बड़ा बवाल मचा हुआ है. पूरे भारत में दस-पंद्रह शब्द गूँज रहे हैं. शाहरुख़ खान, बाल ठाकरे, आई पी एल, माफी, महाराष्ट्र, उत्तर भारतीय, टैक्सी ड्राइवर, कराची, मन्नत, माई नेम इज खान, राहुल गाँधी, जूता, लोकल ट्रेन, ए टी एम, शरद पवार, इज्जत, धूल, पाकिस्तानी क्रिकेटर्स, वगैरह-वगैरह.
जो भारतीय इन शब्दों से नहीं खेल रहा उसे लोग शक की निगाह से देख रहे हैं. साथ ही साथ उसके सामान्य ज्ञान पर टीका-टिप्पणी तक किया जा रहा है. कल ऐसा ही प्रयास मेरे साथ किया गया. मेरे एक मित्र ने कहा; "तुम इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रहे. ब्लॉग पर भी नहीं लिख रहे. सामान्य ज्ञान पर क्या अपर सर्किट लगा हुआ है?"
उनकी बात लग गई मुझे. मित्रों की बात बहुत जल्दी लगती है. लोगों को उनके बॉस, शहर के दरोगा, और ट्रैफिक कांस्टेबल की गाली उतनी नहीं चुभती जितना मित्रों की बात चुभती है. बस बात चुभी तो हमने भी उस इंटरव्यू को अपने ब्लॉग पर छापने का फैसला कर लिया जो एक पत्रकार ने बाल ठाकरे से परसों ही किया था.
आप इंटरव्यू बांचिये. मित्रों को चेतावनी है कि वे मेरे सामान्य ज्ञान पर टीका-टिप्पणी न करें नहीं तो मैं फट से इंटरव्यू का ब्रह्मास्त्र चला दूंगा. इंटरव्यू नहीं तो डायरी का आग्नेयास्त्र. कुछ न कुछ ज़रूर चलेगा.
..........................................................
पत्रकार : नमस्कार सर.
ठाकरे जी : मराठी नहीं आती तुमको?
पत्रकार : वो क्या है सर कि मैं ख़ास तौर पर आपका इंटरव्यू लेने दिल्ली से आया हूँ. इसलिए मैं हिंदी में ही सवाल पूछूँगा.
ठाकरे जी : दिल्ली से आये हो तो इंटरव्यू लेकर चले जाओगे तो? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुंबई में बसने का प्लान लेकर आये हो?
पत्रकार : नहीं-नहीं सर. मुंबई में बसने का मेरा इरादा नहीं है. मैं घूम-घूम कर इंटरव्यू लेता हूँ. अब आपका इंटरव्यू लेने के बाद मेरे पास असाइंमेंट है कि मैं बंगलौर सॉरी बंगलूरु जाकर देवेगौडा जी का इंटरव्यू लेना है.
ठाकरे जी : तब ठीक है. सवाल करो. एक मिनट-एक मिनट. सवाल करने से पहले बोले; "जय महाराष्ट्र."
पत्रकार : वो तो मैं बोल देता हूँ, सर. जय महाराष्ट्र. वैसे एक बात बताइए, सर. आप जय भारत मेरा मतलब जय राष्ट्र क्यों नहीं बोलते हैं?
ठाकरे जी : किसने पत्रकार बना दिया तुमको? आज की पत्रकारिता का स्तर गिरता जा रहा है.
पत्रकार : सर, आप भी तो पत्रकार रह चुके हैं. ऐसा क्यों कह रहे हैं?
ठाकरे जी : पत्रकार रह चुके हैं से क्या मतलब तुम्हारा? मैं अभी भी पत्रकार हूँ. सामना में मेरा एडिटोरियल नहीं देखा कभी?
पत्रकार : नहीं सर. वो क्या है कि मुझे मराठी नहीं आती न. वैसे आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया. आप राष्ट्र की जय क्यों नहीं बोलते?
ठाकरे जी : तुम्हें साधारण ज्ञान भी नहीं है. एक बात बताओ, किसमें 'महा' है? राष्ट्र में तो महा नहीं है न. महा तो केवल महाराष्ट्र में है. ऐसे में कौन बड़ा है? राष्ट्र बड़ा या महाराष्ट्र बड़ा?
पत्रकार : वैसे देखा जाय तो 'महा' तो सर राष्ट्र में ही लगा है. राष्ट्र में महा लगा तभी तो महाराष्ट्र बना. महाराष्ट्र में अगर महा लगा होता तो फिर महा-महाराष्ट्र कहते न फिर? खैर, जाने दीजिये. मैं आपकी बात समझ गया हूँ. मेरा अगला सवाल है कि शिव-सैनिक लोग जगह-जगह शाहरुख़ खान की फिल्म का पोस्टर फाड़ रहे हैं. आप शिव-सैनिकों को क्यों नहीं रोकते?
ठाकरे जी : देखो, तोड़-फोड़ और पोस्टर फाडू कार्यक्रम संगठन के बाय-ला की वजह से हो रहा है. वो क्या है कि इतने दिन हो गए थे कि हमारे सैनिक बैठे-बैठे बोर हो रहे थे. कई सैनिकों को यह चिंता सताने लगी थी कि अगर जल्द ही कोई तोड़-फोड़ न शुरू की गई तो फिर उनकी प्रैक्टिस नहीं होगी. और अगर प्रैक्टिस नहीं होगी तो ज़रुरत पड़ने पर वे परफ़ॉर्म नहीं कर पायेंगे.
पत्रकार : तो यह तोड़-फोड़ कार्यक्रम प्रैक्टिस के लिए किया जा रहा है?
ठाकरे जी : हाँ. प्रैक्टिस बनी रहे तो संगठन के लिए शुभ होता है.
पत्रकार : अच्छा, ये बताइए. लोग आपके ऊपर आरोप लगाते हैं कि आप इस तरह के काम पैसे लेकर करते हैं. लोगों का कहना है कि ये शिव-सेना का साइड बिजनेस है. जिस फिल्म को पब्लिसिटी चाहिए होती है उसके प्रोड्यूसर आपके पास आकर रिक्वेस्ट करते हैं कि आप का संगठन उस फिल्म का पोस्टर वगैरह फाड़ दे और रिलीज न होने की धमकी दे तो उन्हें पब्लिसिटी मिल जायेगी. क्या यह सच है?
ठाकरे जी : मैं इसके बारे में कुछ नहीं कहूँगा.
पत्रकार : लेकिन अगर आप कुछ कह देते तो लोगों को आपके स्टैंड के बारे में पता चल जाता.
ठाकरे जी : इसमें स्टैंड कैसा? हमारे संगठन का काम है तोड़-फोड़ करना. अब ऐसे काम से किसी का भला हो जाता है तो अच्छी बात है न. ऐसा होने से हमें भी कुछ पूण्य कमाने का मौका मिलता है.
पत्रकार : मतलब आप पूण्य कमाने के लिए राजनीति करते हैं?
ठाकरे जी : नहीं कोई ज़रूरी नहीं है कि राजनीति में केवल पूण्य कमाया जाय. राजनीति में जो कुछ कमाया जा सके सब कुछ कमाया जाना चाहिए. असल में यह डिपेंड करता है कि हम कहाँ हैं? अगर हम सत्ता में हैं तो और कुछ कमा लेंगे. सत्ता में नहीं हैं तो पूण्य कमा लेंगे.
पत्रकार : समझ गया. मैं आपकी बात समझ गया. अच्छा ये बताइए आपको यह नहीं लगता कि पब्लिसिटी की वजह से फिल्म वाले आपका इस्तेमाल कर रहे हैं? मतलब आप जाने-अनजाने में उन्हें हेल्प कर....
ठाकरे जी : यही तो असली राजनीति है. अब तुम्ही बताओ. क्या तुम इस बात को स्योर होकर कह सकते हो कि शिव-सेना पत्रकारों का इस्तेमाल नहीं कर रही? नहीं न....यही असली राजनीति है. मीडिया शिव-सेना का इस्तेमाल कर रही है. शिव-सेना मीडिया का इस्तेमाल कर रही है. फिल्म प्रोड्यूसर शिव-सेना का इस्तेमाल कर रहा है. शिव-सेना प्रोड्यूसर का इस्तेमाल कर रही है. असल में यह इस्तेमाल करने का युग है.....
पत्रकार : जी-जी. मैं समझ गया. आपके कहने का मतलब हम सब इस्तेमाली है.
ठाकरे जी : हाँ-हाँ. हमसब वही हैं. किसी न किसी बाग़ के माली. अपने-अपने बाग़ की रखवाली कर रहे हैं. रोज नए-नए पौधे लगा रहे हैं.
पत्रकार : तो जो पौधे आप अभी लगा रहे हैं, वे बचे रहेंगे? वे फूले-फलेंगे?
ठाकरे जी : क्यों नहीं. हर माली यही सोचकर पौधा लगाता है. सामने म्यूनिसिपल इलेक्शन हैं. कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा न.
पत्रकार : अच्छा ये बताइए कि कल ही शरद पवार ने आपसे मुलाकात की. मुलाकात के बाद आप आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को खेलने देंगे?
ठाकरे जी : शरद पवार और मेरी मुलाक़ात में आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी कहाँ से आ गए?
पत्रकार : लेकिन वे तो इसीलिए आपके पास आये थे न. ताकि आप आई पी एल में आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को खेलने दें.
ठाकरे जी : हा हा हा. वे मेरे पास आये थे मंहगाई के मुद्दे पर मेरी सलाह लेने. पूछ रहे थे कि चीनी, दाल वगैरह की कीमतें कैसे कम की जाएँ?
पत्रकार : ओह! ये बात है. तो आपने उन्हें सलाह दे दी?
ठाकरे जी : हाँ, मैंने उन्हें सलाह दे दी. मैंने कुल तेरह तरीके बताये मंहगाई रोकने के.
पत्रकार : कोई एकाध तरीके का खुलासा कर दीजिये. मैं छाप दूंगा.
ठाकरे जी : पहला तरीका मैंने बताया कि सबसे पहले यूपी और बिहार से गेंहूँ और चावल की एंट्री महाराष्ट्र में बंद कर दी जाए.
पत्रकार : ये तो बड़ा अच्छा तरीका है. अच्छा ये बताइए कि शाहरुख़ खान के साथ आपके पार्टी की लड़ाई कब तक चलेगी?
ठाकरे जी : ये तो डिपेंड करता है इस बात पर कि लड़ते-लड़ते दोनों कब बोर होंगे. जिस घंटे बोर हुए उसी समय लड़ाई बंद. ये सारा कुछ बोरियत के ऊपर निर्भर करता है.
पत्रकार : तो अभी बोरियत शुरू हुई या नहीं?
ठाकरे जी : नहीं-नहीं. अभी तो लड़ाई ही शुरू हुई है. बोरियत तो तब शुरू होगी जब लड़ाई कुछ दिन पुरानी हो जायेगी.
पत्रकार : चलिए हम आशा करते हैं कि आप जल्द ही बोरियत गति को प्राप्त हों. हम इंटरव्यू यही ख़त्म करते हैं.
ठाकरे जी : कोई बात नहीं. वैसे आज ही मुंबई से चले जाना.
पत्रकार : हाँ-हाँ सर, मेरी शाम की फ्लाईट है. मैं यहाँ से बंगलूरू जा रहा हूँ.
ठाकरे जी : बहुत ज़रूरी है. मैं कुछ सैनिकों को तुम्हारे साथ भेज रहा हूँ. वे तब तक एअरपोर्ट पर रहेंगे जब तक तुम प्लेन में बैठ नहीं जाते.
Thursday, February 11, 2010
......आप जल्द ही बोरियत गति को प्राप्त हों.
@mishrashiv I'm reading: ......आप जल्द ही बोरियत गति को प्राप्त हों.Tweet this (ट्वीट करें)!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत बढिया इंटरव्यू .. विश्वास है कि अब आपके सामान्य ज्ञान पर कोई टीका टिप्पणी नहीं की जाएगी !!
ReplyDeleteशिव भाई,
ReplyDeleteयह इंटरव्यू पढ़कर तमाम बोरियत दूर हो गई। वैसे इन दिनों चलने वाले भारी भरकम शब्दों से मैं भी दूर ही दूर हूं। इनसे कहीं अधिक मन अब भूतों में बसने-रमने लगा है।
तो आपने भी इस इंटरव्यू का इस्तेमाल अपने ब्लॉग पर कर लिया.. वाकई ये बड़ा इस्तेमाली युग है..
ReplyDeleteधांसू इंटरव्यू छाप दिया.
ReplyDeleteबढिया इंटरव्यू!!
ReplyDeleteब्लॉग ठाकरे का इस्तेमाल कर रहा है, ठाकरे ब्लॉग का इस्तेमाल करता है. भोत सही काम किया है. पतरकार का इंटरव्यू ही उड़ा कर छाप डाला. किसी के माल का इसते "माल" हो तो ऐसा.
ReplyDeleteम्यूनिसिपल इलेक्शन की तैयारी सही चल रही है, ऐसा ज्ञात हुआ.
मजा आया....वैसे मराठी तो ठाकरे के पौते-पौतियों को कित्ती आती है, यह कौन पूछे?
हम अभी कुछ नहीं बोलेंगे, पड़ोस से आकर कोई एयरपोर्ट तक छोड़ आया तो ? वैलेनटाइन डे वैसे ही नजदीक है. सन्डे को गलती से भी बस में किसी लड़की के बगल में बैठ गए तो सुना है ये शादी ही करा देंगे !
ReplyDeleteसच ही है दोनो एक दूसरे की पब्लिसिटी में लगे हुये हैं । हॉल के अन्दर चलेगी ’माय नेम इस खान’ और बाहर चलेगी ’वी आर द भाई’ ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा इंटरव्यू।
ReplyDeleteकिसी भी कोण से यह व्यंग्य नहीं है.....
ReplyDeleteगुंडों की एक फौज,कभी भाषा,कभी जाति और कभी धर्म के नाम पर कहीं भी,कुछ भी तोड़ फोड़ आती है और सारा सिस्टम,आम जनता मूकदर्शक बनी देखती रहती है...
इस्तेमाल और माल बनाना,यही राजनीति का स्वरुप और स्वभाव बन गया है...
सबको अध्कधिक धन बल अर्जित कर राजा बनना है और क्षद्म जनतंत्र चलाना है...
क्या कहा जाय...
बोरियत गति को प्राप्त हों ठाकरे जी के दुश्मन! मुद्दों की कमी है लड़ाई के लिये क्या?
ReplyDeleteचलिये जी उम्मीद करते हैं कि शिव-सैनिक बोरियत को प्राप्त हों ।
ReplyDeleteपहले डायरी, अब इंटरव्यू..आगे किसी की आत्मकथा का इन्तिज़ार है.
ReplyDeleteपहले सोचा था की खूब लम्बा उचित कमेन्ट करूँ लेकिन क्या है की मैं आप की तरह कलकत्ते में तो रहता नहीं मुंबई में रहता हूँ और मुंबई में रह कर आपके ब्लॉग पर छपी खबर को सच मान कर बाला साहब की शिव सेना के प्रति क्यूँ कुछ कहूँ? मुझे क्या बावले कुत्ते ने काटा है,जो मगर से पानी में रह कर बैर मोल लूं ? हैं? जब शाहरुख़ को खुद अपनी फिल्म की चिंता नहीं है और वो खुद दुबई चला गया है तो मैं क्यूँ उसकी फिल्म को लेकर दुबला होऊँ ? हैं? ठीक कहा ना बाला साहब? अब कोई मुद्दा नहीं मिले तो भी किसी न किसी बात पर पर तो सुर्ख़ियों में रहना ही पड़ता है ना...ये शिव बाबू तो कुछ समझते नहीं...लोगों की याददास्त कितनी कम होती है, ये सब ना करें तो हफ्ते भर में दाल रोटी के चक्कर में लोग शिव सेना को भूल नहीं जायेंगे...ये एग्जिस्टेंस की लड़ाई है...आप नहीं समझोगे शिव बाबू...यहाँ शिव सेना कष्ट में दुबली हुई जा रही है और आपको मजाक सूझ रहा है...कमाल है जी. हैं?
ReplyDeleteनीरज
लगता है इन्टरव्य़ू लेते लेते पत्रकार बोर हो गया होगा तो भाग लिया.
ReplyDeleteयह इस्तेमाल करने का युग है-ब्रह्म वाक्य दे गये भाई जी.
:)
मस्त रहा इन्टरव्यू!