पिछले कई दिनों से जीवन कोहरा-प्रधान हो गया है. चारों तरफ कोहरा ही कोहरा है. इधर कोहरा, उधर कोहरा. आसमान में कोहरा जमीन पर कोहरा. सड़क पर कोहरा. पगडंडी में कोहरा. मैदान में कोहरा पेड़ पर कोहरा. कोहरे के ऊपर कोहरा और कोहरे के नीचे कोहरा.
कुल मिलाकर जीवन में कोहरे का महत्व बढ़ गया है. जिनके इलाके में कोहरा नहीं है वे बेचारे निराश होते हुए कह रहे हैं कि; "कितने लकी हैं वे लोग जिनके इलाके में कोहरा पड़ा है. एक हम हैं जो कोहरे के लिए तरस गए हैं."
जो कोहरे की वजह से देर से आफिस पहुँच रहे हैं वे संतुष्ट हैं कि उनका जीवन कोहरे से प्रभावित है. उनके पास कल तक जितनी कहानियां थीं उसमें कोहरे की कहानी और जुड़ गई. वे इस बात से मन ही मन प्रमुदित च किलकित हैं कि कोहरे की इस कहानी को अपने नाती-पोतों को सुना सकेंगे.
आज से बीस-पचीस साल बाद जब कभी कोहरा पड़ेगा तो वे कहेंगे; "अब कहाँ पड़ता है कोहरा? ये कोहरा भी कोई कोहरा है? कोहरा तो पड़ा था साल २०१० के जनवरी महीने में. हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था. खाने बैठे थे. रोटी के साथ सब्जी की जगह जगह अचार उठा लिया और मुंह की जगह नाक में डाल लिया. ऐसा कोहरा पड़ा था उस साल. ये कोहरा तो उस कोहरे के सामने कुछ नहीं है."
मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसे लोग उन लोगों को हेयदृष्टि से देखते होंगे जिनके इलाके में कोहरा नहीं पड़ रहा है.
टीवी न्यूज़ चैनल पर तो कल से हालात बहुत खराब हो गए हैं. संवाददाता बेचारे कोहरे को कवर करते हलकान हुए जा रहे हैं. कोई रेलवे स्टेशन पर कोहरा कवर कर रहा है तो कोई हवाई अड्डे पर. संवाददाता कैमरे के सामने खड़े हुए बता रहा है; " आप देख सकती हैं सोनिया कि विजिबिलिटी जीरो है."
उधर टीवी स्टूडियो में बैठी सोनिया चाहकर भी नहीं पूछ पा रही हैं कि; " सौरभ, विजिबिलिटी अगर जीरो है तो तुम कैसे दिखाई दे रहे हो?"
रेलगाड़ियाँ लेट चल रही हैं. हवाई जहाज लेट उड़ रहे हैं. कुछ तो कैंसल हो जा रहे हैं. लेट चलते-चलते रेलगाड़ियाँ बोर हो जा रही हैं तो आपस में भिड़ जा रही हैं. रेल विभाग पर कोहरे की मार बहुत जोर से पड़ी है. अधिकारियों को घर से भी काम करना पड़ रहा है. जो नहीं कर पा रहे हैं वे भी काम कर रहे हैं. कुल मिलाकर विकट कोहरामय है सबकुछ.
कोहरे से हो रहे नुक्सान का हिसाब लगाया जा रहा है. न जाने कितने लोग कैलकुलेटर पर अंगुलियाँ फेरते बिजी हैं. एयरलाइंस की फ्लाईट कैंसल हो गई? आज कुल पचास करोड़ का नुक्सान हुआ. कैंसिलेशन के वजह से पेट्रोल-डीजल नहीं बिका सो अलग. सबकुछ जोड़ लें तो कुल मिलाकर सुबह से ग्यारह बजे तक सत्तावन करोड़ चौबीस लाख का नुक्सान हो चुका है. युवराज को आज छत्तीसगढ़ जाकर छात्रों से मिलना था. फ्लाईट कैंसल होने की वजह से वे नहीं जा सके. छात्र उनका इंतज़ार करके अपने-अपने घर चले गए. कुल ढाई सौ छात्रों ने अगर चार घंटा इंतज़ार किया तो कुल मिलाकर १००० छात्र घंटे का नुक्सान हो गया. उधर युवराज का सात घंटे का नुक्सान सो अलग.
इतनी सर्दी के बीच बसंत आ गया. बसंत को सर्दी से डर नहीं लगा होगा इसलिए आ गया. अन्य वर्षों के मुकाबले जल्दी आ गया. सर्दी उसके आने से वैसे ही खफा थी जैसे रोज रात को साढ़े नौ बजे सोने वाले किसी नियम के स्ट्रिक्ट आदमी के घर में अचानक कोई बिना बताये आ जाए.
लेकिन सर्दी भी इतनी जल्दी हार मानने वाली थोड़े न है. सत्ता हस्तांतरण इतना ईजी नहीं होने देना चाहती. बसंत के आने से सर्दी इस कदर गुस्सा हुई कि उसने कोहरे के साथ हाथ मिलाया और उसे लाकर बसंत के सामने खड़ा कर दिया. लो झेलो अब. हमें नहीं समझते न. अब इससे निपटो. बसंत की गाड़ी पटरी से उतर गई है.
अब कोहरा केवल बसंत को ही नहीं बल्कि साथ-साथ कुलवंत, यशवंत और हनुमंत को भी हलकान किये है.
कल तक बसंत पर कविता लिखने वाले कवियों ने अब कोहरे पर कविता लिखनी शुरू कर दी है. कोई कवि आसमान को कोहरे की मोटी चादर में लपेट दे रहा है तो कोई अपनी गाड़ी को कोहरे के कम्बल में लपेट कर सुला दे रहा है. कोई तो समय को ही कोहरे में लिपटा बता दे रहा है. कुल मिलाकर विकट कविताई करवा रहा है यह कोहरा.
कविताई का वातावरण ऐसा चौचक बना है कि वीर-रस का कवि बसंत और कोहरे के युद्ध का वर्णन करते हुए कविता लिख सकता है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि कोहरे की वजह से केवल और केवल नुक्सान ही हो रहा है. अगर कोहरे के बीच दिमाग से काम लिया जाय तो कुछ लोगों के लिए कोहरा वरदान भी साबित हो सकता है. शर्त केवल एक ही है वे कोहरे का सही इस्तेमाल करें. अब अपने पचौरी साहब को ही ले लीजिये. उनके संस्थान ने बताया कि हिमालय के ग्लेशियर २०३५ तक पिघल जायेंगे. अब जब नए आंकड़े इकठ्ठा करके वैज्ञानिक और रमेश बाबू उनके पीछे पड़ गए तो वे परेशान हो गए. समझ में नहीं आ रहा कि क्या कहें?
लेकिन अगर वे थोड़ा धीरज से काम लें तो कह सकते हैं कि; " हम क्या करें? कोहरे की वजह से विजिबिलिटी जीरो हो गई थी. रिपोर्ट ठीक से नहीं पढ़ पाए. ३०३५ को २०३५ पढ़ गए. या यह भी कह सकते हैं कि इस विकट कोहरे में कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दिया और मिट्टी वाले पहाड़ को ही ग्लेशियर समझ गए और साल २०३५ वाली भविष्यवाणी कर गए. "
नई पोस्ट लिख कर अगर कोई ब्लॉगर अपने साथी ब्लॉगर से उसे पढ़ने और कमेन्ट करने के लिए कहे तो साथी ब्लॉगर कह सकता है कि; "भैया हमारे इलाके में कोहरे की वजह से विजिबिलिटी जीरो है. या फिर केवल तीन इंच है. ऐसे में पोस्ट पढ़ना और कमेन्ट करना तो संभव नहीं है. अग्रीगेटर पर पसंद बढ़ाने के लिए भी मत कहना. अग्रीगेटर पर विजिबिलिटी माइनस में चल रही है."
इतना कहने के बावजूद फिर भी अगर पोस्ट लिखने वाला ब्लॉगर पोस्ट पढ़ने और कमेन्ट करने के लिए अडिग रहे तो सामने वाला कमेन्ट में जय हो की जगह क्षय हो लिख डालेगा और हाय-तौबा मचाने पर कह देगा कि; "तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा था न कि हमारे इलाके में विजिबिलिटी जीरो हो गई है. कमेन्ट पढ़कर अब तो विश्वास हो गया होगा. सही में कुछ दिखाई नहीं दे रहा है."
कुल मिलाकर यही कहना है कि भैया सर्दी के मौसम में कोहरा, ओस वगैरह तो रहेगा ही. इतना हलकान होने की क्या ज़रुरत है? वैसे भी ग्लोबल वार्मिंग की बात सच साबित हुई तो कुछ ही सालों में कोहरा और ओस तो केवल म्यूजियम में रखने की चीजें हो जायेंगी. इसलिए जब तक कोहरा वगैरह के दर्शन हो रहे हैं करते जाइए. मस्त रहिये.
Friday, January 22, 2010
कोहरा-प्रधान जीवन
@mishrashiv I'm reading: कोहरा-प्रधान जीवनTweet this (ट्वीट करें)!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आFःज़ ख़ख़ाडF ज्ख़्टूF ज्ळ्ख़ध्ज्ख्क आFळ्ख़्ख़ ईज्ळ्ख़ाद्फ़ ओल्ल्ज्ल्ज
ReplyDeleteपहले वाली टिप्पणी तब की है जब कीबोर्ड पर कोहरा जमा था, अब हीटर ऑन करके लिख रहे हैं… :) जमे रहिये आप कोहरे में… एकाध फ़ोटू भी भिजवाईये कोहरे का… जिसमें आप आग तापते दिखाई दें… Venue का महत्व नहीं है, हम ये मान लेंगे कि आपके यहां फ़ायर प्लेस नामक राजसी चीज होगी ही… :) कोहरे का एक फ़ायदा ये भी है…
ReplyDeleteक्षय हो.... सॉरी यहाँ तो कोहरा है ही नहीं. अतः बहाना नहीं चलेगा. काम पर भी समय से जाना पड़ रहा है. कुल मिला कर मायुसी का माहौल है. कोहरे को 'मिस' कर रहे है.
ReplyDeleteटीवी एंकर वाला भाग गुदगुदा गया.
क्या बात है …लगता है कलकत्ता में भी कोहरा गिर रहा है इस बार तो :)
ReplyDeleteभैया हमारे इलाके में कोहरे की वजह से विजिबिलिटी जीरो है. या फिर केवल तीन इंच है. ऐसे में पोस्ट पढ़ना और कमेन्ट करना तो संभव नहीं है. अग्रीगेटर पर पसंद बढ़ाने के लिए भी मत कहना. अग्रीगेटर पर विजिबिलिटी माइनस में चल रही है.
ReplyDeleteKohre ka aarthik samajik rajnitik blogariy aur sahityik sara vivechana kar daala....Waah !!!
ReplyDeleteKohramay sundar post !!!
कांपता तन,
ReplyDeleteठूंठ के पत्ते सरीखा
अब झरा
तब झरा
पीत वर्ण चहुं ओर
को हरा?
कोहरे पर मौसमी कवियों के द्वारा कविताई का दौर प्रशंसनीय है; हिन्दी के प्रचार प्रसार में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता.
ReplyDeleteइस कड़ी में उपर टिप्पणी के बाद मान. श्री ज्ञानदत्त जी का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया है. कोहरे की वजह से शायद दिख न पाये, यह दीगर बात है.
कुछ एक बूंद इस अथाह सागर में:
कहने को तो आज धरा को
कोहरे ने आकर घेरा है..
पर खिड़की से जितना दिखता है
उतना सा कोहरा मेरा है...
:)
'मुंह की जगह नाक में डाल लिया'. ये तो नोट कर लिया है. २०३५ के लिए. साल सही दिखा है ना मुझे :)
ReplyDeleteइस देश में और भी बहुत जगह कोहरा है जिस की वजह से बहुत कुछ दिखाई नहीं देता। यहाँ तक कि कोहरा भी दिखाई नहीं देता। शीर्षक पढ़ कर सोचा था आप की पोस्ट में उस कोहरे का उल्लेख होगा। लेकिन पूरी पोस्ट पढ़ने पर भी वह कहीं दिखाई नहीं दिया। कुछ निराश हूँ।
ReplyDeleteआपका कोहरा आख्यान पढ कर चारों और की धुंद और भी गहरा गई । आज तो सूरज देवता सारा दिन रजाई में ही घुसे रहे । कर्मयोग की वाट लगा दी । क़ष्ण जी के सबसे पहले शिष्य होकर भी इतनी ढिठाई !
ReplyDeleteनेताओं के चक्षुओं का कोहरा हटवाने का इन्तजाम कीजिये.
ReplyDeleteकोहरा बना मोहरा
ReplyDeleteलिखने और लिखाने का
काम-काज को ताख पे रखकर
इधर उधर टिपियाने का
जय हो...
बंधू हम भी कोहरे के साक्षात् दर्शन लाभ के लिए जयपुर चले आये जहाँ जीरो विजिबिलिटी होने के बावजूद आपकी रचना पढ़ पाए...(और कुछ करने को जो नहीं है) एक आप हैं जो बिना कोहरे के भी हमारी पोस्ट पर नहीं तिपियायाये...खैर ये जगह आरोप प्रत्यारोप के लिए नहीं है...आप की ये पोस्ट कोहरे में बसंत की तरह मन भावन है....:))
ReplyDeleteनीरज
हम तो जी बस यही कहेंगे की पोस्ट पढ़कर मज़ा आ गया
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
अजी पूरे कोहरामय हो गये हम...
आभार!
boss ek lambe arse k bad me aapke blog par aaya hu aur dil yah dekhkar khush ho gaya ki tevar vahi hai. har jagah , har baat pe vyangya lekin chetavni dhundh niklna.....
ReplyDeletejaari rahe bhaiya
कोहरे की चादर में लिपटी
ReplyDeleteकविता .. लेख? फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी!
पढकर मज़ा हो गया दोहरा
धुंध देखकर छट गया कोहरा!!
बेहतरीन लेख। अद्भुत उपमायें। लजबाब! प्रवाह शानदार है!
ReplyDeleteगुरुदेव, इस समय ये पोस्ट पढना दवाई सा काम कर गया. एक बढ़ी डिपरेस्सिंग पिक्चर देख ली थी. अँधेरे का प्रभाव मनन पे कोहरा सा दाल रहा था.
ReplyDeleteअचानक सुबह से खुला ये टेब दिखा.. जो की मौसमी कोहरे के कारण सुबह से दुख नहीं था.
पढ़ के सारा कोहरा छंट गया.
कोहरे की महिमा का हम आजतक ऐसा आंकलन नहीं कर पाए थे. पर आप तो दूरदर्शी हैं.. आपने सारा भविष्य दिखा दिया.
हम लक्की हैं, हमारे शहर में अच्छा कोहरा पढता है, तो इस बहाने कविताओं को भी प्रेरणा मिलेगी.
इतने दिनों बाद यहाँ आना सफल हो गया.
मूड चेंज और बढ़िया पोस्ट पढवाने के लिए धन्यवाद!