जहाँ स्टैण्डर्ड एण्ड पूअर का मानना था कि 'अगर इस निबन्ध को चुना गया और प्रसारित किया गया तो श्रद्धेक्स ('एस एंड बी लोकल इंडेक्स', यानी श्रद्धा और भक्ति का स्थानीय सूचकांक - सेंसेक्स से कंफ्यूज़ न करें!) में 300 प्वाइण्ट की गिरावट तय है, वहीं देवी-भक्तों का मानना था कि 'किसी 'पापी' द्वारा लिखे गए निबंध को शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसे निबंध पढ़ने से श्रद्धा स्खलित हो सकती है'.
आप लेख का अवलोकन कृपया उक्त राइडर के साथ करें:
दुर्गा-पूजा वैसे तो देश में एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इसे उद्योग का दर्जा मिल चुका है। अस्सी के दशक में राज्य से बाकी उद्योगों के ख़त्म होने के बाद सरकार और नागरिकों के सामने प्रश्न था कि कौन से उद्योग की स्थापना की जाय, जो राज्य से लुप्त होते उद्योगों का स्थान ले सके। इसी योजना के तहत दुर्गा-पूजा नामक उद्योग की स्थापना हुई. इस उद्योग के विकास के साथ-साथ इससे जुड़े बाकी के एंसीलरी उद्योगों का भी विकास हुआ. चन्दा उद्योग और गुंडा उद्योग इनमें से प्रमुख हैं. चन्दा उद्योग के विकास ने कालांतर में पूजा-उद्योगपतियों की चाल-ढाल और बोल-चाल पर भी गहरा प्रभाव डाला. हर साल दुर्गा-पूजा आने के क़रीब एक महीना पहले से ही इस उद्योग में काम करने वाले उद्योगपतियों और उनके कर्मचारियों की भाषा में अद्भुत बदलाव आ जाता है जिसका प्रभाव पूजा ख़त्म होने के क़रीब एक महीने बाद तक रहता है. इन लोगों के शब्दकोष में क़रीब दस से पन्द्रह गाली-सूचक शब्द जुड़ जाते हैं जो चन्दा उद्योग को चलाने में मदद करते हैं. जहाँ इन शब्दों से काम नहीं चलता वहाँ सामाजिक व्यवस्था में त्वरित बदलाव का सहारा लिया जाता है. जैसे अगर कोई 'पापी' मनुष्य पूजा के लिए मुँह माँगा चन्दा नहीं दे तो उसकी उचित धुलाई के साथ-साथ उसका सामजिक बहिष्कार किया जाता है. इसका परिणाम ये होता है कि मुहल्ले में रहने वाले लोग उससे बात नहीं करते और मुहल्ले का जनरल स्टोर्स उन्हें अपनी दूकान से सामान नहीं देता.
दुर्गा-पूजा के आने पर कलकत्ता शहर में लोकतंत्र उफान पर रहता है। पंडाल बनाने से लेकर नाच-गाने का कल्चरल प्रोग्राम बीच सड़क पर होता है। शहर की एक-चौथाई सडकों पर बसों और कारों का स्थान कुर्सी और शामियाने ले लेते हैं। पूजा ख़त्म होने के बाद मूर्ति-भसान के सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए भी सडकों को पूजा उद्योगपतियों को सौंप दिया जाता है. मूर्ति-भसान के लिए जाते हुए जुलूस को देखकर अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी इस बात से आश्वस्त हो जाते हैं कि पश्चिम बंगाल और देश में लोकतंत्र न केवल जिंदा है, बल्कि आगे भी बढ़ रहा है.
दुर्गा-पूजा पर दुर्गा माँ और उनके परिवार के अपने सिंहासन पर विराजने का कार्यक्रम भी बड़ा निराला है। दुर्गा माँ अपने पूरे परिवार के साथ ट्रक-यात्रा कर पूजा पंडाल के द्वार तक आ कर रुक जाती हैं। उन्हें ख़ुद आगे जाने की इजाजत नहीं है। आगे जाने के लिए उन्हें किसी रीमा सेन, राईमा सेन जैसे फिल्मी कलाकार या किसी नेता का परमिशन लेना पड़ता है। ये लोग एक कैंची लेकर आते हैं और रीबन काट कर उन्हें आगे जाने की इजाजत देते हैं। इन्हें कैंची लेकर आते देख कर प्रतीत होता है जैसे ये 'उदघाटक' दुर्गा माँ का रास्ता काटने आते हैं। दुर्गा-पूजा के उद्घाटन पर साल २००५ तक केवल फिल्मी हस्तियों, क्रिकेट खिलाडियों और नेताओं की मोनोपोली थी. उनकी इस मोनोपोली को खत्म करने का काम पहली बार सन २००६ में हुआ जब कुरुक्षेत्र निवासी और अपनी 'कुआँ-यात्रा' के लिए मशहूर बालक 'प्रिन्स' ने कलकत्ते में कुछ पूजा पंडालों में जाकर उद्घाटन का काम किया.
पश्चिम बंगाल में दुर्गा-पूजा समय का भी सूचक होता है। सरकार के टेंडर से लेकर कलकत्ता कार्पोरेशन के सड़क के ठेके का टेंडर इसी मौसम में निकलता है. अगर कोई सड़क ख़राब हो जाती है तो लोग ये सोचकर संतोष कर लेते हैं कि 'इस पूजा को जाने दो, अगले पूजा में सड़क की मरम्मत हो जायेगी.' साथ-साथ कई सारे सामजिक परिवर्तन भी दृष्टिगोचर होते हैं. साल में ११ महीने १५ दिन तक न दिखाई देने वाला जमादार अचानक सक्रिय हो जाता है. उसे दस दिन के काम का बक्शीश लेना रहता है. पूरे साल देर से अखबार देने वाला भी दस दिन के लिए अति सक्रिय हो जाता है. बक्शीश का सवाल जो है. अन्य परिवर्तनों में सबसे बड़ा परिवर्तन शराब की बिक्री में दिखाई देता है. साथ ही दवाईयों की बिक्री बढ़ जाती है क्योंकि शराब के साथ-साथ बिरियानी का सेवन अचानक बढ़ जाता है जिसकी वजह से दवाईयों की बिक्री बढ़ जाती है.
दुर्गा-पूजा अन्य लोगों के साथ-साथ वयस्क होते लड़कों के लिए भी अच्छे दिन लेकर आता है। पूरे साल शराब के सेवन का इंतजार कर रहे ये बच्चे अपनी शराब-सेवन की महत्वाकांक्षा को हकीकत में परिवर्तित होते देख पाते हैं। शराब-सेवन के पश्चात पूजा परिक्रमा का आनंद लेते हैं। आध्यात्मिकता और शराब की जुगलबंदी का ये ड्रामा देखने लायक रहता है. पूजा का इंतजार उन साम्यवादियों को भी रहता है जो साल भर जनता को बताते रहते हैं कि उन्हें देवी-देवताओं पर विश्वास नहीं रहता. ये साम्यवादी पूजा पंडालों के बाहर अपनी साम्यवादी साहित्य की दुकान खोलकर बैठ जाते हैं. अपनी बात जनता तक पंहुचाने के लिए इन्हें भी देवी दुर्गा के सहारे की जरूरत पडती है. ये मौसम टैक्सी वालों के लिए भी अच्छे दिन लेकर आता है. जो टैक्सी वाले पूरे साल ग़लत मीटर लगाकर जनता को लूटते हैं, इस मौसम में टैक्सी के मीटर ही बंद कर देते हैं और जनता से भाडे के साथ-साथ प्रीमियम भी चार्ज करते हैं.
बहुत सारे मामलों में दुर्गा-पूजा को नेताओं के नाम से भी जाना जाता है. कलकत्ते शहर में हमें सुब्रत मुख़र्जी का पूजा और सौमेन मित्र का पूजा के साथ-साथ और बड़े नेताओं के पूजा पंडाल के दर्शन होते हैं. इन नेताओं द्वारा आयोजित पूजा के बारे में सुनकर जनता को भ्रम हो जाता है कि 'यहाँ माँ दुर्गा की पूजा होती है या नेताओं की.' रोशनी का इंतजाम इतना विकट होता है कि सब कुछ साफ-साफ देखा जा सकता है.
लेकिन शायद माँ दुर्गा की आंखें इतनी भीषण रोशनी में चौधिया जाती हैं।
एस एंड बी वालों से बच कर रहियेगा..इन्डेक्स में गिरावट आने का भय मुझे भी हो रहा है...
ReplyDeleteमाएर जोन्ने आमि चंदा निच्छी आपनि की लिखछेन.बूझते पाच्छेन ना आमि कोतो बॉढ़ो काज कोरछी.ठीक आछे ...आसुन आमार पाड़ाते,देखे नेवो.
ReplyDeleteतुमार बन्धू - काकेश 'बंगाली'
एक और सज्जन को मैं जानता हूँ जो हमेशा टॉपर का निबन्ध चुरा कर लाते हैं और एक आप है कि पुअर का ले आये वो भी जिसे इतने बड़ी एजेन्सी स्टैण्डर्ड एण्ड पूअर ने पूअर का दर्जा दिया हो.
ReplyDeleteहै मगर धांसू निबन्ध...वैसे आजकल स्टैण्डर्ड एण्ड पूअर का आंकलन ऐसे ही चल रहा है-पूअर को स्टैन्डर्ड और स्टैण्डर्ड को पूअर :)
हमे तो निबन्ध बहुत पसंद आया.
नास्तिक वामपंथियों के राज में आस्थिक धंधों को पूरे देश की ही तरह बढ़ावा मिल रहा है। अच्छी बात है। विकास के लिए हर भावना और आस्था को कैश करना ज़रूरी है।
ReplyDeleteब्लॉग के व्यग लेखकों को सावधान हो जाना चाहिए....शिवकुमार मैदान में उतर पड़े हैं....पता नहीं इनका क्या इरादा है.....पर खेल तो धाँय धाँय रहे हैं....जय हो भा आपकी
ReplyDeleteमै बडा परेशान हू समीर भाइ आप ही मेरी व्यथा कथा पर कोई निबंध लिख मारो ..ये दो पाटन के बीच मे फ़स गया हू मै ..मेरा जो निंबंध टाप पर आता है वो आलोक जी पोस्ट कर डालते है और अब इस बार जो पुअर मे गिना गया वो यहा छाप दिया गया..और दोनो मेरा नाम कही भी नही देते..लगता है मेरे छुट्टी पर जाने से लोग मेरे से भी पंगे लेने मे डर नही रहे है...:)
ReplyDelete@काकेश दा,
ReplyDelete"माएर जोन्ने आमि चंदा निच्छी आपनि की लिखछेन.बूझते पाच्छेन ना आमि कोतो बॉढ़ो काज कोरछी.ठीक आछे ...आसुन आमार पाड़ाते,देखे नेवो."
अरे दादा,
आपनी तो भालो लोक, भोद्रो लोक...ताई जोंन्ने निजेर पाड़ा ते आसिते बोलछेन....ए खाने तो मायेर भोक्तो आमार निजेर पाड़ा ते एशे ई जा ता कोरे जाय.....
बंधु
ReplyDeleteकलकत्ते में बैठ कर इस तरह का लेख सिर्फ़ वो लोग ही लिख सकते हैं जो या तो ये जानते हैं की शरीर मात्र एक चोला है और आत्मा अमर है इसलिए इसका त्याग किया जा सकता है या जिनके तार दाऊद से जुड़े हों और जिनको अपने बाल भी बांका न हो पाने का पक्का भरोसा हो. आप किस श्रेणी मैं आते हैं पता नहीं लेकिन आपने लिखा कमाल का लेख है. पानी में रह के मगर से बैर लेना ऐरे गैरे के बस की बात नहीं होती.
आप सही में बधाई के पात्र हैं.
नीरज
इतना स्तरीय व्यंग है कि शिव का ब्लॉग-जोड़ीदार होने में मुझे गर्व महसूस हो रहा है। जब शुरू किया था तो शिव के प्रोफाइल में (दायें बाजू, ऊपर) लिखा था - "सामान्यत: रोमनागरी में लिखेंगे"।
ReplyDeleteआज वह मैने शिव से बिना पूछे काट दिया है। निशान छोड़ दिये हैं कि आप देख लें।
और नीरज जी; मुझे भरोसा है कि शिव मात्र व्यंगकार हैं - न दाऊद के साथ हैं न साम्यवाद के विरोधी। और कोई पंगा हो तो अरुण अरोड़ा कह ही रहे हैं कि लेख उनका लिखा है! :-)
आप क्या चाहतें है हम बंगाल मे दुर्गापूजा बंद करदें. माँ दुर्गा के अनन्य भक्तों के बारे मे ये सब लिखने की हिमाकत जो आपने की है उसकी सज़ा तो आपको जरूर मिलेगी बस जरा एक बार अपना पता बतायें.
ReplyDeleteजबरदस्त!! बहुत सही!!!
ReplyDeleteछा गए आप तो!!
भई बहूत गलत बात है। जो स्टूडेंट हमारे लिए निबंध लिखते हैं,उन्हे आप बहका कर कलकत्ता ले गये हैं।
ReplyDeleteश्रद्धेक्स का तो जवाब ही नहीं है जी।
वाह, धांसू लिखे हो। सब पोल-पट्टी खोल दी। :)
ReplyDeleteधांसू। धंस गया।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लिखा है भाई जी .इतने सुंदर लेख ने मन मुग्ध कर लिया.अपने आप मी इतना पूर्ण है की इसपर किसी भी टिपण्णी की आवश्यकता नही.माँ दुर्गा आपकी लेखनी को दिन दूनी रात चौगुनी सम्रिध्धि दे.
ReplyDeleteजीवंत वर्णन
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 17 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!