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Wednesday, July 25, 2012

श्री राम और पांडवों का वनवास - दो नव-कथाएँ




भगवान श्री राम का वनवास.

वनवास के दौरान श्री राम अनुज लक्ष्मण और सीता जी के साथ गंगा किनारे खड़े हैं. वे आज ही गंगापार करके आगे बढ़ जाना चाहते हैं. घाट पर केवट जी की नाव पानी में लंगर के सहारे खड़ी हुई है. नाव के मालिक केवट जी भी खड़े हैं. सीता जी के माथे पर चिंता की लकीरें हैं. लक्ष्मण जी कुछ नाराज़ टाइप लग रहे हैं. श्री राम ने समर्पण वाली मुद्रा इख्तियार कर ली है. कुल मिलाकर बड़ी टेंशन वाली स्थिति बन गई है.

हुआ ऐसा कि गंगा पार कर लेने की इच्छा लिए जब श्री राम, श्री लक्ष्मण और सीता जी घाट पर पहुंची तब नाव बंधी थी लेकिन केवट जी वहाँ नहीं थे. घाट तक पहुँचने से पहले तीनों ने मन ही मन कितना कुछ सोच रखा था. तीनों को इस बात का विश्वास था कि वहाँ पहुँचते ही केवट जी न केवल उनका स्वागत करेंगे बल्कि पूरे परिवार के साथ उपस्थित रहेंगे. रास्ते की थकान दूर करने के लिए वे तीनों के पाँव धोयेंगे और घर से आया बढ़िया शरबत पिलायेंगे. परन्तु घाट पर पहुँचने के बाद तीनो को उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब उन्होंने देखा कि नाव अकेली खड़ी है और केवट जी गायब है. पास ही कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे. श्री राम ने उनमें से एक को यह कहकर भेजा कि वह केवट जी को उनके घर से बुला लाये.

केवट जी आये. उन्होंने श्री राम का अभिवादन किया. रामचन्द्र जी ने उन्हें बताया कि वे लक्ष्मण और सीता जी के साथ उसी समय पार जाना चाहते हैं. यह कहकर जैसे ही उन्होंने नाव की तरफ कदम बढ़ाया केवट जी ने उन्हें रोक दिया. भगवान राम को लगा कि शायद केवट जी इस बात से डर गए हैं कि नाव पर पाँव रखते ही नाव कहीं पत्थर की न हो जाए. उन्होंने केवट जी से कहा; "डरो मत भाई. कुछ नहीं होगा. मेरे छूने से यह नाव पत्थर की नहीं होगी. क्या तुम पिछली बात भूल गए जब तुमने हम तीनों को पार उतारा था? क्या पिछली बार तुम्हारी नाव पत्थर की हुई थी?"

यह सुनकर केवट जी बोले; "प्रभु यह तो हमें पता है. पिछली बार हम अवश्य डर गए थे लेकिन इस बार डरने का कोई कारण नहीं है. मेरे पुत्र ने विकिपीडिया पढ़कर हमें बता दिया है कि पिछली बार मेरे अन्दर फालतू का डर समा गया था."

भगवान राम बोले; "फिर तुम मुझे नाव पर पाँव रखने से क्यों रोक रहे हो अनुज?"

उनकी बात सुनकर केवट जी ने सिर लटका कर कहा; "प्रभु, हम आपको पार तो उतार देते लेकिन समस्या यह है कि अब हम नाव खेने का काम नहीं करते. गंगा में खड़ी यह नाव जो आप देख रहे हैं यह तो हमने इसलिए खड़ी कर रखी है ताकि कोई इसे खरीद ले. आपने शायद इसपर लगा फॉर सेल का बोर्ड नहीं देखा."

भगवान राम ने पूछा; "नाव खेने का काम नहीं करते? तो फिर तुम नाविकों की रोजी-रोटी कैसे चलती है?"

केवट जी ने भगवान राम की तरफ देखते हुए कहा; "शायद प्रभु को मनरेगा के बारे में नहीं पता. हे भगवन, जब बिना मेहनत किये हमें मजदूरी मिल जाय तो फिर कोई बेवकूफ ही होगा जो मेहनत करके नाव चलाए और लोगों को पार उतारे."

यह कहकर केवट जी चलते बने. भगवान राम ने लक्ष्मण जी से बात की और तीनों ने तय किया कि वे पैदल चलकर लॉर्ड कर्जन पुल से गंगा पार कर लेंगे ताकि शिवकुटी पहुँचा जा सके.

पांडवों का वनवास

वन में चलते-चलते पांडव थक चुके थे. थकते भी न कैसे? पेड़ों के कट जाने से वन में ऑकसीजन की कमी हो गई थी. इस वन में फैले पल्यूशन को लेकर अदालत की ग्रीनबेंच कई मुक़दमे देख रही थी. सभी भाइयों को प्यास लग चुकी थी. कहीं आस-पास पानी दिखाई नहीं दे रहा था. कारण यह भी था कि मनरेगा से तालाबों का जो ब्यूटिफिकेशन हुआ था उसकी वजह से बरसात का पानी तालाब तक पहुचने से मना कर देता था. इलाके के कुँए भी सूख चुके थे. यह बात और थी कि वन के रास्ते में भी उन्हें जग-प्रसिद्द विदेशी कोला धोखा कोला की कई होर्डिंग्स दिखाई दी थीं. पूरे राष्ट्र का यही हाल था. पीने का स्वच्छ पानी कहीं मिले या न मिले, धोखा कोला हर जगह मिलता था. गाँवों और जंगलों में भी धोखा कोला की दूकाने खुल गईं थीं. देखकर लगता था जैसे लोग़ स्नान वगैरह के लिए भी कोला का ही उपयोग करते थे.

जब उन्हें लगा कि और आगे जाना मुश्किल है, तब सारे भाई एक जगह बैठ गए. प्यास इतनी कि कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे. मन में आया कि किसी दूकान से धोखा कोला खरीद कर ही पी लें लेकिन माताश्री का डर था कि शायद वे नाराज़ न हो जायें. बैठे-बैठे वे कुछ सोच रहे थे तभी नकुल युधिष्ठिर से बोले; "भ्राताश्री, सोचने से तो प्यास और बढ़ती जा रही है. हम जैसे-जैसे सोचते जा रहे हैं, शरीर से पसीना और भी बह रहा है. मैं जाकर किसी तालाब पर अपनी प्यास बुझाता हूँ और आपसब के लिए भी पानी ले आता हूँ."

इतना कहकर नकुल वहाँ से चल दिए. करीब एक किलोमीटर पैदल चलकर वे एक तालाब के किनारे पहुंचे. तालाब देखकर उन्हें बड़ी ख़ुशी हुई. अभी उन्होंने तालाब से पानी लेने के लिए अंजुली आगे की ही थी कि पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर अनाउन्समेंट हुआ; "सावधान नकुल, तुम्हें इस तालाब से पानी पीने का अधिकार नहीं है."

अपने पिछले अनुभव से नकुल को पता था कि तालाब यक्ष का है सो यक्ष प्रश्न करेगा ही. वे पूरी तैयारी के साथ आये थे. यक्ष द्वारा पिछली बार किये गए प्रश्नों का उत्तर तो उन्होंने रट ही लिया था, साथ ही उपकार गाइड पढ़कर और ढेर सारे प्रश्नों का उत्तर रटकर पूरी तैयारी कर ली थी. आवाज़ सुनते ही उनका मन एक साथ सारे प्रश्न और उनके उत्तरों पर कुछ ही क्षणों में घूम-फिर कर वापस आ गया. नकुल जी भी इस बात से अस्योर्ड हुए कि मन सबसे तेज भागता है. इतना तेज कि कुछ ही क्षणों में हजारों प्रश्न और उनके उत्तरों पर घूम-फिर ले.

उन्होंने अपना हाथ तालाब के पानी के पास से खींचते हुए कहा; "प्रणाम यक्ष. मुझे पता था कि तालाब से जल लेने से पहले आप मुझसे प्रश्न करेंगे. पूछिए प्रश्न. मैं इसबार पूरी तैयारी के साथ आया हूँ."

नकुल की बात सुनकर पब्लिक एड्रेस सिस्टम से फिर आवाज़ आई; "हे युधिष्ठिर के अनुज नकुल, शायद आपको पता नहीं कि अब यह तालाब यक्ष का नहीं रहा. हमारी कंपनी धोखा कोला ने अब यह तालाब यक्ष से खरीद लिया है. कहने का तात्पर्य यह है कि अब इस तालाब के पानी का कार्पोरेटाईजेशन हो चुका है. वैसे तो इस तालाब के पानी का उपयोग अब केवल कोला बनाने के लिए होता है लेकिन फिर भी चूंकि आप थके और प्यासे हैं और साथ ही आप धर्मराज युधिष्ठिर के अनुज भी हैं, इसलिए हम आपको इसका पानी दे सकते हैं. शर्त केवल एक ही है कि आपको एक लीटर पानी के लिए पंद्रह स्वर्ण मुद्राएं देनी पड़ेंगी."

नकुल के टेंट में इस समय स्वर्ण मुद्राएं कहाँ से आती? उन्हें लगा कि अगर मुद्रा न रहने के कारण उन्हें पानी न मिला तो वे प्यासे मार जायेंगे. उन्होंने कंपनी के कर्मचारी की बात को अनसुना करके तालाब से पानी लेने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि पीछे से दो सिक्यूरिटी गार्ड्स ने उन्हें पकड़ लिया. दोनों ने मिलकर नकुल जी के हाथ में हथकड़ी पहना दी और उन्हें लेकर वहीँ बने धोखा कोला कंपनी के तालाब रक्षा केंद्र में चले गए.

इधर जब बहुत देर तक नकुल नहीं लौटे तब बारी-बारी से सहदेव, भीम और अर्जुन भी तालाब के किनारे गए और जबरदस्ती पानी लेने के आरोप में अरेस्ट कर लिए गए. सबसे अंत में धर्मराज युधिष्ठिर ने माताश्री को प्रणाम किया और अपने चारों भाइयों की खोज में निकले.

वे जब तालाब के किनारे पहुंचे तो उनके अन्दर उनका कांफिडेंस कुलांचें मार रहा था. आखिर प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए उन्हें तो उपकार गाइड भी रटने की ज़रुरत नहीं थी. अपना कांफिडेंस लिए वे तालाब के किनारे पहुंचे और बोले; "यक्ष जी को पांडु नंदन युधिष्ठिर का प्रणाम पहुंचे. मैं आपके सारे प्रश्नों का उत्तर देने को तैयार हूँ परन्तु मुझे अपने मृत भाई कहीं दिखाई नहीं दे रहे. आप उन्हें हमारे सामने प्रस्तुत करें और अपने प्रश्नों के उत्तर लेकर उन्हें फिर से जीवन देने की फॉरमेलिटी पूरी करें ताकि मैं जल पी सकूँ, उन्हें भी पिला सकूँ और माताश्री के लिए भी ले जा सकूँ."

धर्मराज युधिष्ठिर की बात सुनकर एक सिक्यूरिटी गार्ड ने उन्हें सारी बातें बताई कि कैसे उनके सभी भाई अरेस्ट हो चुके हैं और यह कि बिना मुद्रा दिए उस तालाब से पानी लेना कानूनन जुर्म है. धर्मराज वहाँ से चल दिए. किसी वकील की तलाश में ताकि भाइयों की बेल करवाई जा सके.

Monday, July 23, 2012

तारीफ़ करूं क्या उसकी....




शाम का समय. रतीराम जी की चाय-पान दुकान. पंद्रह मिनटी बरसात ख़त्म हुए आधा घंटा बीत चुके हैं. हवा भी मूड बनाकर बही जा रही है. मूडी हवा के साथ जैसे ही उधर से चाय की महक चली, उससे मिलने के लिए इधर से किमाम की महक लपकी. पता नहीं दोनों कौन से पॉइंट पर मिलीं? यह भी पता नहीं कि मिलने के बाद दोनों ने कौन से दुःख-सुख की बात की? चाय से भरे मिट्टी के मुँहलगे कुल्हड़ भी आस-पास के वातावरण को मिट्टी की खुशबू सप्लाई किये जा रहे हैं. कुछ बिजी और ईजी लोग़ हैं. थोड़े हलकान और ढेर परेशान लोग़ भी.

एक बेंच पर बैठे दो लोग़ पूडल नामक शब्द की व्याख्या कर रहे थे. निंदक जी किसी के साथ अंडरअचीवर नामक शब्द डिस्कश कर रहे हैं. कमलेश 'बैरागी' जी मुझे देखते ही अपना हाथ पाकिट की तरफ ले गए. शायद जेब में पड़े पन्ने पर टीपी नई कविता निकाल रहे थे लेकिन मैं रतीराम जी की तरफ बढ़ा तो उन्होंने ने भी अपना हाथ जेब से खींच लिया. मैंने नमस्ते किया तो दाहिना हाथ उठकर उन्होंने आशीर्वाद टाइप कुछ दिया.

इधर जैसे ही जगत बोस रतीराम जी की दुकान से चले रतीराम जी के होठों पर बुदबुदाहट उभर आई. मैं पास ही खड़ा था तो सुनाई भी दी. रतिराम जी की बुदबुदाहट से जो शब्द फूटा वह था; बकलोल. मुझे हँसी आ गई. मैंने पूछा; "क्या हो गया?"

वे बोले; "अरे पूछिए मत. कुछ लोग़ का पान हमको ही बड़ी मंहगा पड़ता है."

मैंने कहा; "क्या हुआ क्या? क्या दो बार सोपारी मांग लिए क्या जगत दा?"

रतीराम जी पान को कत्था समर्पित करते हुए बोले; "अब का कहें आपसे? केहू-केहू को बुझाता ही नहीं कि कहाँ चुप होना है. ई बस ओही प्रानी हैं."

मैंने कहा; "वैसे हुआ क्या?"

वे बोले; "अब आप से का कहें? जब आये तो हम इनका बेटा का तारीफ कर दिए. बस ओही भूल हो गया हमसे. हम तारीफ का किये, ई शुरू हो गए. पूरा इतिहास बांच दिए हियें. पहिला कच्छा में केतना नंबर मिला था. दूसरा में केतना मिला. कौन-कौन मास्टर कब-क़ब का बोला लड़िका के बारे में. आ शुरू हुए तो शेस होने का नाम ही नहीं. हम कहते हैं की ससुर एगो बात शुरू हुआ त कहीं ख़तम भी होना चाहिए की नहीं? बाकी इनको कहाँ खियाल है ई सब चीज का? आ पूरा आधा घंटा चाट के गए हैं."

मैंने कहा; "होता है ऐसा. लोग़ बेटे से प्यार करते हैं तो उसकी प्रशंसा सुनने पर उपलब्धि गिना ही सकते हैं."

रतीराम जी ने हमको ऐसे देखा जैसे मन ही मन कह रहे हों; आप कौन से कोई जगत बोस से कम हैं? फिर आगे बोले; "देखिये, ई खाली बेटा का उपलब्ध गिनाने का बात नहीं है. ई असल में उस बात से खुद को जोड़ने का बात है जहाँ आदमी का तारीफ़ हो. आ ई केवल जगत बाबू का समस्सा है? सबका एही प्राब्लम है. ऊ आपके हलकान भाई कम हैं का?"

मैंने कहा; "क्या बात कर रहे हैं? हलकान भाई भी आये थे क्या इधर?"

वे बोले; "आये थे? पिछला तीन दिन से सबेरे एहिये अड्डा लगा रहे हैं निंदकवा के साथ. आ काल शाम को निंदकवे बोला हमको, त पता चला. हलकान बाबू पंद्रह दिन से अउरी बात को लेकर दुखी हैं."

मैंने कहा; "उनको किस बात का दुःख है? आजकल ब्लॉग पोस्ट पर कमेन्ट कम मिल रहे हैं क्या?"

रतीराम जी मुस्कुराए. फिर बोले; "हा हा..ऊनको आ कमेन्ट का कमी? उसका कमी त उनको कभियो नहीं होगा. देखे नहीं अभी पिछला कहानी जंगल का रात पर पैसठ कमेन्ट मिला? बाकी उनका प्राब्लम दूसरा है."

इतना कहकर वे निंदक जी को आवाज़ लगाते हुए चिल्लाए; "ऐ निंदक..निंदक."

उनकी आवाज़ शायद निंदक जी को सुनाई नहीं दी या उन्होंने जानबूझकर रिसपोंड नहीं किया. उन्होंने एक बार फिर से आवाज़ लगाई; "ऐ निंदक जी..अरे तनी हेइजे सुनिए भाई."

उधर निंदक जी अपने डिस्कशन में मशगूल. रतीराम जी बोले; "आ ई निंदकवा को देखिये. ई हफ्ता भर से किसी न किसी के साथ में अंडरअचीभर वाला बात का चर्चा किये जा रहा है. मनमोहन सिंह के ओतना धक्का नहीं लगा होगा जेतना इसको लगा है. उप्पर से कहता है कि कौनो इश्पंसर मिल जाता त टाइम पत्रिका के खिलाफ प्रदर्शन कर देता."

इतना कहकर उन्होंने फिर आवाज़ लगाई; " हे निंदक...अरे सुनो भाई. कभी हमरो सुनो तनी.

अब की बार निंदक जी ने उनकी सुन ली. उठकर आये. रतीराम जी से बोले; "काहे ला एतना परशान कर रहे हैं? चेन से बतियाने भी नहीं देते हैं."

रतीराम जी बोले; "का उखाड़ ले रहे हो बतिया के? हफ्ता भर से ओही एगो मुद्दा लेकर सबसे बतियाये जा रहे हो. आ बतियाने का एतना ही है त काहे नहीं धर लेते कौनौ न्यूज चैनल. हम तो कहेंगे कि ऊ अरनब्वा का चैनल पर चल जाओ.बाकी उहाँ, अंग्रेजी में बौकना पड़ेगा सब." इतना कहकर रतीराम ने मुस्कुराते हुए आँख दबा दी.

रतीराम जी की बात को समझते हुए निंदक जी बोले; "माटी से जुड़े मनई हैं महराज. आ ई जनम में तो अंग्रेजी भाषा नहिये बोलेंगे. बाकी अगला जनम का बाद में देखा जाएगा. आ बकैती छोड़िये औ ई बताइए कि बोलाए काहे हमको?"

रतीराम जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा; "हम कहाँ बोलाए? बोलाए हैं आपके बड़के फैन मिसिर बाबा. इनको जरा बताइए कि हलकान भई को कौन बात का दुःख है? ऊ जो कल आप बताये रहे न हमके."

निंदक जी मेरी तरफ देखते हुए रतीराम जी से बोले; "आप भी कौनो बात पचा भी नहीं सकते हैं. मिश्रा जी के भी बता दिए?"

उनकी बात सुनकर रतीराम जी बोले; "अरे त मिसिर बाबा के त ही बताये हैं. कौन सा आपका बताया रहस्स बराक ओबामा के बता आये?"

निंदक जी को लगा कि अब वे बात को टाल नहीं सकते. लिहाजा बोले; "अरे अब क्या कहें मिश्रा जी आपसे? आपके हलकान भाई को इस बात का दुःख है कि पंद्रह दिन से कोई उनका तारीफ़ नहीं किया है."

मैंने कहा; "हलकान भाई को तो तारीफ मिलती ही रहती है. फेसबुक से लेकर ब्लॉग तक हर पोस्ट में इतना कमेन्ट मिलता है."

निंदक जी बोले; "अरे ऊ त भर्चुअल वल्ड का तारीफ है महराज. हम रीयल वल्ड वाला तारीफ़ का बात कर रहे हैं."

मैंने कहा; "रीयल वर्ल्ड में भी तारीफ मिलती ही रहती है उनको."

वे बोले; "एही त प्रॉब्लम है...चलिए अब आपके सामने भेद खोल ही देते हैं. त सुनिए. हलकान भई का माडस अप्रेंडी और तरह का है. ऊ किसी न किसी ब्लॉगर से हर दो तीन दिन पर कहते रहते हैं कि ऊ ब्लॉगर बहुत अच्छा लिखता है. आ ऐसा इस लिए कहते हैं ताकि ऊ पलट कर कह दे कि आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं. बाकी हुआ क्या कि जब से सावन शुरू हुआ है तब से कोई ब्लॉगर इनको मिला ही नहीं जिससे यह कह सके. कारण ये है कि कोई न कोई ब्लॉगर हमेशा भोलेबाबा को जल चढाने जा रहा है. ऊपर से दू दिन पहले झा जी फ़ोन पर मिले तो ई कह दिए कि आप बहुत अच्छा लिखते हैं मगर झमेला ये हुआ कि झा जी उधर से नहीं कहे कि आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं. बस तभी से हलकान भाई दुखी हैं."

मैंने कहा; "अरे तो हमको फ़ोन कर लेते. हम तो उनको वैसे ही बताते रहते हैं कि वे बहुत अच्छा लिखते हैं."

निंदक जी बोले; "अब ई तो नहीं पता कि आपको काहे नहीं फ़ोन किये. बाकी इसीलिए दुखी हैं ऊ."

तबतक रतीराम जी बोले; "देखिये तारीफ सुनना सभी चाहता है लोग़, बाकी ज़बरजस्ती नहीं न कर सकता है. ऊ दत्तो दा भी ओइसे ही हैं. एक दिन मार्निंग वाक में अपना कुत्ता लेकर आये. कुत्ता त का पूरा शेर टाइप लगता है ऊ. आ उसी समय एगो औरी हैं मुखर्जी बाबू, ऊ भी अपना कुत्ता लेकर आ गए. दत्तो बाबू ने मुख़र्जी बाबू का कुत्ता का खूब सराहना किया बाकी मुख़र्जी बाबू ने उनका कुत्ता का तारीफ नहीं किया तो दत्तो बाबू भी नाराज़ हो गए. त कहने का मतलब ई कि पब्लिक सब नाराज़ होकर आजकाल तारीफ लेना चाहता है."

रतीराम जी की बात ख़तम होती उससे पहले ही निंदक जी बोल उठे; "आ खाली दत्तो बाबू ही काहे? भूल गए कविराज का काण्ड?"

रतीराम जी बोले; "भूलेंगे कईसे? उनका त हमेशा से एही हाल है. ऊ आपके फ़ुरसतिया जी की सूक्ति है न कि "कबी का तारीफ कर दो त ऊ फट से दीन हीन हो जाता है", ऊ सूक्ति पूरा फिट बैठता है उनपर. पहिले तो हर नया कविता सुनायेंगे औउर कोई तारीफ नहीं किया त उसका साथ दू दिन बात नहीं करेंगे. बाकी जो तारीफ कर दिया त फट से उसका सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो जायेंगे, ई कहते हुए कि बास आपका कृपा है. देख के लगता है कि जईसे सामने वाला ही इनको कागज़-कालम खरीद के दिया है आ नहीं तो ई कविता नहीं लिख पाते."

निंदक जी बोले; "हा हा हा..सही कह रहे हैं. ऊनका हाल देखकर उस समय एही लगता है."

रतीराम जी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा; "अब ऊ जमाना नहीं रहा कि शम्मी कपूर जैसा हीरो भी शरमीला जी को सुन्दर बताने का बास्ते तारीफ ख़ुदा का करें जो उनको बनाया था.हम कहते हैं तारीफ त अईसे भी होता है बाकी सामने वाला माने तब."

तब तक मेरा पान बन गया था. रतीराम जी हमको देते हुए बोले; "आ लीजिये खाइए. ई तो हरि अनंत हरि कथा अनंता टाइप बात है. पूरा शास्त्र ही लिखा जा सकता है. बस वेद व्यास जईसा कोई चाहिए."

Friday, July 20, 2012

अंडरअचीवर बनने की जंग




इस्लामाबाद १९ जुलाई

इस्लामाबाद से कासिफ अब्बासी

आज अंडरअचीवर वार ने एक नया मोड़ ले लिया. सूत्रों के मुताबिक़ पाकिस्तान के सदर जनाब आसिफ अली ज़रदारी इस बात से नाराज़ हो गए हैं कि दुनियाँ की किसी मैगेजीन ने उन्हें अंडरअचीवर नहीं कहा. आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि पहले अमेरिकी मैगेजीन टाइम ने इंडिया के वजीर-ए-आज़म जनाब मनमोहन सिंह को अंडरअचीवर करार दिया था जिसका जवाब एक इंडियन मैगेजीन आऊटलुक ने अमेरिकी सदर बराक ओबामा को अंडरअचीवर कहकर दिया. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्द ही दुनियाँ के तमाम मुल्क की मैगजीन एक-दूसरे के सदर और वजीर-ए-आज़म को अंडरअचीवर कहकर पूरी दुनियाँ के लीडरान को अंडरअचीवर करार दे देंगी.

दुनियाँ भर के दानिशमंद और तर्जियानिगार ऐसा मानते हैं कि एक बार ऐसा हो जाने से पूरी दुनियाँ एक नई शुरुआत कर सकेगी.

उधर कुछ पाकिस्तानी इदारों और हलकों में यह बात भी की जा रही है कि जब अमेरिका ने नाटो सप्लाई को बहाल करने के लिए पाकिस्तान से कहा तब सदर जरदारी ने अमेरिका के समाने रखी तमाम शर्तों में एक शर्त यह भी रखी थी कि नाटो सप्लाई के एवज में अमेरिका पाकिस्तान को रुपया-पैसा वगैरह देगा ही, साथ ही अमेरिकी मैगेजीन टाइम सदर जरदारी को अपने फ्रंट-कवर पर रखेगी. जब टाइम ने इस बात के लिए यह कहते हुए मना कर दिया कि सदर ज़रदारी को वह फ्रंट-पेज पर नहीं रख सकती क्योंकि वे तमाम मुद्दों पर फेल रहे हैं तब प्रेसिडेंट ओबामा ने टाइम मैगेजीन को यह कहते राजी कर लिया था कि मैगेजीन चाहे तो उन्हें फ्रंट-कवर पर रखने के लिए अंडरअचीवर करार दे सकती है.

दोनों मुल्कों के सदर और मैगेजीन के बीच यह फैसला यह हुआ था कि जुलाई महीने के एक एडिशन में सदर जरदारी को फीचर किया जाएगा लेकिन नाटो सप्लाई खुलने के बाद अमेरिकी मैगेजीन अपने वादे से मुकर गई और इंडिया के वजीर-ए-आजम जनाब मनमोहन सिंह को अंडरअचीवर बताते हुए उन्हें अपने फ्रंट-कवर पर रख दिया. टाइम मैगेजीन के एक तर्जियानिगार ने अपना नाम न लिए जाने की शर्त पर यह खुलासा किया है कि मैगेजीन को हमेशा से यह लगता था कि इंडिया के वजीर-ए-आजम जनाब मनमोहन सिंह का अंडर-अचीवमेंट पाकिस्तानी सदर ज़रदारी से बड़ा है लिहाजा मैगेजीन ने अपने फ्रंट-कवर पर उन्हें मौका दिया.

इधर इस्लामाबाद में ऐसी बातें भी की जा रही हैं कि अब अंडरअचीवर टैग पाने के लिए अब सदर जरदारी ने अफगानिस्तानी सदर जनाब हामिद करजई से अपील की है. सदर ज़रदारी चाहते हैं कि अफगानी सदर जनाब हामिद करजई काबुल से निकलेवाले न्यूजपेपर अनीस डेली से कहकर उन्हें अंडरअचीवर का टैग दिला दें. कुछ दिफाई तर्जियानिगारों का यह भी मानना है कि पाकिस्तानी सदर ने आई एस आई को हिदायत दी है कि वह तालिबानी लीडरान से डायरेक्ट बात करके यह काम करवा दे. पाकिस्तानी सदर यह भी चाहते थे कि अमेरिकी वजीर मोहतरमा हिलेरी क्लिंटन भी इस काम में अपनी टांग अड़ा दें तो काम जल्दी हो जाने की उम्मीद रहेगी. अमेरिका की तरफ से फिलहाल यह आईडिया ड्रॉप कर दिया गया है क्योंकि मोहतरमा हिलेरी क्लिंटन को यह समझ नहीं आ रहा था कि अनीस डेली पर सदर ज़रदारी को फीचर करने के लिए उन्हें गुड तालिबान से बात करने की ज़रुरत है या बैड तालिबान से.

उधर दुनियाँ भर में आइडेंटिटी क्राइसिस के मारे तमाम लीडरान चाहते हैं कि उन्हें किसी न किसी मैगेजीन के कवर-पेज पर अंडरअचीवर करार देते हुए रखा जाय ताकि उन्हें आइडेंटीटी क्राइसिस के इस रोग से निजात मिले. हाल यह है कि चीन में आई हल्की सी इकॉनोमिक क्राइसिस के चलते वहाँ के प्रेसिडेंट हू जिंताओ तक यह चाहते हैं कि मेड इन चायना वाली टाइम पत्रिका अपने एक एडिशन में उन्हें अंडरअचीवर करार दे ताकि चीन की सरकार इकॉनोमी की फील्ड में अपने अचीवमेंट के नए-नए आंकड़ों में हेर-फेर करके पूरी दुनियाँ के सामने रखें और चाइनीज गवर्नमेंट खुद को ग्रेट बता सके. सरकार का ऐसा मानना है कि ऐसा करने से चायना की जनता में एक नया जोश आएगा, वह दिन में बाईस घंटे काम करेगी और और इकॉनोमिक क्राइसिस खत्म हो जायेगी.

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि टाइम पत्रिका की एक डुप्लीकेट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन की एक कंपनी ने शंघाई में खोल रखी है.

उधर ब्रिटेन में रह रहे साबिर पाकिस्तानी सदर और जनरल जनाब परवेज़ मुशर्रफ ने भी अंडरअचीवर बनने की कवायद शुरू कर दी है. पिछले कई सालों से पाकिस्तानी मीडिया में उनको लेकर कोई बात नहीं होती लिहाज़ा मुशर्रफ चाहते हैं कि उनका नाम भी न लेनेवाले अगर उन्हें अंडरअचीवर कह के भी याद कर लें गे तो आनेवाले इलेक्शंस में कुछ लोगों को उनके बारे में पता चल जाएगा और उनकी पार्टी को कुछ वोट मिल जायेंगे.

हमारे इंडियन व्यूरो से यह खबर भी मिली है कि इंडिया के पेज-थ्री इंडसट्रीएलिस्ट और आईपीएल टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के मालिक जनाब विजय माल्या भी चाहते हैं कि उन्हें अंडरअचीवर करार दे दिया जाय ताकि उन्हें इंडिया की गवर्नमेंट से कुछ स्पेशल पॅकेज मिल जाए. वहीँ दूसरी तरफ एक्सपर्ट्स और तर्जियानिगारों का मानना है कि इंडिया की सिविल एवियेशन मिनिस्ट्री के डायरेक्टर जनरल सिविल एवियेशन जनाब भारत भूषण को हटाने में विजय माल्या का हाथ है लिहाजा उन्हें अंडरअचीवर बताना नामुमकिन होगा.

दूसरी तरफ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इंडिया और अमेरिका के बीच पोलिटिक्स में शुरू हुई यह अंडरअचीवर जंग को आनेवाले समय में एक नया मोड़ मिल सकता है. ऐसे एक्सपर्ट्स यह मानते हैं कि लन्दन ओलिम्पिक्स में अगर अमेरिका को एथेलेटिक्स इवेंट्स में पचास से कम गोल्ड मेडल्स मिले तो इंडिया की कई मैगेजिंस अमेरिकी एथलीटों को अंडरअचीवर बतायेंगी. दूसरी तरफ अमेरिकी मैगेजिंस और न्यूजपेपर्स की निगाह श्रीलंका में इंडिया की क्रिकेट टीम के ऊपर भी रहेंगी ताकि आनेवाली श्रीलंकाई सीरीज और टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप में अगर इंडिया की टीम अच्छा न कर पाए तो टीम और उसके तमाम खिलाड़ियों को अंडरअचीवर बताया जा सके. पकिस्तान के साबिर कप्तान जनाब आसिफ इकबाल का मानना है कि अमेरिकी मैगेजिंस की निगाहें इंडिया के आलराऊंडर रवींद्र जडेजा और उनके मेंटोर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर होंगी.

आनेवाले समय में हमारी निगाह इस अंडर अचीवर जंग पर रहेगी. जल्द ही इसपर एक और कॉलम लेकर हाज़िर होऊंगा.

नोट: कल रात को उड़ती खबर सुनाई दी है कि फेमस हॉलीवुड डायरेक्टर जनाब जेम्स कैमरोन ने अपनी नई मूवी पर काम शुरू कर दिया है. मूवी का नाम है लीग ऑफ एक्स्ट्राऑर्डिनरी अंडरअचीवर्स.

Wednesday, July 11, 2012

अंडर-अचीवर प्रधानमंत्री और ओवर-अचीवर यन्त्र.




न्यूयार्क से प्रकाशित होनेवाली टाइम पत्रिका ने हमारे प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर करार दे दिया. वैसे अगर शायरों और गीतकारों की मानें तो करार देना कोई बुरी बात नहीं. याद कीजिये पुरानी फिल्मों में जब नायिका तमाम बहाने बनाकर नायक से मिलने आती थी और उसे लता मंगेशकर जी की आवाज़ में बताती कि; "मैं तुमसे मिलने आई मंदिर जाने के बहाने.." तो नायक के दिल को करार मिल जाता था और वह भी फट से रफ़ी साहब या किशोर कुमार जी की आवाज़ में नायिका को बता देता था कि; "तुम मुझसे जो मिलने आई सनम, मेरे दिल को करार आया..."

लगता है विषयांतर हो गया. पोस्ट २०१० के ब्लॉगर की यही त्रासदी है. वह कहीं से भी चलता है, बालीवुड पहुँच जाता है. ठीक वैसे ही जैसे पुरानी फिल्मों में कोई भी भारत के किसी भी कोने से भागता तो मुंबई जाने वाली गाड़ी में ही बैठता था और अगले शॉट में वह वीटी स्टेशन से बाहर निकलते हुए बरामद होता था.

आप इसे बालीवुडिश हैंग-ओवर कह सकते हैं.

खैर, मैं बता रहा था कि टाइम पत्रिका ने हमारे प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर करार दे दिया. लेकिन यह वाला करार शायद वह वाले करार जितना मज़ेदार नहीं था. लिहाजा इसपर तमाम लोग़ बेक़रार हो गए. टीवी न्यूज चैनल समेट पूरे भारतवर्ष को बहस का एक नया मुद्दा मिला. कुछ विद्वानों ने याद दिलाया कि हम अभी भी विदेशी मानसिकता के शिकार हैं और जब कोई विदेशी कुछ कहता है तभी उसे सच मानते हैं. इन विद्वानों ने यह भी बताया कि; "टाइम पत्रिका ने तो प्रधानमंत्री को आज अंडर-अचीवर बताया है, हम तो उन्हें पहले ही अंडर-अचीवर करार दे चुके हैं."

काफी टीवी पैनल डिस्कशन हो चुके हैं. कुछ पाइप-लाइन में भी होंगे. तमाम विद्वान इस मुद्दे पर टीवी स्टूडियो में बोलने के लिए नई टाई खरीद रहे होंगे. कुछ अपनी विट को धो-मांज रहे होंगे. तैयारी जोरों पर होगी. सरकार के कुछ योद्धा यह भी देख रहे होंगे कि टाइम पत्रिका का भारत में क्या-क्या है और उसे कौन-कौन से डिपार्टमेंट से नोटिस भेजी जा सकती है? कुछ अति उत्साही योद्धा यह भी सोच सोच सकते हैं - क्या पत्रिका का पिछले ५-६ साल का इनकमटैक्स असेसमेंट री-ओपन किया जा सकता है? मनीष तिवारी जी जैसे प्रवक्ता सरकार और प्रधानमंत्री के बचाव के लिए पुरानी टाइम पत्रिका की कॉपी खोज रहे होंगे जिसमें पत्रिका ने अटल बिहारी बाजपेयी या अडवाणी की बुराई की होगी.

ऐसे में यह जानने के लिए कि और तमाम विद्वानों का इस मुद्दे पर क्या मत है, चंदू चौरसिया ने दिल्ली और कई शहरों में जाकर लोगों की राय इकठ्ठा की. पेश है उनमें से कुछ वक्तव्य;

लालू प्रसाद जी; "इसमें का राय जानना चाहता है तुम? ...आ सुनो पहिले.. बीच में मत बोलो. आ ई जो प्रधानमंत्री को ई लोग़ बताया है...का बताया है? अंडर? का? टेकर? अंडरटेकर?..अंडरअचीभर? अच्छा...अरे वोही अंडरअचीभर. देखो ई कुछ खराब नहीं है. एकदम्मे कुछ नहीं अचीभ करने से बढ़िया है अंडरअचीभ करना. आ देखो सरकार चलाने का मतलब ई नहीं होता कि कुछ अचीभ करना ही है. देखो प्रधानमंत्री हैं बिदबान... बूझो की डिग्री है उनके पास, उनका ईज़त पूरा दुनियाँ में है...सो जब जो चाहेंगे ऊ अचीभ कर लेंगे..जल्दी कौन बात का है? ... आ सबसे बड़ा बात है कि सेकुलर हैं..प्रधानमंत्री जे हैं से सेकुलर आदमी हैं. आ देश को सेकुलर आदमी का ज़रुरत पहिले है अचीभर का बाद में. सेकुलर लोग़ सत्ता में नहीं रहेगा तो फ्रिकाप्रस्त लोग़ राज करने लगेगा... आ फिर सोनिया जी भी हैं साथ में... जो चीज परधानमंत्री नहीं अचीभ कर पाए ऊ सोनिया जी अचीभ कर लेंगी... बैलेंस हो जाएगा न. केतना टाइम लगता है कुछ अचीभ करने में? आ हामी को देखो, रेलमंत्री थे तब केतना कुछ अचीभ कर लिए थे.. त हमारा कहना एही है ई पत्रिका फत्रिका का कहता है उसपर मत जाओ...ई सब सच नहीं बोलता...देखो न, हम रेलमंत्री होकर एतना कुछ अचीभ किये, हमरा लिए त नहीं लिखा कि हम ओभर-अचीभर हैं. ज़रूरी बात है कि सेकुलर हाथ में देश का बागडोर है."

मनीष तिवारी; "मेरा यह कहना है कि विदेशी पत्रिकाओं की बात को हमें तभी सच मानना चाहिए जब वे हमारी सरकार की प्रशंसा करें. हमारा यह मानना है कि जब ये पत्रिकाएँ आलोचना करती हैं तब ये झूठ बोल रही होती हैं. यह हमारी पार्टी का ऑफीशियल स्टैंड है जिसे भारत के हर नागरिक का समर्थन है. हमारी पार्टी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी जी के नेतृत्व में सरकार ने बहुत कुछ अचीव किया है जिसे टाइम पत्रिका ने तवज्जो ही नहीं दी. उन्ही के नेतृत्व में ही मनरेगा जैसा प्लान चलाकर सरकार ने कितना अचीव किया है सबके सामने है. एक प्लान चलाकर हमने देश को गड्ढों से भर दिया, वह तो टाइम को दिखाई नहीं देता. और फिर अंडर-अचीवर की बात पर मैं टाइम के एडिटर से पूछता हूँ कि रिचर्ड बाबुराव स्टेंजेल, तुम्हें क्या हक है कि तुम दूसरों को अंडर-अचीवर कहो? तुम खुद सर से पाँव तक अंडर-अचीवमेंट में डूबे हुए हो. मैं केवल इतना जानना चाहता हूँ कि भारत जैसे बड़े देश में टाइम की कितनी कॉपी बेंचते हो तुम? टाइम को कितने भारतीय जानते हैं? ऐसे में अंडर-अचीवर कौन हुआ, तुम कि डॉक्टर मनमोहन सिंह?...क्या कहा? एडिटर के नाम में बाबुराव नहीं है? अच्छा मैं गूगल करके पता करता हूँ कि एडिटर के फादर का क्या नाम है?"

प्रधानमंत्री; "मैं ग़ालिब को कोट करना चाहूँगा और टाइम मैगेजीन से यही कहूँगा कि; माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हैं हम, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतज़ार तो देख."

अन्ना जी; "देखो लोकशाही है..लोकशाही में कोई किसी को कुछ भी कह सकता है. पंथ-प्रधान को भी कुछ भी कह सकता है. आज अगर सरकार जनलोकपाल बिल पारित कर देती तो जनलोकपाल इस मामले की जांच कर के बता सकता था कि पंथ-प्रधान अंडर-अचीवर है या नहीं? और एक बार ये बात गलत साबित हो जाती तो फिर हम टाइम पत्रिका की आफिस के सामने अनशन कर देते. पत्रिका से पूछते कि उसने हमारे पंथ-प्रधान को ऐसा कैसे कहा?"

हिंदी रक्षक प्रोफ़ेसर मनराज किशोर; "पहले तो मुझे इस बात का जवाब चाहिए कि टाइम नामक पत्रिका का कोई हिंदी संस्करण भी है क्या? अगर नहीं है तो क्या अधिकार है इस पत्रिका को उस देश के प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर बताये जिसमें अस्सी करोड़ से ज्यादा लोग़ हिंदी बोलते हैं? क्या टाइम के सम्पादक यह बता सकते हैं कि अंडर-अचीवर शब्द के लिए हिंदी का कौन सा शब्द है? क्या उन्हें पता है? अगर नहीं तो उन्हें यह अधिकार नहीं है कि वे ऐसा कहें. जो पत्रिका का हिंदी संस्करण तक नहीं निकलता उस पत्रिका ने क्या कहा यह बात हमारे लिए जरा भी महत्वपूर्ण नहीं है."

दिग्विजय सिंह जी; "अभी मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा. फिलहाल मैं यह पता करने की कोशिश कर रहा हूँ कि टाइम मैगेजीन और आर एस एस के बीच क्या सम्बन्ध हैं? कल मुझे अजीज बरनी ने बताया है कि प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर बताने में आर एस एस का हाथ है. एकबार मैं यह कन्फर्म कर लूँ फिर मैंने प्रेस कान्फरेन्स करके बताऊंगा कि असल मामला क्या है?"

अरनब गोस्वामी; "वेट फॉर अ डे ऐज आई ऍम ट्राइंग तो गेट लीजा कर्टिस अलांग विद कुमार केतकर, विनोद शर्मा, लॉर्ड मेघनाद देसाई एंड सुहेल सेट ऑन न्यूज-आवर. ओनली दे विल बी एबुल टू टेल हाउ करेक्ट इज टाइम्स असेसमेंट ऑफ आर प्राइममिनिस्टर. आई अस्योर यू एंड आल आर व्यूवर्स दैट आई विल पुट सम डायरेक्ट एंड टफ क्वेश्चंस टू दिस वेरी एमिनेंट पैनल."

येदुरप्पा जी; "आई डिक्लाइन टू कमेन्ट ऐज माई एस्ट्रोलॉजर हैज एडवाइज्ड मी टू नॉट स्पीक ऑन द इश्यू टिल ट्वेल्व थर्टी पीएम ऑफ फोरटेंथ जुलाई."

प्रनब मुख़र्जी जी; "ओलदो, आई हैभ स्टाप कोमेंटिंग ऑन पोलिटिकल मैटार्स बाट सीन्स इयु आर सेयिंग दैट ईट इज ए मैटोर रिलेटेड टू ओभरआल आचीभमेंट ईंक्लुडिंग इकोनोमी, आल आई हैभ टू से ईज, इभेन ऐन अचीभमेंट आफ एट पारसेंट आफ दा टोटल मैटोर ईज नाट बैड. सो, उइ शूड नाट फारगेट दैट दीस सो कोल्ड अंडरअचीभमेंट ईज ओल्सो ड्यू टू दा फैल्योर आफ दा यूरोपीयन इकोनोमी ओल्सो."

श्री कपिल सिबल; "ये तो देखिये इस पर एक बैलेंस व्यू लेने की ज़रुरत है. एक सरकार का लीडर क्या अचीव करता है उसको उसके बाकी मंत्रियों के अचीवमेंट के साथ देखना होगा. अगर आप यह कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी अंडरअचीवर हैं तो वहीँ पर मेरे जैसे मंत्री भी हैं जो ओवर-अचीवर हैं. ऐसे में टाइम मैगेजीन को यह भी देखने की ज़रुरत है कि कुल मिलाकर मामला बैलेंस हो जाता है. और फिर टाइम के इस कमेन्ट को सीरियसली लेने की ज़रुरत नहीं है. जब हमारे पास अचीवमेंट और ओवर-अचीवमेंट हैं, तो फिर हम अंडर-अचीवमेंट की बात क्यों करें? वैसे भी टाइम के इस असेसमेंट का इम्पैक्ट इलेक्शंस में जीरो रहने वाला है और जिस बात का इम्पैक्ट इलेक्शन में जीरो है उसको सीरियसली वैसे भी नहीं लेना चाहिए."

श्री चन्दन सिंह हाटी, मैनेजर हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान; "क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से परेशान रहते हैं? क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से दुखी रहते हैं? क्या आप ओवर-अचीव करते हैं और फिर भी लोग़ आपको अंडर-अचीवर कहते हैं? क्या इसकी वजह से आपका दिन का चैन और रात की नींद गायब हो जाती है? तो फिर खुश हो जाइए क्योंकि हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान पहली बार लेकर आया है ओवर-अचीवर यन्त्र. जी हाँ, यह ओवर-अचीवर यन्त्र वैदिक मन्त्रों के जाप और उनकी शक्ति से परिपूर्ण है. आपको ओवर-अचीवर कहलाने के लिए अब मेहनत करने की जरूरत नहीं है. आपको बस यह यन्त्र हमारे द्वारा बताये गए विधि के अनुसार अपने कार्यालय में पूजा के बाद लगा लेना है. फिर देखिएगा कि दुनियाँ कैसे आपको न सिर्फ ओवर-अचीवर मानने लगेगी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाएँ आपकी तस्वीर कवर-पेज पर छापकर नीचे बड़े-बड़े अक्षरों में लिखकर आपको ओवर-अचीवर बतायेंगी. जी हाँ, भारतवर्ष में पहली बार....."

अभी तो इतने ही महान लोगों के वक्तव्य से काम चलिए. पब्लिक डिमांड पर और लोगों के वकतव्य छाप दिए जायेंगे:-)