आज गाँधी जयन्ती है. होनी भी चाहिए. आख़िर आज २ अक्टूबर है. आज सोच रहा था कि देश को स्वंतंत्र कराने के लिए किए गए आन्दोलन में भी गाँधी जी ने उतना भाषण नहीं दिया होगा, जितना पिछले पचास सालों में तमाम नेताओं ने उनके जन्मदिन पर दे डाला है. ऐसे ही भाषणों में से एक भाषण पढिये.
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सभा में उपस्थित देशवासियों, आज आपको यह बताते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है कि आज गांधी जी का जन्मदिन है. ये अच्छा हुआ जो गाँधी जी दो अक्टूबर को पैदा हुए. वे अगर आज के दिन पैदा न हुए होते तो हम उनका जन्मदिन नहीं मना पाते.
देखा जाय तो मौसम के हिसाब से भी अक्टूबर महीने में पैदा होकर उन्होंने अच्छा ही किया. अगर वे मई के महीने में पैदा होते तो गरमी की वजह से मैं शूट नहीं पहन पाता. अब बिना शूट के इतने महान व्यक्ति का जन्मदिन बहुत फीका लगता. सच कहें तो बिना शूट पहने तो मैं गाँधी जी का जन्मदिन मना ही नहीं पाता. जन्मदिन नहीं मनाने से कितना नुकशान होता. हमें आज भाषण देने का चांस नहीं मिलता. ऐसे में हमारी और आपकी मुलाकात नहीं हो पाती.
इस तरह से देखा जाय तो गाँधी जी हम दोनों का थैंक्स डिजर्व करते हैं.
अब मैं आपको गाँधी जी के बारे में बताता हूँ. गाँधी जी ने वकालत की पढ़ाई की थी. आप पूछ सकते हैं कि वे डॉक्टर या इंजिनियर क्यों नहीं बने? असल में गाँधी जी शुरू से ही इंटेलिजेंट थे. उन्हें पता था कि उनदिनों डाक्टरी में उतना पैसा नहीं था जितना वकीली में था. वकीली के पैसे के कारण ही गाँधी जी उनदिनों फर्स्ट क्लास में सफर कर पाते थे. यही कारण था कि वकालत पास करने के बाद उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपनी प्रैक्टिस शुरू की. वही दक्षिण अफ्रीका जहाँ के हैन्सी क्रोनिये थे. हैन्सी क्रोनिये से याद आया कि जब मैं क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष था उनदिनों वे भारत के दौरे पर आए थे. उनकी मेरे साथ क्रिकेट को लेकर बातचीत हुई थी.....(पब्लिक शोर करती है)
अच्छा अच्छा. वो मैं ज़रा अलग लैन पर चला गया था..... नहीं-नहीं ऐसा न कहें. वो तो मैंने सोचा मैं अपना अनुभव आपको बताऊँगा तो आपलोगों को प्रेरणा मिलेगी. कोई बात नहीं..आप चाहते हैं तो मैं मुद्दे पर वापस आता हूँ.
हाँ तो मैं कह रहा था कि गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में अपनी वकालत शुरू की थी. दक्षिण अफ्रीका सोने की खानों के लिए प्रसिद्द है. वहां सोना बहुत मिलता है. मुझे तो सोना बहुत पसंद है. यही कारण है कि मैं न सिर्फ़ सोना पहनता हूँ बल्कि संसद में सोने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देता.
दक्षिण अफ्रीका की बात चली है तो आपको एक संस्मरण सुनाता हूँ.
गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन के फर्स्ट क्लास में चलते थे. एक बार फर्स्ट क्लास में बैठे कहीं जा रहे थे तो वहां के टीटी ने उन्हें फर्स्ट क्लास से उतार दिया. उतार क्या दिया उन्हें डिब्बे से बाहर फेंक दिया. आपके मन में उत्सुकता होगी कि उस टीटी ने गाँधी जी को कैसे फेंका था. सभा में उपस्थित जिनलोगों ने गाँधी फिलिम देखी है, उन्हें तो पता ही होगा. लेकिन जिनलोगों ने ये फिलिम नहीं देखी है उनलोगों के मन में प्रश्न उठते होंगे कि इस टीटी ने गाँधी जी को डिब्बे के बाहर कैसे फेंका होगा?
अब आपको कैसे बताएं कि किस तरह से फेंका था. अच्छा ये समझ लीजिये कि ठीक वैसे ही फेंका था जैसे कई बार हमलोग सीट लेने के लिए फर्स्ट क्लास और एसी के यात्रियों को डिब्बे के बाहर फेंक देते हैं.
असल में उनदिनों वहां अँगरेज़ रहते थे न. अँगरेज़ लोग बहुत ख़राब होते थे. बहुत ख़राब माने बहुत ख़राब. अब अगर वे लोग गाँधी जी को डिब्बे से बाहर फेंकेंगे तो गाँधी जी चुप थोड़े ही रहेंगे. बस, उनलोगों ने जब उन्हें फेंका तभी से गाँधी जी का अंग्रेजों से लफड़ा शुरू हो गया.
गाँधी जी ने कसम खाई कि वे अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ देंगे. उन्हें पता था कि जो अँगरेज़ दक्षिण अफ्रीका में राज करते थे वही अँगरेज़ भारत में भी राज करते थे. बस फिर क्या था. उनसे बदला लेने के लिए गाँधी जी भारत वापस आ गए. भारत वापस आकर उन्होंने अंगरेजों के ख़िलाफ़ आन्दोलन छेड़ दिया. जाकर सीधा-सीधा बोल दिया कि "अंगरेजों, भारत छोड़ दो."
पहले तो अंगरेजों ने आना-कानी की. लेकिन गाँधी जी भी छोड़ने वाले थोडी न थे. उन्होंने अंगरेजों को भारत से भगाकर ही दम लिया.
अब हम आपको गाँधी जी के अन्य पहलुओं के बारे बताते हैं. आपको ये जानकर हैरत होगी कि गाँधी जी को बंदरों से बहुत प्यार था. उन्हें बंदरों से उतना ही प्यार था जितना हमें कुत्तों और गधों से है. जैसे हमलोग अपने घर में कुत्ते और घाट पर गधे पालते हैं, वैसे उन्होंने अपने पास तीन बन्दर पाल रखे थे. आप पूछ सकते हैं बन्दर ही क्यों? कुत्ते या गधे क्यों नहीं?
इसका जवाब जानने के लिए आपको इतिहास की पढ़ाई करनी पड़ेगी. वैसे तो इस बात पर इतिहासकारों में भिन्न मत हैं लेकिन जितनी पढ़ाई हमने की है उससे आपको इतना ही बता सकता हूँ कि उनदिनों देश में कुत्तों और गधों की संख्या बहुत कम थी. देश के सारे कुत्ते और गधों के ऊपर उनदिनों नवाबों और राजाओं का कब्ज़ा था. यही कारण था कि गाँधी जी ने बंदरों को चुना.
मित्रों, वैसे तो लोगों के अन्दर गाँधी जी के बंदरों के प्रति अपार श्रद्धा है. लेकिन मुझे तो ये बन्दर कोई बहुत इम्प्रेसिव नहीं लगे. सो सो लगे. लोग इन बंदरों की सराहना करते हुए नहीं थकते कि ये बन्दर न तो बुरा देखते थे, न बुरा सुनते थे और न ही बुरा बोलते थे. लेकिन एक बात पर हमें बहुत एतराज है. हमारा मानना है कि जब इन बंदरों को आँख, कान और मुंह मिला ही था, तो उसका उपयोग करने में क्या जाता है? कौन सा पैसा खर्च होता है?
मित्रों, मैं तो कहूँगा कि इस मामलों में हमारे कुत्ते गाँधी जी के बंदरों से बहुत आगे हैं. वे न सिर्फ़ बुरा बोलते हैं, बल्कि बुरा सुनते भी हैं और बुरा देखते भी हैं. ऐसा करने का फायदा ये होता है कि हमारे कुत्ते किसी भी मामले को तुरत रफा-दफा कर लेने में सक्षम हैं. वे न सिर्फ़ कान, आँख और मुंह का इस्तेमाल करना जानते हैं बल्कि मौके पर हाथ-पाँव का इस्तेमाल करना भी जानते हैं.
मुझे बाकी के लोगों का तो नहीं मालूम लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि कुत्ते हों या बन्दर, उन्हें अपने अंगों का और मौकों का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए.
मित्रों, वैसे तो गाँधी जी महान थे, लेकिन एक बात में बहुत ढीले थे. वे अपने बेटों को आगे नहीं बढ़ा सके. एक पिता का कर्तव्य नहीं निभा सके. उन्हें लगता होगा कि बच्चों का लालन-पालन करके ही एक पिता का कर्तव्य निभाया जाता है. बुरा न मानें लेकिन सच कहूं तो इस मामले में वे थोड़े कच्चे थे. अब देखा जाय तो एक तरह से राष्ट्र ही उनका था. ऐसे में उन्हें चाहिए था कि वे अपने बेटों को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री वगैरह बनाते. बच्चों का भला करना हर पिता का कर्तव्य है.
लेकिन फिर मैं सोचता हूँ कि मैं भी तो उन्हीं की संतान हूँ. देखा जाय तो जिसे राष्ट्रपिता कहा जाता हो, उसकी संतान तो पूरा राष्ट्र है. ऐसे में मैं ये सोचकर संतोष कर लेता हूँ कि मैं तो आगे बढ़ ही रहा हूँ. आजतक कैबिनेट में मंत्रीपद पर जमा हुआ हूँ. कल को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता हूँ. जब मैं इस लिहाज से देखता हूँ तो लगता है जैसे उन्होंने बेटों के प्रति अपने कर्तव्य का पालन उचित ढंग से ही किया.
दोस्तों गाँधी जी तो महान थे. उनकी गाथा का तो कोई अंत ही नहीं है. मुझे आशा है कि उनके अगले जन्मदिन पर हमलोग फिर इसी मैदान में मिलेंगे और मैं आपको गाँधी जी के बारे में और बताऊँगा. और अगर आपकी कृपा से मैं अगले चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बन गया तो हम गाँधी जी का जन्मदिन और धूमधाम से मनाएंगे. तब मैं पूरे तीन घंटे का भाषण दूँगा.
अगले एक साल के लिए बोलो गाँधी जी की
जय!
Thursday, October 2, 2008
गाँधी जी हम दोनों का थैंक्स डिजर्व करते हैं....
@mishrashiv I'm reading: गाँधी जी हम दोनों का थैंक्स डिजर्व करते हैं....Tweet this (ट्वीट करें)!
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ha ha ha
ReplyDeletebahut achhe ji.. kamal ki post hai..
maza aa gaya..
कइसे मनई हो यार, शिव भाई ?
ReplyDeleteराजनीति में जाने कुछ तो स्कोप रखा करो ,
कल की किसे ख़बर ...
ऎसे लेख लिख लिख कर तो अपने पैर पर कुल्हारी मार लोगे !
बोलो गांधी महात्मा की जय !
आज के लिये या साल भर के लिये नहीं..
बल्कि चारों ऋतु के निशिदिन व आठो पहर के लिये..
हमारी दृष्टि तो भाई मलाई पर है, आप बैठ कर यही फ़ालतू के ब्लाग लिखते रहो ।
जगहिया बना रहा हूँ, तुम्हें भी बुला सकूँ.. इतनी ग़ुंज़ाइश तो रखो !
आजतक कैबिनेट में मंत्रीपद पर आसन्न हूँ. कल को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता हूँ. जब मैं इस लिहाज से देखता हूँ तो लगता है जैसे उन्होंने बेटों के प्रति अपने कर्तव्य का पालन उचित ढंग से ही किया.
ReplyDeleteबहुत खरी २ ! मजा आ गया ! धन्यवाद !
बहुत अच्छा लगा ........अब अगले वर्ष की गांधी.जयंती पर भी नेताजी के ऐसे ही भाषण का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteक्या बोल रे ला है रे भिडू? कौन गाँधी रे...जिस का फोटू नोट के पिच्छू छपेला है...छोड़ रे हलकट क्या याद कर ले रा उसकू...कोई काम नहीं है जो खालीं पीली टेम खोटी कर ले रा है...इत्ता लोग पेले ही गाँधी पे बोल बोल के हलकान हो रेला है तेरे को बोलना जरूरी था क्या? चलो एक बार बोल दिया तो बोल दिया अब जबान नहीं खोलने का....क्या? ( एक भाई का नेता को फोन पे दिए जवाब की रेकोर्डिंग है ये...आप की पोस्ट से प्रेरित नहीं है..)
ReplyDeleteनीरज
महान नेता के महान बापू के प्रति महान (और वार्षिक)उद्गार!:)
ReplyDeleteगलत लिख गया। महान (और वार्षिक)उद्गार की जगह महीन (वार्षिक) उद्गार पढ़ें!
ReplyDeleteगांधीजी महान थे जो लेखकों को इत्ता महीन लिखने की प्रेरणा आज तक देते हैं।
ReplyDeleteWAH WAH
ReplyDeleteGANDHI JI SACH MUCH MAHAN THE. NAHIN HOTE TO YE NETA AISA BHASHAN NAHIN DE PAATA.
KITNE LOG GANDHI JI KE MAHANATA SE KHA RAHE HAIN.
गाँधीजी भोत महान थे, उनकी महानता का राज हम बताता हूँ, वो बकरी का दूध पीते थे. हम भी दूध पीता हूँ, जनता रूपी बकरी का.
ReplyDeleteजय हिन्द, जय भारत.
मेरा मानना है कि गाँधी पर तो चाहे जितना चाहो भाषण दिया जा सकता है क्योंकि उन्हें कोई अनुसरण नहीं करना चाहता.....यदि किसी को अनुसरण करना पड जाय तो किसी हालत में वह गाँधी पर भाषण नहीं दे सकता और जितनी बार मैं यह बात सोचता हूँ उतनी ही बार मेरा यह विश्वास द्रढ होता जाता है।
ReplyDeleteबेहतरीन लेख।
गांधी जी को प्रणाम.
ReplyDeleteजूता भिगोंकर मारना कहाँ सीखा जी? हमें भी बताते...। :)
ReplyDeleteगज़ब कर दिया भैय्या,गज़ब कर दिया।
ReplyDeleteबोलो गांधी जी की जय, अजी दिल को करता हे आप की जय जय कार करू, इतना सुन्दर भाषाण लिख मारा, अगर नेता लोगो को पता चल ग्या तो हमे इतनी अच्छी अच्छी रचना कोन देगा???
ReplyDeleteधन्यवाद
हमारा इटली के तोलना मे इहा का लोग किताना पीचडा हुआ हाय। हमारा उदर ६० बरस मे ६०० नेता बदला है इदर का माफ़िक नाही चलता। यस थीक हाय कि इहा का लोग बापु का बहुत बात करता है महातमा गान्धी का बात करता है लेकिन अब ६० बरस पेले जो मरि गया उस्को किदर से ला के दे सक्ता हय। हमारा हसबण्ड का मदर भी गान्दी था,राजीव भि गाधी था मै भी गाधी है। इदर का लोग फ़ारन का लेडी को बहुत चाहता है बहोत लोग मेरे को पी एम बनाना चहता था बट हिंडू लोगो का विरोद का वजह से मे नाहि बन पाया-हिडुओ को सोचना चाहिये था कि मै लेटेस्ट माडल का गांदी था। फ़िर अबी राँल को पी एम बनाना चाता है अब इस्से जादा लेटॆस्ट माडल का गान्धी हम ला कर किदर से दे सकता हाय?अब उसका मन भी इदर का राजनीत मे लागता है।पहले प्रियांका को बनाने का बात था लेकिन उस्का हस्बन्ड अभी नाया कैथालिक है दूसरा वो पहिला आर एस एस का बैकग्राउन्ड का था कबी धोका हो साकता था एइ खातिर राँल बाबा को तय किया। बाबा भी बापू की तरा ड्रामा करना सीख गया है आज टी वी पर देखा कि वह लरको का साथ बकेत से माटी उठा रहा है अभी भरोसा होता हाय कि चला लेगा। हमारा जो क्लोज़ कोर्टरी है एन्थनी, टाम वड्ड्कन,वर्गीज,आस्कर फ़र्नाडीज-मार्ग्रेट अल्वा बी हाय लेकिन वो १००%नही है बोला कि इदर सरकार बनाना इटली से ईज़ी है बस गान्धी का नाम चाहिये। उदर अहमद पटेल,मोह्सना किदवाइ,गुलाम नबी अर्जुन सिह वाला जो लाबी है वो बोलता हाय कि हिन्दू का विरोद मा सक्युलर्जिम का बात करने से बहुत वोट मिलता हय। तो गान्दी और सेक्युलरिज्म का बार बार नाम लेने से वोट मिल्ता हाय। बाकी कोई गड्बड होने पर मुकर्जी बाबू सभाल लेगा। अभी चुनाव साम्ने हय ब्लाग पर जादा समय नाही दे सक्त्ता। मगर चुनाव बाद अपना ब्लाग जरुर बनाएगा। जय गान्धी जय सेक्युलरिज्म।
ReplyDeleteबहुत उड़ा कर दिया...क्या कहें सिवाय इसके कि उन दोनों के अलावा आप भी थैंक्स डिजर्व करते हो..गाँधी जी की जय! शिव जी की जय!!
ReplyDelete:) बहुत बढ़िया ..सोच बहुत बढ़िया है आपकी
ReplyDeleteआपके आगमन से चिठ्ठाकारी की दुनिया में आनंद बढ़ जायेगा मज़ा आ जायेगा ... सच पूछो तो आज दो खबरे मिली सुबह सुबह एक तो की परमाणु करार के सन्दर्भ में भारत को मिली उपलब्धि दूसरी की ज्ञानदत्त पाण्डेय अब नेट मीडिया पर उपलब्ध आपका आलेख पढा बधाई स्वीकारें समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
ReplyDeleteबहुत धार-मार है आपके लेखन में...
ReplyDeleteकल यह लेख आपके ब्लाग की फूटेज के साथ एनडीटीवी पर दिखाया गया था....
गांधीजी की जय हो.
ReplyDeleteपिजा पिजा कर कलम की धार को जबरदस्त चमका लिए हो.जमे रहो.बहुत बहुत अच्छा लिखते रहो हमेशा..
थैंक्स जी थैंक्स..
ReplyDeleteबहुत बहुत थैंक्स..
अगर आप यह पोस्ट नहीं लिखते तो हमें कैसे पता चलता कि आप कोन्ये जी से भी मिले हैं.. मुझे तो अब शंका हो रही है कि कहीं मैच फिक्सिंग में आप दोनो तो नहीं मिले हुये थे?? :D