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Monday, April 27, 2009

हजारों साल.....एक माइक्रो पोस्ट


@mishrashiv I'm reading: हजारों साल.....एक माइक्रो पोस्टTweet this (ट्वीट करें)!

पिछले करीब दो महीने से जब भी कुछ दोस्तों के साथ राजनीति की बात होती है तो यह शेर हमेशा याद आ जाता है;

हजारों साल 'नर्गिस' अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

16 comments:

  1. क्या बात है शिव भाई! आप ने तो शेर का मिजाज ही बदल दिया।

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  2. शिव भैया इस चुनाव मे भी नर्गिस रोती ही नज़र आ रही है और मुश्किल ये है दीदावर भी नज़र नही आ रहा है।

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  3. शिव भाई सच बताऊँ इस शेर का सही सही अर्थ मुझे आज तक समझ में नहीं आया ! व्याख्या करेंगें प्लीज !

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  4. इस पोस्ट पर जद्दनबाई कसमसा रही होंगी अपनी कब्र में!

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  5. हम जैसे उर्दू न जानने वालों के लिए हिन्दी में अर्थ लिखेंगे तो हम भी आनन्द ले पाएंगे.

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  6. हमारी भावनाओं को शेर में ढाल दिया मिश्रा जी.................एक ठो पान थाम ले इसी बात पे

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  7. एक नया स्वाद दिया इस शेर का.

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  8. क्या कहें मिश्राजी? यहां तो कुछ भी नही पैदा होने वाला.

    रामराम.

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  9. पूरा का पूरा तो मुझे भी समझ में नहीं आया था... पर मतलब खोज के ले आया मैं. वैसे इतनी आसानी से समझ में आ जाता तो शेर काहे का :-)

    [नर्गिस:.आँख की आकृति से मिलता-जुलता फूल.
    बेनूरी: ज्योतिविहीनता.
    दीदावर: आँख रखने वाला (पारखी)]

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  10. हुउम्म! वैसे हम त कहेंगे कि नहिए होता सरवा दीदावर पैदा त निम्मन रहता न.

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  11. वाह वा..खूब कहा शिव भाई !
    - लावण्या

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  12. अभिषेक भाई ,
    तब्भी समझ नहीं पाया -धुरंधर लोग तो समझे ही बैठे हैं -उनसे पूंछने पर जगहसाई निश्चित है -आप ऐसा करो भाई ह्पके से इसकी व्याख्या मेरे मेल बॉक्स में सरका दो ! बहुत दिनों से हातिम ताई की नाईं खोज रहा था उसे जो इसके सही अर्थ को मुझे हृदयंगम करा सके सोदाहरानार्थ ! अब मिल गये हो तो छोडेंगें नहीं -कस के पकड़ रहे हैं !
    नैतिक जिम्मेदारी तो शिव भाई की ही बनती थी पर वे बड़ी ऊंची बात कह मित्रों की वाह वाही में पुलकित हैं उन्हें जवाब देने की फिकर ही नहीं !

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  13. सच कहा आपने, किंतु मुश्किल तो ये है जब ये दीदावर पैदा भी होता हजार साल बाद तो जल्द ही पट्टी भी बाँध लेता है आँखों पर

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  14. वाह! लुच्ची गांधीगिरी की तो आपनें हवा ही निकाल दी।

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  15. हमें तो: " हों जो दो चार शराबी तो तौबा करलें....कौम की कौम है डूबी हुई मैखाने में...."याद आता है...अब आप हमारा क्या कर लेंगे?
    नीरज

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय