और फिर मौज के लिए मुद्दे की कमी है क्या? नहीं है न! मानते तो आप भी हैं मित्र. कैसे नहीं मानेंगे? ब्लॉगर होकर अगर मौज के बारे में न जानेंगे तो लानत है. अनूप जी के मौज लेने से परिचित हैं कि नहीं?
वैसे एक बात पूछ सकता हूँ मित्र?
कौन सी बात? अच्छा, पूछ ही डालो. आख़िर मानोगे तो नहीं. ये पूछने की अनुमति तो महज एक दिखावा है. मैं जानता हूँ तुमको. पूछो.
एक बार आपके कान देख लूँ?
क्यों? कान देखकर क्या करोगे?
नहीं मैं देखना चाहता था कि इतना वर्णन सुनकर आपके कान आपके पास हैं या नहीं. अच्छा, छोडिये. मैं ख़ुद ही देख लेता हूँ.
अरे वाह! हैं मित्र...हैं. आपके कान तो आपके पास हैं. मज़बूत हैं मित्र. आपके कान भी और आप भी.
नहीं, बुरा न मानें. मुझे आपके कानों की चिंता थी. समीर भाई के कान उनका साथ छोड़कर चले गए न. मैंने सोचा आपके भी चले जायेंगे तो फिर आगे की कथा कौन सुनेगा मित्र? हमें तो लगेगा कि हम दीवारों से बात कर रहे हैं.
चलो, अब आगे भी बढ़ो. इतनी बड़ी भूमिका बाँधने की ज़रूरत नहीं है. अरे उधर देखो. ज्ञान जी पिछले विवरण पर कमेन्ट कर के चले गए. पूछ रहे थे कि आगे का विवरण कहाँ है. ये तो वैसा ही हो गया कि दूकान पर ग्राहक आकर चला गया और तुम बिस्तर पर सो रहे हो. ऐसे में दूकान का बारह बजा समझो.
और वैसे भी, कोई नहीं सुनेगा तो दीवारों को ही सुना देना. उनके भी तो कान होते हैं.
रुष्ट न हों मित्र. रुष्ट न हों. ज्ञान भैया आकर चले गए, ये तो मेरे लिए बुरा हुआ.......
ठीक है आगे की सुनिए मित्र....वो देखिये, जो हाथ में एक-दो कागज़ लिए बैठे हैं, वे सभी संवाददाता हैं. और वो...जिनके हाथ में पाँच से ज्यादा कागज़ हैं, वे सारे सब एडिटर हैं. और वो...
समझ गया कि आगे क्या कहोगे. यही न कि जिनके पास एक फाइल है, वे चीफ एडिटर हैं.
अरे वाह मित्र. तुम तो प्रगति कर रहे हो. कैसे जाना कि फाइल लिए हुए बैठे सज्जन चीफ एडिटर हैं?
चीफ एडिटर के पास ही फाइल रहती है. जिसका वो कुछ नहीं करता.
हाँ तो ठीक है. आगे की सुनो.
ये चीफ एडिटर ने मयंक से पूछ लिया. क्या दिखा रहे हो आजकल चैनल पर. मयंक ने उन्हें बता दिया कि वे अभी बिग बैंग प्रयोग से होने वाले प्रथ्वी के संभावित (या फिर अवश्यम्भावी) नाश के बारे में हर दो घंटे पर प्रोग्राम दिखा रहे हैं. दो दिन हो गए. सुनकर चीफ एडिटर ने क्या कहा, सुनना चाहोगे मित्र?
और क्या करने बैठे हैं हम यहाँ? क्या कहा जल्द सुनाओ.
चीफ एडिटर बोले; "अब इस प्रोग्राम को एक मोड़ दे दो. अब कहना शुरू कर दो कि हमारा चैनल गारंटी देता है कि कुछ नहीं होगा. जनता को बताना शुरू कर दो कि पृथ्वी जिन्दा रहेगी और जनता भी."
और मयंक ने इस सुझाव के बारे में क्या कहा?
मयंक की क्या हैसियत कि वो कुछ कहे? उसने उल्टा चीफ एडिटर की जमकर सराहना की. बोला; "सर आप धन्य हैं. इतना धन्य विरोधी न्यूज चैनल का चीफ एडिटर कभी नहीं हो सकता. मैं आज ही जनता को गारंटी दे देता हूँ कि इस प्रयोग से कोई नहीं मरेगा."
और दो दिन तक दिखाने से जो लोग पहले से डर गए हैं? उनका क्या होगा?
अब उनका क्या होगा ये तो कोई नहीं जानता. दो दिन और रह गए हैं इस बिग बैंग के होने में. अगर इन्हें ज्यादा तकलीफ होगी तो ये प्रयोग शुरू होने से पहले ही सटक लेंगे. वैसे भी न्यूज चैनल तो एक बहाना है. सबही नचावत राम गोसाईं...
चलिए आगे बढ़ते हैं...
अरे वाह! मित्र आज तो इस मीटिंग में कपिल जी भी पधार गए हैं. क्षमा करें, इनके ऊपर मेरी दृष्टि पहले नहीं गई. कपिल जी के बारे में जानिए मित्र. ये बैकग्राउंड से बोलते हैं. अरे वही जो बड़े जोर-जोर से बोलते हैं. लगता है जैसे पूरी दुनियाँ को धिक्कार रहे हैं. क्या नेता और क्या क्रिकेटर, इनके धिक्कार से आजतक किसी की रक्षा नहीं हुई. आज तो कपिल जी भी धन्य हो गए.
धन्य हो गए! वो कैसे भला?
अरे मित्र, आपको नहीं मालूम. कपिल जी को इस तरह की मीटिंग में आने का चांस कम ही मिलता है. आज आए हैं तो चीफ एडिटर ने पूछ दिया. उन्होंने पूछा; "और कपिल, तुम्हारी आवाज़ को ऊंची करने की प्रैक्टिस कैसी चल रही है?"
चीफ एडिटर ने आज पहली बार उनसे कुछ पूछा. अब ऐसे में कपिल जी का धर्म है कि वे धन्य हो लें. चीफ एडिटर की निगाह उनपर पडी, यही क्या कम है.
और कपिल ने क्या जवाब दिया?
बढ़िया प्रश्न है मित्र आपका. कपिल ने उन्हें बताया; "प्रैक्टिस ठीक चल रही हैं सर. अब मेरा गला सत्तर डेसिबल साऊंड प्रोड्यूस कर लेता है."
जानते हैं? उनके जवाब से चीफ एडिटर संतुष्ट नहीं हुए. कैसे होंगे मित्र, कैसे होंगे? चीफ अगर संतुष्ट हो जाए तो वो दो कौड़ी का चीफ.
क्यों, क्या कहा उन्होंने?
वे बोले; "और कोशिश करो. अगले महीने तक तुम्हारे गले से कम से कम अस्सी डेसिबल तक साऊंड निकलना चाहिए. और हां, तुम जब भी किसी को धिक्कारते हो, जरा शब्दों पर जोर दिया करो. शब्दों पर जोर दोगे तो धिक्कार की मारक क्षमता बढ़ जायेगी."
धिक्कारना भी एक कला है.
सत्य वचन मित्र...सत्य भासा आपने. वैसे एक बात माननी पड़ेगी कि कपिल जैसे लोगों ने धिक्कार को नई ऊचाईयों पर पहुँचा दिया है.
और आवाज़ के असर को भी...ठीक है, आगे बढ़ो.
सही याद दिलाया मित्र. और अब चीफ एडिटर मोहन महर्षि से मुखातिब हैं. आप महर्षि साहब के बारे में जानते हैं कि नहीं?
नहीं तो! ये महर्षि साहब कौन ठहरे?
ये चैनल में रुरल रिपोर्टिंग के हेड हैं मित्र. गाँव वगैरह के बारे में प्रोग्राम बनाते हैं.
अच्छा, इस मीटिंग में इनके साथ क्या हो रहा है?
और क्या होगा मित्र? आज इनकी धोती (धोती से मेरा आशय कपडों से है. ये लोग धोती कहाँ पहनते हैं?) खुलने का चांस है.
ऐसा चांस क्यों है?
वो इसलिए कि चीफ एडिटर ने इनसे कहा था कि गरीबों के बारे में एक सीरीज शुरू करें. माने एक प्रोग्राम बनाएं. अभी तक महर्षि जी उसपर काम शुरू नहीं कर सके हैं.
लेकिन ये चैनल गरीबों के बारे में प्रोग्राम क्यों बनाना चाहता है?
अरे मित्र. ये गरीबों के बारे में क्या प्रोग्राम बनायेंगे? सच पूछो तो ये लोग फंस गए हैं. असल में कई दिनों तक ये लोग एक ही वाक्य के पीछे पड़े रहे. लगातार तीन-चार दिन इन्होने दोहरा दिया कि "भारत की सत्तर प्रतिशत आवादी अभी भी गरीबी की रेखा से नीचे वास करती है."
बस किसी सिरफिरे ने प्रोग्राम में सवाल कर दिया. उसने पूछा; "तो आप लोग गरीबों की समस्याओं के बारे प्रोग्राम क्यों नहीं बनाते?"
बस, चोएफ़ एडिटर को ये बात लग गई. सार्वजनिक नहीं हुई होती तो कौन ध्यान देता इसपर. इनके बाप का कुछ नहीं जाता. लेकिन प्राइम टाइम में सिरफिरे ने सवाल दाग दिया. चीफ एडिटर वहीँ विशेषज्ञ के तौर पर बिराजे थे. उन्होंने वादा कर डाला.
अच्छा, तो ये बात है. वैसे देखकर बताओ कि उनके साथ क्या हो रहा है?
हाँ, वही बताने जा रहा हूँ. सुनिए. अभी-अभी चीफ एडिटर ने इनसे पूछा है कि प्रोग्राम शुरू क्यों नहीं हुआ?
धन्य है महर्षि जी भी. उनका जवाब सुनियेगा क्या मित्र? उनका जवाब सुनना शायद उचित नहीं रहेगा. हे भगवान, ऐसा जवाब! जाने दीजिये मित्र. अब चलिए यहाँ से. अब इनकी बातों की रिपोटिंग करना भी बहुत बड़ा पाप है.
ख़ुद को सद्कर्मी साबित करने की कोशिश न करो. ये पाप-वाप की बातें तुम्हारे मुंह से शोभा नहीं देतीं. आगे बताओ कि महर्षि जी क्या बोले?
नहीं मित्र, नहीं. मत सुनो कि उन्होंने क्या कहा.
अरे सुनाओ यार.क्या ड्रामा कर रहे हो?
तो सुनो मित्र. महर्षि जी ने बताया कि ऐसे प्रोग्राम के लिए उन्हें कम से कम तीस 'सुंदर' गरीबों की ज़रूरत थी. सुंदर से उनका मतलब फोटोजेनिक गरीबों से था. आगे उन्होंने बताया कि उन्हें अभी तक केवल आठ 'सुंदर' गरीब ही मिले हैं. इसीलिए प्रोग्राम शुरू नहीं हो सका.
क्या कह रहे हो मित्र! सुंदर गरीब नहीं मिले इसलिए प्रोग्र्रम नहीं शुरू हुआ! महर्षि जी तो सचमुच धन्य हैं. कैसे लोग हैं ये? गरीबी में तो ख़ुद कितनी बड़ी सुन्दरता है.
रोकिये ख़ुद को मित्र. ख़ुद को रोकिये. आपका ब्लॉगर-कवि ह्रदय आपसे ऐसी बात करवा रहा है. मैंने पहले ही कहा था न कि आपके लिए महर्षि जी का प्रसंग सुनना उचित नहीं रहेगा. अब सुन लिए तो आपका कवि-ह्रदय जागृत हो गया. आप ख़ुद गरीबी में सुन्दरता पर कविता खोजने लग गए. आगे सुनेंगे या चलें अब यहाँ से?
नहीं-नहीं मित्र. अब इतना सुन लिए तो थोड़ा और सही. आगे की बताईये...
क्या बताएँगे आगे की? चीफ एडिटर ने महर्षि जी को झाड़ लगा दी है. कह रहे थे कि अगर जेनूइन सुंदर गरीब नहीं मिल रहे तो किसी एक्स्ट्रा सप्लाई करने वाले से मंगा लो, लेकिन प्रोग्राम जल्दी शुरू करो.
हाय हाय...ये हाल! पूरा भारत गरीबों से पटा पडा है और इन्हें गरीबों की कमी है. ठीक किया जो इस महर्षि को झाडा चीफ एडिटर ने....खैर, आगे बताईये, कि क्या हुआ?
अहो अहो..मित्र आगे का डिस्कशन तो गजब है. मेरे कानों को विश्वास ही नहीं हो रहा है जो कुछ भी मैं सुन रहा हूँ...
ऐसा कौन सा डिस्कशन है?
अरे मित्र, अब तो बात हिन्दी ब्लागिंग पर हो रही है. ये चीफ एडिटर ने शायद संदीप को हिन्दी ब्लागिंग पर एक स्टोरी करने के लिए कहा था...अभी याद आया. वो इनके विरोधी चैनल वाईसीएन - इलेवन पर हिन्दी ब्लागिंग पर एक प्रोग्राम आया था न....समझ गया. उसी के जवाब में ये लोग भी ब्लागिंग पर प्रोग्राम बनाना चाहते होंगे....मित्र, अब तैयार हो जाओ, ख़ुद को टीवी पर देखने के लिए.
वाह! वाह! क्या न्यूज सुनाई है तुमने. तुम आगे की देखते रहो, मैं घी-शक्कर लेकर आता हूँ..
वो क्यों भला?
तुम्हारा मुंह घी-शक्कर से भरना है.
अरे रुको अभी. टीवी पर चेहरा दिखने की बात हुई नहीं कि घी-शक्कर लेने चल दिए. पहले सुनो तो संदीप क्या कह रहे हैं...
अच्छा ठीक है. बताओ कि वे क्या कह रहे हैं?
एक मिनट...रुको ज़रा...हे भगवान ये तो महर्षि जी से भी दो कदम आगे हैं.
क्यों क्या हुआ?
अरे चीफ एडिटर ने उनसे पूछा; "संदीप उस हिन्दी ब्लागिंग पर जो स्टोरी होनी थी, उसका क्या हुआ?"..जानते हैं क्या बोले?
क्या बोले?
ये संदीप बोला; "मैं कोशिश कर रहा हूँ सर..मैंने अपने एक मित्र रत्नेश, जो कि ख़ुद बहुत बड़े हिन्दी ब्लॉगर हैं, उनसे कह दिया है कि किसी 'सुंदर' ब्लॉगर को रेफर करें तो प्रोग्राम शुरू किया जाय. उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि वे जल्द ही एक-दो 'सुंदर' ब्लॉगर का नाम रेफर कर देंगे."
हो गया..चलो यहाँ से. देख ली इनकी मीटिंग मित्र. अब यहाँ रुकने का कोई फायदा नहीं...और हाँ, वो तुम्हारा घी-शक्कर जो लाने वाले थे तुम, उसे ख़ुद ही अपने मुंह के हवाले कर लो.
ओह, देखो और समझो कि सुन्दरता कितने प्रोग्राम के आड़े आ जाती है. गरीबों के ऊपर प्रोग्राम नहीं शुरू हुआ क्योंकि सुन्दरता आड़े आ गई. ब्लागिंग के ऊपर प्रोग्राम नहीं बना क्योंकि तथाकथित सुंदर ब्लॉगर नहीं मिला.
हे भगवान, थोडी सुन्दरता की सप्लाई बढाईये नहीं तो टीवी चैनल तो बंद हो जायेंगे...
पुनश्च:
ब्लॉगर मित्रो से अनुरोध है कि इस पोस्ट को एक अगड़म-बगड़म पोस्ट मानें. वैसे तो मुझे विश्वास है कि वे मानेंगे ही लेकिन ये अपील करना मुझे ज़रूरी लगा.
Saturday, September 20, 2008
एक टीवी न्यूज चैनल के कान्फरेन्स हाल से....पार्ट - २
@mishrashiv I'm reading: एक टीवी न्यूज चैनल के कान्फरेन्स हाल से....पार्ट - २Tweet this (ट्वीट करें)!
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अगड़म-बगड़म .
ReplyDeleteधत्तेरेकी! बड़ी मुश्किल/मेहनत से 250-300 शब्द लिख पाते हैं।
ReplyDeleteअब कहते हो कि टाई खरीदो। वहां तक भी ठीक था। पर यह टीवियोचित बनने के लिये सुन्दर कैसे बनें? उसके लिये तो प्लॉस्टिक सर्जरी करानी होगी। बहुत मंहगा होगा!
अच्छा; "सुन्दर" ब्लॉगर के लिये बहुत उम्मीदवार हैँ। अब तक तो तीस मिल ही गये होंगे!
अहो! अहो! सत्य वचन मित्र... यदि देवताओ का विमान यहा से गुज़र रहा होता तो कदाचित् आप पर पुष्पवर्षा हो ही जाती..
ReplyDeleteहम ऐसे गरीबों के लिए डिजाइनर कपड़े सप्लाई कर सकते है जो सचमुच के गरीब लगे...कोई जूगाड़ भिड़ाओ आपका कमिश्न पक्का.
ReplyDelete:)
हम भी फोटो जेनिक है, सिफारिश कर दो तो मूँह घी-शक्कर से भर देंगे... :)
वाह. वाह .वाह. एकदम धाँसू.... झक्कास.......... अगली किस्त तुंरत भेजो.एकदम तुंरत.
ReplyDeleteआदरणीय मिश्राजी ! बहुत बधाई हो ! मैं आपकी इस पोस्ट पर टिपणी नही कर रहा हूँ !
ReplyDeleteआपकी दुर्योधन की डायरी आज हमारे शहर से शाम को प्रकाशित होने वाले अखबार
प्रभात किरण में प्रकाशित हुई है ! आपके नाम के साथ ! बधाई हो ! शायद आपकी
जानकारी में होगा ! अगर नही हो तो आपको भिजवाता हूँ ! शुभकामनाएं !
"हे भगवान, थोडी सुन्दरता की सप्लाई बढाईये नहीं तो टीवी चैनल तो बंद हो जायेंगे..."
ReplyDeleteभगवान् प्रदत्त सुन्दरता का मोहताज कौन रहा है अब? मेकओवर का जमाना है भाईजी. :-)
ताऊ जी,
ReplyDeleteये बताने के लिए धन्यवाद. लेकिन यह कहना चाहूँगा कि बड़े ढीठ लोग हैं ये प्रभात किरण वाले. बिना पूछे ही इनलोगों ने अपने अखबार में छाप लिया. शायद इसीलिए हिन्दी अखबारों की ये हालत है.
खैर, कल के प्रभात की किरण निकालने दीजिये. इनकी ख़बर लेता हूँ.
"सबही नचावत राम गोसाईं..."
ReplyDeleteगोसाईं.. याने की गोस्वामी अब तुलसी दास जी को ये लिखने की क्या जरुरत थी की सब को राम नचा रहे हैं...सोचिये उनका क्या होगा जो सोचे बैठे हैं की सब को वोही नचा राहे हैं...अब सोचो की सोनिया जी को कोई कहे की मन मोहन जी को आप नहीं राम नचा रहे हैं तो क्या वो मानेगी? वो ही क्या कोई भी नहीं मानेगा मित्र. गोस्वामियों के साथ येही समस्या है...कुछ भी लिखते हैं बिना सोचे की इसका असर क्या होने वाला है...(मैं भी तो गोस्वामी हूँ मित्र...हैं हैं हैं...आप तो जानते ही हैं) गोस्वामी ना होता तो सीधे सीधे आप की पोस्ट के बारे में कमेन्ट करता और खिसक लेता यूँ अपनी ही बे सर पैर की न हांके जाता... लेकिन पुरखों का असर इतने जल्दी चला जाए तो फ़िर वो पुरखे ही क्या...???
मुझे अच्छा लगा देख कर की कुश ने ज्ञान चतुर्वेदी जी की "मरीचिका" पुस्तक जो मैं उन्हें भेंट में दे कर आया था पढ़नी शुरू कर दी है.
आप कहेंगे की आप की पोस्ट पर ये कैसी टिप्पणी है...तो आप की बुद्धि को प्रणाम कहते हुए कहना चाहता हूँ की अगड़म बगड़म पोस्ट पर तो अगड़म बगड़म टिप्पणी ही की जायेगी मित्र. आप बुरा मानना चाहें तो मान सकते हैं...आख़िर आप स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं और आप को कुछ भी मानने का अधिकार है...
नीरज
उनसे कहिये की गरीब और ब्लॉगर मिलाकर एक प्रोग्राम बना दीजिये उसके लिए में उपलब्ध हूँ हाँ सुन्दरता के मामले में कंडीशंस एप्लाय है जी.
ReplyDeleteआदरणीय मिश्राजी , इसमे आपकी ११ सितम्बर की दुर्योधन की डायरी छपी है !
ReplyDeleteअखबार की एक प्रति मैंने सुरक्षित रखवा दी है ! अगर आपको लगे तो भिजवा दूंगा !
उम्दा तो आप हमेशा लिकते हैं, शैली बदलने में भी आपका कायल हो गया हूँ। दोनो कड़ियाँ आज ही पढ़ पाया। अच्छा आइना दिखाया आपने...। बधाई।
ReplyDeleteवाकई साहेब! जबरदस्त!
ReplyDeleteकहां कहां से सूझते हैं आपको आइडियाज़ ...
ReplyDeleteबहुत खूब...
कान वापस आ गये अपने आप!!
ReplyDeleteअब इतना बढ़िया लिखोगे तो प्रभात किरण क्या-न्यूयार्क टाईम्स भी इसी चक्कर में हिन्दी पर न स्विच हो जाये.
बेहतरीन और सटीक चित्रण!! बधाई इस चित्रकार को!
जी...हम पांच सौ रुपया खर्च करके क्रीम पौडर ले आये हैं सुन्दर बनने के लिए.....हमें भी सुन्दर ब्लोगरों में शामिल करा दीजिये जरा!
ReplyDeleteहम जल्दी संतुष्ट भी नहीं होते हैं.....कहीं चीफ एडिटर बनने का चांस है क्या?
शिव भैया ऐसा लग रहा है आपने कोइ न्यूज़ चैनल शुरु कर दिया है।कमाल कर दिया सुन्दर गरीब का आइडिया तो बहुत ही धान्सू है,कोइ न्यूज़ चैनल उठा न ले
ReplyDeleteशिव भैया ऐसा लग रहा है आपने कोइ न्यूज़ चैनल शुरु कर दिया है।कमाल कर दिया सुन्दर गरीब का आइडिया तो बहुत ही धान्सू है,कोइ न्यूज़ चैनल उठा न ले
ReplyDeleteधिक्कारना भी एक कला है. इसका भी अभ्यास होना चाहिये। :) किसी ने किया काहे नही!
ReplyDeleteधिक्कारना भी एक कला है. इसका भी अभ्यास होना चाहिये। :) किसी ने किया काहे नही!
ReplyDeleteमिश्रा जी भाई आप का लिखा पढते पढ्ते हंसी के मारे पेट मे बल पड जाते हे,धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteसुंदर ब्लॉगर के जगह मोटा ब्लॉगर चलेगा क्या? मैं तो किर्तीश जी के कमेन्ट से सहमत हूँ.
गरीब ब्लॉगर पट स्टोरी कर लें तो बढ़िया रहेगा.