं...हम तो नहीं रोये ये सब सुन कर...हम पकिस्तान वालों को इतना सब नहीं बोले तब भी रो रहे हैं...उनसे कहिये हमें बुलाएँ और हम से सीखें की बिना खेले भी खुश कैसे रहा जाता है...
ReplyDeleteपोस्ट बढ़िया लिखें हैं आप...हमेशा की तरह...जयपुर से लौट कर टिपियाने के नित्य कर्म से निवृत हो रहे हैं हम अभी....:))
नीरज
मीठी भाषा में चुभता हुआ व्यंग्य। मजा आ गया।
ReplyDeleteभारत पर हमला करवाने के लिए दिमाग लगाना उनकी मजबूरी है। अब तो लत लग गई है। इसमें कटौती करने की वे सोच भी नहीं सकते। उनकी अपनी ही नय्या डूब जायेगी।
उत्ता लजबाब नहीं जित्ता लगता है! :)
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