बाज़ार गिर गया. गिरना ही था. कितने दिन खड़ा रहता? इमारतें गिरती हैं, पेड़ गिरते हैं, ब्रिज गिरते हैं, नेता गिरते हैं. और तो और इंसान भी मौका देखकर गिर लेते हैं. देखा-देखी बाज़ार भी गिर लिया. आख़िर सबकुछ गिर रहा था. अब ऐसे में अगर बाज़ार न गिरता तो उसकी बड़ी किरकिरी होती.
वैसे भी, बाकी सबलोग गिरते-गिरते बाज़ार को हेयदृष्टि से निहारते होंगे. कहते होंगे; "एक हम हैं जो गिरते जा रहे हैं और एक तुम हो जो खड़े हुए हो. ज़रा भी शरम नहीं बची है तुम्हारे अन्दर? इतनी भी औकात नहीं कि गिर जाओ."
बाज़ार को इन इमारतों, ब्रिजों और इंसानों की हेयदृष्टि बर्दाश्त नहीं हुई होगी और गिर लिया. वैसे ये शोध का विषय हो सकता है कि बाज़ार की वजह से सबकुछ गिरा या बाकी सबकुछ की वजह से बाज़ार. वही, पहले मुर्गी आई या पहले अंडा?
बाज़ार गिरा तो बाज़ार में रखी बाकी चीजें भी गिर गईं. वो सारी चीजें जो अभी तक खड़ी हुई थीं. अर्थ-व्यवस्था गिर गई, रुपया गिर गया, क्रूड गिर गया. बैंक गिर गए. अमेरिका तक गिर गया. क्या-क्या गिनाऊँ, लिस्ट बड़ी लम्बी है.
अब बाज़ार गिरा तो चर्चा भी होगी. हर चर्चा का आधार गिरावट ही है. बिना चर्चा के किसी गिरावट का महत्व नहीं. वो चाहे संकृति हो या बाज़ार. जाहिर सी बात है कि बाज़ार की गिरावट पर भी चर्चा होगी. और ये चर्चा दो जगह सबसे ज्यादा हो रही है. एक टीवी पर और दूसरी चाय-पान की दूकान पर.
कल रतीराम चौरसिया की दूकान पर पान खाने गया. पान लगाने के लिए कहा. रतीराम जी पान लगाते-लगाते बोले; "बाज़ार त बहुते गिर गया."
मैंने कहा; "पूछिए मत. बहुत गिर गया है."
मेरी बात सुनकर बोले; "वैसे आप का क्या हाल है? आप भी त बाज़ार वाले ही हैं. आप भी गिरे का?"
मैंने कहा; "हाँ. अब बाज़ार में रहकर हम कैसे बचे रह सकते थे. हमें भी गिरा हुआ ही समझिये."
क्या करता शायरों वाली 'साफगोई' होती तो कहकर निकल लेता कि; "बाज़ार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ." लेकिन इतनी 'साफगोई' अब दुर्लभ है. इस डिप्लोमेसी के ज़माने में साफगोई प्रीमियम में मिलती है. वैसे भी रतीराम जी को हमारे बारे में पता नहीं होता तो ये भी कहकर निकल लेते कि; "ये शेयर-वेयर के बारे में तो हमें कुछ पता नहीं है जी. हम तो ऐसी चीजों से दूर ही रहते हैं."
ठीक राम दयाल की तरह जिनका ट्रेडिंग अकाउंट हमारे यहाँ ही चलता है लेकिन मैंने सुना कि किसी से कह रहे थे; "अरे बाप रे. हम और शेयर! न न, हम ये सब चीजों से दूर ही रहते हैं. अरे, शेयर का है? जुआ."
खैर, रतीराम जी मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "सही बात है. बजार में रहेंगे त बचना तो मुश्किल ही है. बाकी एक बात कहेंगे."
मैंने पूछा; "कौन सी बात?"
वे बोले; "न जाने केतना बाज़ार वाला सब आता है हमारे इहाँ पान खाने. ई लोग का बात का वजह से हमारे अन्दर त बड़ा हीन भावना उपज जाता है."
उनकी बात सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने पूछा; "क्यों, आपके अन्दर हीन भावना क्यों है?"
बोले; "असल में का है कि हमरे दूकान पर पान खाते-खाते जब आप जईसा लोग बताता है कि उनका लाखों डूब गया त हमको बड़ा हीन भावना होता है."
मैंने कहा; "पैसा उनका डूबा, लेकिन हीन भावना से आप ग्रसित हैं. ये बात कुछ समझ में नहीं आ रही है."
मेरी बात सुनकर मुझे ऐसे देखा जैसे कह रहे हो; 'आप भी पूरा बकलोले हैं.' फिर मुस्कुराते हुए बोले; "असल में उनका 'लास' का फिगर सब सुनकर हमको लगता है कि एक ई लोग हैं जो 'लास' करके देश का अर्थ-व्यवस्था में अपना योगदान कर रहा है और एक हम हैं कि कोई योगदान नहीं दे पा रहे हैं."
उनकी बात सुनकर लगा जैसे चौरसिया जी प्लान बनाकर खिचाई करने पर उतारू हैं. उनके महीन मजाक करने की आदत से मैं वाकिफ था. इसीलिए मैंने कुछ नहीं कहा.
लेकिन बात ऐसे कैसे ख़त्म हो जाती. समस्या ये थी कि वहीँ पर जगत बोस खड़े थे. बोस बाबू टेक्नीकल अनालिस्ट है. रतीराम जी की बात सुनकर बोले; "अरे चौरसिया जी, देश की अर्थ-व्यवस्था में तो आप योगदान कर ही रहे हैं आप. पान बेंच रहे हैं. इससे तो जीडीपी बढ़ ही रहा है. जीडीपी समझते हैं कि नहीं?.... ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट्स. माने ये कि आप जितना काम कर रहे हैं, उससे जो पैसा निकल रहा है, वो देश के इनकम में जुट रहा है. जीडीपी को हिन्दी में सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं. आप समझ लीजिये...."
उसकी बात सुनते-सुनते अचानक रतीराम जी धीरे से बोल पड़े; "समझ गए हम."
उनकी बात सुनकर बोस बाबू बोले; "क्या समझ गए? अभी तो मैंने आपको पूरा बताया कहाँ?"
रतीराम जी मुस्कुराते हुए बोले; "समझ गए कि बाज़ार का अवस्था अईसा काहे है."
मुझे पान थमाते हुए बोले; "ई बाज़ार का अऊर का होगा?"
Saturday, October 25, 2008
ई बाज़ार का अऊर का होगा?.....
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बहुत बुरा गिरा इस बार.. और पता नहीं कब तक गिरेगा.. हाँ एक बात तो तय है माइनस में नहीं जायेगा....
ReplyDeleteabhi to aur gir sakta hai.
ReplyDeleteशेयर?! हमने तो कभी हाथ नहीं लगाया। कब्भी नहीं छुआ। बाई गाड की कसम! :)
ReplyDeleteबाजार झांसा दे रहा है। चिकाई कर रहा है। उठेगा।
ReplyDeleteबाजार-संवाद मजेदार रहा।
ReplyDeleteलेकिन, हम नहीं समझे..
ReplyDeleteGDP के आगे का सारा अक्षरवे सब अँधरा गया !
@बाज़ार गिरा तो बाज़ार में रखी बाकी चीजें भी गिर गईं. वो सारी चीजें जो अभी तक खड़ी हुई थीं. अर्थ-व्यवस्था गिर गई, रुपया गिर गया, क्रूड गिर गया. बैंक गिर गए. अमेरिका तक गिर गया. क्या-क्या गिनाऊँ, लिस्ट बड़ी लम्बी है.
ReplyDeleteयह सब इसलिए गिर गया कि हमारा चरित्र गिर गया है।लाभ और लोभ-व्यापार और जरायम में जब अन्तर करना ही लोग भूल गये हों तो यह जो कुछ भी हो रहा है क्या स्वाभाविक परिणाम नहीं है?
@ डॉक्टर साहेब
ReplyDeleteबड़ी बात नहीं है....कोई नहीं समझ सका.
मिश्राजी बहुत लच्छेदार भाषा हमेशा की तरह ! मजा आगया ! अब दो सवाल ! दूसरा सवाल तो ये की ई जगत बोस क्या रजत बोस का भाई है ? :) और पहला सवाल ये की लोग मना काहे करते हैं की हम तो शेर शेर खेलते ही नही है ! भाई शर्म की क्या बात है ? कोई गीदड़ २ थोड़े ना खेल रहे हैं ! छाती ठोक कर कहना चाहिए की हम तो शेर हैं और शेरों के साथ ही खेलते हैं ! :)
ReplyDeleteबहुत बढिया रही रचना ! आपको , आपके परिवार को, इष्ट मित्रो सहित दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
बाजार बिना डोर की पतंग की तरह है। हवा लगते उठता है हवा बंद तो सीधे जमीन की ओर कही कोई पेड़ वेड़ मिल जाए तो बात अलहदा है।
ReplyDeleteअजी जब नेता गिर सकते है तो बाजार किस खेत की गाजर है??
ReplyDeleteआपको दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाये !
बहुत ही मजेदार लेख. बधाई हो. दीपावली की शुभकामनाएँ.
ReplyDelete"ई बाज़ार का अऊर का होगा?"
ReplyDeleteमजेदार!
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं!
बाज आया इस बाजार के जार-जार रोने से,
ReplyDeleteगम है कि सब लुटे, हम क्यों बचे कुछ खोने से :)
अच्छी पोस्ट।
शेयर ठ्ण्डा है तो शायरी गरम किजीये बस आ और ए की मात्रा का हेरफ़ेर है शेयर के चिंतन पर शाय्र की चिंता के लिये !!
ReplyDelete(सर खुजा रहे है कि समझ नही आया क्या कहा?हम भी पोस्ट पढ के खुजा रहे थे !!हा हा हा )
लगता है कि आप की संगत में पड़कर रतिराम जी भी विचारों की जलेबी छानना सीख लिए हैं। जमाए रहिए जी...। :)
ReplyDeleteटेक्निकल एनासिस करो या हिस्टोरिकल..कुछ नहीं होता काम का इस सेन्टीमेन्टल मार्केट में.
ReplyDeleteएक दुर्लभ चीज हमऊ बता दें:
आपकी ही है:
बाज़ार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ.
एक नया शॆर इस बाजार पर, एकदमे ताजा है:
..
जो भी कैश लिए घाटा खा रहा था अब तक,
आज जाने क्या हुआ, लोग उसे राजा कहते हैं!!!
बहुत बेहतरीन!!
आदमी का जमीर गिर गया है, बाजार की क्या बिसात!!
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
अब गिर गया तो गिर गया,फिर से उठ जायेगा!
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनायें!
अब गिर गया तो गिर गया,फिर से उठ जायेगा!
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनायें!
बाजार की जानकारी टीवी से लेना और आपसे लेने में यही तो अंतर है, बडे भाई । यहां गुदगुदाते हुए मजेदार तीखी चटनी परोस दी आपने ... हा हा .. आभार ।
ReplyDeleteआपको दीपावली की हार्दिक शुभकमानांयें ।
बहुत हा हा ही ही हो गई, अभी तो ये बताओ ई बाज़ार का अऊर का होगा?
ReplyDeleteबचपन में सिखाया गया था कि कोई गिर पड़े तो उस पर हँसना अच्छी बात नहीं होती. उसे तो सहारा देकर उठाया जाना चाहिए. आप तो हमें ये भर बता दें कि ये बाजार बाबू कहाँ गिरे पड़े हैं, बाकी हम संभाल लेंगे.
ReplyDeleteबाजार के बारे में सोचने के लिए और बहुत सारे...पीड़ीत, वेतन भोगी और अघोरी सब बैठे हैं....हम तो फिलहाल आपको एवम आपके समस्त स्नेही जनों को दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं..जो सभी बाजार की खुशहाली बहाल कर दे.
ReplyDeleteदीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteभईया, रतिराम जी क्या समझे तनिक हमें भी समझा दीजीये । या छोडिये आप सबको हैप्पी दिवाली (ला)
ReplyDeleteपरिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteपिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
क्या शिवजी, दीपावली है- फटने की बात करिए, फट के हवा में उड़ने की बात करिए। हवा में रोशन होने की बात करिए। अउर तो, फिर ई सबके बाद गिरना है। शुभ दीपावली।
ReplyDeleteहां, जहां तक रही बाजार की बात तो, इस सरकार गिरने औ नई सरकार बनने यानी अप्रैल-मई 2009 के बाद बाजार कुछ सुरसुराएगा।(डिस्क्लेमर- हम बाजार विशेषज्ञ नहीं हैं, धुप्पल मार रहे हैं)
बन्धु,तीन व्यक्ति आप का मोबाइल नम्बर पूँछ रहे थे।मैनें उन्हें आप का नम्बर तो नहीं दिया किन्तु आप के घर का पता अवश्य दे दिया है।वे आज रात्रि आप के घर अवश्य पहुँचेंगे।उनके नाम हैं सुख,शान्ति और समृद्धि।कृपया उनका स्वागत और सम्मान करें।मैने उनसे कह दिया है कि वे आप के घर में स्थायी रुप से रहें और आप उनकी यथेष्ट देखभाल करेंगे और वे भी आपके लिए सदैव उपलब्ध रहेंगे।प्रकाश पर्व दीपावली आपको यशस्वी और परिवार को प्रसन्न रखे।
ReplyDelete"ये शेयर-वेयर के बारे में तो हमें कुछ पता नहीं है जी. हम तो ऐसी चीजों से दूर ही रहते हैं."
ReplyDeleteआहा हा...कम से कम एक मामले में हम और रति राम जी एक हैं...देश में एक नागरिक तो है जो हमारे जैसी सोच रखता है....लगता है रतिराम जी पिछले जनम में शायर रहे होंगे या फ़िर हम पनवाडी होंगे...तभी सोच का लेवल एक सा है...
नीरज
वाह ! " लास " का लाजवाब लेखा जोखा है....
ReplyDeleteबहुत बहुत बढ़िया.....