मीटिंग ख़त्म हुई. हुआ भी वही जिसकी आशा थी. पितामह को मध्यस्थ बनाना मामाश्री का कौन सा राजनैतिक दांव था, वही जाने. मुझे तो पहले से ही पता था, मध्यस्थ बनकर पितामह वैसे भी कुछ नहीं करने वाले. पूरी मीटिंग में; "कदाचित यह करना उचित नहीं रहेगा वत्स" नामक मंत्र का जाप करते रहे. किसानों के प्रतिनिधि कुछ कहें तो वही मंत्र; "कदाचित यह करना उचित नहीं रहेगा वत्स". गांधार चैरियट्स के प्रतिनिधि कोई सुझाव दें, तो भी वही मंत्र; "कदाचित यह करना उचित नहीं रहेगा वत्स."
बुजुर्गों की यही बात अच्छी नहीं लगती मुझे. ख़ुद तो कुछ करेंगे नहीं, और अगर कोई कुछ करना चाहे तो उसके काम में अड़ंगा डालेंगे. धर्म, नीति और संस्कृति के हथियार से सामने वाले को छलनी करने में देर नहीं लगती इन्हें.
वैसे भी पितामह से और क्या उम्मीद की जा सकती है? मुझे तो शक है कि जब इन्होने आजीवन ब्रह्मचर्य के व्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा की होगी, तो भी एक बार इसी मंत्र का जाप किया होगा; "कदाचित यह करना उचित नहीं होगा देवब्रत." फिर भी पता नहीं कैसे इस निर्णय पर पहुंचे. वैसे इसे दूसरी तरह से देखें तो ये भी कह सकते हैं कि ब्रह्मचर्य के पालन करने की प्रतिज्ञा करके भी इन्होंने जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया.
वैसे भी किसी को भी मध्यस्थ बनाते, बात तो एक ही होती. पितामह, चाचा विदुर, कृपाचार्य और गुरु द्रोण हैं तो एक ही गुट के. कल ही दुशासन कह रहा था कि इनकी गुटबाजी से पूरा हस्तिनापुर त्रस्त है.दुशासन को भी समझने की ज़रूरत है कि मेरे, मामाश्री, कर्ण, दुशासन और जयद्रथ के समूह को भी हस्तिनापुर वासी गुट ही कहते हैं.
गांधार चैरियट्स के कर्ता-धर्ता किसानों को ज़मीन की कीमत बढ़ाने को तैयार हैं लेकिन किसानों ने बढ़ी हुई कीमत लेने से मना कर दिया. पक्का ही इसमें धृष्टद्यूम्न का हाथ होगा. दुष्ट ऐसा कुछ करेगा, इसकी आशा तो पहले से ही थी. गुप्तचर बता रहे थे कि धृष्टद्यूम्न ने रथ बनानेवाली एक और कंपनी से पैसा खाया है जिससे कारखाने का काम रोका जा सके.
इसने किसानों को यह कहते हुए भड़का दिया है कि रथ कारखाने के लिए केवल चार सौ एकड़ ज़मीन की आवश्यता है. अब इन किसानों को कौन समझाए कि बिना घपले के कोई भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं होता. माना कि कारखाने के लिए चार सौ एकड़ ज़मीन की आवश्यता है परन्तु अगर थोड़ी ज़मीन और ली जा सके तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?
राजमहल के काम करने का अपना एक तरीका है. ये क्या चाहते हैं, हम पहले कारखाना चालू करवा के वहां ज़मीन की कीमतें बढ़ने दें, जिससे अगर भविष्य में ज़मीन खरीदना हो तो हमें दूनी कीमत देनी पड़े? हम मूर्ख तो नहीं हैं.
मैंने तो गांधार चैरियट्स वालों से कह दिया कि वे अखबार वालों को बुलाकर वक्तव्य दे दें कि वे हस्तिनापुर छोड़कर चले जायेंगे. ऐसा करने से राज्य की प्रजा की सहानुभूति राजमहल और कंपनी के प्रति बढ़ेगी. मैंने तो गुप्तचरों को कहकर किसानों के प्रतिनिधियों को तोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है. मामाश्री ने सुझाव दिया कि जिन किसानों ने ज़मीन दे दी है, पहले उन्हें बताया जाय कि कारखाना नहीं लगने से उन्हें क्या नुक्शान होगा. मामाश्री का सुझाव ठीक ही है. जिन किसानों ने ज़मीन दे दी है, उनके और विरोध करने वालों किसानों के बीच सिरफुटौवल करवा देना शास्त्रसम्मत रहेगा.
आज ही राजमहल के कर्मचारियों को काम पर लगा दिया. ये कर्मचारी कारखाने के पक्ष में तरह-तरह के कार्य करेंगे. दुशासन का सुझाव भी ठीक था. उसका कहना है कि हस्तिनापुर के तमाम मार्गों पर सिग्नेचर कैम्पेन चलाया जाय. हर चौमुहानी पर एक सिग्नेचर बोर्ड रखना श्रेयस्कर रहेगा.
बता रहा था आजकल सिग्नेचर कैम्पेन बहुत फैशन में है. जयद्रथ का सुझाव भी बुरा नहीं था. उसका कहना था कि राजमहल को एक अखबार का प्रकाशन भी शुरू कर देना चाहिए. ऐसा करने से कारखाने के पक्ष में माहौल बनाना सरल रहेगा.
वैसे अभी तक का सबसे बड़ा दांव आज मामाश्री ने खेला. विरोध कर रहे किसानों में से तीन को अपनी तरफ़ लाकर उन्हें एक जनसमूह के सामने मंच पर खडा कर दिया गया. कल शाम से ही इन किसानों ने उन्हें लिखकर दिया गया भाषण याद कर लिया और जनसमूह के सामने पूरा भाषण वैसे के वैसे बोल डाला. विरोध का माहौल कुछ-कुछ ठंडा होता प्रतीत हो रहा है.
साम और दाम को आजमा लिया गया है. भेद को आजमाया जा रहा है. उधर दंड ख़ुद को 'अजमवाने' के लिए व्याकुल हुआ जा रहा है. भेद से अगर अपेक्षित परिणाम नहीं मिला तो फिर दंडनीति की शरण लेनी पड़ेगी. वैसे भी बिना दंडनीति के राजमहल के ज्यादातर अभियान संपन्न नहीं होते.
Tuesday, September 16, 2008
दुर्योधन की डायरी - पेज २२४८
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज २२४८Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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१. गुट की गुट्टक उस समय भी जम कर खेली जाती थी; यह जान कर अतीव हर्ष हुआ।
ReplyDelete२. गान्धार चैरियेट्स वाला रत्न दुर्योधन की बात मानता है - वैरी बैड!
३. अगला पन्ना जल्दी छापें डायरी का!
कौन कह सकता है की दुर्योधन मर गया...??लगता है वो आज भी छद्म वेश में हमारे बीच है और आप के पीछे खड़ा हो कर अपनी डायरी लिखवा रहा है...हस्तिनापुर और आज के समय के प्रसंग हुबहू एक से हैं...किसी ने सत्य कहा है...इतिहास अपने आप को दोहराता है....डायरी से बात स्पष्ट हुई...विलक्षण लेखन है बंधू...हम हैरान हैं.
ReplyDeleteनीरज
राजमहल को भी अखबार निकाल लेना चाहिये।क्या बात कही शिव भैया,छा गये,आपका दुर्योधन उस समय होता तो पान्डवो को हिरो नही बनने देता
ReplyDeletehe he.. Pitamah ki lines bahut achi lagi "कदाचित यह करना उचित नहीं रहेगा वत्स" bahut khub sir ji
ReplyDeleteNew Post :
I don’t want to love you… but I do....
नायाब पन्ना है. दुर्योधन जी की जय हो......ऐसी परम्परा चलाई कि युगों के राजनितिक परम्परा के आइडल बन गए. कितने भी युग बीते पर यही नीति अनुकरणीय रहेगी सदा.साम दाम दंड भेद नीति राजनीति की वह नींव है जिसपर हर राजनेता अपनी अट्टालिका खड़ा करता है.
ReplyDeleteमजा आ रहा है.
ReplyDeleteदण्ड देने का अभ्यास तो पहले से किया हुआ है ही.
सुंदर रचना. बधाई स्वीकारें.
ReplyDeletebaat baat mein kaam ki baat kahne wali baat badhiya lagi.. baki diary ka to ek ek panna hi kamal hai.. aur kya kahu?
ReplyDeleteअब लगता है आप दुर्योधन के स्थान पर किसी और की डायरी दुर्योधन के नाम से पढ़वा रहे हैं।
ReplyDelete"दुशासन को भी समझने की ज़रूरत है कि मेरे, मामाश्री, कर्ण, दुशासन और जयद्रथ के समूह को भी हस्तिनापुर वासी गुट ही कहते हैं."
ReplyDeleteपर काश मुझसे ( दुर्योधन ) छल ना किया गया होता, तो ये गुट कुछ और ही इतिहास रचने की कूबत रखता था !
अब लगता है कृष्ण जी को सामने आ ही जाना चाहिए ....ई डायरी बहुत राज खोल रही है
ReplyDeleteडायरी लिखने का भी बड़ा फायदा है। ...देखते-देखते दुर्योधन की छवि सुधरने लगी है। ...वेद व्यास जी को अपने महाभारत का संशोधित संस्करण छपवाना चाहिए।
ReplyDeleteएक और बेहतरीन पन्ना इस डायरी का....आपका दुर्योधन न जाने कितनी पोलें खोलेगा!
ReplyDeleteसोचा कि दिल खोल कर टिपिया दूँ मगर तब तक आकाशवाणी सुनाई दी:
ReplyDeleteकदाचित यह करना उचित नहीं रहेगा वत्स!!
अतः रुक गये.
गजब जा रहे हो, शिव भाई. अगला पन्ना लाओ.
लिखने का मन हो रहा था कि बहुत अच्छा लिखा है लेकिन किसी ने टोका- कदाचित ऐसा लिखना उचित नहीं रहेगा वत्स!
ReplyDeleteमतलब दुर्योधन भी हार मानने के लिए तैयार नहीं है. कितना पैसा लग चुका है.
ReplyDeleteआगे का पन्ना कब छापोगे. जल्दी छापो. पता चले कि रथ बनाकर तैयार हो सकेगा
या नहीं.