आज विजयदशमी है. सुनते हैं भगवान राम ने आज ही के दिन (ग़लत अर्थ न निकालें. आज ही के दिन का मतलब ९ अक्टूबर नहीं बल्कि दशमी) रावण का वध किया था. अपनी-अपनी सोच है. कुछ लोग कहते हैं आज विजयदशमी इसलिए मनाई जाती है कि भगवान राम आज विजयी हुए थे. कुछ लोग ये भी कहते हुए मिल सकते हैं कि आज रावण जी की पुण्यतिथि है. आँखों का फरक है जी.
हाँ तो बात हो रही थी कि आज विजयदशमी है और आज ही के दिन राम ने रावण का वध कर दिया था. आज ही के दिन क्यों किया? इसका जवाब कुछ भी हो सकता है. ज्योतिषी कह सकते हैं कि उसका मरना आज के दिन ही लिखा था. यह तो विधि का विधान है. लेकिन शुकुल जी की बात मानें तो ये भी कह सकते हैं कि भगवान राम और उनकी सेना लड़ते-लड़ते बोर हो गई तो रावण का वध कर दिया.
आज एक विद्वान् से बात हो रही थी. बहुत खुश थे. बोले; "भगवान राम न होते तो रावण मरता ही नहीं. वीर थे राम जो रावण का वध कर पाये. अरे भाई कहा ही गया है कि जब-जब होई धरम की हानी...."
उन्हें देखकर लगा कि सच में बहुत खुश हैं. रावण से बहुत घृणा करते हैं. राम के लिए इनके मन में सिर्फ़ और सिर्फ़ आदर है. लेकिन उन्होंने मेरी धारणा को दूसरे ही पल उठाकर पटक दिया. बोले; "लेकिन देखा जाय तो एक तरह से धोखे से रावण का वध किया गया. नहीं? मेरे कहने का मतलब विभीषण ने बताया कि रावण की नाभि में अमृत है तब जाकर राम भी मार पाये. नहीं तो मुश्किल था. और फिर राम की वीरता तो तब मानता जब वे बिना सुग्रीव और हनुमान की मदद लिए लड़ते. देखा जाय तो सवाल तो राम के चरित्र पर भी उठाये जा सकते हैं."
उनकी बात सुनकर लगा कि किसी की प्रशंसा बिना मिलावट के हो ही नहीं सकती. राम की भी नहीं. यहाँ सबकुछ 'सब्जेक्ट टू' है.
शाम को घर लौटते समय आज कुछ नया ही देखने को मिला. इतने सालों से कलकत्ते में रहता हूँ लेकिन आज ही पता चला हमारे शहर में भी रावण जलाया जाता है. आज पहली बार देखा तो टैक्सी से उतर गया. बड़ी उत्सुकता थी देखने की. हर साल न्यूज़ चैनल पर दिल्ली के रावण को जलते देखते थे तो मन में यही बात आती थी; "हमारे शहर में रावण क्यों नहीं जलाया जाता. भारत के सारे शहरों में रावण जलाया जाता है लेकिन हमारे शहर में क्यों नहीं? कब जलाया जायेगा? "
दिल्ली वालों से जलन होती थी ऊपर से. सोचता था कि एक ये हैं जो हर साल रावण को जला लेते हैं और एक हम हैं कि पाँच साल में भी नहीं जला पाते.
लेकिन आज जो कुछ देखा, मेरे लिए सुखद आश्चर्य था. खैर, टैक्सी से उतर कर मैदान की भीड़ का हिस्सा हो लिया. बड़ी उत्तम व्यवस्था थी. भीड़ थी, मंच था, राम थे, रावण था और पुलिस थी. हर उत्तम व्यवस्था में पुलिस का रहना ज़रूरी है. अपने देश में जनता को आजतक उत्तम व्यवस्था करते नहीं देखा.
जनता सामने खड़ी थी. जनता की तरफ़ राम थे और मंच, जहाँ कुछ नेता टाइप लोग बैठे थे, उस तरफ़ रावण था. मंच के चारों और पुलिस वाले तैनात थे. देखकर लग रहा था जैसे सारे के सारे रावण के बॉडी गार्ड हैं.
मैं भीड़ में खड़ा रावण के पुतले को देख रहा था. मन ही मन भगवान राम को प्रणाम भी किया. रावण को देखते-देखते मेरे मुंह से निकल आया; "रावण छोटा है."
मेरा इतना कहना था कि मेरे पास खड़े एक बुजुर्ग बोले; "ठीक कह रहे हैं आप. रावण छोटा है ही. इतना छोटा रावण भी होता है कहीं?"
मैंने कहा; "मुझे भी यही लगा. जब वध करना ही है तो बड़ा बनाते."
वे बोले; "अब आपको क्या बताऊँ? मैं तेरह साल दिल्ली में रहा हूँ. रावण तो दिल्ली के होते हैं. या बड़े-बड़े. कम से कम चालीस फीट के. हर साल देखकर लगता था कि इस साल का रावण पिछले साल के रावण से बड़ा है."
मैंने कहा; "दिल्ली की बात ही कुछ और है. वहां का रावण तो बहुत फेमस है. टीवी पर देखा है."
मेरी बात सुनकर उन्होंने अपने अनुभव बताने शुरू किए. बोले; "अब देखिये दिल्ली में बहुत पैसा है. वहां रावण के ऊपर बहुत पैसा खर्च होता है. और फिर वहां रावण का साइज़ बहुत सारा फैक्टर पर डिपेंड करता है."
उनकी बातें और अनुभव सुनकर मुझे अच्छा लगा. भाई कोई दिल्ली में रहा हुआ मिल जाए तो दिल्ली की बातें सुनने में अच्छा लगता है. मैंने उनसे कहा; "जैसे? किन-किन फैक्टर पर डिपेंड करता है रावण का साइज़?"
मेरा सवाल सुनकर वे खुश हो गए. शायद अकेले ही थे. कोई साथ नहीं आया था. लिहाजा उन्हें भी किसी आदमी की तलाश होगी जिसके साथ वे बात कर सकें.
'दो अकेले' मिल जाएँ, बस. दुनियाँ का कोई मसला नहीं बचेगा. मेरा सवाल सुनकर उनके चेहरे पर ऐसे भाव आए जिन्हें देखकर लगा कि बस कहने ही वाले हैं; "गुड क्वेश्चन."
लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा बल्कि बड़े उत्साह के साथ बोले; "बहुत सारे फैक्टर हैं. देखिये वहां तो रावण का साइज़ नेता के ऊपर भी डिपेंड करता है. समारोह में जितना बड़ा नेता, रावण का कद भी उसी हिसाब से बड़ा समझिये. अब देखिये कि जिस समारोह में प्रधानमन्त्री जाते हैं, उसके रावण के क्या कहने! या बड़ा सा रावण. चालीस-पचास फीट का रावण. उसके जलने में गजब मज़ा आता है. कुल मिलाकर मैंने बारह रावण देखे हैं जलते हुए. बाजपेई जी के राज में भी रावण बड़ा ही रहता था."
मैंने कहा; "सच कह रहे हैं. वैसे दिल्ली में पैसा भी तो खूब है. यहाँ तो सारा पैसा दुर्गापूजा में लग जाता है. ऐसे में रावण को जलाने में ज्यादा पैसा खर्च नहीं कर पाते."
मेरी बात सुनकर बोले; "देखिये, बात केवल पैसे की नहीं है. दिल्ली में बड़े-बड़े रावण केवल पैसे से नहीं बनते. रावण बनाने के लिए पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण है डेडिकेशन. कम पैसे खर्च करके भी बड़े रावण बनाये जा सकते हैं. सबकुछ डिपेंड करता है बनानेवालों के उत्साह पर. और इस रावण को देखिये. देखकर लगता है जैसे इसे मारने के लिए राम की भी ज़रूरत नहीं है. इसे तो शत्रुघ्न ही मार लेंगे."
मैंने कहा; "हाँ, वही तो मैं भी सोच रहा था. सचमुच काफी छोटा रावण है."
मेरी बात सुनकर बोले; "लेकिन देखा जाय तो अभी यहाँ नया-नया शुरू हुआ है. जैसे-जैसे फोकस बढ़ेगा, यहाँ का रावण भी बड़ा होगा..."
अभी वे अपनी बात पूरी करने ही वाले थे कि राम ने अग्निवाण दाग दिया. वाण सीधा रावण के दिल पर जाकर लगा. रावण जलने लगा.
चलिए हमारे शहर में भी रावण जलने लगा. अगले साल फिर जलेगा. फिर विजयदशमी आएगी....... और रावण की पुण्यतिथि भी.
Friday, October 10, 2008
यहाँ का रावण कितना छोटा है...इसे तो शत्रुघ्न ही मार लेंगे.
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साम्यवादी शासन में परम्परा कुछ बदलनी चाहिये - ताड़का का पुतला जलाने की रस्म बने तो शायद डेडीकेशन ज्यादा हो।
ReplyDeleteबड़ा ठोक कर लिखा है! :)
अच्छा लेख है। अब सब कुछ कलकत्ते में ही थोड़ी न बड़ा होगा। कुछ दिल्ली में भी बड़ा होना देने दीजिये।
ReplyDelete.
ReplyDeleteअच्छा तो यह बात है,
बड़े रावण के खड़े होने की जड़ में पैसा है... तभी तो ?
मैं मूढ़मति तो यह समझता आया था कि साइज़ आफ़ रावण
का पुतला इज़ डायरेक्टली प्रोपोसनल टू प्रिविलेन्स आफ़ असत्य एट डेहली !
कोलकाता अपवाद रहा है, सत्य-असत्य प्रभेद में !
साउथ इंडियन रावण को जलाने में भी, उनका बंग आभिजात्य आड़े आता रहा होगा !
गुरुजी को प्रणाम . रावण को मरना चाहिए फिर चाहे शत्रुघ्न मारें या राम .
ReplyDelete"सच कह रहे हैं. वैसे दिल्ली में पैसा भी तो खूब है. यहाँ तो सारा पैसा दुर्गापूजा में लग जाता है. ऐसे में रावण को जलाने में ज्यादा पैसा खर्च नहीं कर पाते."
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त लिखा मिश्रा जी ! शुभकामनाएं !
अगले साल से आपके शहर का रावण भी साल-दर-साल बडा होता जाये।बढिया लिखा, आनंद आ गया।
ReplyDeleteकाश हर शहर में रावण का कद छोटा होता जाय !
ReplyDeleteपोस्ट तुरंत हटाईये , अभि अभी पता चला है , दिल्ली विश्वविद्धालय की एक खॊज के अनुसार रावण अल्प संख्यक समुदाय से है उसने धर्म परिवर्तन कर लिया था. अब सच्चर साहब महेश भट्ट अर्जुन सिंह पाटिल साहब रावण मे राक्षसाधिकार के लिये आपके खिलाफ़ न्याय पालिका मे जा रहे है :)
ReplyDeleteरावण की पूण्यतिथि पर (दुसरे दिन सही) जोरदार पोस्ट. मजा आया. दिल्ली के रावण का कद बड़ा ही रहेगा, कुछ भी करलो.
ReplyDeleteअगर कभी खट्टर कक्का पढने का मौका मिले तो जरूर पढें.. राम के ऊपर एक अच्छा सा अध्याय पढने को मिल जायेगा..
ReplyDeleteयह मैथिली कि पुस्तक है मगर हिंदी में इसका अनुवाद भी मिल जायेगा..
राम के लिए इनके मन में सिर्फ़ और सिर्फ़ आदर है. आज सभी के दिल मे सिर्फ़ आदर ही बचा है, उस राम के कहने अनुसार तो कोई नही चल रहा,दिल्ली का नया रावण ओर ताडकां को मेने कभी नही देखा, कहते है टी वी पर बहुत दिखाते है,लेकिन हम तो राम को ही ढुंढ रहै है.
ReplyDeleteक्या बात है अगर आप मंच पर बेठे रावणो की दो चार फ़ोटु भी लगा देते.
धन्यवाद
लेकिन हम सबके भीतर का रावण दिन प्रति दिन बढ़ रहा है मिश्रा जी........
ReplyDeleteरावण का साइज क्या है की मार्केट के सेंटिमेंट पर निर्भर करता है...आप देखिये की आज कल मार्केट डाउन है तो साईज कैसे बड़ा होगा? लेह मेन ब्रदर्स का रावण देखें हें...हम भी क्या पूछ बैठे?....कैसे देखेंगे...हैं हैं हैं...उसके लिए शूक्ष्म दर्शी की जरूरत होगी...नेकड़ आई से नहीं ना दिखाई देगा... बिचारा रावण...अपना साईज भी ख़ुद नहीं तय कर पाता है...इसे ही कलयुग कहते हें शायद..
ReplyDeleteनीरज
वाह,लाजवाब लिखा है...एकदम जबरदस्त..........
ReplyDeleteसच कहा,सबकुछ पैसा तंत्र पर ही निर्भर है.
वैसे अन्दर बाहर दोनों के रावन का साइज दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है.उसीका राज जो है हर तरफ़.
bahut badhiya mishra ji
ReplyDeletemere shahar jabalapur me sadar me ramalila hoti hai to ravan paatr ka roll shri kurachaniyan ji karte hai . bade vinodi kism ke adami hai . ramalila me me ve ravan ke roll me apne putr meghanath se janata ki or ungali uthakar dikhakar kahate hai dekho meghanath yahan aaj dekho kitane ravan baithe hai . yah sunakar pubalik ne bade maje liye . ravan to har sal ata jata hai par desh me ravano ki sankhya nirantar badh rahi hai . dhanyawad.
छोटा रावण भी मारा जा रहा है और बडा भी लेकिन मारने वाला भी तो रावण ही है यह क्यों भूल रहे हैं।
ReplyDelete"अपने देश में जनता को आजतक उत्तम व्यवस्था करते नहीं देखा."
ReplyDeleteपंचदार लैन है सर! और ससुरी यही जनता है जो सारे देश की व्यवस्था तय करती है. संविधान के अनुसार एही संपरभू है.