फिर से मीडिया में वही किचकिच, वही झिकझिक। अवन्ती की तीरंदाजी टीम हस्तिनापुर के दौरे पर जब से आई है, हमारी टीम के प्रदर्शन को देखते हुए मीडिया ने फिर से हाहाकार मचा रक्खा है। इसबार फिर से पितामह तीरंदाजी के अपने कौशल से प्रभावित नहीं कर सके। एक समय था जब वे एक तीर से सात पक्षियों को मार गिराते थे लेकिन इसबार तो केवल एक पक्षी को ही तीर लगा। और वह भी गिरा नहीं। उसने हवा में ही खुद को पार्क करके अपने हाथों से ही तीर खींचकर फेंक दिया। ये लगातार पांचवा वर्ष है जब पितामह लोगों की आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सके।
पिछले करीब दस वर्षों से मैं कह रहा हूँ कि अब समय आ गया है कि पितामह कम्पीटेटिव आर्चरी से संन्यास की घोषणा कर दें लेकिन वे हैं कि मानते ही नहीं। कहते हैं; "जब तक मैं तीरंदाजी एन्जॉय कर रहा हूँ मुझे प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से न रोको वत्स, मुझे न रोको।"
मेरी समझ में आजतक यह नहीं आया कि जो तीरंदाज केवल एन्जॉय करने के लिए धनुष-वाण लिए प्रतियोगिता स्थल पर पधारेगा वह प्रदर्शन कैसे करेगा? उसकी सारी एनेर्जी तो एन्जॉय करने में लग जायेगी।
सात-आठ साल पहले से ही प्रतियोगिता में पितामह का निशाना चूकना शुरू हो चुका था। जब मीडिया ने उनके चुक जाने की बात शुरू की तो अगले ही साल उन्होंने काशी से आई तीरंदाजी टीम के खिलाफ एक तीर से आठ पक्षियों को मार गिराया। बस फिर क्या था, विशेषज्ञों और पत्रकारों को लगने लगा कि उन्हें उनका खोया हुआ टच मिल गया है। लेकिन अगले साल से फिर उनका प्रदर्शन फिर से लुढ़कने लगा। हाल यह है कि आठ की तो कौन कहे, एक तीर से तीन पक्षी भी नहीं गिरते अब।
कितनी बार कहा कि तीरंदाजी में उनके लिए अब कुछ भी साबित करने के लिए बचा नहीं है लेकिन वे सुनें तब तो। समझते ही नहीं कि वे अपना चरम पर प्रदर्शन कर चुके हैं और अब समय आ गया है कि वे तीरंदाजी से संन्यास लेकर घर बैठें। घर बैठें और अपनी बायोग्राफी लिखें। स्वयं लिखने का मन न हो तो किसी पत्रकार को किराए पर ले लें और उससे लिखवा लें। इन पत्रकारों को भी चार पैसे मिल जायेंगे। वैसे भी इन बेचारों को कोई पूछता नहीं। ये दिन-रात मेरा, जयद्रथ, मामाश्री, दुशाशन और पिताश्री के गुणगान करते रहते हैं। ऐसे में पितामह की बायोग्राफी लिखने का काम मिल जाएगा तो इन्हें भी चाटुकारिता करने से उपजी बोरियत से कुछ समय के लिए ही सही, छुटकारा तो मिलेगा। बोरियत से छुटकारा मिलेगा तो ये दोबारा दोगुने उत्साह के साथ नए-नए तरीके से हमारे गुण गायेंगे।
मुझे हमेशा से ही इसबात का पूरा विश्वास रहा है कि पितामह की बायोग्राफी की खूब डिमांड होगी और उन्हें कोई न कोई बड़ा प्रकाशक भी मिल ही जाएगा। मामाश्री ने तो यहाँ तक कहा कि कि प्रकाशक नहीं मिल रहे तो मैं खुद ही एक पब्लिशिंग हाउस खोल दूँ ताकि पितामह और चाचा विदुर जैसे लोग अपनी बायोग्राफी लिखने के लिए उत्साहित रहे और रोज-रोज राजकाज के कार्यों में दखल देना बंद करें। यह बात अलग है कि कर्ण के अनुसार बायोग्राफी में लिखने के लिए बचा ही क्या है? अभी तक पितामह के ऊपर दस से ज्यादा पुस्तकें पहले ही छप चुकी हैं।
न जाने कितनी बार मैंने उनसे कहा होगा लेकिन पितामह ठहरे पितामह। हर बार यह कहकर टाल देते हैं कि; "फॉर्म इज टेम्पोरैरी बट क्लास इज परमानेंट वत्स, क्लास इज परमानेंट।"
तीरंदाजी के एक्सपर्ट्स और पत्रकारों ने मिलकर तीन-चार ऐसे जुमले गढ़ डाले हैं कि उन्हें आगे रखकर पितामह बीस-पच्चीस वर्ष तक और प्रतियोगिताओं में भाग ले सकते हैं। ऊपर से बीच-बीच में कृपाचार्य और गुरु द्रोण इनकी तीरंदाजी प्रतिभा की बड़ाई कर देते हैं तो उन्हें और बहाना मिल जाता है। कई बार तो मुझे खुद लगता है कि आचार्यों की बात आगे रखकर अभी बहुत समय तक वे प्रतिस्पर्धात्मक तीरंदाजी में अपने करतब दिखा सकते हैं। लगता है जैसे इच्छा मृत्यु की तरह ही इच्छा तीरंदाजी का वरदान भी दबाकर बैठे हैं।
समझ में नहीं आता कि अब दिखाने के लिए क्या बचा है? कुछ साबित करने के लिए भी किसी न नहीं कहा। विश्व भर में तो अपने करतब दिखा चुके हैं। क्या काशी और क्या मथुरा, क्या गंधार और क्या विदर्भ, कोई ऐसी जगह नहीं बची है जहाँ लोगों को उन्होंने अपनी प्रतिभा के दर्शन नहीं करवाए। जब पहली बार मैंने तीरंदाजी से संन्यास लेने की तरफ इशारा किया तो बोले; "वत्स दुर्योधन, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ लेकिन मुझे अपने उस वचन की रक्षा करनी है जो मैंने पिताश्री को दिया था वत्स, जो मैंने अपने पिताश्री को दिया था। मैं इस बात को कैसे भूल जाऊं कि राष्ट्र की सुरक्षा का तात्पर्य केवल बाहर के राजाओं से सुरक्षा नहीं है वत्स, केवल बाहर के राजाओं से सुरक्षा नहीं है। राष्ट्र की सुरक्षा का तात्पर्य अन्य देश के तीरंदाजों को प्रतियोगिता में पराजित करना भी है वत्स, पराजित करना भी है।"
आजतक समझ में नहीं आया कि क्षण भर में आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेने वाले पितामह के लिए तीरंदाजी से संन्यास लेना इतना कठिन क्यों है? कितनी बार तो परशुराम जी ने कहा कि वे खुद प्रतियोगिता में भाग न लेकर राजकुमारों और युवराजों को तीरंदाजी के गुर सिखाएं परन्तु पितामह टस से मस नहीं हुए। पिछली बार परशुराम जी जब हस्तिनापुर पधारे थे तब उन्होंने फिर से संन्यास की बात की तरफ इनका ध्यान इंगित करते हुए कहा था; "हे भीष्म, एक तीरंदाज को उस समय तीरंदाजी से संन्यास की घोषणा कर देनी चाहिए जब वह अपने चरम पर प्रदर्शन कर रहा हो। जब लोग यह प्रश्न करें कि ये संन्यास क्यों ले रहे हैं?"
पितामह का उत्तर था; "मैं आपकी भावनाओं को प्रणाम करते हुए अनुरोध करना चाहूँगा कि अपने चरम पर रहते हुए अगर मैंने तीरंदाजी को त्याग दिया तो पूरा विश्व कहेगा कि मैं स्वार्थी हूँ। और अगर मैंने ऐसा किया तो पिताश्री की आत्मा मुझे कभी क्षमा नहीं करेगी महर्षि, कभी क्षमा नहीं करेगी।"
अब इन्हें कौन समझाये कि चाहे हस्तिनापुर के सारे तीरंदाजों का प्रदर्शन घटिया हो परन्तु मीडिया इन्ही के बारे में बात करेगी। इन्ही का विरोध करेगी। देखा जाय तो मैंने या दुशासन ने भी अवंती के तीरंदाजों के साथ होने वाली प्रतियोगिता में कोई तीर नहीं मारा परन्तु सब इन्ही को भला-बुरा कह रहे हैं। सब इन्ही के पीछे पड़े हैं। जितने तरह के विशेषज्ञ उतनी बातें।
एक विशेषज्ञ कह रहे थे कि ; "किंचित ऐसा हो रहा है कि उम्र के इस पड़ाव पर जब पितामह धनुष-वाण से लैस प्रतियोगिता स्थल पर जाते हैं उस क्षण दर्शकों की तालियों से उनका ह्रदय भर आता है और भावनाएं उन्हें अपने बाहुपाश में ले लेती हैं जिससे पितामह अपना लक्ष्य भूल जाते हैं।"
अब इस विशेषज्ञ को कौन समझाये कि उनका यह प्रदर्शन तो है आखिर उम्र की वजह से। वर्षों से इन्हें देखने वाले और आदर देने वाले दर्शक अपनी भावनाओं का प्रदर्शन तो करेंगे ही। इन्हें तो अपने लक्ष्य की तरफ देखना होगा। आखिर हाल यह हो गया है कि जिसने पूरे जीवन में धनुष-वाण को हाथ नहीं लगाया होगा वह भी कह रहा है कि पितामह तीरंदाजी भूल गए हैं। हर पान की दूकान पर, चाय की दूकान पर, हर हाट में, हर घाट पर, सब इन्ही के बारे में बात कर रहे हैं। लोग ऐसी बात करते हैं कि मुझे तक शर्म आ रही है।
एक और विशेषज्ञ का कहना है कि ; "पितामह का ध्यान अब तीरंदाजी से हटकर तमाम और विषयों पर चला गया है। अब तो राजमहल ने उन्हें उस कमिटी का अध्यक्ष भी बना दिया है जिसे हस्तिनापुर में न्याय प्रणाली की प्रक्रिया पर इन्क्वायरी करके एक रिपोर्ट देनी है। इसके पहले कम से कम ग्यारह कमिटियों पर वे थे ही। ऊपर से रोज-रोज इन्हें कुछ न कुछ करने बाहर जाना पड़ता है। कभी किसी विद्यालय में किसी डिपार्टमेंट का उदघाटन करने तो कभी कहीं और।"
मामाश्री का कहना है कि अब समय आ गया है कि आचार्य द्रोण, कृपाचार्य वगैरह इनसे बात करें। हो सकता है कल दरबार में इस विषय में कुछ बात हो।
Saturday, December 15, 2012
दुर्योधन की डायरी - पेज 1108
Monday, November 19, 2012
फेसबुकी और ट्वीटबाज
फेसबुकी ने अपने नए नवेले स्टेटस में लिखा; "आज दांत की डॉक्टर ने लापरवाही के लिए बहुत डांटा।" आधे घंटे में बीस लोगों ने उनकी बात को 'लाइक' कर डाला। फेसबुक से अपरिचित कोई इंसान देखे तो सोचने के लिए मजबूर हो जाए कि जिन लोगों ने फेसबुकी के स्टेटस को 'लाइक' किया, कहीं वे डॉक्टर द्वारा उन्हें लगाईं गई डांट से प्रसन्न तो नहीं हैं? या फिर 'लाइक' करने वाले ये फ्रेंड्स मन ही मन यह सोच रहे होंगे कि; "अच्छा हुआ जो तुझे डॉक्टर ने डांटा। उसने डांट लगाईं तो हमारे कलेजे को ठंडक पहुंची।"
धरमशाला में बिताई गई छुट्टियों की 'पिक्स' फेसबुक पर चढ़ाए आदित्य को आधा घंटा भी नहीं हुआ और सत्तर लोग 'लाइक' कर जाते हैं। यह बात अलग है की 'आदि' बार-बार अपना फेसबुक नोटिफिकेशन अपडेट देखता है। यह जानने के लिए कि जिस कॉलेज फ्रेंड के साथ वह पूरा दिन कॉलेज में था, उसने इन 'पिक्स' को लाइक किया या नहीं? अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे फोन करके रिमाइंड किया जा सकता है। यह कहते हुए कि ;"बेटा, चालीस मिनट हो गए 'पिक्स' लगाए हुए लेकिन उसे अभी तक लाइक नहीं 'करी' तूने। देख लेना, तू भी नेक्स्ट मंथ जाएगा वैकेशंस पर। लद्धाख की पिक्स लगइयो, फिर दिखाऊँगा तुझे। लाइक तो करूंगा नहीं, गन्दा सा कमेन्ट लिख दूंगा सो अलग।"
चंदू के चाचा अगर चंदू की चाची को लेकर चांदनी चौक जाते हैं तो चंदू को भी इस बात की खबर फेसबुक से ही मिलती है। वहीँ चंदू अगर नई जींस खरीद लाता है तो इस बात की ब्रेकिंग न्यूज़ टाइप खबर सबसे पहले स्टेटस के रूप में फेसबुक पर ही उभरती है। जॉब इंटरव्यू में अच्छा नहीं कर पाता तो घर वालों को बताने से पहले फेसबुकी मित्रों को बताता है। उसके स्टेटस मेसेज को देख फ्रेंड्स-लिस्ट में बिराजमान उसके चाचू को समझ में नहीं आता कि वे फेसबुक पर ही उससे सवाल कर लें या घर पहुंचकर उससे बात करें।
वे दिन लद गए जब कवि सौमेंद्र अपनी नई कविता का चुटका जेब में लिए मोहल्ले के कविताप्रेमियों की तलाश में डह-डह फिरा करते थे और तबतक घर वापस नहीं आते थे जब तक उस कविता को किसी न किसी के ऊपर झोंक न देते। अब हाल यह है कि इधर उन्होंने कविता लिखी, उधर आधे घंटे में कविता फेसबुक का स्टेटस बन गई। अगले एक घंटे में पचीसों ने कविता को लाइक कर कविवर को अनुगृहीत कर डाला। फेसबुकी व्यवस्था का एक फायदा यह है कि कविवर की फ्रेंड्स-लिस्ट में उपस्थित मित्र कविता को केवल लाइक कर सकते हैं। ऐसा नहीं कि इस व्यवस्था से हमें केवल फेसबुकी कवि की प्राप्ति होती है। कविवर की फ्रेंड्स-लिस्ट में से ही कोई आलोचक बनकर उभर आता है।
एक ही जगह पर पाठक और आलोचक दोनों मिल जाते हैं। एक कवि को और क्या चाहिए?
ट्वीटबाज ने लिखा; "वी डोंट मेक फ्रेंड्स एनीमोर, वी सिम्पली ऐड देम।"
तमाम लोगों ने न सिर्फ ट्वीटबाज की इस सूक्ति में अपनी आस्था जताई बल्कि घंटे भर में ढाई सौ लोगों ने उसे री-ट्वीट करके इस सूक्ति ठेलक ट्वीटबाज को बिना शर्त समर्थन दे डाला। देशभक्त नम्बर वन के नाम से प्रसिद्द ट्वीटबाज प्रधानमंत्री तक से पॉलिसी मैटर्स पर ट्वीट करके सवाल पूछ ले रहा है। उनकी आलोचना कर रहा है। पार्लियामेंट इज सुप्रीम नामक जुमले पर अपना ट्वीट-रुपी ड्रोन दागकर उसे धराशायी कर दे रहा है। श्रद्धानुसार अपनी ट्वीट से देश को मज़बूत कर रहा है।
जी हाँ, सोशल मीडिया की दुनियाँ में आपका स्वागत है। बोले तो वेलकम टू द वर्ल्ड ऑफ़ सोशल मीडिया। इंटरनेट की नागरिकता प्राप्त शहरी का नया ठिकाना। हाल के वर्षों में भारतीय शहरी को प्रभावित करनेवाला मंहगाई के बाद दूसरा सबसे बड़ा फैक्टर। हाल यह है कि देखकर अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि सोशल मीडिया ने हमारे जीवन में प्रवेश किया या हमारे जीवन ने सोशल मीडिया में।
भारत ही क्यों, दुनियाँ भर में लोगों ने फेसबुक और ट्विटर पर भी अपना एक घर बना लिया है। परिणाम यह कि सोशल मीडिया के ये ठिकाने तमाम लोगों की कलाओं का एक म्यूजियम सा दीखते हैं। यहाँ अब हम इतना समय बिताने लगे हैं कि हमारे ऊपर यहाँ भी परफॉर्म करने का प्रेशर रोज दो इंच बढ़ जाता है। अगर एक फेसबुक स्टेटस हिट हो जाता है तो हमारा अगला प्रयास अपने अगले स्टेटस को सुपरहिट बनाने का होता है। इस कवायद के तहत हम अपने ऊपर प्रेशर भी डाल लेते हैं। कई बार लगता है कि इस चिंता में तमाम लोग सोते से उठ जाते होंगे। इस चिंता में कि कल सुबह फेसबुक का नया स्टेटस किस विषय पर होगा?
ऐसा टेंशन समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों को नए सिंड्रोम ईजाद करने का मौका देता है।
मौका सोशल मीडिया भी सबको दे रहा हैं। हम सवाल उठा सकते हैं, अपनी बात कह सकते हैं, लोगों से बतिया सकते हैं, उनकी आलोचना कर सकते हैं, उनका विरोध कर सकते हैं, और चाहें तो उनसे सहमत भी हो सकते हैं। ऐसा कर सकने की बात शायद उस पॉवर से उभरती है जो हमें यह विश्वास दिलाता है कि हमें कोई पढ़ रहा है, सुन रहा है, देख रहा है।
यही विश्वास मुरादाबाद के चौबे जी से बराक ओबामा तक को ट्वीट करवा देता है और चौबे जी उनसे सवाल पूछ लेते हैं कि वे अगली बार भारत कब आ रहे हैं? या कि मिशेल भाभी कैसी हैं? एक बार तो उन्होंने ओबामा जी पूछा कि अगर वे अमेरिका जाएँ तो क्या ओबामा जी से मुलाकात हो सकती है? इस बात की सनद नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने उनके सवालों का क्या जवाब दिया? इसी सिद्धांत के तहत लोग भारत के प्रधानमंत्री तक से सवाल पूछते बरामद होते है। उनके अर्थशास्त्र के ज्ञान तक पर शंका जाहिर कर देते हैं। उन्हें सुझाव दे डालते हैं। जो अमिताभ बच्चन सिनेमा की स्क्रीन से चलकर लोगों के ड्राइंग रूम तक ही पहुंचे थे, वही अब लोगों के स्मार्ट फ़ोन और लैपटॉप की स्क्रीन तक पहुँच गए हैं। ट्विटर और फेसबुक प्रदेश का नागरिक उनसे बतिया रहा है।
अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपने लिए स्पेस निकाल लिया जा रहा है। अपनी विचारधार की रक्षा की जा रही है। समर्थकों और विरोधियों के गुट बन रहे हैं। विरोधी की ट्वीट-मिसाइल टाइम-लाइन पर गिरी नहीं कि उसके जवाब में इधर से एक मिसाइल दाग दी जाती है। एकाग्रचित्त होकर लोग एक-दूसरे से सलट ले रहे हैं। फालोवर्स आ रहे हैं। स्पेस बढ़ाया जा रहा है। ह्यूमर को नए आयाम दिए जा रहे हैं। चुटुकुले गढ़े जा रहे हैं। तर्क दिए जा रहे हैं। तर्क स्वीकार किये जा रहे हैं। सहमति बनाई जा रही है। नीतियों और खबरों का विश्लेषण किया जा रहा है। खबरों को नए नजरिये से न सिर्फ देखा जा रहा है बल्कि वह नजरिया हजारों तक पहुँचाया जा रहा है।
कुल मिलाकर एक बिकट नए-लोकतंत्र की सृष्टि कर ली जा रही है।
सोशल मीडिया में हमारी जीवनशैली दिक्खे, बात यहीं ख़त्म होती नहीं लगती। अब लोग इस बात की भी आशंका जताने लगे हैं कि विवाह-योग्य कन्या का पिता आनेवाले समय में वर के पिता से सवाल सकता है कि; "भाईसाहब, मैंने तो आपके बेटे को देख लिया है। अब एक सवाल बेटी डॉली के बिहाफ पर पूछ रहा हूँ। वह जानना चाहती है कि ट्विटर पर आपके बेटे के फालोवर्स कितने हैं? कह रही थी अगर फालोवर्स पाँच हज़ार होंगे तो सिद्ध हो जाएगा कि आपके बेटे का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर अच्छा है।"
यह बात भी की जा रही है कि आनेवाले समय में नौकरी के लिए जारी विज्ञापन में कंपनी लिख सकती है; 'कैंडिडेट्स विद मोर दैन टेन थाऊजेंड फालोवर्स ऑन ट्विटर विल बी प्रेफर्ड' या 'कैंडिडेट्स विद मोर दैन सेवेन थाऊजेंड सब्सक्राइबर्स ऑन फेसबुक विल बी प्रेफर्ड' अब तो कुछ जॉब इंटरव्यू ट्विटर पर ही हो जा रहे हैं और लोगों को वहीँ से रिक्रूट कर लिया जा रहा है। अब ट्विटर और फेसबुक सेलेब्रिटी दूरसंचार कंपनियों के ब्रांड एम्बेसेडर बना लिए जा रहे हैं।
कुछ ट्वीटबाजों की ट्वीट्स देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे इस मीडियम को कितनी गंभीरता से लेते हैं? उनके ट्विटर टाइमलाइन को कोई पढ़ ले तो उसके मन में बात आ सकती है कि ; "इस ट्वीटबाज को विश्वास है कि उसे एक दिन स्टार ट्वीटर ऑफ़ द ईयर का पुरस्कार ज़रूर मिलेगा। या कि ये ट्वीटबाज एक दिन आयोजित होनेवाले अंतर्राष्ट्रीय ट्वीट कान्फरेन्स में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा। कि वह दिन भी आ जाएगा जब बुकर प्राइज़ कमिटी प्रावधान करेगी कि ट्वीटस के लिए भी बुकर प्राइज दिया जाय।"
हर तरह के लोगों से सुसज्जित है ट्विटर का प्लेटफ़ॉर्म। यह हमपर निर्भर करता है कि हम किसे फालो करना है? इस मामले में ये ठिकाने बड़े डेमोक्रेटिक हैं। जो जिसको चाहे फालो कर ले। कोई चाहे तो ऐसे ट्वीटबाज को फालो कर ले जिनका ट्वीट-दर्शन अमेरिका से प्रभावित है। जैसे युद्ध में अमेरिका कारपेट बॉम्बिंग करता है वैसे ही ये ट्वीटबाज कारपेट ट्वीटिंग करते हैं। इनके कीबोर्ड से एक क्षण अगर अफगानिस्तान पर घोषित नई अमेरिकी नीति के समाचार वाला लिंक है तो दूसरे ही क्षण ये ब्राजील की इकॉनमी के सॉफ्ट लैंडिंग के विषय में आई खबर का लिंक ट्वीट कर डालेंगे। पांच मिनट के अन्दर ये अफ्रीका के खाद्यान्न संकट, ऑपेक देशों द्वारा क्रूड आयल के उत्पादन में की गई कटौती, करण जोहर की नई फिल्म की रपट, फ़ूड इन्फ्लेशन के आँकड़े, वगैरह की खबरों वाले लिंक ट्वीट कर सकते हैं। आपको जो पढना हो, उसे चूज कर लें। ऐसे ट्वीटबाजों के फालोवर्स इस बात से प्रभावित हुए बिना नहीं बच पाते कि बन्दे के इन्टरेस्ट कितने वाइड हैं।
इन सबके बीच सोशल मीडिया चुनौती भी दे रहा है। चुनौती सरकारों को। पारंपरिक मीडिया को। चुनौती इसे इस्तेंमाल करने वालों को।
इसे कहाँ, कब और कितना इस्तेमाल किया जाय, उसपर बहस शुरू हो गई है। जहाँ सरकारी कवायद इस बात पर केन्द्रित है कि क्या सोशल मीडिया को कुछ हद तक कंट्रोल किया जाय, वहीँ इस्तेमाल करनेवाले इस बात पर भी विचार करने लगे हैं कि वे कितना समय दें? यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो देर-सबेर हर माध्यम पर लागू होती है। जो भी है, फिलहाल तो ऐसा लगता है कि अभी इस मीडिया के लिए ये शुरुआती दिन हैं और आनेवाले समय में यह अपने आप अपनी तरह से अपना विकास कर लेगा। जो भी है, माध्यम है मस्त।
जैसा कि प्रसिद्द ट्वीटबाज माधवन नारायणन जी ने अपनी एक ट्वीट में लिखा; "एज आई हैव सेड इट अर्लियर टू, ट्विटर इज अ ग्रेट प्लेस टू इंस्पायर एंड कन्स्पायर।"
नोट: यह लेख दीपावली पर निकलनेवाली नवभारत टाइम्स की पत्रिका के लिए लिखा गया था।
Tuesday, November 6, 2012
मंत्री वक्तव्य मैन्युअल और क्लीन चिट
कहते हैं मंत्री जी ने बेटी की शादी के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर लिया। अब इसमें आश्चर्य कैसा? सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग अगर न हो, तो किसे विश्वास होगा कि वह सरकारी है? बेसरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कभी होता है क्या? वैसे भी बेटी की शादी करना आसान काम है क्या? कहते हैं गंगा में जौ बोने के सामान है बेटी की शादी करना। और यह आज से नहीं, हजारों वर्षों से गंगा में जौ बोने के ही सामान रहा है। कभी किसी को कहते हुए नहीं सुना कि बेटी की शादी करना मतलब गंगा में धान बोना। बड़ी उथल-पुथल होती है तब जाकर बेटी की शादी हो पाती है। ये मंत्री लोग तो जनता के सेवक हैं, ऐसे में इनकी बात जाने दें, राजा-महाराजा के लिए भी यह काम ईजी नहीं रहा कभी। याद करें महाराज जनक को, महाराज ध्रुपद को। इतने बड़े राजाओं को भी कितने पापड़ बेलने पड़े थे बेटियों की शादी करने के लिए, यह न तो बाल्मीकि जी से छिप सका और न ही व्यास जी से।
खैर फिर से सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हुआ इसलिए फिर से लोग चाहते हैं कि मंत्री जी इसके लिए नैतिक जिम्मेदारी लें और इस्तीफ़ा वगैरह दें। क्या मजाक है? इस्तीफ़ा न हुआ बीड़ी हो गई कि सरजू साहु ने माँगा और मंत्री जी ने टेंट से निकलकर थमा दिया। गोस्वामी जी ने खुद लिखा है; "बड़े भाग मंत्री पद पावा।" क्या कहा? गोस्वामी तुलसीदास ने नहीं लिखा? तो फिर नीरज गोस्वामी जी ने लिखा होगा। बढ़िया लिखने के लिए केवल दो गोस्वामी जाने जाते हैं भारतवर्ष में।
लेकिन असल सवाल यह है कि एक मंत्री से नैतिक जिम्मेदारी ले लेने की मांग जायज है क्या? यह तो वही बात हो गई कि आप शेर से डिमांड करें कि वह वेजिटेरियन हो जाए। अमेरिका से डिमांड करें कि वह बाकी के देशों में अपनी नाक घुसाना बंद करे दे। पाकिस्तान से डिमांड करें कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करे दे। बैंको से डिमांड करें कि उसके टेलिकालर लोन की मार्केटिंग करने के लिए फोन न करें। सचिन से डिमांड करें कि वे रिटायर हो जाएँ। अब ऐसे में मंत्री जी अगर नैतिक जिम्मेदारी नहीं लेंगे तो और क्या कर सकते हैं? क्या मरदे, ये भी कोई सवाल है? ऐसे कठिन समय में रेफरेंस के लिए ही मंत्री वक्तव्य मैन्युअल है। तमाम वक्तव्यों से लदा पड़ा। साठ-पैंसठ वर्षों की केस स्टडी करके बनाया गया मैन्युअल। हर तरह के आरोपों के जवाब वाला मैन्युअल। मंत्री जी को तमाम संभावनाओं से लैस करने वाला। वे मैन्युअल बांचें और उसमें से जिस वक्तव्य को पढ़ने में मज़ा आया, उसे दे दें। जब वक्तव्य है तो इस्तीफ़ा देने जैसा तुच्छ काम मंत्री टाइप लोग करें तो लानत है उनके मन्त्रीपन पर।
मैन्युअल बांचकर वे कह सकते हैं कि "हमारे ऊपर लगाए गए आरोप झूठे हैं।" ये कह सकते हैं कि ;"आरोप लगाकर हमें बदनाम किया जा रहा है।" कह सकते हैं कि ;"विरोधियों की साजिश के तहत ऐसा किया जा रहा है।" इन सबके ऊपर यहाँ तक कह सकते हैं कि; "कोई भी इन आरोपों की जांच कर सकता है। मुझे इस देश के कानून पर पूरा भरोसा है।"
जी हाँ देश के कानूनों पर मंत्री जी टाइप लोगों का जितना भरोसा है उतना किसी का है क्या?
परन्तु सवाल यह भी है कि ऐसे तुच्छ आरोपों के लिए ये सारे ऑप्शन्स क्या बहुत मेहनत वाले नहीं हैं? इतने बिजी मंत्री जी के पास इतना कुछ कहने का समय बहुत मुश्किल से मिलता है। ऐसे में सबसे सरल काम है एक क्लीन चिट ले लेना। अब कौन इतना बोलकर मेहनत करे? वैसे भी जो मज़ा क्लीन चिट लेने में है वह जवाब देने में है कहाँ? जब से यह क्लीन चिट वाला ऑप्शन चलन में आया है, देश का फायदा ही फायदा हुआ है। इस ऑप्शन को लाकर देश के खजाने पर इतना बड़ा एहसान किया जा रहा है कि वित्तमंत्री अगला आम बजट पेश करते समय गृह मंत्रालय का खर्च पचास प्रतिशत तक कम कर सकते है। कमीशन बैठाओ, पैसे खर्च करो, कमीशन की समय सीमा बढाने के लिए बैठकें करो, उसे कम से कम दस साल का समय दो तब जाकर एक अदद रिपोर्ट की प्राप्ति होती है। और यहाँ एक क्लीन चिट की वजह से इतना सारा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है।
मैं तो कहता हूँ कि यह क्लीन चिट सरकारी विभागों के घोटालों की जांच पर होनेवाले खर्च को रोकने के लिए संजीवनी सामान है। लोग भले ही शिकायत करें कि सरकारी लोग राज-काज चलाने के लिए नए आईडिया नहीं लाते लेकिन सच यही है कि पिछले वर्षों में सरकारी विभागों ने क्लीन चिट इश्यू करके देश का हजारों करोड़ रुपया बचाया है। ऐसे में मैं तो शिकायत करनेवालों पर लानत भेजता हूँ। मेरा तो मानना है कि जिस तरह से सी बी आई, इनकम टैक्स, कस्टम, एक्साइज, आई बी, ईडी, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, कोयला मंत्रालय, खेल मंत्रालय, रेल मंत्रालय, मुख्यमंत्रालय, इसरो, उसरो, योजना आयोग, पुलिस आयोग, लोकायुक्त, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार, केंद्र सरकार, अरविन्द केजरीवाल, अन्ना हजारे वगैरह ने क्लीन चिट इश्यू कर के आरोपियों को ईमानदार साबित कर दिया है, कई बार लगता है कि हिटलर बेवकूफ था। उसने आत्महत्या क्यों की? अपने ऊपर लगने वाले आरोपों पर उसे क्लीन चिट लेकर मामला सलटा देना था।
फिर मन में आता है कि हिटलर क्लीन चिट कैसे लेता? इसका आविष्कार तो भारत में हाल में हुआ। अविष्कार समय पर न हुआ तो एक आदमी को अपनी जान गंवानी पडी।
क्लीन चिट इश्यू करने की गति से यही लगता है कि आनेवाले समय में चुनाव आयोग भी प्रत्याशी के इनकम वगैरह के रिकार्ड की डिमांड नहीं करेगा। उसका काम बस क्लीन चिट ले-देकर हो जायेगा। किसी ने किसी के ऊपर आरोप लगाया तो वह फट से किसी डिपार्टमेंट से क्लीन चिट लेकर मामला ख़त्म कर लेगा। अगर भ्रष्टाचार विरोधी लोग प्रेस कान्फरेन्स करके घोषणा करेंगे कि वे किसी के ऊपर आरोप लगाने वाले हैं लेकिन यह नहीं बताएँगे कि किसके ऊपर आरोप लगायेंगे, तो एक साथ कई लोग क्लीन चिट ले सकते हैं। उधर भ्रष्टाचार विरोधी ने आरोप लगाया और इधर आरोपी ने क्लीन चिट उसके मुंह पर मारा। तुरंत दान महा कल्यान। जिन्होंने इस डर से क्लीन चिट ले ली है कि हो सकता है आरोप उनके ऊपर लगने वाले हैं, उनका क्लीन चिट बेकार जाने का भी चांस नहीं। वे उसको अपने पास रख लेंगे और जब उन्हें आरोप-गति की प्राप्ति होगी तो उनके काम आ जाएगा।
जिसे भी इस बात की शंका होगी कि उसके ऊपर आरोप लग सकते हैं वह एंटीसिपेटरी क्लीन चिट ले सकता है। जिसे यह लगे कि जबतक वह मंत्री है तबतक उसके ऊपर आरोप नहीं लगेंगे लेकिन सरकार बदलने के बाद लगने के चांस हैं वह पहले से यह कह कर अप्लाई कर सकता है कि उसे दो साल या ढाई साल बाद क्लीन चित की ज़रुरत है। जिस तरह से सोशल मीडिया में मंत्रियों के बेटों और नेताओं के दामादों के खिलाफ आरोप लगाये जा रहे हैं और आरोप लगाने वालों को गिरफ्तार किया जा रहा है, यह क्लीन चिट वाला सिस्टम उसके भी काम आ सकता है। मंत्री जी का बेटा क्लीन चिट लेकर उसे स्कैन करके सोशल मीडिया में आरोप लगानेवाले के नाम अपनी ट्वीट के साथ सेंड कर देगा। आरोप लगनेवाले को गिरफ्तार करनेवाली पुलिस के पास और समय रहेगा और वह बलात्कारियों को धरा करेगी। हाल यह होगा कि मंत्री टाइप लोगों के घर में क्लीन-चिट शो-केस में बाकायदा इस तरह से रखी जायेंगी जैसे सचिन के घर में शो-केस में मैं ऑफ़ द मैच की ट्राफी रखी गई होगी। नेता टाइप प्राइवेट परसन जेब में नोटों की जगह क्लीन चिट रखा करेंगे। क्या पता कब ज़रुरत पड़ जाए।
आगे चलकर अगर सरकार को लगे कि वह पर्याप्त मात्रा में क्लीन चिट की डिमांड को पूरा नहीं कर पा रही है तो वह क्लीन चिट मंत्रालय भी खोल सकती है। अगर उसे लगे कि क्लीन चिट की उपलब्धता में दिक्कत आ रही है तो वह इंटर-मिनिस्टीरियल पैनल ऑन क्लीन चिट मैनेजमेंट बना सकती है। अगर यह लगे कि सरकार के पास समय पर क्लीन चिट डिलीवर करने के लिए वर्क-फ़ोर्स नहीं है तो फिर एन जी ओ को इस काम में लगाया जा सकता है। देखेंगे कि सलमान खुर्शीद के जिस एन जी ओ ने विकलांगों की बैशाखियाँ और हियरिंग एड नहीं बांटी, वही कल क्लीन चिट बांटेगा। अगर सरकार को यह लगेगा कि क्लीन चिट पर्याप्त मात्रा में समय पर इश्यू नहीं हो पा रही हैं तो गृह मंत्रालय के तहत वी आई पी डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम का नेटवर्क बना सकती है।
कहते हैं कोई उद्योग फूले-फले उसके लिए ऍफ़ डी आई का होना ज़रूरी है। ऐसे में ज़रुरत पड़ने पर सरकार क्लीन चिट सेक्टर में ऍफ़ डी आई भी ला सकती है। अगर सरकार चाहेगी तो क्लीन चिट वाले इस आईडिया का पेटेंट करवाकर रख लेगी और आनेवाले समय में यह आईडिया विदेशी सरकारों को फीस लेकर मुहैय्या कराएगी।
कुल मिलाकर बड़ी बिकट ईमानदारी लहराएगी और फिर अबतक आर टी आई एक्ट लाने के लिए क्रेडिट लेने वाले राहुल गांधी क्लीन चिट लाने के लिए भी कांग्रेस पार्टी को न सिर्फ क्रेडिट देंगे बल्कि कहकर लेंगे भी।
Thursday, October 18, 2012
ईमेज को बढ़ावा देनेवाली कैबिनेट कमिटी...
टेबिल पर अखबारों की ढेर सारी कटिंग्स पड़ी हैं। प्रधानमंत्री ने उन्हें उलट-पलट कर देखा। शायद उन्हें लगा की फिर से देखना चाहिए। उन्होंने उन्हें फिर से उलटा-पलटा। कुछ सोचने का उपक्रम किया। इसके तहत उन्होंने आफिस की सीलिंग को निहारा। उसके बाद शायद उन्हें लगा कि एक बार टेबिल को देखकर भी सोचा जाय। उन्होंने वह भी किया।
सबकुछ करने के बाद संतुष्ट नहीं दिखे। सचिव से मुखातिब हुए। बोले; "ये हेल्थ मिनिस्टर जी की वही फोटो पोलिओ टीकाकरण अभियान के लिए छपी जो पिछले साल छपी थी। मिनिस्ट्री ने नई फोटो भी नहीं छपवायीं? सालभर पहले जिस बच्चे को दवा पिलाते हुए फोटो खिचाई थी, वही बच्चा इस साल वाली फोटो में भी है। ऐसा क्यों? क्या देश में बच्चों की कमी है?"
सचिव बोले; "सर, बच्चों की कमी तो नहीं है लेकिन मेरा ख़याल है कि मंत्री जी बहुत बिजी होंगे इसलिए उन्हें फोटो खिंचाने का समय नहीं मिला होगा।"
प्रधानमंत्री; "हेल्थ मिनिस्टर इतने बिजी किसलिए होंगे? क्या वे खुद ही पोलिओ टीकाकरण के लिए बच्चों को दवा पिलाते हैं?"
सचिव; "हे हे हे ..सर अगर ऐसा होता तब तो फोटो खिंच ही जाती।"
प्रधानमंत्री; "तब किसलिए समय नहीं मिला उन्हें?"
सचिव; "सर पिछले छ महीने में मंत्री जी को पांच बार अपने बयानों को लेकर बीस सपष्टीकरण देने पड़े। उसके बाद और भी काम में बिजी रहना पड़ा उन्हें।"
प्रधानमंत्री; "अपने मंत्रालय के अलावा एक मंत्री और कहाँ बिजी रहेगा? और कुछ नहीं तो किसी ब्लड-डोनेशन कैम्प का उद्घाटन करके खून देते हुए ही फोटो खीचा लेते। जिस पार्टी के पहले प्रधानमंत्री पंडित जी थे, उसी पार्टी की सरकार आज ईमेज बिल्डिंग नहीं कर पा रही है। हम पंडित जी तक को भूलते जा रहे है। हमें उनसे सीखना चाहिए कि ईमेज बिल्डिंग होती क्या है? रक्तदान करते हुए उनकी छ दर्जन तसवीरें तो खुद मैंने देखी हैं। "
सचिव; "सर, वो समय अलग था। पंडित जी इतना काम करते थे फिर भी रक्तदान करते हुए फोटो खिचाने का टाइम मिल जाता था उन्हें। सर, जो बिजी रहता है वह समय निकाल ही लेता है। वैसे सर, याद दिला दूँ कि आपने ही तो तेलंगाना मुद्दे को संभालने के लिए मंत्री जी को कहा था। पिछले आठ महीने में कुल ग्यारह बार उन्हें हैदराबाद जाना पड़ा। फिर जगनमोहन रेड्डी को मनाने का काम भी तो उन्ही के जिम्मे था। सर, मुझे लगता है कि ये जगनमोहन रेड्डी वाला मामला नहीं फंसा होता तो और कुछ नहीं तो मंत्री जी की नई फोटो तो ज़रूर खिंच जाती।"
प्रधानमंत्री; "अरे हाँ, तब तो वे सचमुच बहुत बिजी थे। आपका कहना सही है। ये फोटो नहीं खींचे जाने के पीछे जगनमोहन रेड्डी ही जिम्मेदार हैं। लेकिन वो काम भी ज़रूरी है। अगर इसी तरह से चला तो सरकार की ईमेज नष्ट हो जाएगी। वैसे ये सिविल एवियेशन की भी कोई ऐसी तस्वीर नहीं दिखाई दे रही जिसे देखकर लगे कि वे कुछ काम के आदमी हैं। एयर इंडिया के लिए नया एयर-लाइनर आया लेकिन उसके साथ भी उनकी एक फोटो नहीं है? नए एयर्लाइनर की अखबारों में जो फोटो छपी हैं उनमें मिनिस्टर कहीं दिखाई ही नहीं दिए।
सचिव; "जब एयर लाइनर की डिलीवरी हुई, उस समय मंत्री जी किंगफिशर को संभालने में लगे थे। एयर इंडिया के लिए नए फंड भी रिलीज करवाने थे। फंड नहीं रिलीज होते तो स्टाफ को सैलेरी नहीं मिलती।"
प्रधानमंत्री; "क्या फायदा हुआ? फिर भी तो किंगफिशर का कुछ नहीं हुआ। मैं कहता हूँ मंत्रालय का काम-धाम तो वैसे ही नहीं हो रहा है, ऐसे में जांच के बहाने किसी एयरक्राफ्ट की कॉकपिट में बैठकर फोटो खिचाने में क्या जाता है? और ये शिक्षा मंत्री की क्या रिपोर्ट है?"
सचिव; "सर कोई रिपोर्ट नहीं है। कई महीने हो गए उन्होंने प्राईमरी एडुकेशन तक पर चिंता व्यक्त नहीं की।"
प्रधानमंत्री; "प्राइमरी एडुकेशन पर किसी सेमिनार वगैरह का उद्घाटन तो किया होगा?"
सचिव; "नहीं सर, पिछले छ महीने में तो ऐसा भी कुछ नहीं हुआ।"
प्रधानमंत्री; "बड़े मीडिया हाउस के सेमिनार में बोलने के लिए ये लोग हमेशा तैयार रहते हैं। मैं कहता हूँ किसी स्कूल का बिना बताये दौरा ही कर लेना चाहिए था। दो-चार टीवी चैनल वालों को लेकर किसी स्कूल की वर्किंग देखने के बहाने ही फोटो खिंचा लेते। ग्रेडिंग की बात की थी तो देशवासियों को बहस करने का बहाना मिल गया था। उसके बाद उन्होंने कुछ किया ही नहीं।"
सचिव; "नहीं सर, उसके बाद ही तो आई आई टी वाला मसला खड़ा किया था उन्होंने।"
प्रधानमंत्री; "अरे एक मसला कितने दिन बहस-प्रेमी जनता को बिजी रखेगा? और नया मसला खड़ा नहीं करेंगे तो जनता को भी नहीं लगेगा कि सरकार काम कर रही है। वहीँ फिनांस मिनिस्टर को देखो, उन्होंने ऍफ़ डी आई का मसला खड़ा करके कुछ तो राहत पंहुचाई। एडुकेशन मिनिस्टर पिछली बार आकाश टैबलेट के साथ दिखे थे। कितना पुराना मामला है। टैबलेट फेल हो गया, इम्प्रूव्ड आकाश आने का समय हो गया लेकिन एक भी नई फोटो दिखाई नहीं दी उनकी।"
सचिव; "अब सर, पाँचों उंगलियाँ एक सामान तो नहीं होती। वैसे भी वित्तमंत्री जितने काबिल सारे मंत्री तो नहीं हो सकते न। वैसे भी सर यही दोनों तो स्कैम की बात होनेपर प्रेस कान्फरेन्स करते हैं। कैसे समय मिलेगा? सर, आपसे एक बात कहनी थी कि सड़क और यातायात मंत्री के बारे में आई बी की रिपोर्ट है कि सोशल मीडिया पर लोग उनके एक दिन में बीस किलोमीटर सड़क वाले प्लान की बड़ी हंसी उड़ाते है। "
प्रधानमंत्री; "हंसी नहीं उड़ायेंगे? मैं कहता हूँ न्यूजपेपर में मंत्रालय का विज्ञापन लगाने में क्या जाता है? और कुछ नहीं तो किसी दिन का सेलेक्शन करके सड़क विकास दिवस ही मना लेना चाहिए था। हाथ में कुदान और सर पर इंजिनियर की हैट पहनकर फोटो खिचाने में कितना टाइम लगता है? पंडित जी हर दो महीने में कारखाने का दौरा करके हाथ में कुदान और इंजीनियर्स कैप पहनकर फोटो खींचा लेते थे। आज भी वो तसवीरें ईमेज बिल्डिंग के लिए किसी को भी इंस्पायर कर सकती हैं। लेकिन जब हमीं उनका अनुसरण नहीं कर सकते तो औरों से कैसे आशा करें?"
सचिव; "सर, पंडित जी की बात ही कुछ और थी। सर, याद कीजिये कि कैसे वे नॉर्थ -ईस्ट जाकर वहां की पारंपरिक पोशाक में नाचते हुए फोटो खीचा आते थे। आज भी उन तस्वीरों को देखकर लगता है जैसे अभी बोल पड़ेंगी। सर ये वाली तस्वीर ही देखिये। ये उन्होंने मणीपुरी महिलाओं के साथ नाचते हुए खिचाई थी। और ये वाली देखिये सर, कैसे बच्चे को गोद में लिए वात्सल्य रस की बृष्टि कर रहे हैं। उनके साथ खड़े बच्चे कित्ते तो हैपी हैं। मैं कहता हूँ सर, आज भी कोई चाहे तो बहुत कुछ सीख सकता है इन तस्वीरों से।"
प्रधानमंत्री; "अब क्या कहें? कहते हैं चिराग तले अँधेरा होता है। बस हमारी सरकार की हालत वैसी ही हो गई है। आज जब हमें जरूरत है कि हम पंडित जी और इंदिरा जी की ईमेज बिल्डिंग के तरीकों से कुछ सीखें, हमीं चूक जा रहे हैं। रूरल डेवेलपमेंट मिनिस्टर की एक तस्वीर ऐसी नहीं जिसमें वे किसानों की सभा को संबोधित कर रहे हों। मैं कहता हूँ रूरल एरिया में नहीं जाना हो, मत जाओ लेकिन क्या दस -पांच किसानो को दिल्ली बुलाना बहुत कठिन काम है? उनको यहाँ बुलाकर तो फोटो खिंचवा ही सकते हैं।"
सचिव; "सही कह रहे हैं सर। उनसे अच्छे तो कृषि मंत्री हैं। अभी परसों दुबई से आई सी सी की मीटिंग करके लौटे लेकिन कल ही बारामती जाकर किसानों की सभा को संबोधित कर डाला। ये देखिये सर, पगड़ी में कित्ते फब रहे हैं।"
प्रधानमंत्री; "इसीलिए तो मैं पवार साहब की बड़ी इज्जत करता हूँ। इतनी उम्र हो गई उनकी लेकिन आज भी किसान लगते हैं। अब और किसकी बात करूं? अब तो हाल ये है कि रेलमंत्री को आजकल कोई झंडा दिखाकर गाडी रवाना करते नहीं देखता। शासन करने के इतने अच्छे-अच्छे तरीके थे हमारे पास लेकिन वही आज कहीं दिखाई तक नहीं देते।"
सचिव; "सर, डोमेस्टिक मिनिस्टरी की तो जानें दें अब तो फॉरेन मिनिस्टर भी नहीं दिखाई देते कहीं। 2009 तक तो यूनाइटेड नेशंस सिक्यूरिटी काऊंसिल में परमानेंट सीट लेने की बात करते थे तो लगता था कि फॉरेन मिनिस्ट्री में कुछ हो रहा है। सर, मुझे लगता है एकबार फिर से अगर सिक्यूरिटी कॉउन्सिल में परमानेंट सीट की बात शुरू की जाती तो ..."
प्रधानमंत्री; "नहीं-नहीं, हर आईडिया का एक लाइफ होता है। दिस आईडिया हैज आउटलिव्ड इट्स लाइफ। कुछ और सोचना पड़ेगा। ईमेज बिल्डिंग नहीं करेंगे तो सरकार चलेगी कैसे? आप एक काम कीजिये। ईमेज को बढ़ावा देनेवाली कैबिनेट कमिटी की मीटिंग की व्यवस्था कीजिये, हमें सरकार की ईमेज बिल्डिंग एक्सरसाइज का क्रिटिकल एक्जामिनेशन करना है।"
सचिव नोटिस भेजने का इंतज़ाम करने निकल जाते हैं।
Wednesday, October 10, 2012
अरविन्द केजरीवाल की ट्विटर टाइम लाइन...
Arvind Kejriwal's Twitter Timeline
Sunday, September 16, 2012
वंस अपॉन अ टाइम ऑन केबीसी...
बी बी पी यानि ब्लॉगर-ब्लॉगर पार्टनरशिप की एक और ब्लॉग पोस्ट. यह ब्लॉग-पोस्ट मैंने और विकास गोयल जी ने मिलकर लिखा है. पढ़कर देखिये.
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कौन बनेगा करोड़पति के सेट पर. अमिताभ बच्चन साहब अपनी दोनों हथेलियों का गठबंधन लिए हुए आते हैं और आते ही शुरू हो जाते हैं; "वेलकम वेलकम वेलकम...अ वेरी गुड एवेनिंग टू आल ऑफ यू...नमस्कार, आदाब, सत श्रीअकाल...देवियों और सज्जनों, मैं अमिताभ बच्चन आपसब का इस अद्भुत खेल में स्वागत करता हूँ जिसका नाम है कौन बनेगा करोड़पति...जैसा कि कल आपने देखा, मुंबई के बाबूराव गणपतराव आप्टे यहाँ से बारह लाख पच्चास हज़ार रूपये जीत कर गए.... और एकबार फिर से यह सिद्ध हुआ कि ज्ञान जो है, वही आपको आपका सही स्थान दिलाता है...और आज हमारे साथ दस नए कंटेसटेंट्स हैं. आइये उनका परिचय जान लेते हैं........तो फिर आइये शुरू करते हैं फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट..आपसब को पता है कि क्या करना है...और फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के लिए आपका प्रश्न है;
इन भारतीय अभिनेताओं को उनकी अभिनय क्षमता के अनुसार नीचे से ऊपर के क्रम में लगायें..प्रश्न एक बार पुनः सुन लें...इन भारतीय अभिनेताओं को उनकी अभिनय क्षमता अर्थात ऐक्टिंग स्किल्स के अनुसार नीचे से ऊपर के क्रम में लगायें...और आपके ऑप्शंस हैं..
ए) डीनो मोरिया
बी) तुषार कपूर
सी) अर्जुन रामपाल और
डी) हरमन बावेजा.
ऑप्शंस एकबार फिर से देख लें...ए) डीनो मोरिया... बी) तुषार कपूर... सी) अर्जुन रामपाल और डी) हरमन बावेजा...
कंटेस्टेंट्स ने जवाब दिए और कम्यूटर की स्क्रीन देखते हुए अचानक बच्चन साहब ठीक वैसे ही चिल्लाने लगे जैसे फिल्म हम में सुदेश भोंसले की आवाज़ में चिल्लाते हुए उन्होंने जुम्मा जी को पुकारा था; "और सबसे पहले सही जवाब दिया है मुंबई के इक्कीस वर्षीय विकास गोयल ने... बहुत खूब! विकास जी, आपने केवल ढाई सेकंड्स में ही फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट पूरा किया...ओह! आह! वैसे इतने कठिन प्रश्न का आपने न केवल सही उत्तर दिया बल्कि बहुत ही कम समय में दिया... इस बात पर मैं यह अवश्य कहूँगा कि बहुत तेज़ दिमाग है आपका. क्या आप डाबर च्यवनप्राश का सेवन करते हैं?"
विकास; "नहीं सर, च्यवनप्राश नहीं, हाँ मैं हाजमोला खाता हूँ. वैसे तो सर क्वेश्चन रियली बहुत टफ था ...इन एक्टर्स में कौन ऊपर और कौन नीचे, यह बताना आम इंसान के बस की बात नहीं....फिर भी यह दिमाग की बात नहीं है सर, यह तो अँगुलियों को चलाने की बात...और सर, अगर आप चौबीस घंटों में से सोलह घंटे स्मार्टफोन पर फेसबुक और ट्विटर करेंगे तो आप भी ढाई सेकंड्स में यह कर लेंगे..."
अमिताभ बच्चन; "हा हा हा ...परन्तु आपने कोशिश की..जो हिम्मत दिखाई, उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. ...बिना कोशिश के यह कर पाना असंभव होता. इस बात पर मुझे बाबूजी की कविता याद आती है कि; लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती...."
विकास; "..कोशिश करने वालों की हार नहीं होती..सर, पिछले एपिसोड में आप यह कविता सुना चुके हैं."
अमिताभ बच्चन; "हा हा हा..तो चलिए फिर हम और आप मिलकर खेलते हैं कौन बनेगा करोड़पति. तो देवियों और सज्जनों आपने देखा कि किस तरह से मुंबई से आये विकास गोयल जी ने......."
हॉट सीट पर बैठने के बाद...
अमिताभ बच्चन; "तो विकास जी, आप हमें और हमारे दर्शकों को अपने बारे में कुछ बताइये.."
विकास; "सर, मैं मस्स्त.. आई लाइक रीडिंग...पढ़ना मुझे बहुत पसंद है."
अमिताभ बच्चन; "ओ..आपको पढ़ना पसंद हैं..बहुत खूब! वैसे क्या पढ़ना पसंद करते हैं आप? मेरा तात्पर्य है कि किस तरह की किताबें..?"
विकास; "सर, मैं बॉम्बे टाइम्स पढ़ता हूँ. बहुत पढ़ता हूँ. इसके अलावा मुझे पोलिटिक्स, क्रिकेट, सिनेमा..बहुत रूचि है मेरी..और आय ऐम अ बिग फूडी..आय लव ट्रैवेलिंग.."
अमिताभ बच्चन; "ओह, यह सब चीज़ें भी आपको बहुत पसंद हैं! बहुत खूब! वैसे आपकी पसंद ट्विटर सेलेब्रिटी जैसी है... तो क्या आप भी ट्विटर पर..."
विकास; "सर, बिलकुल सही पहचाना आपने. मैं ट्वीटर ही हूँ. और सर, आप भी तो ट्विटर पर..."
अमिताभ बच्चन; "हाँ, मैं भी ट्विटर पर हूँ..और अब तो मैं फेसबुक पर भी...वैसे आपने कभी ट्विटर पर मुझे फालो नहीं किया."
विकास; "सर, आप भी तो कहाँ मुझे फालो करते हैं?"
अमिताभ बच्चन; "हा हा हा..और अपने जीवन के बारे में कुछ बताइए."
विकास; "बताना क्या है सर, मैं बिलकुल मस्त...
अमिताभ बच्चन; "मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि अपने आरंभिक जीवन के बारे में कुछ बताइए..मेरा मतलब बचपन में जब घर वालों को पैसे की तंगी...जैसे जब आप स्कूल में अपने पैसेवाले मित्रों को खर्च करते हुए देखते थे और आपके पास पैसे नहीं होते थे तो आपको कैसा लगता था?"
विकास; "पैसे की कमी कभी रही ही नहीं..अपने स्कूल में मैं ही सबसे पैसेवाला था सर. ..हमेशा मैं ही खर्च करता था. ...मॉम-डैड भी बिलकुल कूल हैं. "
यह सुनकर अमिताभ बच्चन के साथ-साथ ऑडिएंस का चेहरा भी उतर जाता है. वे यह सुनकर दुखी हो जाते हैं कि हॉटसीट पर एक ऐसा कंटेस्टेंट बैठा हैं जिसके पास बहुत पैसा है. जिसे पैसे की कमी की वजह से पिज्जा न खा पाने का दुःख कभी नहीं रहा और न ही मनचाही पढ़ाई न कर पाने का.
अमिताभ बच्चन; "तो फिर चलिए हम और आप मिलकर खेलते हैं कौन बनेगा करोड़पति. खेल के नियम तो आपको पता ही होंगे....."
विकास; "सर, पिछले १२ सालों से देख रहा हूँ...मैं ही क्यों पूरे इंडिया को गेम के रूल्स मालूम हैं. आप तो बस सवाल कीजिये."
अमिताभ बच्चन; "हा हा हा..तो फिर यह रहा पाँच हज़ार रुपयों के लिए आपका पहला प्रश्न; इन फिल्मों में से कौन सी फिल्म अभिषेक बच्चन की एक प्रसिद्द फिल्म है? प्रश्न एक बार फिर से सुन लें...इनमें से कौन सी मूवी अभिषेक बच्चन की एक प्रसिद्द मूवी है? और आप के ऑप्शंस हैं;
ए) बोल खान
बी) बोल कपूर
सी) बोल बच्चन और
डी) बोल देवगन.
विकास को लगा जैसे बच्चन साहब ऑप्शंस में "सी बोल बच्चन" कहकर मूवी देखने का इशारा कर रहे हैं. फिर उसके मन में आया कि चार की जगह अगर पाँच ऑप्शंस होते तो बोल कुमार को भी अकॉमोडेट किया जा सकता था.. सोचते-सोचते अचानक बोल पड़ा; "सर, मैं लाइफ-लाइन यूज करना चाहूँगा.."
अमिताभ बच्चन; "ओह! पहले ही प्रश्न में लाइफ-लाइन का प्रयोग ...वैसे आप चाहें तो प्रश्न को फिर से देख सकते हैं, हमें कोई जल्दी नहीं है. बहुत प्रसिद्द यह जो है फिल्म अभिषेक की...आपको एक हिंट दे दूँ कि इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सौ करोड़ रूपये कमाये हैं..."
विकास; "सर, मैं सिर्फ अच्छे एक्टर्स की मूवी देखता हूँ.."
अमिताभ बच्चन; "तो फिर आप लाइफ लाइन इस्तेमाल करना चाहते हैं...जनता जनार्दन, विकास जी को आपके मदद की आवश्यकता है...आप उनकी मदद कीजिये...वे अपनी लाइफ-लाइन का इस्तेमाल करना चाहते हैं. अपने-अपने वोटिंग मीटर्स तैयार रखिर..और आपका समय शुरू होता है अब.."
कहते हुए बच्चन साहब ने अपने दाहिने हाथ की तर्जनी को हवा के ऊपर पटक दिया.
वोटिंग समाप्त ..रिजल्ट आते ही अमिताभ बच्चन; "ओह, जनता ने तो आपका काम काफी आसान कर दिया..हालाँकि करीब उनत्तीस प्रतिशत लोगों का मानना है कि सही जवाब है डी) "बोल देवगन" परन्तु वहीँ पर पैंसठ प्रतिशत लोगों का का मानना है कि सही जवाब है सी) "बोल बच्चन" ..और अपने पुराने अनुभवों से मैं कह सकता हूँ कि बहुत कम मौके ऐसे आते हैं जब जनता इतनी भारी मात्रा में एक-दूसरे के साथ सहमत होती है. तो आप जनता के साथ जाना चाहेंगे? लॉक कर दूँ सी) बोल बच्चन? "
विकास; "नहीं सर."
सुनकर स्टूडियो ऑडिएंस में खुसर-पुसर शुरू हो जाती है. कई लोग़ जिन्होंने सी) बोल बच्चन को वोट दिया था, उन्हें भी अपने ज्ञान पर शंका होने लगी. शायद प्रोडक्शन वालों में से किसी ने इशारा किया होगा कि ऑडिएंस चुप हो गई. अमिताभ बच्चन जी बोले; "ओह, विकास जी, आश्चर्य की बात है कि पैसठ प्रतिशत जनता सी) कह रही है फिर भी आप जनता के साथ नहीं जाना चाहते."
विकास; "सर, अगर जनता को सही गलत का पता होता तो ऐसी फिल्में सौ करोड़ कमा पाती क्या? और सर, सच कहूँ तो जनता को अगर सही-गलत का पता होता तो देश का जो हाल है, वह भी नहीं होता."
अमिताभ बच्चन; "तो फिर आप क्या करना चाहेंगे?"
विकास; "सर, मैं एक्सपर्ट एडवाइज यूज करना चाहूँगा."
अमिताभ बच्चन; "बहुत खूब! कम्प्यूटर जी, विकास जी एक्सपर्ट एडवाइज यूज करना चाहते हैं...आज की हमारी एक्सपर्ट हैं विख्यात अभनेत्री कटरीना कैफ जी. कम्प्यूटर जी, कटरीना जी से हमारा संपर्क स्थापित करवाइए."
अभी संपर्क स्थापित हो ही रहा था कि विकास बोल पड़ा; "सर, मैं कटरीना के साथ जाना चाहता हूँ."
अमिताभ बच्चन; "परन्तु अभी तक तो कटरीना जी ने जवाब भी नहीं दिया."
विकास; "सर मैं जवाब के साथ जाने की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं कटरीना के साथ घर जाने की बात कर रहा हूँ."
अमिताभ बच्चन; "हा हा हा...कम्यूटर जी, कटरीना कैफ जी से संपर्क स्थापित करवाया जाय."
बहुत कोशिश के बाद भी संपर्क स्थापित नहीं हो सका. अमिताभ बच्चन जी ने कहा; "भाई साहब, लगता है कटरीना जी ने आपकी उनके साथ घर जाने की बात सुन ली और उन्होंने लाइन डिस्कनेक्ट कर दिया है. तो अब आपके पास सिर्फ दो ऑप्शंस बचे हैं. एक है फोन अ फ्रेंड और दूसरा है डबल डिप. आप कौन सा ऑप्शन इस्तेमाल करना चाहेंगे?"
विकास ; "सर, मैं फोन अ फ्रेंड करना चाहूँगा."
अमिताभ बच्चन; "कम्यूटर जी, विकास गोयल जी द्वारा फोन अ फ्रेंड ऑप्शन के लिए दी गई इनके मित्रों की सूची दिखाई जाय."
कम्यूटर जी स्क्रीन पर चार लोगों की सूची दिखाते हैं.
अमिताभ बच्चन; "इन चार में से आप किसे फोन कर करना चाहेंगे?"
विकास; "सर, शिव कुमार मिश्रा को."
अमिताभ बच्चन; "मित्र हैं आपके? आपके साथ कॉलेज में पढ़ते थे? क्या करते हैं शिव कुमार जी?"
विकास ; "नहीं सर, कॉलेज वॉलेज में नहीं थे, ट्विटर से फ्रैंडशिप हुई इसके साथ. और करेगा क्या? दिन भर ट्वीट करता रहता है.... ये लिस्ट में आपने जो चार फ्रेंड्स देखे हैं, इन सभी से सोशल मीडिया पर ही फ्रैंडशिप हुई. रीयल लाइफ के फ्रेंड मेरे हैं ही नहीं. जो हैं, सारे नेट फ्रेंड्स हैं."
अमिताभ बच्चन; "ओह, तो आपके सारे मित्र जो हैं, वह सोशल मीडिया की वजह से बने...यह बहुत अच्छी बात है कि तकनीकि ने पूरी दुनियाँ के लोगों को एक-दूसरे के साथ मिला दिया है. मित्रता करवा दिया है. तो कम्प्यूटर जी, शिव कुमार मिश्रा को कोलकाता में फोन लगाया जाय. "
कम्प्यूटर जी ने शिव कुमार मिश्रा को फ़ोन लगा दिया. जैसे ही उन्होंने फ़ोन उठाया अमिताभ बच्चन जी बोले; "हेलो, शिव कुमार जी..?"
उधर से आवाज़ आई; "जी, बोल रहा हूँ."
अमिताभ बच्चन; "शिवकुमार जी, नमस्कार, मैं अमिताभ बच्चन बोल रहा हूँ कौन बनेगा करोड़पति से."
उधर से आवाज़ आई; "हाँ बोलिए."
अमिताभ बच्चन; "शिव कुमार जी, मैं अमिताभ बच्चन बोल रहा हूँ कौन बनेगा करोड़पति से."
उधर से आवाज़ आई; "मैं आपको पहचान गया हूँ सर. आप आगे भी कुछ बोलना पसंद करेंगे?"
अमिताभ बच्चन; "हा हा हा..इस समय आपके मुंबईवासी मित्र विकास गोयल जी हमारे सामने हॉटसीट पर बैठे हैं."
उधर; "अच्छा! कुछ जीत भी लिया है क्या उसने?"
अमिताभ बच्चन; "नहीं, अभी यह उनका पहला ही प्रश्न है और उसका सही जवाब देने के लिए उन्हें आपके मदद की जरूरत है. अगली आवाज़ जो आप सुनेंगे, वह आपके मित्र विकास जी की आवाज़ होगी. आपको इसके लिए तीस सेकंड्स मिलेंगे. और आपका समय शुरू होता है अब."
कहकर अमिताभ बच्चन जी ने एकबार फिर अपने दाहिने हाथ की तर्जनी को हवा पर दे मारा. हवा को फिर से चोट लग गई.
विकास; "अबे, आखिर मिल ही गया न तू. सवाल जवाब ऑप्शंस गए भाड़ में पहले तू ये बता कि मेरे पचीस हज़ार रूपये और आई-फोन का चार्जर कब देगा बे? तीन महीने से जब भी तुझे फोन करता हूँ, तू मुंबई का नंबर देखकर उसको काट देता है. आज पहले तू बता कि मेरा पैसा वापस कब करेगा?......"
अमिताभ बच्चन; "ओह, विकास जी, आपका समय समाप्त हो गया. आपके हाथ से यह मौका जाता रहा. वैसे ये बताइए कि कितने महीने हो गए इन्हें आपसे उधार लिए हुए?"
विकास ; "अरे सर, पूछिए मत. चार महीने हो गए हैं. कितनी बार फोन किया, फोन ही नहीं उठाता. मेल किया, उसका भी जवाब नहीं दिया. डी एम तक का जवाब नहीं देता है. ऊपर से पिछले तीन महीने में तीन बार मुंबई आकर वापस जा चुका है. वापस गया और फेसबुक पर मुंबई की पिक्स लगाई तब मुझे पता चला...."
अमिताभ बच्चन; "परन्तु आपके हाथ से प्रश्न के सही जवाब देने का एक और मौका चला गया."
विकास ; "अरे सर, आपका क्वेश्चन तो पाँच हज़ार का था. मेरा तो यहाँ इस बन्दे ने पचीस हज़ार लिया हुआ है."
अमिताभ बच्चन; "तो फिर अब क्या करना चाहेंगे आप? आपके पास सिर्फ एक लाइफ-लाइन है और वह है डबल डिप. इसके बारे में मैं आपको बता दूँ. आप कोई भी ऑप्शन चुन सकते हैं. अगर वह गलत हुआ तो फिर आपको एक और मौका दिया जाएगा कि आप दूसरा ऑप्शन चुन सकते हैं."
विकास; "सर, कितना अच्छा होता कि भारत में इलेक्शंस भी ऐसे ही होते. हम एक सरकार चुनते और अगर वह हमारी उम्मीद पर खरी न उतरती तो हम बटन दबाकर दूसरी पार्टी को चुन लेते और अपनी गलती सुधार लेते."
अमिताभ बच्चन; "हा हा हा ..कौन बनेगा करोड़पति के इस ऑप्शन से देश की दिशा और दशा सुधर सकती है. चूँकि पूरा भारत उनकी बात सुनता है इसलिए मैं आमिर खान जी से अनुरोध करूँगा कि वे देश के लिए हमारी इस सौगात को भारत के चुनाव आयोग के पास.....वैसे विकास जी, अब आप क्या करना चाहेंगे?"
विकास; "सर, अब मैं क्विट करना चाहता हूँ. मुझे देर हो रही है. आज मेरा एम टीवी रोडीज का ऑडिशन है."
इतना कहकर विकास उठा खड़ा हुआ. जैसे ही वह बाहर गया अमिताभ बच्चन जी फिर शुरू हो गए; "ओह्ह, तो अभी अभी आपने देखा देवियों और सज्जनों कि एकमात्र ज्ञान ही ......"
Monday, September 3, 2012
देवी अहल्या, भगवान राम और स्टोन माफिया
श्री राम और उनके अनुज श्री लक्ष्मण को लिए महर्षि विश्वामित्र जनकपुर चले जा रहे थे. उन्हें पता था कि जनकपुर जानेवाले मार्ग में ही ऋषि गौतम का आश्रम पड़ेगा. श्री राम को याद था कि महर्षि विश्वामित्र के कहने पर उन्हें पत्थर रूपी अहल्या का कल्याण करना है. मनुष्य के रूप में ही सही, जब भगवान पृथ्वी पर आये हैं तो कल्याण करेंगे ही. पृथ्वीवासी चाहकर भी उनके कल्याणकारी कर्मों से नहीं बच सकते. श्री राम, अनुज लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र मन ही दृश्य बुनते जा रहे थे. कि कैसे तीनों ऋषि गौतम के आश्रम के पास से गुजरेगें. कि उन्हें वहाँ जाकर पता चलेगा कि ऋषि गौतम तप करने हिमालय चले गए हैं. कि उन्हें एक शिला दिखाई देगी और महर्षि विश्वामित्र के कहने पर श्री राम उस शिला को छूएंगे और देवी अहल्या अपने असली रूप में प्रकट हो जायेंगी. फिर वे भगवान राम और महर्षि विश्वामित्र को प्रणाम करेंगी. कि देवतागण ऊपर से सबकुछ देखते हुए प्रसन्न होंगे. कि केवल प्रसन्न होने से उनका मन नहीं भरेगा और वे ऊपर से पुष्पवर्षा करके अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर डालेंगे.
मन ही मन सारे दृश्य सोचते हुए वे चलते-चलते ऋषि गौतम के आश्रम पहुँच गए. भगवान राम को पता था कि एक व्यवस्था के अनुसार सरकार ने शिला रूपी अहल्या को वैश्विक धरोहर घोषित करते हुए उस शिला के आस-पास की ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया था और शिला के पास एक सूचना पट्टी लगा दी कि राज्य का कोई भी नागरिक इस शिला के आस-आस न फटके और किसी भी तरह से इस शिला को अपवित्र न करे. सरकार इस बात से निश्चिन्त थी कि सूचना पट्टी लगाने से नागरिक उस शिला के आस-पास नहीं आयेंगे और उसकी रक्षा करना अपना धर्म समझेंगे. शिला की रक्षा के लिए वहाँ अर्ध-सैनिक बल के जवानों को ड्यूटी पर भी लगा दिया गया था.
इतनी मेहनत करके सरकार ने अपने कर्त्तव्य का पालन कर डाला था.
इधर जब भगवान राम, उनके अनुज लक्ष्मण और महर्षि जब वहाँ पहुंचे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. वे देखते क्या हैं कि सरकारी सूचना पट्टी तो थी और शिला के चारों तरफ सरकारी अहाता भी था लेकिन शिला गायब थी. सरकारी सूचना पट्टी पर भी राज्य के नागरिकों ने खड़िया मिट्टी से तमाम संदेश लिख डाले थे. कहीं किसी नौजवान ने अपनी प्रेमिका के लिए संदेश लिख डाला था तो किसी ने उसपर पान खाकर थूक भी दिया था. इतनी कलाकारी के बाद सरकारी संदेश का दिखना असंभव था.
यह सब देखकर महर्षि बहुत क्रोधित हुए. उन्होंने पास ही खड़े एक नागरिक से पूछा; "हे वत्स, यहाँ रखी गई शिला किधर लुप्त हो गई? क्या किसी ने उसे उठाकर कहीं और रख दिया?"
नागरिक बोला; "हे महर्षि, यहाँ रखी गई शिला तो इस इलाके के स्टोन माफिया ने तुड़वाकर बेंच डाली. हे महर्षि, इस इलाके में पत्थर खदानों के खनन का ठेका यहाँ के ही निवासी जग प्रसिद्द ठेकेदार गया सिंह को मिला है. न्यायपूर्ण खनन के साथ-साथ अन्यायपूर्ण खनन करने के लिए वे प्रसिद्द हैं."
नागरिक की बात सुनकर लक्ष्मण जी को बहुत क्रोध आया. वे क्रोध में ठेकेदार गया सिंह की खोज में निकल गए जिससे उसे दण्डित कर सकें. उधर भगवान राम सोचने लगे कि न ऋषि गौतम देवी अहल्या को श्राप देते, न यह होता. एक देवता ने देवी अहल्या का अपमान किया. एक ऋषि ने उसे श्राप दिया. एक और पुरुष ने उसे शिला भी न रहने दिया.
वे पुरुषों के कर्मों पर विचार कर ही रहे थे कि महर्षि विश्वामित्र बोले; "हे राम, अपनी दिव्य-शक्ति से पता लगाओ कि उस शिला के खंड कहाँ-कहाँ हैं. हम वहीँ चलकर देवी अहल्या का उद्धार करेंगे.
Saturday, August 11, 2012
भरत और बाघ...कालिया मर्दन
भरत और बाघ
ऋषि दुर्वाशा के शाप का यह असर हुआ कि महराज दुष्यंत ने शकुंतला को पहचानने की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया. नदी में अंगूठी गिरने के कारण देवी शकुंतला की स्थिति और दयनीय हो गई थी. वे एकबार फिर से महराज को याद नहीं दिला सकीं कि कैसे दोनों ने ऋषि कन्व के आश्रम में गन्धर्व विवाह किया था. कुल मिलाकर जब मामला हाथ से निकल गया सा प्रतीत हुआ तो देवी शकुंतला को वापस लौटना पड़ा. वे पहले की तरह ही ऋषि के आश्रम में रहने लगी. उनका पुत्र भरत अब बड़ा होने लगा था.
अब उसकी उम्र खेल-कूद की हो गई थी इसलिए उसने खेल-कूद शुरू कर दिया था.
उधर एक दिन रोज-रोज के राजकीय झमेलों से त्रस्त महराज दुष्यंत फिर से आखेट के लिए अपनी सेना लेकर निकले. उनको उन्ही जंगलों से गुजरना था जिसमें देवी शकुंतला अपने पुत्र के साथ रहती थीं. उन्हें पता था कि इसी जंगल में उनका मिलन अपने पुत्र भरत से होगा. वे जब जंगल में पहुंचे तो उन्होंने ने देखा कि बालक भरत तो है लेकिन इस बार वह बाघों के साथ नहीं खेल रहा. इसबार वह गिलहरियों के साथ खेल रहा था और उन गिलहरियों के दांत गिन रहा था.
महराज को बहुत क्रोध आया. उन्होंने वहीँ से पुकारा; "शकुंतले..शकुंतले."
महाराज की पुकार सुन देवी शकुंतला ने उन्हें पहचान लिया. वे प्रसन्न होकर दौड़ती हुई आईं. उन्हें देखते ही दुष्यंत ने प्रश्न किया; "यह क्या शकुंतले? हमारा पुत्र भरत, जिसे बाघों के साथ खेलना चाहिए था, जिसे बाघों के दांत गिनने चाहिए थे वह गिलहरियों के साथ खेल रहा है और उनके दांत गिन रहा है? ऐसा अनर्थ क्योंकर भला?"
देवी शकुंतला ने धैर्य के साथ कहा; "हे आर्यपुत्र, वैसे तो आप राजा हैं परन्तु आपको अपने ही राज्य के बारे में कुछ नहीं पता. तो हे आर्यपुत्र आप जानना ही चाहते हैं कि ऐसा अनर्थ क्यों हुआ तो सुनिए. जब हमारा पुत्र एक वर्ष का हुआ उसी समय आपके राज्य में बाघों की संख्या घटकर एक हज़ार चार सौ ग्यारह रह गई थी. उनमें से केवल दो बाघ इस जंगल में रहते थे. जबतक वे थे, तबतक तो पुत्र भरत उनके साथ खेलता था. उन्ही के दांत गिनता था. परन्तु जबतक वह चार वर्ष का हुआ, ये दो बाघ भी शिकारियों ने मार दिए. ऐसे में अब यह गिलहरियों के दांत नहीं गिनेगा तो क्या पक्षियों के दांत गिनेगा?"
महराज दुष्यंत अपने राज्य में हुए बाघों के इस संहार के बारे में कुछ नहीं कह सके. वे अपने सेनापति के साथ यह विमर्श करने लगे कि ऐसा क्या किया जाय कि उनके राज्य में फिर से बाघ दिखाई देने लगें.
कालिया मर्दन
कालिया मर्दन का समय आ गया था. श्रीकृष्ण कई दिनों से सोच रहे थे कि उन्हें एक दिन कालिया मर्दन करके "यदा यदा ही धर्मस्य....." को फिर से सिद्ध करना है. उन्होंने मैया यशोदा से गेंद बनवाई और एक दिन अपने सखाओं के साथ यमुना किनारे चल दिए. उन्हें पता था कि सखाओं के साथ गेंद खेलनी है और किसी बहाने उसे यमुना में डालना है जिससे उन्हें यमुना में घुसकर कालिया मर्दन का अवसर मिले. वे गेंद खेलने लगे. कुछ देर बाद उन्होंने गेंद को यमुना में फेंक डाला. सारे उपक्रम करके वे यमुना में घुस गए.
उन्होंने डुबकी तो लगाईं परन्तु इसबार उन्हें कालिया नाग कहीं दिखाई न दिया. बहुत प्रयास के बाद भी जब उन्हें वह नहीं मिला तो उन्हें यह चिंता होने लगी कि कहीं कालिया किसी और नाग का शिकार तो नहीं हो गया? उन्होंने यमुना की तलहटी से ही आवाज़ लगाईं; "कालिया... कालिया..."
उनकी पुकार की प्रतिध्वनि पाताललोक तक जाने लगी. प्रतिध्वनि श्रीकृष्ण के मित्रों तक भी पहुंची जिन्हें एकसाथ कई बार सुनाई दिया; "कालिया..कालिया...कालिया...कालिया..या.. या "
श्रीकृष्ण के मित्र भी चिंतित हो उठे. उन्हें इस बात का भय नहीं था कि कालिया श्रीकृष्ण पर आक्रमण कर देगा. उन्हें पता था कि उनका कान्हा कालिया को काबू कर लेगा और कुछ देर बाद ही उसके फन पर खड़ा हो मुरली बजाते हुए प्रकट होगा. बाद में कालिया नाग कान्हा से अपने जीवन की भीख मांगेगा और कान्हा उसे जीवनदान देकर वहाँ से विदा करेंगे. परन्तु ऐसा नहीं हुआ.
उधर कालिया नाग की खोज में श्रीकृष्ण नागलोक तक पहुँच गए. वहाँ उन्हें कालिया मिला. उसने श्रीकृष्ण को प्रणाम किया. श्रीकृष्ण ने उससे पूछा; "यह क्या कालिया? आजकल तुम यमुना में नहीं रहते? यमुना छोड़कर नागलोक में आ बसे हो? मैंने तो सोचा था कि आज मैं तुम्हारा मर्दन कर अपने उस धर्म का पालन करूँगा जिसके लिए मैंने अवतार लिया है."
श्रीकृष्ण की बात सुनकर कालिया दुखी मन से बोला; "हे कान्हा, आप तो अन्तर्यामी हैं. आप ही बताइए कि मैं एक तुच्छ नाग, यमुना में कैसे रहूं? उस यमुना में जिसमें अब जल नहीं बल्कि हरियाणा, दिल्ली और आगरा की गन्दगी भरी हुई है? हे कान्हा, आप तो यमुना में कूद गए क्योंकि आप भगवान हैं लेकिन मैं कैसे रहता जब वहाँ रहने से मुझे मेरी मृत्यु साफ़ दिखाई दे रही थी? अब तो यमुना में भरे रसायनों और विष के कारण मेरा अपना विष भी जाता रहा. जब मुझे प्रतीत हुआ कि अब वहाँ रहना मेरी मृत्यु का कारण बन सकता है तो मैंने यहाँ नागलोक में शरण ले ली."
श्रीकृष्ण की समझ में नहीं आ रहा था कि वे कालिया से क्या कहें? कुछ ही देर में मित्रों के साथ अपने घर की ओर चले जा रहे थे.
Thursday, August 9, 2012
समुद्र-मंथन री-विजिटेड
समुद्र मंथन हो रहा था. देवताओं और असुरों के बीच वासुकी की खींचा-तानी चल रही थी. मंदिराचल पर्वत समुद्र में ऊपर-नीचे हो रहा था. लाखों दर्शक देख रहे थे. न्यूज चैनल वाले रात-दिन रिपोर्टिंग करने में लगे थे. हर चैनल के संवाददाता मौजूद थे. इन संवाददाताओं को न तो दिन का चैन था और न ही रात का आराम. इधर ये घटना-स्थल से रिपोर्ट कर रहे थे तो उधर ऐंकर लोग़ अपने-अपने टीवी स्टूडियो में बैठे सयाने और बुद्धिजीवियों के साथ समुद्र-मंथन की एनालिसिस किये जा रहे थे. ज्यादातर सयाने इस बात से नाराज़ थे कि असुरों के साथ धोखा हो रहा है. कि उन्हें वासुकी के फन की तरफ वाला हिस्सा पकड़ने के लिए क्यों दिया गया?
एक-एक करके रत्न वगैरह निकाले जा रहे थे. कुछ न्यूज चैनलों ने गंभीरता के साथ सर्वे भी शुरू कर दिया था. कुछ ने जनता को इस बात के लिए ललकारना शुरू कर दिया था कि जनता एस एम एस भेजकर बताये कि आगला रत्न क्या निकलेगा? किसको मिलेगा? अंत में किसकी जीत होगी? वासुकी के फन से निकलने वाले विष से कितने असुर मरेंगे वगैरह वगैरह.
बढ़िया रत्नों को भगवान विष्णु के पास पहुंचाया जा रहा था. जब उनके पास शंख पहुंचाया गया तो उन्होंने उसे बजाकर देखा कि उसकी आवाज़ कहाँ तक पहुँच रही है. चन्द्र निकला तो उसे भगवान शिव के पास पहुँचाया गया और उन्होंने चन्द्र को अपने माथे पर रखकर पार्वती जी से पूछा कि वे देखने में कैसे लग रहे हैं? उनके माथे पर चन्द्र फब रहा है या नहीं? उधर ऐरावत पाकर इन्द्र फूले नहीं समा रहे थे.
जब हलाहल निकला तो टीवी न्यूज चैनल के संवाददाताओं ने अपनी आवाज़ की डेसिबल बढ़ाते हुए रिपोर्टिंग शुरू कर दी. सारे संवाददाता एक ही सवाल कर रहे थे कि अब हालाहल को कैसे संभाला जाय? कौन है वह जो इस हालाहल से इस विश्व की रक्षा करेगा? भगवान शिव ने जैसे ही हालाहल को लेकर अपने मुँह से लगाना चाहा एक न्यूज चैनल के कैमरामैन ने उनसे रिक्वेस्ट कर डाला कि; "हे भगवन, बस एक मिनट के लिए हालाहल से भरे पात्र को अपने मुँह के पास रोक देते तो फुटेज बढ़िया आता."
नंदी जी इस संवाददाता की बात सुन रहे थे. उन्होंने नाराज़ होकर उसे एक सींग दे मारा. संवाददाता वहीँ बेहोश हो गया. इसके बाद पूरी कवरेज का मुद्दा ही बदल गया. अब मुद्दा समुद्र-मंथन के कवरेज से निकल कर मीडिया के साथ होने वाली तथाकथित बदसलूकी पर आ गया. खैर, भगवान शिव ने हालाहल को मुँह से लगाया और पी गए. पार्वती जी ने उन्हें याद दिलाया कि वे कृपा करें और हालाहल को गले से नीचे न उतरने दें. भोले शंकर ने उन्हें अनुगृहीत किया तब वे जाकर शांत हुईं.
अबतक बाकी सबकुछ निकल चुका था. अब बारी थी अमृत के निकलने की. सभी इस बात की सम्भावना से खुश हो रहे थे कि बस थोड़ी ही देर में धनवंतरि जी हाथ में अमृत का घड़ा लिए निकलेंगे. जैसे-जैसे समय नज़दीक आता जा रहा था कि संवाददाताओं और कैमरा थामे लोग़ उत्साहित हुए जा रहे थे. एक टीवी स्टूडियो के ज्योतिषाचार्य ने यह भविष्यवाणी कर रखी थी कि कितने बजकर कितने मिनट पर आयुर्वेदाचार्य धनवंतरि अमृत कलश थामे निकलेंगे. सबकी साँसे रुकी हुई थी. क्या इस बार भी देवतागण कोई चाल चलकर अमृत हथिया सकेंगे? कहीं इस बार ऐसा तो नहीं होगा कि असुरों के राजा कोई चाल चल देंगे? क्या भगवान विष्णु इसबार भी अमृत देवताओं को दे सकेंगे? पूरा विश्व टीवी के सामने से नज़रें हटा नहीं पा रहा था.
मंथन होते-होते अचानक देवता और असुर देखते क्या हैं कि समुद्र से भगवान धनवंतारि की जगह मुकेश खन्ना निकले. उनके हाथ में डायबा-अमृत का एक पैकेट था. उन्हें देखते ही देवताओं और असुरों के चेहरे मुरझा गए. देवताओं ने मुकेश खन्ना से पूछा; "हे मनुष्य तुम कौन हो? और यहाँ क्या कर रहे हो? हमसब को तो भगवान धनवंतरि के अमृत-कलश के साथ निकलने की अपेक्षा थी परन्तु यह क्या?"
मुकेश खन्ना ने कहा; "देवताओं को मुकेश खन्ना का प्रणाम स्वीकार हो. हे देवों, अब तीनो लोक में अमृत के नाम पर डायबा-अमृत ही मिलता है. टीवी पर बिकने वाली सभी अयुर्वेदिक औषधियों की तरह यह भी दुर्लभ जड़ी-बूटियों से बना है."
उसके बाद वे देवराज इन्द्र से मुखातिब हुए और बोले; "हे देवराज, डायबा अमृत को बनानेवाले आयुर्वेदाचार्य भी भगवान धनवंतरि से ज़रा भी कम नहीं हैं. और हे देवराज, ये असुर तो इधर-उधर खुराफात करके हाथ-पाँव चलाते रहते हैं परन्तु हे देव, आप तो अपने महल से निकलते भी नहीं, केवल आराम करते रहते हैं. ऐसे में आपको..............."
मुकेश खन्ना डायबा-अमृत के गुण बताते जा रहे थे और देवता और असुर मुँह लटकाए सुने जा रहे थे.
Tuesday, August 7, 2012
ट्वीटर का आह्वान!
यह सवा सौ ग्राम की तुकबंदी ट्वीट-योद्धा का आह्वान कर रही है. आप बांचिये और अगर ट्विटर पर हैं तो इस आह्वान को सुनते हुए लग जाइए:-)
.....................................................
पूरब में सूरज उगा, जग उठा दिन अब,
अलसाई आँखें मलकर खोलोगे कब?
ट्वीटाधिराज बिस्तर से अब उठ जाओ,
स्मार्टफ़ोन पर को झट से हाथ लगाओ
पढ़ लो पहले जो टी एल है बतलाती,
मत ध्यान करो गर कोयल भी हो गाती
मन करे अगर तो गुडमोर्निंग कह डालो,
बदले में गुड़-डे वाली कुछ विश पा लो
चिंता कर डालो देशभक्त बन जाओ,
झट अपने दल का खूब समर्थन पाओ
अन्ना को गाली, रामदेव को रगड़ो,
गर मिलें सपोर्टर उनसे फट से झगड़ो
सोनिया माइनो, मनमोहन को गाली,
आरटी भी ले लो और साथ में ताली
दो यूं कुतर्क राहुल महान हो जायें,
सड़ियल ट्वीटें भी स्वीट-तान हो जाए
जिसको भी चाहो पेड-न्यूज बतलाओ,
अपने लोगों से खुब आशीष कमाओ
स्वामी जवाब दें फट आर टी कर डालो,
दूसरों की टाइम-लाइन को भर डालो
खबरों की लेकर लिंक उन्हें झट ठेलो,
फालोवर्स की तारीफ फटाफट ले लो
फैसला सुनाओ धर्म तुम्हारा बढ़िया,
कोई जो करे अपोज उसे कह घटिया
अपने रस्ते पर बस चलते ही जाओ,
जो करें विरोध उन्हें चिरकुट बतलाओ
कुछ पत्रकार को बतलाना तुम हालो,
पर कभी न करना उनको तुम अनफालो
फिर उसकी कोई घटिया ट्वीट पकड़कर,
और ट्रोल करो फिर उसको रोज रगड़कर
बतलाओ सबको मीडिया बिका हुआ है,
इनपर ही भ्रष्टाचारी टिका हुआ है
पर लिंक उसी मीडिया वाली तुम लेना,
उसको चाहे जितनी गाली तुम देना
कुछ कर डालो कि ट्वीट-क्रान्ति आ जाए,
और ट्वीट तुम्हारे लाखों आर टी पाए
हर मुद्दे को पकड़ो टांगों से, खींचो,
और बीच-बीच में ट्वीट-मुट्ठियाँ भींचो
ललकारो अपने दुश्मन को दो गाली,
कोई भी ट्वीटिंग-बुलेट न जाए खाली
छेड़ो तुम दलित-विमर्श जो आये मन में,
फिर दौड़ो जैसे कोई चीता वन में
स्त्री-विमर्श मोहताज रहे ट्वीटों की,
जो गाली दें ऐसे लम्पट, ढीठों की
आसाम की चाहे हों यूपी की बातें,
चाहे नेता की हों घातें-प्रतिघातें
हों यूपी वाली सिस्टर जी के हाथी,
या जो थे कलतक नेताजी के साथी
हों ज़रदारी या फिर बाराक ओबामा,
चाहे हों देसी सिब्बल, दिग्गी मामा
झट ट्वीट-एक्शन सबपर ही कर डालो,
जिससे सब पढ़ें जो करते तुमको फालो
लेकर शस्त्रों को ट्वीटक्षेत्र में जाओ,
भारत-गौरव अब राष्ट्रप्रेम दिखलाओ
ट्विटर एंथेम ट्वीटपथ ट्वीटपथ ट्वीट पथ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं. ट्विटर पर और ब्लॉग पोस्ट यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक करके बांच सकते हैं.
Friday, August 3, 2012
दुर्योधन की डायरी - पेज १२१८
कल सुबह युवराज दुर्योधन की डायरी का यह पेज मिला जिसमें उन्होंने राजमहल में मनाये जानेवाले राखी के त्यौहार के बारे में लिखा है. आज टाइप करके पब्लिश कर रहा हूँ. बांचिये.
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आज राजमहल में राखी का त्यौहार मनाया गया. सावन की पूर्णिमा आने ही वाली है, इस बात की सूचना सबसे पहले राजमहल के सर्वेंट क्वार्टर्स से मिलती है. पिछले हफ्ते से ही सारथियों और चारणों के घरों से टेपरेकॉडर्स पर राखी वाले गाने बजने शुरू हो गए थे. एक से बढ़कर एक गाने जिन्हें सुनकर राजमहल के राजकुमार मन ही मन खुश तो होते हैं लेकिन अपनी ख़ुशी का इजहार सार्वजानिक तौर पर नहीं करते. मुझे वह गाना बहुत पसंद है जिसमें बहन भाई को त्यौहार का भावार्थ समझाते हुए कहती है कि जिसे वह रेशम का तार समझ रहा है असल में वह बहन का प्यार है. यह गाना शायद किसी फ़िल्मी गीतकार ने लिखा है. गाने के बोल हैं; "इसे समझो न रेशम का तार भइया, ये है बहना का प्यार भइया..." या फिर "ये है राखी का प्यार भइया..." ऐसा ही कुछ है.
गाने के बोल मुझे पूरी तरह से याद हैं लेकिन लिख दूंगा तो लोग़ मुझे डाउन मार्केट युवराज समझेंगे और मुझे हे दृष्टि से देखेंगे. राजमहल के अलिखित नियम के अनुसार एक युवराज डाउन मार्केट भले ही हो लेकिन दीखना नहीं चाहिए.
इन फ़िल्मी गानों के अलावा राखी के त्यौहार का पता करीब पंद्रह दिन से बाज़ार में सजी राखी की सीजनल दूकानों से मिलती है. ये दुकानें अपने साज श्रृंगार से हमें सूचना देती हैं कि त्यौहार आनेवाला है. वैसे तो हर वर्ष हस्तिनापुर के सबसे बड़े सभागार को किराए पर लेकर तमाम व्यापारी एक राखी फेयर का आयोजन करते हैं लेकिन फुटकर दुकानों का रहना भी आवश्यक है. ये दुकानें न रहें तो प्रजा कहाँ से राखी खरीदेगी? आखिर राखी फेयर में बिकनेवाली राखियाँ सब खरीद भी तो नहीं सकते.
हर वर्ष दुशाला करीब सवा सौ राखियों का ढेर इसी फेयर से ले आती है. बाज़ार में सजी दुकानें भी देखने में बुरी नहीं लगती. दुकानें चाहे जैसी हों, राखियों की चमक इन दूकानों को चमकाए रखती है. राखी की दुकानें मुझे होली की याद दिलाती हैं. राखी के अलावा होली ही ऐसा त्यौहार है जो सीजनल दुकानें खोलने की सुविधा देता है और रंग और गुलाल के कारण उन दिनों भी चिरकुट से चिरकुट दूकान सुन्दर लगती है.
माताश्री ने मामाश्री को राखी बांधी. ये अच्छा है कि मामाश्री वर्षों से यहीं जमे हुए हैं और माताश्री को हज़ारों मील जाकर उन्हें राखी नहीं बांधनी पड़ती. कई बार यह बात मन में आती है कि मामाश्री का हस्तिनापुर में रहने का केवल यही एक फायदा है बाकी तो सब नुकशान ही नुकशान है. माताश्री द्वारा राखी बाँधने पर मामाश्री जो स्वर्ण मुद्राएं सगुन में देते हैं वह भी इसी राजमहल की होती हैं. जितनी मुद्राएं मामाश्री गंधार से बांधकर माइग्रेशन के समय ले आये थे, वे सारी तो न जानें कितने वर्षों पहले ही ख़तम हो गईं. हाल यह है कि त्योहारों पर वे बलराम हलवाई की दूकान से जो लड्डू मंगवाते है, उसके लिए भी मुद्राएं मुझे ही देनी पड़ती हैं.
कई बार मैंने सलाह दी कि किसी चारण को गांधार भेजकर नानाश्री से स्वर्ण मुद्राएं मंगवा लें तो बहाना बना देते हैं. यह कहते हुए मना कर देते हैं कि हस्तिनापुर से गांधार तक का रास्ता बहुत बड़ा और खतरनाक है. पता चला कि कोई चारण उधर से स्वर्ण मुद्राएं लादकर चला और खाइबर पास तक आते-आते लुटेरों ने मुद्राएं लूट लीं. आगे बोले कि खाइबर पास के आगे तो रास्ता और भी खतरनाक है. स्वात घाटी तो संसार के सबसे भयंकर लुटेरों से भरी पड़ी है. मैंने तो यह भी कहा कि नानाश्री मुद्राओं की रक्षा के लिए पूरी सेना भी तो भेज सकते हैं लेकिन मामाश्री ने एक और तर्क देकर मामले को वही रफा-दफा कर दिया. तर्क या कुतर्क देना तो कोई इनसे सीखे. वैसे भी कोई क्यों सीखेगा? मामाश्री मेरे हैं और मैं उनके साथ रहता हूँ तो मैं सीखूँगा न.
हस्तिनापुर में उनके रहने का कम से कम यह फायदा तो हो कि उनके तमाम तर्क-कुतर्क केवल मैं सीखूँ.
दुशाला ने हम भाइयों को राखी बांधी. पूरे वर्ष में यही एक दिन होता है राखी बंधवाते हुए दुशाला के प्यार को देखकर मन में आता है कि सारे छल-कपट, क्रूरता, लड़ाई, झगड़े, राजपाट, वगैरह छोड़-छाड़ कर हम भाई, माताश्री, पिताश्री शांति से रहें. जीवन में परिवार के साथ शांति से रहने से अच्छा कुछ नहीं है. राखी वाले दिन अपने भाइयों के लिए उसके मन में प्यार को देखकर हम भाइयों के मन से सारे छल-कपट कुछ क्षण के लिए ख़तम हो जाते हैं.
मुझे याद है, एक बार मैंने यह सुझाव मामाश्री को दिया. मैंने कहा कि पांडवों के साथ लड़ाई-झगड़े से अच्छा है कि हमसब शांति से रहें तो वे भड़क गए. बोले एक राजकुमार के ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं. बोले; "एक बात सदैव याद रखना भांजे, अपने उद्देश्य से भटकना मृत होने के समान है." जोश में आ गए और लगभग चिल्लाते हुए कहने लगे; "एक बात कभी मत भूलना भांजे, वर्षों से शेर की सवारी करने वाला युवराज जिस दिन शेर से उतरा, शेर उसे खा जाएगा."
उनके इस सदुपदेश पर कोई भांजा अपने मामाश्री क्या कह सकेगा? मैं चुप हो गया.
दुशाला ने आज राजमहल में राखी बाँधने का बढ़िया उत्सव आयोजित कर रखा था. गाने-बजाने का प्रोग्राम भी था. उसने कल शाम को ही हमें निर्देश दे रखा था कि मैं और बाकी के सारे भाई उसे राजमहल में एक ही जगह इकट्ठे मिलने चाहिए. ऐसा न हो कि कोई कहीं आखेट के लिए जंगलों में चला जाए और कोई बीयरपान करने. उसने तो सारथियों तक को कह रखा था कि अगर कोई भाई बाहर जाने का प्रोग्राम बनाये तो सारथी सबसे पहले उसे सूचित करें. कल शाम को उसने कहा; "भ्राताश्री, आचार्य बिंदु प्रकाश ने आदेश दिया है कि इस वर्ष वृषभ राशि वाले भाइयों को राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त सुबह के दस बजे निकला है. इसलिए मैं चाहती हूँ कि आपसब राजमहल में ही रहें."
अजीब बात है. अब ये ज्योतिषी राशि के हिसाब से भी राखी बाँधने का मुहूर्त बताने लगे हैं. इन ज्योतिषियों के धंधे भी अजीब हैं.
खैर, हमसब ने राखी बंधवाई. राजकवि किसी कवि सम्मलेन में भाग लेने काशी गए हुए थे तो उसने उप-राजकवि से ही राखी गीत लिखवा लिया था. उप-राजकवि को भी क्या कहूँ? उन्होंने राखी-गीत में भी उन्ही शब्दों का प्रयोग किया जिनका प्रयोग वे वीर-रस की कविताओं में करते रहे हैं. मामाश्री की चापलूसी करके ये उप-राजकवि बने हैं लेकिन मैं कहता हूँ कि अयोग्य होने के बावजूद अगर सिफारिश करके एकबार आप कोई पदवी हथिया लेते हैं तो कोशिश करके अपने अंदर थोड़ा तो इम्प्रूवमेंट ले आयें लेकिन इन्हें कहाँ इस बात की समझ है? खैर, दुशाला ने अपनी सहेलियों के साथ उनका लिखा हुआ गीत गाया और उसके बाद राखी बांधी.
बाकी सब तो ठीक था लेकिन हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी उसे वही दिक्कत हुई. हर वर्ष राखी बांधते समय वह आधा लड्डू तो भाइयों को खिलाती है और बाकी का आधा खुद खाती है. आधे के हिसाब से हर वर्ष बेचारी को घंटे दो घंटे के अंदर ही पचास लड्डू खाने पड़ते हैं. देखकर तकलीफ होती है लेकिन कुछ किया भी तो नहीं जा सकता. ऊपर से इसबार बलराम हलवाई ने लड्डू बनाने के लिए जिस घी का इस्तेमाल किया वह मुझे थोड़ा घटिया लगा. एक तरफ तो यह बढ़िया घी का इस्तेमाल नहीं करता दूसरी तरफ हम भाइयों से कहता है कि राखी के दिन लड्डू खाते हुए हम सौ भाई अगर फोटो खिंचवा लें तो वह उन फोटो की होर्डिंग्स बनवाकर अपना विज्ञापन कर लेगा. लो कर लो बात. यह केवल लड्डू खिलाकर हम भाइयों से विज्ञापन करवाना चाहता है. इससे हमें क्या फायदा होगा? सारा फायदा तो इसका होगा. यह हमें बेवकूफ समझता है.
अरे अगर हमें फोटो खिंचवाना ही होगा तो हम प्रजा के बीच जाकर किसी आम आदमी के घर भोजन करते हुए फोटो खिंचवायेंगे और उसकी होर्डिंग लगवाएंगे कि इसके लिए विज्ञापन करेंगे?
खैर, त्यौहार बड़े मजे से मनाया गया. मैंने दुशाला को परफ्यूम भेंट किया. दुशासन ने उसके लिए अवंती से साड़ियाँ मंगवा रखी थीं. उसने उसे उपहार में साड़ियाँ दी. यह अलग बात है कि उसे ज्यादातर साड़ियों का रंग पसंद नहीं आया. दुशासन ने तुरंत अपने गुप्तचरों को आदेश दिया कि अगली बार जब अवंती से साड़ियों का व्यापारी हस्तिनापुर पधारे तो उसको किडनैप करके उसके पास जितनी भी साड़ियाँ हो, उसे दुशाला के सामने लाया जाय. बहन को जो साड़ियाँ पसंद आएँगी, वह उन्हें रख लेगी. आज उपहार के रूप में जो साड़ियाँ उसे पसंद नहीं आयीं, उस बात के लिए अवंती के साड़ी व्यापारी को दण्डित करने का एक ही तरीका है और वह ये है कि उसे साड़ियों की कीमत न दी जाय.
अब सोने जाता हूँ. कल सुबह जल्दी उठना है. मामाश्री ने आदेश दिया है कि कल हमसब को मिलकर लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मार देने के प्रोग्राम को अंतिम रूप देना है.
Wednesday, July 25, 2012
श्री राम और पांडवों का वनवास - दो नव-कथाएँ
भगवान श्री राम का वनवास.
वनवास के दौरान श्री राम अनुज लक्ष्मण और सीता जी के साथ गंगा किनारे खड़े हैं. वे आज ही गंगापार करके आगे बढ़ जाना चाहते हैं. घाट पर केवट जी की नाव पानी में लंगर के सहारे खड़ी हुई है. नाव के मालिक केवट जी भी खड़े हैं. सीता जी के माथे पर चिंता की लकीरें हैं. लक्ष्मण जी कुछ नाराज़ टाइप लग रहे हैं. श्री राम ने समर्पण वाली मुद्रा इख्तियार कर ली है. कुल मिलाकर बड़ी टेंशन वाली स्थिति बन गई है.
हुआ ऐसा कि गंगा पार कर लेने की इच्छा लिए जब श्री राम, श्री लक्ष्मण और सीता जी घाट पर पहुंची तब नाव बंधी थी लेकिन केवट जी वहाँ नहीं थे. घाट तक पहुँचने से पहले तीनों ने मन ही मन कितना कुछ सोच रखा था. तीनों को इस बात का विश्वास था कि वहाँ पहुँचते ही केवट जी न केवल उनका स्वागत करेंगे बल्कि पूरे परिवार के साथ उपस्थित रहेंगे. रास्ते की थकान दूर करने के लिए वे तीनों के पाँव धोयेंगे और घर से आया बढ़िया शरबत पिलायेंगे. परन्तु घाट पर पहुँचने के बाद तीनो को उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब उन्होंने देखा कि नाव अकेली खड़ी है और केवट जी गायब है. पास ही कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे. श्री राम ने उनमें से एक को यह कहकर भेजा कि वह केवट जी को उनके घर से बुला लाये.
केवट जी आये. उन्होंने श्री राम का अभिवादन किया. रामचन्द्र जी ने उन्हें बताया कि वे लक्ष्मण और सीता जी के साथ उसी समय पार जाना चाहते हैं. यह कहकर जैसे ही उन्होंने नाव की तरफ कदम बढ़ाया केवट जी ने उन्हें रोक दिया. भगवान राम को लगा कि शायद केवट जी इस बात से डर गए हैं कि नाव पर पाँव रखते ही नाव कहीं पत्थर की न हो जाए. उन्होंने केवट जी से कहा; "डरो मत भाई. कुछ नहीं होगा. मेरे छूने से यह नाव पत्थर की नहीं होगी. क्या तुम पिछली बात भूल गए जब तुमने हम तीनों को पार उतारा था? क्या पिछली बार तुम्हारी नाव पत्थर की हुई थी?"
यह सुनकर केवट जी बोले; "प्रभु यह तो हमें पता है. पिछली बार हम अवश्य डर गए थे लेकिन इस बार डरने का कोई कारण नहीं है. मेरे पुत्र ने विकिपीडिया पढ़कर हमें बता दिया है कि पिछली बार मेरे अन्दर फालतू का डर समा गया था."
भगवान राम बोले; "फिर तुम मुझे नाव पर पाँव रखने से क्यों रोक रहे हो अनुज?"
उनकी बात सुनकर केवट जी ने सिर लटका कर कहा; "प्रभु, हम आपको पार तो उतार देते लेकिन समस्या यह है कि अब हम नाव खेने का काम नहीं करते. गंगा में खड़ी यह नाव जो आप देख रहे हैं यह तो हमने इसलिए खड़ी कर रखी है ताकि कोई इसे खरीद ले. आपने शायद इसपर लगा फॉर सेल का बोर्ड नहीं देखा."
भगवान राम ने पूछा; "नाव खेने का काम नहीं करते? तो फिर तुम नाविकों की रोजी-रोटी कैसे चलती है?"
केवट जी ने भगवान राम की तरफ देखते हुए कहा; "शायद प्रभु को मनरेगा के बारे में नहीं पता. हे भगवन, जब बिना मेहनत किये हमें मजदूरी मिल जाय तो फिर कोई बेवकूफ ही होगा जो मेहनत करके नाव चलाए और लोगों को पार उतारे."
यह कहकर केवट जी चलते बने. भगवान राम ने लक्ष्मण जी से बात की और तीनों ने तय किया कि वे पैदल चलकर लॉर्ड कर्जन पुल से गंगा पार कर लेंगे ताकि शिवकुटी पहुँचा जा सके.
पांडवों का वनवास
वन में चलते-चलते पांडव थक चुके थे. थकते भी न कैसे? पेड़ों के कट जाने से वन में ऑकसीजन की कमी हो गई थी. इस वन में फैले पल्यूशन को लेकर अदालत की ग्रीनबेंच कई मुक़दमे देख रही थी. सभी भाइयों को प्यास लग चुकी थी. कहीं आस-पास पानी दिखाई नहीं दे रहा था. कारण यह भी था कि मनरेगा से तालाबों का जो ब्यूटिफिकेशन हुआ था उसकी वजह से बरसात का पानी तालाब तक पहुचने से मना कर देता था. इलाके के कुँए भी सूख चुके थे. यह बात और थी कि वन के रास्ते में भी उन्हें जग-प्रसिद्द विदेशी कोला धोखा कोला की कई होर्डिंग्स दिखाई दी थीं. पूरे राष्ट्र का यही हाल था. पीने का स्वच्छ पानी कहीं मिले या न मिले, धोखा कोला हर जगह मिलता था. गाँवों और जंगलों में भी धोखा कोला की दूकाने खुल गईं थीं. देखकर लगता था जैसे लोग़ स्नान वगैरह के लिए भी कोला का ही उपयोग करते थे.
जब उन्हें लगा कि और आगे जाना मुश्किल है, तब सारे भाई एक जगह बैठ गए. प्यास इतनी कि कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे. मन में आया कि किसी दूकान से धोखा कोला खरीद कर ही पी लें लेकिन माताश्री का डर था कि शायद वे नाराज़ न हो जायें. बैठे-बैठे वे कुछ सोच रहे थे तभी नकुल युधिष्ठिर से बोले; "भ्राताश्री, सोचने से तो प्यास और बढ़ती जा रही है. हम जैसे-जैसे सोचते जा रहे हैं, शरीर से पसीना और भी बह रहा है. मैं जाकर किसी तालाब पर अपनी प्यास बुझाता हूँ और आपसब के लिए भी पानी ले आता हूँ."
इतना कहकर नकुल वहाँ से चल दिए. करीब एक किलोमीटर पैदल चलकर वे एक तालाब के किनारे पहुंचे. तालाब देखकर उन्हें बड़ी ख़ुशी हुई. अभी उन्होंने तालाब से पानी लेने के लिए अंजुली आगे की ही थी कि पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर अनाउन्समेंट हुआ; "सावधान नकुल, तुम्हें इस तालाब से पानी पीने का अधिकार नहीं है."
अपने पिछले अनुभव से नकुल को पता था कि तालाब यक्ष का है सो यक्ष प्रश्न करेगा ही. वे पूरी तैयारी के साथ आये थे. यक्ष द्वारा पिछली बार किये गए प्रश्नों का उत्तर तो उन्होंने रट ही लिया था, साथ ही उपकार गाइड पढ़कर और ढेर सारे प्रश्नों का उत्तर रटकर पूरी तैयारी कर ली थी. आवाज़ सुनते ही उनका मन एक साथ सारे प्रश्न और उनके उत्तरों पर कुछ ही क्षणों में घूम-फिर कर वापस आ गया. नकुल जी भी इस बात से अस्योर्ड हुए कि मन सबसे तेज भागता है. इतना तेज कि कुछ ही क्षणों में हजारों प्रश्न और उनके उत्तरों पर घूम-फिर ले.
उन्होंने अपना हाथ तालाब के पानी के पास से खींचते हुए कहा; "प्रणाम यक्ष. मुझे पता था कि तालाब से जल लेने से पहले आप मुझसे प्रश्न करेंगे. पूछिए प्रश्न. मैं इसबार पूरी तैयारी के साथ आया हूँ."
नकुल की बात सुनकर पब्लिक एड्रेस सिस्टम से फिर आवाज़ आई; "हे युधिष्ठिर के अनुज नकुल, शायद आपको पता नहीं कि अब यह तालाब यक्ष का नहीं रहा. हमारी कंपनी धोखा कोला ने अब यह तालाब यक्ष से खरीद लिया है. कहने का तात्पर्य यह है कि अब इस तालाब के पानी का कार्पोरेटाईजेशन हो चुका है. वैसे तो इस तालाब के पानी का उपयोग अब केवल कोला बनाने के लिए होता है लेकिन फिर भी चूंकि आप थके और प्यासे हैं और साथ ही आप धर्मराज युधिष्ठिर के अनुज भी हैं, इसलिए हम आपको इसका पानी दे सकते हैं. शर्त केवल एक ही है कि आपको एक लीटर पानी के लिए पंद्रह स्वर्ण मुद्राएं देनी पड़ेंगी."
नकुल के टेंट में इस समय स्वर्ण मुद्राएं कहाँ से आती? उन्हें लगा कि अगर मुद्रा न रहने के कारण उन्हें पानी न मिला तो वे प्यासे मार जायेंगे. उन्होंने कंपनी के कर्मचारी की बात को अनसुना करके तालाब से पानी लेने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि पीछे से दो सिक्यूरिटी गार्ड्स ने उन्हें पकड़ लिया. दोनों ने मिलकर नकुल जी के हाथ में हथकड़ी पहना दी और उन्हें लेकर वहीँ बने धोखा कोला कंपनी के तालाब रक्षा केंद्र में चले गए.
इधर जब बहुत देर तक नकुल नहीं लौटे तब बारी-बारी से सहदेव, भीम और अर्जुन भी तालाब के किनारे गए और जबरदस्ती पानी लेने के आरोप में अरेस्ट कर लिए गए. सबसे अंत में धर्मराज युधिष्ठिर ने माताश्री को प्रणाम किया और अपने चारों भाइयों की खोज में निकले.
वे जब तालाब के किनारे पहुंचे तो उनके अन्दर उनका कांफिडेंस कुलांचें मार रहा था. आखिर प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए उन्हें तो उपकार गाइड भी रटने की ज़रुरत नहीं थी. अपना कांफिडेंस लिए वे तालाब के किनारे पहुंचे और बोले; "यक्ष जी को पांडु नंदन युधिष्ठिर का प्रणाम पहुंचे. मैं आपके सारे प्रश्नों का उत्तर देने को तैयार हूँ परन्तु मुझे अपने मृत भाई कहीं दिखाई नहीं दे रहे. आप उन्हें हमारे सामने प्रस्तुत करें और अपने प्रश्नों के उत्तर लेकर उन्हें फिर से जीवन देने की फॉरमेलिटी पूरी करें ताकि मैं जल पी सकूँ, उन्हें भी पिला सकूँ और माताश्री के लिए भी ले जा सकूँ."
धर्मराज युधिष्ठिर की बात सुनकर एक सिक्यूरिटी गार्ड ने उन्हें सारी बातें बताई कि कैसे उनके सभी भाई अरेस्ट हो चुके हैं और यह कि बिना मुद्रा दिए उस तालाब से पानी लेना कानूनन जुर्म है. धर्मराज वहाँ से चल दिए. किसी वकील की तलाश में ताकि भाइयों की बेल करवाई जा सके.
Monday, July 23, 2012
तारीफ़ करूं क्या उसकी....
शाम का समय. रतीराम जी की चाय-पान दुकान. पंद्रह मिनटी बरसात ख़त्म हुए आधा घंटा बीत चुके हैं. हवा भी मूड बनाकर बही जा रही है. मूडी हवा के साथ जैसे ही उधर से चाय की महक चली, उससे मिलने के लिए इधर से किमाम की महक लपकी. पता नहीं दोनों कौन से पॉइंट पर मिलीं? यह भी पता नहीं कि मिलने के बाद दोनों ने कौन से दुःख-सुख की बात की? चाय से भरे मिट्टी के मुँहलगे कुल्हड़ भी आस-पास के वातावरण को मिट्टी की खुशबू सप्लाई किये जा रहे हैं. कुछ बिजी और ईजी लोग़ हैं. थोड़े हलकान और ढेर परेशान लोग़ भी.
एक बेंच पर बैठे दो लोग़ पूडल नामक शब्द की व्याख्या कर रहे थे. निंदक जी किसी के साथ अंडरअचीवर नामक शब्द डिस्कश कर रहे हैं. कमलेश 'बैरागी' जी मुझे देखते ही अपना हाथ पाकिट की तरफ ले गए. शायद जेब में पड़े पन्ने पर टीपी नई कविता निकाल रहे थे लेकिन मैं रतीराम जी की तरफ बढ़ा तो उन्होंने ने भी अपना हाथ जेब से खींच लिया. मैंने नमस्ते किया तो दाहिना हाथ उठकर उन्होंने आशीर्वाद टाइप कुछ दिया.
इधर जैसे ही जगत बोस रतीराम जी की दुकान से चले रतीराम जी के होठों पर बुदबुदाहट उभर आई. मैं पास ही खड़ा था तो सुनाई भी दी. रतिराम जी की बुदबुदाहट से जो शब्द फूटा वह था; बकलोल. मुझे हँसी आ गई. मैंने पूछा; "क्या हो गया?"
वे बोले; "अरे पूछिए मत. कुछ लोग़ का पान हमको ही बड़ी मंहगा पड़ता है."
मैंने कहा; "क्या हुआ क्या? क्या दो बार सोपारी मांग लिए क्या जगत दा?"
रतीराम जी पान को कत्था समर्पित करते हुए बोले; "अब का कहें आपसे? केहू-केहू को बुझाता ही नहीं कि कहाँ चुप होना है. ई बस ओही प्रानी हैं."
मैंने कहा; "वैसे हुआ क्या?"
वे बोले; "अब आप से का कहें? जब आये तो हम इनका बेटा का तारीफ कर दिए. बस ओही भूल हो गया हमसे. हम तारीफ का किये, ई शुरू हो गए. पूरा इतिहास बांच दिए हियें. पहिला कच्छा में केतना नंबर मिला था. दूसरा में केतना मिला. कौन-कौन मास्टर कब-क़ब का बोला लड़िका के बारे में. आ शुरू हुए तो शेस होने का नाम ही नहीं. हम कहते हैं की ससुर एगो बात शुरू हुआ त कहीं ख़तम भी होना चाहिए की नहीं? बाकी इनको कहाँ खियाल है ई सब चीज का? आ पूरा आधा घंटा चाट के गए हैं."
मैंने कहा; "होता है ऐसा. लोग़ बेटे से प्यार करते हैं तो उसकी प्रशंसा सुनने पर उपलब्धि गिना ही सकते हैं."
रतीराम जी ने हमको ऐसे देखा जैसे मन ही मन कह रहे हों; आप कौन से कोई जगत बोस से कम हैं? फिर आगे बोले; "देखिये, ई खाली बेटा का उपलब्ध गिनाने का बात नहीं है. ई असल में उस बात से खुद को जोड़ने का बात है जहाँ आदमी का तारीफ़ हो. आ ई केवल जगत बाबू का समस्सा है? सबका एही प्राब्लम है. ऊ आपके हलकान भाई कम हैं का?"
मैंने कहा; "क्या बात कर रहे हैं? हलकान भाई भी आये थे क्या इधर?"
वे बोले; "आये थे? पिछला तीन दिन से सबेरे एहिये अड्डा लगा रहे हैं निंदकवा के साथ. आ काल शाम को निंदकवे बोला हमको, त पता चला. हलकान बाबू पंद्रह दिन से अउरी बात को लेकर दुखी हैं."
मैंने कहा; "उनको किस बात का दुःख है? आजकल ब्लॉग पोस्ट पर कमेन्ट कम मिल रहे हैं क्या?"
रतीराम जी मुस्कुराए. फिर बोले; "हा हा..ऊनको आ कमेन्ट का कमी? उसका कमी त उनको कभियो नहीं होगा. देखे नहीं अभी पिछला कहानी जंगल का रात पर पैसठ कमेन्ट मिला? बाकी उनका प्राब्लम दूसरा है."
इतना कहकर वे निंदक जी को आवाज़ लगाते हुए चिल्लाए; "ऐ निंदक..निंदक."
उनकी आवाज़ शायद निंदक जी को सुनाई नहीं दी या उन्होंने जानबूझकर रिसपोंड नहीं किया. उन्होंने एक बार फिर से आवाज़ लगाई; "ऐ निंदक जी..अरे तनी हेइजे सुनिए भाई."
उधर निंदक जी अपने डिस्कशन में मशगूल. रतीराम जी बोले; "आ ई निंदकवा को देखिये. ई हफ्ता भर से किसी न किसी के साथ में अंडरअचीभर वाला बात का चर्चा किये जा रहा है. मनमोहन सिंह के ओतना धक्का नहीं लगा होगा जेतना इसको लगा है. उप्पर से कहता है कि कौनो इश्पंसर मिल जाता त टाइम पत्रिका के खिलाफ प्रदर्शन कर देता."
इतना कहकर उन्होंने फिर आवाज़ लगाई; " हे निंदक...अरे सुनो भाई. कभी हमरो सुनो तनी.
अब की बार निंदक जी ने उनकी सुन ली. उठकर आये. रतीराम जी से बोले; "काहे ला एतना परशान कर रहे हैं? चेन से बतियाने भी नहीं देते हैं."
रतीराम जी बोले; "का उखाड़ ले रहे हो बतिया के? हफ्ता भर से ओही एगो मुद्दा लेकर सबसे बतियाये जा रहे हो. आ बतियाने का एतना ही है त काहे नहीं धर लेते कौनौ न्यूज चैनल. हम तो कहेंगे कि ऊ अरनब्वा का चैनल पर चल जाओ.बाकी उहाँ, अंग्रेजी में बौकना पड़ेगा सब." इतना कहकर रतीराम ने मुस्कुराते हुए आँख दबा दी.
रतीराम जी की बात को समझते हुए निंदक जी बोले; "माटी से जुड़े मनई हैं महराज. आ ई जनम में तो अंग्रेजी भाषा नहिये बोलेंगे. बाकी अगला जनम का बाद में देखा जाएगा. आ बकैती छोड़िये औ ई बताइए कि बोलाए काहे हमको?"
रतीराम जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा; "हम कहाँ बोलाए? बोलाए हैं आपके बड़के फैन मिसिर बाबा. इनको जरा बताइए कि हलकान भई को कौन बात का दुःख है? ऊ जो कल आप बताये रहे न हमके."
निंदक जी मेरी तरफ देखते हुए रतीराम जी से बोले; "आप भी कौनो बात पचा भी नहीं सकते हैं. मिश्रा जी के भी बता दिए?"
उनकी बात सुनकर रतीराम जी बोले; "अरे त मिसिर बाबा के त ही बताये हैं. कौन सा आपका बताया रहस्स बराक ओबामा के बता आये?"
निंदक जी को लगा कि अब वे बात को टाल नहीं सकते. लिहाजा बोले; "अरे अब क्या कहें मिश्रा जी आपसे? आपके हलकान भाई को इस बात का दुःख है कि पंद्रह दिन से कोई उनका तारीफ़ नहीं किया है."
मैंने कहा; "हलकान भाई को तो तारीफ मिलती ही रहती है. फेसबुक से लेकर ब्लॉग तक हर पोस्ट में इतना कमेन्ट मिलता है."
निंदक जी बोले; "अरे ऊ त भर्चुअल वल्ड का तारीफ है महराज. हम रीयल वल्ड वाला तारीफ़ का बात कर रहे हैं."
मैंने कहा; "रीयल वर्ल्ड में भी तारीफ मिलती ही रहती है उनको."
वे बोले; "एही त प्रॉब्लम है...चलिए अब आपके सामने भेद खोल ही देते हैं. त सुनिए. हलकान भई का माडस अप्रेंडी और तरह का है. ऊ किसी न किसी ब्लॉगर से हर दो तीन दिन पर कहते रहते हैं कि ऊ ब्लॉगर बहुत अच्छा लिखता है. आ ऐसा इस लिए कहते हैं ताकि ऊ पलट कर कह दे कि आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं. बाकी हुआ क्या कि जब से सावन शुरू हुआ है तब से कोई ब्लॉगर इनको मिला ही नहीं जिससे यह कह सके. कारण ये है कि कोई न कोई ब्लॉगर हमेशा भोलेबाबा को जल चढाने जा रहा है. ऊपर से दू दिन पहले झा जी फ़ोन पर मिले तो ई कह दिए कि आप बहुत अच्छा लिखते हैं मगर झमेला ये हुआ कि झा जी उधर से नहीं कहे कि आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं. बस तभी से हलकान भाई दुखी हैं."
मैंने कहा; "अरे तो हमको फ़ोन कर लेते. हम तो उनको वैसे ही बताते रहते हैं कि वे बहुत अच्छा लिखते हैं."
निंदक जी बोले; "अब ई तो नहीं पता कि आपको काहे नहीं फ़ोन किये. बाकी इसीलिए दुखी हैं ऊ."
तबतक रतीराम जी बोले; "देखिये तारीफ सुनना सभी चाहता है लोग़, बाकी ज़बरजस्ती नहीं न कर सकता है. ऊ दत्तो दा भी ओइसे ही हैं. एक दिन मार्निंग वाक में अपना कुत्ता लेकर आये. कुत्ता त का पूरा शेर टाइप लगता है ऊ. आ उसी समय एगो औरी हैं मुखर्जी बाबू, ऊ भी अपना कुत्ता लेकर आ गए. दत्तो बाबू ने मुख़र्जी बाबू का कुत्ता का खूब सराहना किया बाकी मुख़र्जी बाबू ने उनका कुत्ता का तारीफ नहीं किया तो दत्तो बाबू भी नाराज़ हो गए. त कहने का मतलब ई कि पब्लिक सब नाराज़ होकर आजकाल तारीफ लेना चाहता है."
रतीराम जी की बात ख़तम होती उससे पहले ही निंदक जी बोल उठे; "आ खाली दत्तो बाबू ही काहे? भूल गए कविराज का काण्ड?"
रतीराम जी बोले; "भूलेंगे कईसे? उनका त हमेशा से एही हाल है. ऊ आपके फ़ुरसतिया जी की सूक्ति है न कि "कबी का तारीफ कर दो त ऊ फट से दीन हीन हो जाता है", ऊ सूक्ति पूरा फिट बैठता है उनपर. पहिले तो हर नया कविता सुनायेंगे औउर कोई तारीफ नहीं किया त उसका साथ दू दिन बात नहीं करेंगे. बाकी जो तारीफ कर दिया त फट से उसका सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो जायेंगे, ई कहते हुए कि बास आपका कृपा है. देख के लगता है कि जईसे सामने वाला ही इनको कागज़-कालम खरीद के दिया है आ नहीं तो ई कविता नहीं लिख पाते."
निंदक जी बोले; "हा हा हा..सही कह रहे हैं. ऊनका हाल देखकर उस समय एही लगता है."
रतीराम जी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा; "अब ऊ जमाना नहीं रहा कि शम्मी कपूर जैसा हीरो भी शरमीला जी को सुन्दर बताने का बास्ते तारीफ ख़ुदा का करें जो उनको बनाया था.हम कहते हैं तारीफ त अईसे भी होता है बाकी सामने वाला माने तब."
तब तक मेरा पान बन गया था. रतीराम जी हमको देते हुए बोले; "आ लीजिये खाइए. ई तो हरि अनंत हरि कथा अनंता टाइप बात है. पूरा शास्त्र ही लिखा जा सकता है. बस वेद व्यास जईसा कोई चाहिए."
Friday, July 20, 2012
अंडरअचीवर बनने की जंग
इस्लामाबाद १९ जुलाई
इस्लामाबाद से कासिफ अब्बासी
आज अंडरअचीवर वार ने एक नया मोड़ ले लिया. सूत्रों के मुताबिक़ पाकिस्तान के सदर जनाब आसिफ अली ज़रदारी इस बात से नाराज़ हो गए हैं कि दुनियाँ की किसी मैगेजीन ने उन्हें अंडरअचीवर नहीं कहा. आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि पहले अमेरिकी मैगेजीन टाइम ने इंडिया के वजीर-ए-आज़म जनाब मनमोहन सिंह को अंडरअचीवर करार दिया था जिसका जवाब एक इंडियन मैगेजीन आऊटलुक ने अमेरिकी सदर बराक ओबामा को अंडरअचीवर कहकर दिया. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्द ही दुनियाँ के तमाम मुल्क की मैगजीन एक-दूसरे के सदर और वजीर-ए-आज़म को अंडरअचीवर कहकर पूरी दुनियाँ के लीडरान को अंडरअचीवर करार दे देंगी.
दुनियाँ भर के दानिशमंद और तर्जियानिगार ऐसा मानते हैं कि एक बार ऐसा हो जाने से पूरी दुनियाँ एक नई शुरुआत कर सकेगी.
उधर कुछ पाकिस्तानी इदारों और हलकों में यह बात भी की जा रही है कि जब अमेरिका ने नाटो सप्लाई को बहाल करने के लिए पाकिस्तान से कहा तब सदर जरदारी ने अमेरिका के समाने रखी तमाम शर्तों में एक शर्त यह भी रखी थी कि नाटो सप्लाई के एवज में अमेरिका पाकिस्तान को रुपया-पैसा वगैरह देगा ही, साथ ही अमेरिकी मैगेजीन टाइम सदर जरदारी को अपने फ्रंट-कवर पर रखेगी. जब टाइम ने इस बात के लिए यह कहते हुए मना कर दिया कि सदर ज़रदारी को वह फ्रंट-पेज पर नहीं रख सकती क्योंकि वे तमाम मुद्दों पर फेल रहे हैं तब प्रेसिडेंट ओबामा ने टाइम मैगेजीन को यह कहते राजी कर लिया था कि मैगेजीन चाहे तो उन्हें फ्रंट-कवर पर रखने के लिए अंडरअचीवर करार दे सकती है.
दोनों मुल्कों के सदर और मैगेजीन के बीच यह फैसला यह हुआ था कि जुलाई महीने के एक एडिशन में सदर जरदारी को फीचर किया जाएगा लेकिन नाटो सप्लाई खुलने के बाद अमेरिकी मैगेजीन अपने वादे से मुकर गई और इंडिया के वजीर-ए-आजम जनाब मनमोहन सिंह को अंडरअचीवर बताते हुए उन्हें अपने फ्रंट-कवर पर रख दिया. टाइम मैगेजीन के एक तर्जियानिगार ने अपना नाम न लिए जाने की शर्त पर यह खुलासा किया है कि मैगेजीन को हमेशा से यह लगता था कि इंडिया के वजीर-ए-आजम जनाब मनमोहन सिंह का अंडर-अचीवमेंट पाकिस्तानी सदर ज़रदारी से बड़ा है लिहाजा मैगेजीन ने अपने फ्रंट-कवर पर उन्हें मौका दिया.
इधर इस्लामाबाद में ऐसी बातें भी की जा रही हैं कि अब अंडरअचीवर टैग पाने के लिए अब सदर जरदारी ने अफगानिस्तानी सदर जनाब हामिद करजई से अपील की है. सदर ज़रदारी चाहते हैं कि अफगानी सदर जनाब हामिद करजई काबुल से निकलेवाले न्यूजपेपर अनीस डेली से कहकर उन्हें अंडरअचीवर का टैग दिला दें. कुछ दिफाई तर्जियानिगारों का यह भी मानना है कि पाकिस्तानी सदर ने आई एस आई को हिदायत दी है कि वह तालिबानी लीडरान से डायरेक्ट बात करके यह काम करवा दे. पाकिस्तानी सदर यह भी चाहते थे कि अमेरिकी वजीर मोहतरमा हिलेरी क्लिंटन भी इस काम में अपनी टांग अड़ा दें तो काम जल्दी हो जाने की उम्मीद रहेगी. अमेरिका की तरफ से फिलहाल यह आईडिया ड्रॉप कर दिया गया है क्योंकि मोहतरमा हिलेरी क्लिंटन को यह समझ नहीं आ रहा था कि अनीस डेली पर सदर ज़रदारी को फीचर करने के लिए उन्हें गुड तालिबान से बात करने की ज़रुरत है या बैड तालिबान से.
उधर दुनियाँ भर में आइडेंटिटी क्राइसिस के मारे तमाम लीडरान चाहते हैं कि उन्हें किसी न किसी मैगेजीन के कवर-पेज पर अंडरअचीवर करार देते हुए रखा जाय ताकि उन्हें आइडेंटीटी क्राइसिस के इस रोग से निजात मिले. हाल यह है कि चीन में आई हल्की सी इकॉनोमिक क्राइसिस के चलते वहाँ के प्रेसिडेंट हू जिंताओ तक यह चाहते हैं कि मेड इन चायना वाली टाइम पत्रिका अपने एक एडिशन में उन्हें अंडरअचीवर करार दे ताकि चीन की सरकार इकॉनोमी की फील्ड में अपने अचीवमेंट के नए-नए आंकड़ों में हेर-फेर करके पूरी दुनियाँ के सामने रखें और चाइनीज गवर्नमेंट खुद को ग्रेट बता सके. सरकार का ऐसा मानना है कि ऐसा करने से चायना की जनता में एक नया जोश आएगा, वह दिन में बाईस घंटे काम करेगी और और इकॉनोमिक क्राइसिस खत्म हो जायेगी.
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि टाइम पत्रिका की एक डुप्लीकेट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन की एक कंपनी ने शंघाई में खोल रखी है.
उधर ब्रिटेन में रह रहे साबिर पाकिस्तानी सदर और जनरल जनाब परवेज़ मुशर्रफ ने भी अंडरअचीवर बनने की कवायद शुरू कर दी है. पिछले कई सालों से पाकिस्तानी मीडिया में उनको लेकर कोई बात नहीं होती लिहाज़ा मुशर्रफ चाहते हैं कि उनका नाम भी न लेनेवाले अगर उन्हें अंडरअचीवर कह के भी याद कर लें गे तो आनेवाले इलेक्शंस में कुछ लोगों को उनके बारे में पता चल जाएगा और उनकी पार्टी को कुछ वोट मिल जायेंगे.
हमारे इंडियन व्यूरो से यह खबर भी मिली है कि इंडिया के पेज-थ्री इंडसट्रीएलिस्ट और आईपीएल टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के मालिक जनाब विजय माल्या भी चाहते हैं कि उन्हें अंडरअचीवर करार दे दिया जाय ताकि उन्हें इंडिया की गवर्नमेंट से कुछ स्पेशल पॅकेज मिल जाए. वहीँ दूसरी तरफ एक्सपर्ट्स और तर्जियानिगारों का मानना है कि इंडिया की सिविल एवियेशन मिनिस्ट्री के डायरेक्टर जनरल सिविल एवियेशन जनाब भारत भूषण को हटाने में विजय माल्या का हाथ है लिहाजा उन्हें अंडरअचीवर बताना नामुमकिन होगा.
दूसरी तरफ एक्सपर्ट्स का मानना है कि इंडिया और अमेरिका के बीच पोलिटिक्स में शुरू हुई यह अंडरअचीवर जंग को आनेवाले समय में एक नया मोड़ मिल सकता है. ऐसे एक्सपर्ट्स यह मानते हैं कि लन्दन ओलिम्पिक्स में अगर अमेरिका को एथेलेटिक्स इवेंट्स में पचास से कम गोल्ड मेडल्स मिले तो इंडिया की कई मैगेजिंस अमेरिकी एथलीटों को अंडरअचीवर बतायेंगी. दूसरी तरफ अमेरिकी मैगेजिंस और न्यूजपेपर्स की निगाह श्रीलंका में इंडिया की क्रिकेट टीम के ऊपर भी रहेंगी ताकि आनेवाली श्रीलंकाई सीरीज और टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप में अगर इंडिया की टीम अच्छा न कर पाए तो टीम और उसके तमाम खिलाड़ियों को अंडरअचीवर बताया जा सके. पकिस्तान के साबिर कप्तान जनाब आसिफ इकबाल का मानना है कि अमेरिकी मैगेजिंस की निगाहें इंडिया के आलराऊंडर रवींद्र जडेजा और उनके मेंटोर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर होंगी.
आनेवाले समय में हमारी निगाह इस अंडर अचीवर जंग पर रहेगी. जल्द ही इसपर एक और कॉलम लेकर हाज़िर होऊंगा.
नोट: कल रात को उड़ती खबर सुनाई दी है कि फेमस हॉलीवुड डायरेक्टर जनाब जेम्स कैमरोन ने अपनी नई मूवी पर काम शुरू कर दिया है. मूवी का नाम है लीग ऑफ एक्स्ट्राऑर्डिनरी अंडरअचीवर्स.
Wednesday, July 11, 2012
अंडर-अचीवर प्रधानमंत्री और ओवर-अचीवर यन्त्र.
न्यूयार्क से प्रकाशित होनेवाली टाइम पत्रिका ने हमारे प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर करार दे दिया. वैसे अगर शायरों और गीतकारों की मानें तो करार देना कोई बुरी बात नहीं. याद कीजिये पुरानी फिल्मों में जब नायिका तमाम बहाने बनाकर नायक से मिलने आती थी और उसे लता मंगेशकर जी की आवाज़ में बताती कि; "मैं तुमसे मिलने आई मंदिर जाने के बहाने.." तो नायक के दिल को करार मिल जाता था और वह भी फट से रफ़ी साहब या किशोर कुमार जी की आवाज़ में नायिका को बता देता था कि; "तुम मुझसे जो मिलने आई सनम, मेरे दिल को करार आया..."
लगता है विषयांतर हो गया. पोस्ट २०१० के ब्लॉगर की यही त्रासदी है. वह कहीं से भी चलता है, बालीवुड पहुँच जाता है. ठीक वैसे ही जैसे पुरानी फिल्मों में कोई भी भारत के किसी भी कोने से भागता तो मुंबई जाने वाली गाड़ी में ही बैठता था और अगले शॉट में वह वीटी स्टेशन से बाहर निकलते हुए बरामद होता था.
आप इसे बालीवुडिश हैंग-ओवर कह सकते हैं.
खैर, मैं बता रहा था कि टाइम पत्रिका ने हमारे प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर करार दे दिया. लेकिन यह वाला करार शायद वह वाले करार जितना मज़ेदार नहीं था. लिहाजा इसपर तमाम लोग़ बेक़रार हो गए. टीवी न्यूज चैनल समेट पूरे भारतवर्ष को बहस का एक नया मुद्दा मिला. कुछ विद्वानों ने याद दिलाया कि हम अभी भी विदेशी मानसिकता के शिकार हैं और जब कोई विदेशी कुछ कहता है तभी उसे सच मानते हैं. इन विद्वानों ने यह भी बताया कि; "टाइम पत्रिका ने तो प्रधानमंत्री को आज अंडर-अचीवर बताया है, हम तो उन्हें पहले ही अंडर-अचीवर करार दे चुके हैं."
काफी टीवी पैनल डिस्कशन हो चुके हैं. कुछ पाइप-लाइन में भी होंगे. तमाम विद्वान इस मुद्दे पर टीवी स्टूडियो में बोलने के लिए नई टाई खरीद रहे होंगे. कुछ अपनी विट को धो-मांज रहे होंगे. तैयारी जोरों पर होगी. सरकार के कुछ योद्धा यह भी देख रहे होंगे कि टाइम पत्रिका का भारत में क्या-क्या है और उसे कौन-कौन से डिपार्टमेंट से नोटिस भेजी जा सकती है? कुछ अति उत्साही योद्धा यह भी सोच सोच सकते हैं - क्या पत्रिका का पिछले ५-६ साल का इनकमटैक्स असेसमेंट री-ओपन किया जा सकता है? मनीष तिवारी जी जैसे प्रवक्ता सरकार और प्रधानमंत्री के बचाव के लिए पुरानी टाइम पत्रिका की कॉपी खोज रहे होंगे जिसमें पत्रिका ने अटल बिहारी बाजपेयी या अडवाणी की बुराई की होगी.
ऐसे में यह जानने के लिए कि और तमाम विद्वानों का इस मुद्दे पर क्या मत है, चंदू चौरसिया ने दिल्ली और कई शहरों में जाकर लोगों की राय इकठ्ठा की. पेश है उनमें से कुछ वक्तव्य;
लालू प्रसाद जी; "इसमें का राय जानना चाहता है तुम? ...आ सुनो पहिले.. बीच में मत बोलो. आ ई जो प्रधानमंत्री को ई लोग़ बताया है...का बताया है? अंडर? का? टेकर? अंडरटेकर?..अंडरअचीभर? अच्छा...अरे वोही अंडरअचीभर. देखो ई कुछ खराब नहीं है. एकदम्मे कुछ नहीं अचीभ करने से बढ़िया है अंडरअचीभ करना. आ देखो सरकार चलाने का मतलब ई नहीं होता कि कुछ अचीभ करना ही है. देखो प्रधानमंत्री हैं बिदबान... बूझो की डिग्री है उनके पास, उनका ईज़त पूरा दुनियाँ में है...सो जब जो चाहेंगे ऊ अचीभ कर लेंगे..जल्दी कौन बात का है? ... आ सबसे बड़ा बात है कि सेकुलर हैं..प्रधानमंत्री जे हैं से सेकुलर आदमी हैं. आ देश को सेकुलर आदमी का ज़रुरत पहिले है अचीभर का बाद में. सेकुलर लोग़ सत्ता में नहीं रहेगा तो फ्रिकाप्रस्त लोग़ राज करने लगेगा... आ फिर सोनिया जी भी हैं साथ में... जो चीज परधानमंत्री नहीं अचीभ कर पाए ऊ सोनिया जी अचीभ कर लेंगी... बैलेंस हो जाएगा न. केतना टाइम लगता है कुछ अचीभ करने में? आ हामी को देखो, रेलमंत्री थे तब केतना कुछ अचीभ कर लिए थे.. त हमारा कहना एही है ई पत्रिका फत्रिका का कहता है उसपर मत जाओ...ई सब सच नहीं बोलता...देखो न, हम रेलमंत्री होकर एतना कुछ अचीभ किये, हमरा लिए त नहीं लिखा कि हम ओभर-अचीभर हैं. ज़रूरी बात है कि सेकुलर हाथ में देश का बागडोर है."
मनीष तिवारी; "मेरा यह कहना है कि विदेशी पत्रिकाओं की बात को हमें तभी सच मानना चाहिए जब वे हमारी सरकार की प्रशंसा करें. हमारा यह मानना है कि जब ये पत्रिकाएँ आलोचना करती हैं तब ये झूठ बोल रही होती हैं. यह हमारी पार्टी का ऑफीशियल स्टैंड है जिसे भारत के हर नागरिक का समर्थन है. हमारी पार्टी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी जी के नेतृत्व में सरकार ने बहुत कुछ अचीव किया है जिसे टाइम पत्रिका ने तवज्जो ही नहीं दी. उन्ही के नेतृत्व में ही मनरेगा जैसा प्लान चलाकर सरकार ने कितना अचीव किया है सबके सामने है. एक प्लान चलाकर हमने देश को गड्ढों से भर दिया, वह तो टाइम को दिखाई नहीं देता. और फिर अंडर-अचीवर की बात पर मैं टाइम के एडिटर से पूछता हूँ कि रिचर्ड बाबुराव स्टेंजेल, तुम्हें क्या हक है कि तुम दूसरों को अंडर-अचीवर कहो? तुम खुद सर से पाँव तक अंडर-अचीवमेंट में डूबे हुए हो. मैं केवल इतना जानना चाहता हूँ कि भारत जैसे बड़े देश में टाइम की कितनी कॉपी बेंचते हो तुम? टाइम को कितने भारतीय जानते हैं? ऐसे में अंडर-अचीवर कौन हुआ, तुम कि डॉक्टर मनमोहन सिंह?...क्या कहा? एडिटर के नाम में बाबुराव नहीं है? अच्छा मैं गूगल करके पता करता हूँ कि एडिटर के फादर का क्या नाम है?"
प्रधानमंत्री; "मैं ग़ालिब को कोट करना चाहूँगा और टाइम मैगेजीन से यही कहूँगा कि; माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हैं हम, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतज़ार तो देख."
अन्ना जी; "देखो लोकशाही है..लोकशाही में कोई किसी को कुछ भी कह सकता है. पंथ-प्रधान को भी कुछ भी कह सकता है. आज अगर सरकार जनलोकपाल बिल पारित कर देती तो जनलोकपाल इस मामले की जांच कर के बता सकता था कि पंथ-प्रधान अंडर-अचीवर है या नहीं? और एक बार ये बात गलत साबित हो जाती तो फिर हम टाइम पत्रिका की आफिस के सामने अनशन कर देते. पत्रिका से पूछते कि उसने हमारे पंथ-प्रधान को ऐसा कैसे कहा?"
हिंदी रक्षक प्रोफ़ेसर मनराज किशोर; "पहले तो मुझे इस बात का जवाब चाहिए कि टाइम नामक पत्रिका का कोई हिंदी संस्करण भी है क्या? अगर नहीं है तो क्या अधिकार है इस पत्रिका को उस देश के प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर बताये जिसमें अस्सी करोड़ से ज्यादा लोग़ हिंदी बोलते हैं? क्या टाइम के सम्पादक यह बता सकते हैं कि अंडर-अचीवर शब्द के लिए हिंदी का कौन सा शब्द है? क्या उन्हें पता है? अगर नहीं तो उन्हें यह अधिकार नहीं है कि वे ऐसा कहें. जो पत्रिका का हिंदी संस्करण तक नहीं निकलता उस पत्रिका ने क्या कहा यह बात हमारे लिए जरा भी महत्वपूर्ण नहीं है."
दिग्विजय सिंह जी; "अभी मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा. फिलहाल मैं यह पता करने की कोशिश कर रहा हूँ कि टाइम मैगेजीन और आर एस एस के बीच क्या सम्बन्ध हैं? कल मुझे अजीज बरनी ने बताया है कि प्रधानमंत्री को अंडर-अचीवर बताने में आर एस एस का हाथ है. एकबार मैं यह कन्फर्म कर लूँ फिर मैंने प्रेस कान्फरेन्स करके बताऊंगा कि असल मामला क्या है?"
अरनब गोस्वामी; "वेट फॉर अ डे ऐज आई ऍम ट्राइंग तो गेट लीजा कर्टिस अलांग विद कुमार केतकर, विनोद शर्मा, लॉर्ड मेघनाद देसाई एंड सुहेल सेट ऑन न्यूज-आवर. ओनली दे विल बी एबुल टू टेल हाउ करेक्ट इज टाइम्स असेसमेंट ऑफ आर प्राइममिनिस्टर. आई अस्योर यू एंड आल आर व्यूवर्स दैट आई विल पुट सम डायरेक्ट एंड टफ क्वेश्चंस टू दिस वेरी एमिनेंट पैनल."
येदुरप्पा जी; "आई डिक्लाइन टू कमेन्ट ऐज माई एस्ट्रोलॉजर हैज एडवाइज्ड मी टू नॉट स्पीक ऑन द इश्यू टिल ट्वेल्व थर्टी पीएम ऑफ फोरटेंथ जुलाई."
प्रनब मुख़र्जी जी; "ओलदो, आई हैभ स्टाप कोमेंटिंग ऑन पोलिटिकल मैटार्स बाट सीन्स इयु आर सेयिंग दैट ईट इज ए मैटोर रिलेटेड टू ओभरआल आचीभमेंट ईंक्लुडिंग इकोनोमी, आल आई हैभ टू से ईज, इभेन ऐन अचीभमेंट आफ एट पारसेंट आफ दा टोटल मैटोर ईज नाट बैड. सो, उइ शूड नाट फारगेट दैट दीस सो कोल्ड अंडरअचीभमेंट ईज ओल्सो ड्यू टू दा फैल्योर आफ दा यूरोपीयन इकोनोमी ओल्सो."
श्री कपिल सिबल; "ये तो देखिये इस पर एक बैलेंस व्यू लेने की ज़रुरत है. एक सरकार का लीडर क्या अचीव करता है उसको उसके बाकी मंत्रियों के अचीवमेंट के साथ देखना होगा. अगर आप यह कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी अंडरअचीवर हैं तो वहीँ पर मेरे जैसे मंत्री भी हैं जो ओवर-अचीवर हैं. ऐसे में टाइम मैगेजीन को यह भी देखने की ज़रुरत है कि कुल मिलाकर मामला बैलेंस हो जाता है. और फिर टाइम के इस कमेन्ट को सीरियसली लेने की ज़रुरत नहीं है. जब हमारे पास अचीवमेंट और ओवर-अचीवमेंट हैं, तो फिर हम अंडर-अचीवमेंट की बात क्यों करें? वैसे भी टाइम के इस असेसमेंट का इम्पैक्ट इलेक्शंस में जीरो रहने वाला है और जिस बात का इम्पैक्ट इलेक्शन में जीरो है उसको सीरियसली वैसे भी नहीं लेना चाहिए."
श्री चन्दन सिंह हाटी, मैनेजर हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान; "क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से परेशान रहते हैं? क्या आप अंडर-अचीवर कहे जाने से दुखी रहते हैं? क्या आप ओवर-अचीव करते हैं और फिर भी लोग़ आपको अंडर-अचीवर कहते हैं? क्या इसकी वजह से आपका दिन का चैन और रात की नींद गायब हो जाती है? तो फिर खुश हो जाइए क्योंकि हिमालय रुद्राक्ष प्रतिष्ठान पहली बार लेकर आया है ओवर-अचीवर यन्त्र. जी हाँ, यह ओवर-अचीवर यन्त्र वैदिक मन्त्रों के जाप और उनकी शक्ति से परिपूर्ण है. आपको ओवर-अचीवर कहलाने के लिए अब मेहनत करने की जरूरत नहीं है. आपको बस यह यन्त्र हमारे द्वारा बताये गए विधि के अनुसार अपने कार्यालय में पूजा के बाद लगा लेना है. फिर देखिएगा कि दुनियाँ कैसे आपको न सिर्फ ओवर-अचीवर मानने लगेगी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाएँ आपकी तस्वीर कवर-पेज पर छापकर नीचे बड़े-बड़े अक्षरों में लिखकर आपको ओवर-अचीवर बतायेंगी. जी हाँ, भारतवर्ष में पहली बार....."
अभी तो इतने ही महान लोगों के वक्तव्य से काम चलिए. पब्लिक डिमांड पर और लोगों के वकतव्य छाप दिए जायेंगे:-)
Wednesday, June 20, 2012
राष्ट्रपति चुनाव बमचक - एक ट्विटर टाइम-लाइन.
शायद कुछ ऐसी: