- क्या कर रहे हो?
- सोच रहा हूँ.
- तुम सोचते भी हो!
- हाँ.
- वैसे, क्या सोच रहे थे?
- सोच रहा हूँ एक बहस चला दूँ.
- क्यों?
- बहुत दिन हुए कोई बहस नहीं चली.
- बहस को बैठे रहने दो न.
- कितने दिन बैठेगी? बैठे-बैठे थक जायेगी.
- वैसे क्यों चलाते हो बहस?
- दूसरों की ज्ञान-वृद्धि के लिए.
- और तुम्हारी ज्ञान-वृद्धि?
- अब चरम सीमा पर है.
- तो क्या इम्प्रूवमेंट का कोई चांस नहीं?
- और कैसा चांस? लबालब है.
- वैसे कौन सा मुद्दा खोजा?
- अभी तय नहीं किया.
- तय कैसे करोगे?
- सोलह मुद्दों को पेपर पर लिखकर आँख बंद करके पेंसिल रखता हूँ. जिसपे पेंसिल वही मुद्दा.
- तो क्या-क्या मुद्दे लिखे इसबार पेपर पर?
- वो नहीं बताऊँगा.
- अरे पूरे सोलह नहीं तो आठ ही बता दो.
- क्यों? तुम जानकर क्या करोगे?
- मैं टिप्पणियां तैयार कर लूँगा.
- बिना जाने कि क्या लिखा रहेगा बहस में?
- तुम केवल मुद्दा बता दो. क्या लिखा रहेगा, मैं तय कर लूँगा.
- मैं मुद्दों को गोपनीय रखना चाहता हूँ.
- ओह, सरप्राईज. है न?
- वही समझ लो.
- वैसे बहस का मकसद क्या है?
- आनेवाली पीढ़ी को सुधारना है.
- और अपनी पीढ़ी का सुधार?
- अपनी पीढ़ी ख़ुद सुधर जायेगी.
- कैसे?
- बहस में हिस्सा लेकर.
- लेकिन आजतक तो हमेशा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे ही उठाते आए हो. फिर अपने देश के लोगों का भला?
- अपना देश, पराया देश की बात मत करो. अब हम ग्लोबल सिटिज़न हैं.
- ओह, तो इसीलिए पिछली बार चिली की हरी मिर्च पर बहस चलाई थी?
- हाँ. आख़िर सबकुछ ग्लोबल है. ऐसे में कौन कहाँ की मिर्च खा ले, किसे पता.
- फिर भी, इस बार के मुद्दे बता देते तो सुविधा रहती न. टिप्पणी बैंक तैयार करने में सुभीता रहता.
- तो सुनो.
- हाँ-हाँ. बताओ बताओ.
- तेल का खेल, अफ्रीका की भूख, क्यूबा की बाक्सिंग, राजनीति में धर्म की मिक्सिंग, आशाराम बापू, अफगानिस्तान में साम्राज्यवाद, आज का इलाहबाद, बम वाला सूरत, गणेश की मूरत, कबीर और तुलसी, फिलिस्तीन में मातमपुर्सी..
- बस-बस. मैं समझ गया. ठीक है चलता हूँ मैं.
- अरे क्या हुआ? कहाँ चल दिए?
- घर जाकर ढेर सारी टिप्पणियां लिखकर अभी से रखनी हैं. ओके बाय..
Thursday, September 4, 2008
बहस
@mishrashiv I'm reading: बहसTweet this (ट्वीट करें)!
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ब्लागरी,
ब्लागरी में मौज
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साहित्य सिनेमा और क्रिकेट भी जोड़ लीजिये....बहस के लिए करोड़ों लोग आ जायेंगे...आप ने जो मुद्दे दिए हैं वो सिर्फ़ बुद्धि जीवियों के लिए हैं...हम जैसे आम ब्लोगर्स के लिए नहीं....वैसे बहस के लिए कौन कमबख्त मुद्दे दूंदता है? बहस के लिए हमेशा अवसर ढूढे जाते हैं....
ReplyDeleteनीरज
आज आपने मेरा दिल जीत लिया ...मिश्रा जी.......
ReplyDeleteइनकी जरा ईमेल आईडी दीजिये... कुछ टिपण्णी मैं भी लिखवा लेता हूँ. या फिर उधार ही ले लूँगा ! :-)
ReplyDeleteप्रेरणादायक पोस्ट :)
ReplyDeleteक्या बात है भाई. सोच रहा हूँ !! पोस्ट ज़्यादा ज़रूरी हैं या टिप्पणियाँ ?? बहुत खूब शिव जी भाई ... अशोक भाई की बात से सहमत हूँ ...
ReplyDeleteप्रेरणादायक पोस्ट.
बहुत अच्छा।
ReplyDeleteआदरणीय आपने ज्यादातर मुद्दे शामिल कर लिए ! पर ग्राम, किसान,
ReplyDeleteभैंस और लट्ठ को इसमे शामिल नही किया ! और बिना लट्ठ बहस
कैसे करिएगा ? ज़रा विचार के देखियेगा !
@ ताऊ जी,
ReplyDeleteताऊ जी, बुद्धिजीवी आजकल केवल तथाकथित बड़े मुद्दों पर बहस चलाते हैं. किसे ग्राम, किसान, भैंस और लट्ठ की फिकर है? ऐसी चीजों पर फिकर किया तो मध्य-पूर्व, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, अभूतपूर्व, अपूर्व एशिया, अफ्रीका वगैरह का क्या होगा?
काहो मिसिर जी,
ReplyDeleteआज ‘सारथी’ से भेंट ना भई का? चकाचक बहस हुइ रही है उहाँ। एक हाथ के काँकर में नौ हाथ क बीआ निकरल हौ...। रचना जी और सुजाता जी मिलि के शास्त्रीजी के हुलिया बनावति हैं...। ढेर तमाशगीर भी जुट लिए भये हैं। तनि झाँकि आवौ उहाँ...।
आदरणीय आपने बात तो सही कही ! पर आप कोशीश तो कर देखिये !
ReplyDeleteआप तो एक बार एजेंडे में म्हारी भैंस और लट्ठ रखवा दीजिये ! फ़िर
हम संभाल लेंगे ! इब इत्ता सा काम तो करावावो मिश्राजी !
रोचक।
ReplyDeleteकई दिनो बाद ब्लॉगजगत आना हुआ ...'बहस' शीर्षक पढकर 'बिदक' गए थे फिर भी 'बहक' गए और 'बौराए' से 'बाँच' गए...
ReplyDeleteप्रभावशाली व्यंग्यात्मक रचना..
टिप्पणी बैंक की क्या जरुरत है-हमारा बैंक तो खुला ही है, लोन पर ले लो.
ReplyDelete-बहस का मुद्दा राम सलाका से निकालो रामायण में-सफलता प्राप्त होगी बालक.
-हम समझ गये हैं कि कौन सी पोस्ट से लौट कर यहाँ ये छापे हैं. इत्ता नाराज भी हो लेते हो, यह अंदाजा नहीं था, जबकि इतिहासकार भी नहीं हो. :)
aapne kaisa likha,kya likha is par bahas ki gunjaaish hi nahi hai.sirf ek shabd me kaha jaa sakta hai sateek
ReplyDeleteनारीवाद को तो छोड़ ही दिया.
ReplyDelete------------------------------------------
एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.
भाई साहब पहले तो सिर्फ़ मेरे आइडियास लेकर काम चलाते थे.
ReplyDeleteपर अब तो हद हो गई है जो बातचीत आपसे की जायगी उसकी भी पोस्ट छाप देंगे आप.
सबसे बड़ी बहस का मुद्दा तो यही होना चाहिए.
किसी का इतना शोषण भी उचित नहीं है.
और रही बात ब्लाग-जगत में चल रही बहसों की तो आप लोग मुझे और समीर लालजी को पंच बना दे हम उचित फैसला कर देंगे.
मैं ताऊ जी से सहमत हूं। लालूजी की तरह सफल होना है तो भैंस और लठ्ठ को प्रतीक बनाना ही होगा।
ReplyDelete"ऐसी चीजों पर फिकर किया तो मध्य-पूर्व, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, अभूतपूर्व, अपूर्व एशिया, अफ्रीका वगैरह का क्या होगा?"
ReplyDeleteबहस होगी आर या पार
क्योंकि हम हैं
दूर के इतिहासकार