कल सुबह से ही हम लकी हो लिए हैं. ये न समझिये कि मैंने दिवाली के दिन जुआ खेलकर पैसा-वैसा कमा लिया है. वो तो हुआ ऐसा कि चार-पाँच लोगों ने कल दीपावली के शुभ अवसर पर एस एम एस भेजकर मुझे बताया; "तीन लोग मुझसे आपका मोबाइल नंबर पूछ रहे थे. हमने उन्हें आपका मोबाइल नंबर तो नहीं दिया लेकिन आपके घर का पता अवश्य दे दिया. ये तीन लोग हैं, सुख, समृद्धि और शान्ति. आज ये तीनों आपके घर ज़रूर आयेंगे."
ये तो एस एम एस का निचोड़ टाइप है. एस एम एस बड़ा था. पढ़ने लगा तो पहली लाइन पढ़कर ही डर गया. पहली लाइन में लिखा था; "तीन लोग आपका मोबाइल नंबर पूछ रहे थे."
एक बार तो पढ़कर डर गया. ये सोचते हुए कि तीन-तीन लोग नंबर काहे खोज रहे हैं? सोचने लगा कि कौन हैं भाई ये लोग? वो भी एक नहीं, तीन-तीन लोग हैं. पता नहीं क्या लफड़ा है? मोबाइल नंबर क्यों पूछ रहे हैं? कोई धमकी-वमकी देने का प्लान बनाया है क्या? कोई भाई टाइप लोग तो नहीं हैं? शंका इसलिए और बढ़ गयी क्योंकि तीनों ने कई लोगों से मेरा ही मोबाइल नंबर जानने की कोशिश की. आख़िर मामला क्या है?
खैर, आगे पढ़ा तो पता चला कि ये तीनों कोई और नहीं बल्कि सुख, समृद्धि और शान्ति हैं.
लेकिन तीनों एक साथ? सुख आने से शान्ति तो आ सकती है लेकिन समृद्धि आने से? उसके आने से कहाँ शान्ति? अशांति ही अशांति है.
दादा, भाई टाइप लोग पूछने लगते हैं; "सुना है तुम्हारे यहाँ समृद्धि बस गयी है. ये समृद्धि तुम्हारे यहाँ आकर क्यों जम गयी है? सुना है भारी मात्रा में आई है. इसमें से थोड़ा हमें भी ट्रान्सफर कर दो. और सुनो, ट्रान्सफर नहीं किया तो..."
मैंने ख़ुद कई बार लोगों को दूसरों की समृद्धि का बंटवारा करते देखा है.
लकी तो फील कर रहा था लेकिन एक बात से शिकायत भी थी. मैं पूछता हूँ कि इन तीनों को मेरे घर आना ही था तो दूसरों से मेरा नंबर मांगने की क्या ज़रूरत थी? दूसरों से नंबर पूछने पर वे लोग गुमराह कर देते तो? देवी-देवताओं ने जब इन तीनों को मेरे घर भेजा तो उन्हें चाहिए था कि पता भी बता देते. पता नहीं बताया कोई बात नहीं. कम से कम मोबाइल नंबर तो दे देते.
फिर सोचता हूँ, देवताओं ने इन तीनों की ड्यूटी न जाने कहाँ-कहाँ लगाई होगी. ऐसे में दो-चार लोगों का पता और मोबाइल नंबर बताना भूल भी जाएँ तो कैसा अचम्भा? लेकिन फिर भी देवी-देवताओं की ऐसी गलती से कोई लफड़ा हो जाता तो?
आख़िर ऐसा भी तो हो सकता था कि इन तीनों ने जिन लोगों से मेरा मोबाइल नंबर पूछा हो सकता है वे इन तीनों को गुमराह कर देते. हो सकता है वे ख़ुद अपना ही मोबाइल नम्बर दे देते. फिर देखा जाता कि सुख, समृद्धि और शान्ति सिमकार्ड के रास्ते चलकर उनके मोबाइल में घुस गए.
मोबाइल जबतक उनके पास है तबतक तीनों उन्ही के यहाँ डटे हुए हैं. बाकी दुनियाँ में सारे लोग हलकान हुए जा रहे हैं. हलकान होने से काम न चलता देख, इनका मोबाइल ही चोरी करने का प्लान बनाने लगते. उनके पुराने मोबाइल फ़ोन की कीमत अचानक ही बढ़ जाती. लोग मुंह माँगी कीमत देने पर उतारू हो जाते.
लेकिन इस मामले में मैं बड़ा लकी निकला. मेरा लक देखिये कि सुख, समृद्धि और शान्ति ने भले लोगों से ही मेरा मोबाइल नंबर पूछा. किसी ऐरे-गैरे या ख़राब टाइप लोगों से नहीं.
ख़राब लोगों से पूछा होता तो वे लोग घर का पता तो जाने दीजिये, मोबाइल नंबर तक नहीं बताते. ऊपर से इन तीनों को अपना ही मोबाइल नंबर देकर ख़ुद ही निहाल हो लेते. लेकिन हमारे चाहने वालों ने ऐसा कुछ नहीं किया. आख़िर भले लोग जो हैं.
ऐसे ही भले लोगों की वजह से अभी भी दुनियाँ में पाप कभी-कभी डिफ़ीटेड फील करता है.
सुबह से लकी फील करने का जो कार्यक्रम शुरू हुआ वो शाम तक मुझे पूरी तरह से मस्त किए रहा. मन में आया कि दोस्त-यार टाइप लोगों को बता दूँ कि आज कौन-कौन मेरे घर आने वाला है. फिर सोचा बताना ठीक रहेगा? ऐसा न हो कि ये लोग नज़र लगा दें.
आख़िर इस तरह की सोच ही तो पक्की दोस्ती की निशानी है.
फिर सोचा कि एक बार बता दूँ ताकि दोस्त-यार जल-भुन जाएँ. ऐसा इसलिए कि यही सोच इंसानियत को पक्का करती है.
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि मनुष्य जब भी ऐसा सोचता है, मुकेश साहब का गीत "न मैं भगवान हूँ न मैं शैतान हूँ, दुनियाँ जो चाहे समझे, मैं तो इंसान हूँ" गाकर संतोष कर लेता है.
खैर, सुबह से लकी फील करने का 'दिवालीय कार्यक्रम' शाम आते-आते मेरा पेशेंस टेस्ट कर रहा था. अचानक मुझे एहसास हुआ कि एस एम एस करने वाले भले आदमी ने बताया ही नहीं कि इन तीनों के आने का एक्जेक्ट टाइम क्या होगा?
आख़िर एक बार आने का समय पता चल जाता तो समय से केवल आधे घंटे पहले से इंतजार शुरू करते. बाकी के समय आराम से बैठते. जब इन लोगों के आने का समय होता तो घर के सामने कुर्सी डालकर बैठ जाते. जैसे ही ये तीनो दिखाई देते इन्हें चाय-पानी पूछ लेता. चाय-पानी से इनका मन भरा हुआ होता तो बिना सुगर वाला लड्डू खिला देता. वो भी न खाते तो भुजिया, नमकीन वगैरह का यथोचित इंतजाम कर डालता.
वेट करते-करते जान निकली जा रही थी. पूजा भी कर रहा था तो दरवाजे की तरफ़ देख लेता.
एक बार तो पत्नी ने पूछ ही लिया; "ये बार-बार दरवाजे की तरफ़ क्यों देख रहे हो?" अब उसे कैसे बताऊँ कि आज कौन-कौन आने वाला है. मैंने सोच रखा था कि पत्नी को सरप्राईज दूँगा.
आख़िर सुखी दाम्पत्य जीवन के लक्षण ही यही हैं कि पति-पत्नी एक-दूसरे को सरप्राईज देते रहें.
पूजा ख़त्म हो गई. प्रसाद तक खा गया. प्रसाद का लड्डू खाकर इंतजार करते रहे. थोड़ी देर बाद प्रसाद में रखा सेब खा गया. थोड़े और इंतजार के बाद पानीफल खा गया. इंतजार और बढ़ा तो मेहनत करके मुसम्मी तक खा गया. लेकिन इन तीनो का कहीं पता नहीं.
मन में तो आया कि इंतजार करते-करते कोई फिल्मी गाना गुनगुना लूँ. गाना गुनगुनाते हुए इंतजार करने से मनुष्य स्मार्ट लगता है.
खैर, नाक से गाना शुरू ही किया था कि एक मित्र का फ़ोन आ गया. उसने पूछा; "क्या कर रहे हो?"
मैंने सोचा इसे सच नहीं बताऊँगा. मैंने उससे कहा; "पूजा कर रहा था. तुम क्या कर रहे हो?"
मेरी बात सुनकर वो बोला; "असल में कुछ लोग आने वाले हैं. उन्ही का इंतजार कर रहा हूँ. इंतजार करते-करते बोर हो रहा था तो सोचा चलो तुम्हें फ़ोन कर लूँ."
उसकी बात सुनकर मुझे लगा कि इतनी रात गए ये किसका इंतजार कर रहा है? मैंने उसे कुरेदा तो वो बोला; "हैं दो-तीन लोग. आप उन्हें नहीं पहचानते."
उसकी इस बात पर मुझे उसके ऊपर शंका हुई. आख़िर एक दोस्त दूसरे दोस्त के ऊपर शंका न करे तो दो कौड़ी का दोस्त. अगर शंका दोनों तरफ़ से होती रहे तो दोस्ती में दरार नहीं आती.
मैंने कहा; "अरे नहीं जानता तो कोई बात नहीं. नाम तो बताओ, शायद पहचान लूँ."
बड़ी हील-हुज्जत के बाद उसने बताया. तब जाकर पता चला कि वो भी इन्ही तीन लोगों का इंतजार कर रहा था. उसे भी किसी भले आदमी ने बताया था कि ये तीनो उसके घर भी आने वाले हैं.
हम दोनों बात करने लगे तो लगा कि सारा शहर ही इंतजार में है. रात को तो कोई नहीं आया. तीन को तो जाने दीजिये, एक भी नहीं आया.
सुबह उठकर सोचने लगे कि कल शाम को ही अगर कर्मों का लेखा-जोखा तैयार कर लेते तो इतना इंतजार तो नहीं करना पड़ता.
Wednesday, October 29, 2008
तीन तो जाने दीजिये, एक भी नहीं आया
@mishrashiv I'm reading: तीन तो जाने दीजिये, एक भी नहीं आयाTweet this (ट्वीट करें)!
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आपको जुआ जीतने की बधाई. हमने भी मन्ना में हाथ fatakare और सत्तर रुपये कटे. फूट लिए . लकी साबित हुआ. बेबाक पोस्ट के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteसारी मिश्र जी
ReplyDeleteगलती से आपको बधाई दे दी .आप तो अच्छे जन है . भूल सुधार कर रहा हूँ . व्हेरी सारी . .
चले तो साथ ही होंगे लेकिन रास्ते में गठबंधन टूट गया होगा तो आना स्थगित कर दिये होंगे। लेकिन इसी बहाने आप स्मार्ट बन लिये, नाक से गा लिये, खुश हो लिये। ये कोई कम है?
ReplyDeleteसॉरी भाई, दर असल वो तीनों सबसे पहले हमारे पास आ गये. हम कविता गा गाकर सुनाने लगे तो इतना भाव विभोर हुए कि रात कब गुजर गई पता ही नहीं चला. अगली दीवाली पर फिर आने का कह गये हैं. तब तक अगर और कवियतायें न तैय्यार हो गईं तो सीधा आपके यहाँ रवाना कर दूँगा. क्या फरक पड़ता है दोनों घर तो एक ही हैं. फोन करके पूछ तो लेते-हमसे ही छिपा गये.
ReplyDeleteमिश्राजी इनका तो हम भी इंतजार कर रहे थे ! जब ये तीनो के तीनो ही नही आए तो सोचा आपके पास ही रुक गए होंगे ! हमने सोचा की चलो अगले बार हमारा नंबर आ जायेगा ! पर आपके पास पहुँचने से पहले ही समीर जी ले उडे ! सही कहा आपने " आख़िर एक दोस्त दूसरे दोस्त के ऊपर शंका न करे तो दो कौड़ी का दोस्त. " ये काम आपको पहले ही कर लेना चाहिए था ! :)
ReplyDeleteमुझे तो मालुम था कि आने वाले नहीं। स्टेशन और बस अड्डे, दोनों से मेरा घर बहुत दूर है। टिकाऊ मेहमान भी आते आनाकानी करता है! इनसे आटो वाला डेढ़ सौ मांग लेता!
ReplyDeleteलिहाजा कोई व्यग्रता नहीं थी!
शांति आज काम पर नहीं आई, सुखदेव दिवाली के नाम पर मिठाई के साथ-साथ डेढ़ सौ रूपये भी ले गया, समृद्धि ने कल नई सूट खरीदी है, इसलिए चहक रही है कहीं आस-पास...... शाम तक तो आ ही जाएगी।
ReplyDeleteकोई कुछ भी कहे हम तो छिद्रान्वेषण करके आपको अशान्त करेंगे आप जिस गीत को गाकर संतोष कर लेते हैं वह मुकेश का नहीं मुहम्मद रफी का है, सुनील दत्त का है, मदर इंडिया का है और न जाने किस किस का है पर नहीं है तो बस मुकेश का . अब आप समझ गये होंगे कि ये ऊपर वाले लोग और हम जब तक आपके पास हैं तब तक उन तीनों को एक साथ नहीं आने देंगे आपके पास .
ReplyDeleteआज ही अपना मोबाईल नंबर अपने ब्लॉग पर चेंपते हैं. इन तीनों में से एक भी आ जाए, चलेगा.
ReplyDeleteशुभ दीपावली.
भाई मुझे तो इस भगत भाई की बात सही लग रही है,ध्यान से आप एम एस एम दोवारा से देख ले कही अगले साल का ना लिखा हो...
ReplyDeleteहमरी भी बधाई लई लो भैया, जुआ-वुआ जीतने की तो नही लेकिन हां दीपावली की बधाई व शुभकामनाएं।
ReplyDelete" ha ha ha shee kha ye teeno ne ptta nahee khan khan orr kin kinko intjaar kraya.....or fir khud hee gayab ho liye..."
ReplyDeleteRegards
वाह क्या बात है।अति सुन्दर।एक सुन्दर रचना के सृजन पर प्राप्त गुणग्राही पाठकों की प्रसंशा सुख शांति और समृद्धयानन्द तो देती ही है।
ReplyDeleteवो तीनो नहीं आए....लेकिन हमने देखा और पकड़ा भी उनके सहोदर-सगे कई दूसरे घरों में मौजूद थे. उनके साथ अपनी दीवाली भी हो गई...लेकिन आपकी सादगी दीवाली से भी कोई गिला नहीं है.
ReplyDeleteअब ये भी बताइये कि टिप्पणी पहले आयी या पोस्ट ?पोस्ट से टिप्पणी निकली या टिप्पणी से पोस्ट ?
ReplyDeleteहम सच कहें बंधू आप की पोस्ट पढ़ के बहुत ही खुश हो लिए हैं...पूछिए काहे? अब पूछ ही लिए हैं तो बता देते हैं...वो इसलिए की आप जैसा हम समझे थे वैसे ही इंसान निकले...नहीं समझे? समझाते हैं, हम समझे थे की आप भले इंसान हैं और देखिये आप भले इंसान ही निकले क्यूंकि सुख शान्ति और समृद्धि आज कल भले लोगों के घर नहीं आते...आज कल गुंडे मवाली नेता चोर उच्चक्के और लुटेरों के यहाँ उनका पड़ाव रहता है...आप से किसी ने दिवाली पर होली समझ के मजाक किया होगा...हैं हैं हैं...
ReplyDeleteनीरज
किसी ने ग़लती से अप्रेल फूल का मेसेज दीवाली पर भेज दिया होगा...
ReplyDeleteकिसकी बातें कर रहे हैं पता नही ।
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