रात (या सुबह?) के तीन बजे थे. इन्द्र अपने कमरे में कंप्यूटर टेबल के सामने लगी कुर्सी पर बैठे कुछ सोच रहे थे. सोचते-सोचते कुर्सी पर पालथी मार कर बैठ गए. कुछ देर कमरे की सीलिंग को निहारा. सीलिंग निहार कर बोर हो लिए तो टेबल पर रखी थैली उठा ली. थैली में से पान मसाला निकाल हथेली पर रखा. कुछ क्षण बाद हथेली को नाक के पास ले गए. कुछ सोचते हुए बोले; "लगता है नकली है."
तीन बजे कमरे में उनकी बात सुनने वाला कौन होगा? कोई नहीं. इसलिए तुंरत ही मन मारते हुए चेहरे पर कोम्प्रोमाईज मुद्रा लाते हुए सोचा कि हाय-तौबा मचाकर भी कुछ नहीं मिलने वाला.
संकठा प्रसाद के ऊपर बहुत गुस्सा आया. मन में सोचने लगे; "सबेरा होने दो, संकठा प्रसाद की ठुकाई कर दूँगा. कितनी बार इसे मना किया है कि सेठ ब्रदर्स की दूकान से मसाला न लाया करे लेकिन ये जगरचोर वहीँ से ले आता है. सौ मीटर और आगे जाने में पता नहीं इसका क्या बिगड़ता है?"
मन मारकर ज़र्दे का पाउच खोला. पता नहीं क्यों आज ज़र्दा का डबल डोज़ हथेली पर उलट लिया. पान मसाला के साथ ज़र्दा रगड़ते हुए मिश्रण तैयार करने में जुट गए.
मिश्रण तैयार करते हुए बार-बार टेबल पर रखे लैपटॉप को निहारते जा रहे थे. लैपटॉप पर उनका ब्लॉग खुला था. अपनी पिछली पोस्ट पर आए कमेन्ट को अब तक सात बार देख चुके थे. भगवान विष्णु के साथ-साथ वृहस्पति और शुक्राचार्य के कमेन्ट भी थे. साथ में कुछ और बड़े, मझोले और टुटपुजिया देवताओं के अथाह बड़ाई वाले कमेन्ट भी थे.
जहाँ भगवान विष्णु ने अपने कमेन्ट में लिखा था; "बेहतरीन" वहीँ शुक्राचार्य ने देवराज का मजाक उड़ाते हुए लिख दिया था; "सही जा रहे हो. आजकल उर्वशी से पोस्ट लिखवाने लगे हो या फिर कथक देखते-देखते सोमरस के प्रभाव में ये पोस्ट लिखी है? यही हाल रहा तो मुझे अपने चेलों को युद्धविद्या सिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी."
शुक्राचार्य का कमेन्ट पढ़ते हुए सोच रहे थे; "पता नहीं ख़ुद को क्या समझता है? हर पोस्ट पर कुछ न कुछ तीखी टिप्पणी कर के ही जाता है. एक तरफ़ वृहस्पति जैसे विद्वान हैं जो मेरी हर पोस्ट की बड़ाई करते हैं और दूसरी तरफ़ ये कानिया है जो हर पोस्ट पर गाली देता है. इसका कुछ न कुछ इलाज करना पड़ेगा."
ये बातें सोचते हुए वे पान मसाला और ज़र्दे का मिश्रण तैयार कर ही रहे थे कि नारद प्रकट हुए. असल में अपनी वीणा से लैश नारद एक गीत गुनगुनाते चले जा रहे थे. सुबह-सुबह पृथ्वीलोक जा रहे थे लेकिन तीन बजे देवराज के कमरे में लाईट जलती देख इधर मुड लिए. इन्द्र को मिश्रण तैयार करता देख बोले; "नारायण नारायण. ये क्या देख रहा हूँ प्रभो? आप खैनी का सेवन कब से करने लगे?"
उनका सवाल देवराज को पसंद नहीं आया. बोले; "देखिये देवर्षि, इस समय मेरा मूड बहुत ख़राब है. अगर आप मज़ाक करने का प्लान बनाकर आए हैं तो चले जाइये. आपको मालूम है, मैं खैनी नहीं बल्कि पान मसाला और ज़र्दे का मिश्रण खाता हूँ."
इन्द्र का जवाब सुनकर नारद को पता चल गया कि मामला कुछ गड़बड़ है. यही सोचते हुए बोले; " लेकिन प्रभो, आप पान मसाला और ज़र्दा भी क्यों खाते हैं? ये अच्छी चीजें नहीं हैं."
इतना कहकर वे रुक गए. फिर उन्हें अचानक याद आया कि उन्होंने नारायण नारायण तो कहा ही नहीं. यही सोचते हुए उन्होंने ख़ुद को करेक्ट करते हुए "नारायण नारायण" कह डाला.
नारद के मुंह से नारायण नारायण सुनकर इन्द्र को बड़ा अजीब लगा. वे सोचने लगे कि इन्होने अलग से नारायण नारायण क्यों कहा?
एक बार तो सोचा कि नारद से पूछ लें लेकिन दूसरे ही क्षण उन्होंने अपना ये विचार त्याग दिया और बोले; "मुझे भी मालूम है ये अच्छी चीजें नहीं हैं. लेकिन मैं क्या करूं? पिछले पन्द्रह दिन से टेंशन डिजाल्व करने वाली गोली काम ही नहीं कर रही है. इसलिए डॉक्टर ने कहा कि पान मसाला और ज़र्दे का मिश्रण ट्राई करूं. कह रहे थे, अब यही दो चीजें खालिश हैं. दवाई तो नकली बिक रही हैं";
इन्द्र ने अपनी समस्या के बारे में बताते हुए कहा.
उनकी बात सुनकर नारद भी सोच में पड़ गए. उन्हें एकदम से समझ में नहीं आया कि इन्द्र के टेंशन का कारण क्या है. उन्हें लगा कि अनुमान लगाकर कौन दिमाग खर्च करे? इन्ही से पूछ लो. यही सोचते हुए उन्होंने पूछ लिया; " लेकिन आप टेंशनग्रस्त क्यों हैं प्रभो? क्या मेनका आजकल डांस स्टेप भूल जाती है?"
"नहीं देवर्षि, ऐसी बात नहीं है. वैसे भी मेनका अगर डांस स्टेप भूल भी जायेगी तो क्या हो जायेगा? आडिशन करके नई डांसर्स भर्ती कर लेंगे"; इन्द्र ने सफाई देते हुए कहा.
"तो फिर आप क्या ब्लॉग पर शुक्राचार्य के कमेन्ट से दुखी हैं?"; नारद ने अनुमान लगाते हुए पूछा.
अब तक इन्द्र का मुंह पान मसाला और ज़र्दे के मिश्रण से पूरी तरह से भर गया था. वे और बात करने में असमर्थ थे. इसलिए टेबल के नीचे से डस्टबिन उठाकर उसमें थूकते हुए बोले; "नहीं देवर्षि, शुक्राचार्य से तो कभी भी निबट लूँगा. असल में मेरी टेंशन की वजह एक बार फिर से विश्वामित्र हैं. आपके कहने से मैंने ब्लॉग बनाकर पिछली बार उनकी तपस्या भंग की थी. लेकिन पता नहीं क्यों वे पिछले बीस दिन से ब्लॉग पर पोस्ट ही नहीं डाल रहा है. न ही मेरी पोस्ट पर कमेन्ट कर रहा है."
नारद उनकी बात सुनकर मंद-मंद मुस्कुराने लगे. बड़े सरकास्टिक लहजे में बोले; "नारायण नारायण. ये आप क्या कह रहे हैं प्रभो? आप ही तो कहते थे कि अब विश्वामित्र के ब्लॉग पर जाने का मन नहीं करता. और आज आपको ये चिंता सता रही है कि वे पोस्ट नहीं लिख रहे हैं? ये क्या बात हुई, देवाधिदेव?"
"वो तो मैं ऐसे ही कहता था, देवर्षि. असल में मैं रोज ही उसके ब्लॉग पर जाकर देखता था कि उसने क्या लिखा. अगर नहीं देखता तो फिर से गाली देते हुए पोस्ट कैसे लिखता? और फिर, जब वो मेरी पोस्ट पर गाली देते हुए कमेन्ट लिखता था तो मैं आश्वस्त रहता था कि ये तपस्या नहीं कर रहा है"; इन्द्र ने पूरी बात का खुलासा करते हुए कहा.
इतना कहते हुए वे फिर से पान मसाला हाथ पर रखने लगे. हथेली पर ज़र्दा रखते हुए बोले; "मुझे तो लग रहा है कि विश्वामित्र एक बार फिर से तपस्या करने में जुट गया है. मैं हर घंटे अपना ब्लॉग खोलकर देख लेता हूँ कि उसका कोई कमेन्ट आया कि नहीं? लेकिन पिछले बीस दिन से वो कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा है. अब तो आप ही कोई रास्ता दिखायें देवर्षि. अगर ये विश्वामित्र फिर से तपस्या करने बैठ गया तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी."
इन्द्र की व्यथा-कथा सुनकर नारद को दया आ गयी. सोचने लगे कि इनकी मदद कैसे करें? ये इस तरह से टेंशनग्रस्त हो गए तो सोमरस कौन पीयेगा? स्वर्गलोक में डांस का प्रोग्राम ही बंद हो जायेगा. देवता तो त्राहि-त्राहि करने लगेंगे. देवता अगर देवताई न कर सके तो और ही कर्म पर उतर आयेंगे.
यही सब सोचते हुए नारद ने ब्रेन-स्टार्मिंग सेशन शुरू कर दिया.
सोचते-सोचते सुबह हो गयी. मुर्गा भी बोल उठा. मुर्गा बोला ही था कि मुर्गे की बांग सुनकर कौआ भी बोल उठा. साथ में कुत्तों ने भी भौकना शुरू कर दिया. इतनी सारी आवाजें सुनकर नारद को ब्रेनवेव आ गयी. अचानक बोल उठे; "नारायण नारायण."
उनके मुंह से नारायण नारायण सुनकर इन्द्र की आँखें चमक उठी. उन्हें आभास हो गया कि देवर्षि के दिमाग में कोई समाधान आया ज़रूर है. वे नारद की तरफ़ याचक भाव से देख रहे थे. जैसे कह रहे हों; " जल्दी अपने आईडिये के बारे में बताएं देवर्षि.ट्राई मेक इट फास्ट, प्लीज."
नारद मुस्कुराते हुए बोले; " नारायण नारायण. समाधान मिल गया प्रभो. अब आपको चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है."
उनकी बात सुनकर इन्द्र पान मसाला से अपना मुंह खाली करते हुए इन्द्र ने कहा; "जल्दी बताईये देवर्षि. आपके हिसाब से क्या किया जा सकता है?"
नारद बोले; "हे देवराज, आज ही आप एक कम्यूनिटी ब्लॉग बनाईये. इस कम्यूनिटी ब्लॉग के मेम्बेर्स के नाम पर आप विश्वामित्र, शुक्राचार्य और तमाम राक्षसों का नाम दे दीजिये. इस ब्लॉग पर ख़ुद ही देवताओं को गाली देते हुए तीन-चार पोस्ट लिखिए. और कल ही अपने असली ब्लॉग पर इस ब्लॉग के ख़िलाफ़ पोस्ट लिखते हुए हल्ला मचा दीजिये कि विश्वामित्र तो राक्षसों के साथ मिल गए हैं. आप देखियेगा, दूसरे ही दिन विश्वामित्र सफाई देने के लिए अपने ब्लॉग पर न केवल पोस्ट लिखेंगे बल्कि आपके पोस्ट पर कमेन्ट भी लिखेंगे."
ऐसा ही हुआ. इन्द्र ने एक कम्यूनिटी ब्लॉग बनाया. ब्लॉग के मेंबर के रूप में विश्वामित्र के साथ-साथ शुक्राचार्य और राहु-केतु के नाम से पोस्ट भी लिख डाली जिनमें देवताओं को गाली दी गई थी.
इस कम्यूनिटी ब्लॉग को देखकर विश्वामित्र को अपनी सफाई देने के लिए अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखनी पडी. अब वे सफाई देने में जुट गए थे. उनकी तपस्या एक बार फिर से भंग हो चुकी थी.
.....................................................................................
२०० वीं पोस्ट
वो क्या है जी, कि ये मेरे ब्लॉग पर पब्लिश होने वाली २०० वीं पोस्ट है. मुझे किसी भी हाल में ऐसी-वैसी, जैसी-तैसी एक पोस्ट लिखकर ये २०० वीं पोस्ट की ख़बर देकर बधाई लेनी थी. इसीलिए इस तरह की अगड़म-बगड़म पोस्ट लिख डाली.
मुझे पता है कि आपलोग ऐसी पोस्ट पढ़कर हलकान च परेशान होंगे. और सुबह-सुबह मन में गाली देंगे. लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ? मुझपर जल्दी से जल्दी २०० वीं पोस्ट लिखने की धुन सवार थी.
इसलिए मन में गाली भले ही दें, टिपण्णी में बधाई देते जाईयेगा.
Monday, October 20, 2008
विश्वामित्र की तपस्या फिर से भंग हो गई.....
@mishrashiv I'm reading: विश्वामित्र की तपस्या फिर से भंग हो गई.....Tweet this (ट्वीट करें)!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
दो सौवीं पोस्ट - और मैं पुलकित सेण्टीमेण्टलश्च हो रहा हूं।
ReplyDeleteजितनी बधाई मिलें, उसमें मेरा हिस्सा ट्रान्सफर कर देना।
बहुत बहुत बधाई इस २००वीं पोस्ट के लिए. ढालात्मक हो या ठेलात्मक, उससे क्या फरक पड़ता है-है तो २००वीं...अतं अनेकों बधाई और ऐसे अनेकों शतकों के लिए शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteमै तो अभी तक सोच रहा हूँ कि नारदजी को कहाँ से पकड कर लाउं और मुंम्बई मे उत्तर भारतीयों पर हो रही ज्यादतियों पर कुछ उपाय मांगू। लेकिन जानता हूँ वो कहेंगे नारायण-नारायण। इसका उपाय तो स्वंय देवाधिदेव भी नहीं जानते, क्योंकि खुद वह भी यहाँ से ही भगाये गये हैं, अब तो कोई भी देवता इस धरा पर जाना भी नहीं चाहता। मैं खुद बाई-पास मार्ग पकड कर जाता-आता हूँ। नारायण-नारायण।
ReplyDelete२०० वी पोस्ट के लिए बधाई
ReplyDeletenaradmunig aa gye vicharan karte huye.aapka kalyan ho. lekin kya muslim or sikh dharm ke guruon ke nam se aisa likh sakte ho
ReplyDeleteहे भगवान, अब आप भी ब्लॉगिरी में उतर आए, अब तो इंसान ही मालिक है।
ReplyDelete(200वीं पोस्ट के लिए बधाई, आप 20000 का ऑंकड़ा छूऍं, शुभकामनाऍं) :-)
इन्द्राय नमः प्रभो! सुन्दर अति सुन्दर। वैसे प्रभु नारद का आवागमन अधिकांशतः विष्णु लोक में अधिक होता रहा है,ब्रह्मलोक में उससे कम और इन्द्रलोक(महेश- शिव) में तो तभी जब पृथ्वी पर पाप अधिक बढ़ जाते हैं।लगता है कुछ भारी गड़बड़ होनें वाली है?
ReplyDelete' wah, great achievement, heartiest congratulations.........and the post was mind blowing..." wish you good luck for many such 200'ssssssssssssss posts"
ReplyDeleteRegards
आपको इस २०० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई और कामना करता हूँ की जल्दी इसमे एन बिन्दु का इजाफा यानी २००० वीं पर हमें कमेन्ट करने को मिले ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआप खूब लिखे यही दुआ है . २०० वी पोस्ट की बधाई आपको
ReplyDeleteसवेरे तो २००वीं पोस्ट की प्रसन्नता के मोड में था। अब पढ़ने पर लग रहा है कि देवता तो अजर-अमर-गुणनिधि हैं। उन्हें जर्दत्व में उतारना क्या उचित है।
ReplyDeleteदेवता आते ही होंगे!
दो सौंवी पोस्ट की बधाई ।
ReplyDeleteDr. Rama Dwivedi said...
ReplyDeleteBahut-Bahut khoob likhaa hai aapane ..... :) Anekon shubhakaamnaayen.
नारायण नारायण ।बधाई हो शिव भैय्या। डबल के बाद ज़ल्द ट्रिपल सेंचुरी पुरी करें। आप चिट्ठाजगत के सचिन बने,यही कामना करते हैं।
ReplyDeleteबधाई.
ReplyDeleteबधाई.
बधाई.
डबल सेंचुरी के लिए. बधाई.
लारा का रिकोर्ड ४०० नाट आउट वाला आप ही तोडेंगे. सचिन के बस की बात तो है नहीं.
जबर्दस्त और धांसू च फांसू पोस्ट लिख मारी है आपने.
इन्द्र अगर पान मसाला और ज़र्दा छोड़ना चाहेते हैं तो उन्हें सुदर्शन क्रिया सिखा दीजिये.कुछ मदद तो हो ही जायेगी.
अभी कुछ देर पहले ही जब इन्द्र से बात हो रही थी तो शुक्राचार्य के साथ साथ आपसे भी कुछ नाराज दिख रहे थे. रही सही कसर नारद जी पूरी कर दी. कह रहे थे की बहुत अपने ब्लाग पर हमारा उपहास कर रहा है ये पृथ्वी लोक का शिव आजकल. इसे दुरस्त करना पड़ेगा. तो भाई साब आप हमारे करीबी है इसलिए ये सूचना आपको दे रहा हूँ.
बाकी इन्द्र के कर्मो से तो आप भी परिचित है और समझदार भी है.
हाय हम किसी मेनका की उम्मीद में आये थे .... .कोई दो सौ बार तेरी गली से गुजरा हूँ....कोई दो सौ बार तू अपनी खिड़की में नही आयी....
ReplyDeleteजय हो विश्वामित्र की......
२०० वीं पायदान तक पहुंचने की बधाई। आप २००० वीं पार करें।
ReplyDeleteगिनो नही अगणित अबाधित बस लिखते जाओ......सुंदर और सार्थक लिखते रहो सदैव.अपने नाम को सार्थक करो.सत्यम शिवम् सुन्दरम.लेखनी चालू रहे.
ReplyDeleteब्लोगर *** के साथ-साथ *** और *** के कमेन्ट भी हैं. साथ में कुछ और बड़े, मझोले और टुटपुजिया ब्लोगरों के अथाह बड़ाई वाले कमेन्ट भी हैं.
ReplyDeleteपुनः साथ में एक और टुटपुजिया की बधाई स्वीकारें... !
ऐसी-वैसी, जैसी-तैसी पोस्ट लिखकर डबल सैकड़ा मारने की बधाई!
ReplyDeleteबहुत मुबारक हो गुरु यह दो सौ वां लेख .
ReplyDeleteपुलकित हम भी हो गए डबल सेन्च्युरी देख .
डबल सेन्च्युरी देख गुरु का आधा हिस्सा .
मेहनत दुगुनी फल आधा यह कैसा किस्सा ?
विवेक सिंह यों कहें कर रहे लोग तकादा .
लिखी न कोई पोस्ट माँगते हिस्सा आधा ..
हमारी तरफ़ से भी २०० वी पोस्ट की बधाई. लेख भी अति सुंदर लिखा है. लेकिन !!!! अभी तक मेनका की कोई बधाई नही आई....???
ReplyDeleteराम राम जी की
"कमाल है बंधू...बधाई तो हमको मिलनी चाहिए जो विगत २०० पोस्ट से आप को झेल रहे हैं...ये खूब रही 200 वीं पोस्ट आप लिखो लिखो और बधाई पाने के लिए हम सबको धमकाओ भी..."
ReplyDeleteआप समझ गए होंगे की हम मजाक कर रहे हैं...कभी कभी आप ठीक समझते हैं...हम मजाक ही कर रहे थे...200 वीं पोस्ट की बधाई...आप तो और और लिखो बंधू हमारा जो होगा हम भुगतेगें..."हम को तो हौसला परखना है...तू चला तीर जो कमान में हैं"
एक बात बताईये कहीं ये पोस्ट मानिक चंद वालों ने तो आप से नहीं लिखवायी आपसे? वो मानिक चंद भाई "ऊंचे लोग ऊंची पसंद" वाले. अब इन्द्र वगैरह तो ऊंचे ही लोग हैं ना.
नीरज
(आप की तीनसो वीं पोस्ट के लिए अभी से कमेन्ट लिख कर रख लिया है...कहें तो बता दूँ?...तीनसो वीं पोस्ट की बधाई)
बधाई शिव भाई
ReplyDelete२०० वीँ पोस्ट को देख
खुशी हो रही है :)
आगे भी ऐसे ही दुर्योधन
या देवताओँ के किस्से
सुनाते रहीयेगा
स्नेह,
- लावण्या
दो सौवीं पोस्ट की बधाई...ये बात अलग है कि 200 किस अंदाज में पूरे किये जायें. आपने डबल सेंचुरी के लिए 199 के बाद सीधे 6 मारा है. इनिंग जारी है, आगे की बल्लेबाजी का मुजाहिरा देखने के लायक होगा. क्योंकि खिलाड़ी की आंखे जम चुकी हैं और अनुभव के साथ दमख़म भी है. गुणवत्ता के साथ आंकड़ों के सारे रेकॉर्ड्स तोड़ें ...यही कामना है.
ReplyDeleteबधाई की ऎसी-तैसी
ReplyDeleteबहुत हो गयी बधाई
पहले ये बताओ भाई
कहाँ है, मेरी मिठाई
दो सौ बार बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteजहाँ तक मुझे ज्ञात है मेनका उर्वशी वगेरे रियालिटी शो में हिस्सा लेने पृथ्वीलोक आयी हुई है. :)
हमने दो सौ से पांच छः ही झेली है !! उपर का वाह-वाह पढकर नाहक खुश ना हो धीरे-धीरे ही लिखे नही तो सारा समय ब्लाग के हवाले किया तो घर मे शीतयुद्ध मच जायेगा !!जली दाल और जली रोटी खानी पडेगी और टीपाकार फ़िर टिपीयाने लगेंगे मिश्रा जी संघर्ष करो हम आपके साथ है ॥हा हा हा हा हा...
ReplyDeleteऔर हा आपने दो सौ पोस्ट लिखा भी है इसका सबुत क्या है ।कल कोई इस पर ही पोस्ट लिख देगा कि बिना सबुत के अपने ब्लाग मे दो सौ का ऐलान कर दिया ।टिप्पणी पाने का यह नया फ़ंडा है वैगेरह!!हा हा हा हा
ReplyDeleteसादर क्षमाप्रार्थना सहित...
बहुत बहुत बधाई इस २००वीं पोस्ट के लिए.......
ReplyDelete