कितना बड़ा होना चाहते हैं आप? लीमैन ब्रदर्स जितना? मोर्गन स्टैनली जितना, या फिर एआईजी जितना? डेवू जितनी बड़ी कंपनी या फिर जीई जितनी बड़ी? अमेरिका और सोवियत संघ जितना बड़ा होना चाहते हैं?
- ठीक है, बड़े होना चाहते हैं, हो जाएँ. लेकिन आपके इस बड़प्पन की कीमत? वो कौन देगा?
- हमारे बड़े होने की कीमत दूसरे अदा करेंगे मित्र. दूसरों के पैसे से बड़ा बनना एक कला है. हम तो दूसरों के पैसे से बड़े बने हैं तो ज़ाहिर सी बात है, दूसरे ही देंगे. दूसरे ही डूबेंगे. हमने ही तो आपके उर्दू शायर से ये लिखवाया था; "हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे."
- लेकिन ये डूबने की नौबत अचानक काहे मित्र?
- क्या करें मित्र? हम भारी जो हो गए हैं. भारी चीजें कहाँ तैर पाती हैं ज्यादा देर तक? टाइटैनिक भी तो तैरने के लिए बना था लेकिन वही भारीपन आड़े आ गया उसके भी. डूबा गया बेचारा.
- तो बड़ा बनते समय भारी हो जाने की बात मन में नहीं आई?
- तुच्छ सवाल न करें मित्र. आप छोटे हैं तो आपको बड़े होने के आनंद का पता कैसे चलेगा? कितना गहन आनंद मिलता है बड़े होने में, वो आप जैसे तुच्छ की समझ में नहीं आएगा.
- लेकिन फैलते समय सीमा भी तय कर लेते?
- असीम होने में जो आनंद है वो सीमा तय करने से कहाँ मिलेगा मित्र? वैसे भी आपकी समझ में नहीं आएगा. आएगा भी कैसे? आपके भारतवर्ष का जीडीपी जितना है, उतना तो हमने लोन ले रखा है.
- और लोन को अपनी कमाई मान लिया होगा?
- कमाई नहीं माना था मित्र. लेकिन अब लग रहा है कि कमाई ही तो थी. वैसे भी आप केवल हमें ऐसी बात क्यों सुना रहे हैं? आपके यहाँ जो किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उन्होंने भी यही किया था जो हमने किया?
- आप इतने बड़े होकर ख़ुद की तुलना हमारे किसानों से कर रहे हैं? ये उचित नहीं है मित्र.
- क्यों? क्यों उचित नहीं लग रहा है आपको? आपके किसान भी तो लोन लेकर ही बड़े बनने चले थे. वे मर रहे हैं, वैसे ही हम भी मर रहे हैं. अरे मित्र कर्ज लेकर घी पीयेंगे तो पेंचिस होनी ही है. और ज्यादा पेंचिस से मौत हो ही जाती है.
- आप केवल ख़ुद ही मरिये न मित्र. कौन मना करेगा आपको मरने से? लेकिन ये अपने साथ दूसरों को लिए जा रहे हैं, ये कहाँ तक जायज है?
- अब भारी-भरकम चीज अगल-बगल से गुजरेगी तो आस-पास की चीजों को समेटते जायेगी. वैसे भी हमने अपने गुर सारी दुनियाँ को सिखा दिया है. आपके देश की कंपनियों को ही देख लें. वो भी तो बड़ी हो रही हैं.
- सही कहा मित्र. सिखा तो दिया ही है. लोन लेकर हमारी कम्पनियाँ भी तो बड़े होने की दौड़ में शामिल हैं.
- वही बात मित्र. हम तो डूबेंगे सनम वाली बात.
- लेकिन सनम मानते हैं आप बाकियों को?
- सनम तो बनाना ही पड़ेगा मित्र. नहीं तो सनम की जान कैसे लेंगे?
- वैसे मित्र, एक बात बताएं. आपलोग पूरी दुनियाँ को कहते हैं कि आपके रेगुलेशन सबसे अच्छे, आपका रिस्क मैनेजमेंट सबसे अच्छा, आपकी अकाऊंटिंग पॉलिसी सबसे अच्छी, आप सबसे अच्छे. फिर ऐसे में ये अनर्थ क्योंकर भला?
- वो तो ईमेज बनाने की बात है मित्र. ईमेज ही तो सबकुछ है.
- वैसे एक बात कहूँ मित्र?
- कौन सी बात? ठीक है कहिये.
- आपलोगों को कितने ही लोग साम्राज्यवादी मानते थे. लेकिन ऐसा पहली बार देखा है कि साम्राज्यवादियों ने उनकी देश की सरकार को समाजवादी बनने पर मजबूर कर दिया.
- आपकी बात समझे नहीं. सन्दर्भ क्या है?
- सन्दर्भ वही है मित्र, जो आपकी सरकार ने किया. मेरा मतलब सरकार ने एआईजी को ले लिया, वो भी पैसा देकर. आपलोगों से ऐसी बात की कल्पना किसी ने नहीं की होगी.
- अब देखिये मित्र, कल्पना तो इस बात की भी किसी ने नहीं की होगी कि डेढ़ सौ साल पुराने बैंक डूब जायेंगे. हम तो हमेशा अकल्पनीय ही करने की फिराक में रहते हैं.
- तो जो कुछ भी हुआ उसके बारे में और क्या कहना चाहेंगे मित्र?
- अब कहने के लिए बचा ही क्या है मित्र? लेकिन आप जिद करते हैं तो हम भी कह देते हैं. तो सुनिए मित्र;
"समाजवादी अगर समाजवाद ले आए तो उसे क्रान्ति नहीं कहते. असली क्रान्ति तो तब होती है जब साम्राज्यवादी समाजवाद ले आए. हम असली क्रांतिकारी हैं मित्र.....हम असली क्रांतिकारी हैं."
Thursday, September 18, 2008
हम असली क्रांतिकारी हैं.....असली
@mishrashiv I'm reading: हम असली क्रांतिकारी हैं.....असलीTweet this (ट्वीट करें)!
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अर्थशास्त्र,
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waah sanam kya post likhi hai.. bas yu samajh lo ki ham dubane hi wale hai..
ReplyDelete'समाजवादी अगर समाजवाद ले आए तो उसे क्रान्ति नहीं कहते. असली क्रान्ति तो तब होती है जब साम्राज्यवादी समाजवाद ले आए'
ReplyDeleteतब तो क्रांति की उम्मीद करना फिजूल है। भला कोई अपनी पेट पर लात मारता है क्या?
(साम्राज्यवादियों पर अच्छा व्यंग्य था)
एक बुद्धिमान की बुद्धिमानो के लिए बुद्धिमता पूर्ण लिखी गयी पोस्ट....जय राम जी की.
ReplyDeleteनीरज
" very interesting post to read, great"
ReplyDeleteRegards
पता नहीं; कभी मुझे लगता है कि सारा विश्व एक विकट पॉन्जियत का शिकार होता जा रहा है।
ReplyDeleteसपने जो देखे जा रहे हैं, जो इनवेस्टमेण्ट स्कीम निकल कर आती हैं, उनमें रिस्क नहीं हैं। रिटर्न जबरदस्त हैं!
इस पॉन्जियत को या तो व्यक्ति का संयम रोके, या सरकार रोके, या आप जैसे सटायरिकल अलख जगाने वाले!
अन्यथा चाहे राष्ट्र के स्तर पर हो या सपने भोगते किसान के स्तर पर हो, त्रासदी तय है। पेचिस होनी ही है!
"आपलोग पूरी दुनियाँ को कहते हैं कि आपके रेगुलेशन सबसे अच्छे, आपका रिस्क मैनेजमेंट सबसे अच्छा, आपकी अकाऊंटिंग पॉलिसी सबसे अच्छी, आप सबसे अच्छे. फिर ऐसे में ये अनर्थ क्योंकर भला?"
ReplyDeleteजब तक बड़े घाटे न हो कंपनी का रिस्क मैनेजमेंट जबरजस्त होता है... जैसे अभी उन बैंकों का है जो दिवालिया नहीं हुए.
"आपलोगों को कितने ही लोग साम्राज्यवादी मानते थे. लेकिन ऐसा पहली बार देखा है कि साम्राज्यवादियों ने उनकी देश की सरकार को समाजवादी बनने पर मजबूर कर दिया."
- "Privatization of Risk Socialization of Profit !" नीति तो यही थी आज भी यही है !
"कल्पना तो इस बात की भी किसी ने नहीं की होगी कि डेढ़ सौ साल पुराने बैंक डूब जायेंगे. हम तो हमेशा अकल्पनीय ही करने की फिराक में रहते हैं."
कम से कम वाल स्ट्रीट में तो यही होता है... रिस्क मनेजमेंट की केस स्टडी वाली बुक मोटी होती जाती है... कभी निक लिसन इस क्षेत्र के लिजेंड माने जाते थे अब वो दिवालिया होना आज की कहानियो के सामने कुछ नहीं...
अभी तो बहुत कुछ होना बाकी है... वॉशिंगटन मुचुअल, मोर्गन स्टेनली, ... गोल्डमन का भी नंबर लग सकता है... देखते जाइये.
अच्छा लगा ये लेख.
एतना भारी भारी नाम ले लिहला बबुवा कि, मथवा के ऊपर से बिना दिमाग छुवाले सब बह गइल .
ReplyDeleteकौन सी बैंक है जो भारत की जी.डी.पी. के बराबर लोन देती है? हमें तो होम लोन के लिए भी पे स्लिप दिखानी पड़ती है और मैनेजर हंसकर कहता है..." और पैसे जमा कर लो पहले"! मतलब चाहो तब भी बड़ा होने के लिए क़र्ज़ नहीं ले सकते....:-) बहुत अच्छा व्यंग्य है आपका!
ReplyDeleteसही कहा जी.
ReplyDeleteहमेशा 10 मे से 11 देता हूँ, इस बार 10 मे से 9. :) धार हमेशा से कम दिखी. आपसे उम्मीदे बढ-अ गई है, शायद. :)
***
वैसे सरकारी कम्पनियाँ डूबती नहीं, जनता के पैसे से उनका पेट भरा जाता है.
आपके रेगुलेशन सबसे अच्छे, आपका रिस्क मैनेजमेंट सबसे अच्छा, आपकी अकाऊंटिंग पॉलिसी सबसे अच्छी, आप सबसे अच्छे. फिर ऐसे में ये अनर्थ क्योंकर भला?
ReplyDeleteकल्पना तो इस बात की भी किसी ने नहीं की होगी कि डेढ़ सौ साल पुराने बैंक डूब जायेंगे. हम तो हमेशा अकल्पनीय ही करने की फिराक में रहते हैं.
आपने अकल्पनीय लिखा है ! आज दिन भर का तनाव ख़त्म हो गया ! आज हमारे यहाँ एक शेयर ब्रोकर ने आत्महत्या की !
हैदराबाद में पुरे परिवार सहित एक ब्रोकर ने आत्म ह्त्या की ! और मार्केट बंद होती समय बाजार सकारात्मक बंद हुवा !
और सनम की मेहरवानी देखिये , टीवी ( सहारा न्यूज ) वाले आज ताऊ के पास सनम के बारे में विचार जानने आए !
वाह सनम क्या बात है ..? कहीं हमको भी गहरे में डुबाओगे ? हम तो डूब चुके हैं सनम , सारी दुनिया को डुबोयेन्गे !
@ भाई अभिषेक जी ओझा ..अभी तो बहुत कुछ होना बाकी है... वॉशिंगटन मुचुअल, मोर्गन स्टेनली, ... गोल्डमन का भी नंबर लग सकता है... देखते जाइये.
ओझा साहब इसमे सिर्फ़ एक सुधार कर लीजिये .. नंबर लग सकता है ... की जगह नंबर लग चुका है .. कर दीजिये !
मिश्राजी आज तो आपने जो लिखा ऐसा ही पढ़ने की इच्छा है ! अब कुछ टटोलता हूँ ! आपका लेख और भाई ओझा जी
की टिपणी से अभी कुछ स्ट्रेस लेवल कम हुवा है ! :) बेहतरीन पोस्ट .. बेहतरीन टिपणी .. अगर किसी के समझ आए तो !
सबकी अपनी २ दुनिया है ! भाई हम तो इन्ही गलियों में सनम का इंतजार करते हैं !
आप ने बहुत दुर की बात कही हे, ओर आज कल के माहोल पर सही हे,लेकिन हम ने तो बुजुर्गो की बात अपने पलू से बांध रखी हे, तेते पावं पसारिये जेती लमबी सोर,
ReplyDeleteधन्यवाद
बडे-बडे सपने बेचने वाली कम्पनियो को कोइ कुछ नहि करता और गरिब सटोरियो को जब मरज़ी जेल मे ठूस दिया जाता है,वे भी असली क्रान्तिकारी है।सटीक लिखा आपने
ReplyDeleteवैसे मित्र, एक बात बताएं. आपलोग पूरी दुनियाँ को कहते हैं कि आपके रेगुलेशन सबसे अच्छे, आपका रिस्क मैनेजमेंट सबसे अच्छा, आपकी अकाऊंटिंग पॉलिसी सबसे अच्छी, आप सबसे अच्छे.
ReplyDeleteऔर आपके डूबने का अंदाज सबसे अच्छा!
भाई, हम तो इसे पढ़ने के बाद इतना ही समझ पाए हैं कि बहुत बड़ी-बड़ी बात कही गयी है, जो काफी बुद्धि माँगती है। कमेण्ट करने की स्थिति नहीं है। थोड़ी और जुगाली करता हूँ। जय हिन्द।
ReplyDeleteअपना तो यूनाईटेड बैंक में खाता है. अपना बैंक ही अच्छा. भाई ये अमेरिकी हैं.
ReplyDeleteसबकुछ बड़ा ही करते हैं. चाहे वार हो, या घपला.
- आप केवल ख़ुद ही मरिये न मित्र. कौन मना करेगा आपको मरने से? लेकिन ये अपने साथ दूसरों को लिए जा रहे हैं, ये कहाँ तक जायज है?
ReplyDelete- अब भारी-भरकम चीज अगल-बगल से गुजरेगी तो आस-पास की चीजों को समेटते जायेगी. वैसे भी हमने अपने गुर सारी दुनियाँ को सिखा दिया है. आपके देश की कंपनियों को ही देख लें. वो भी तो बड़ी हो रही हैं.
बिल्कुल सत्य वचन है जी
उनकी छाप हम पर इतनी अमिट पड़ चुकी है की अब एक ही तरीका है खाल ही खिंचवा लो अब उसमे दर्द तो होगा ही
डूबते को तिनके का सहारा होता है मगर शायद उनको ये भी गवारा न हो
सारी तानाशाही पीछे के दरवाजे से निकल रही होगी अभी तो
सटीक व्यंग अच्छा लेख
वीनस केसरी