Show me an example

Wednesday, May 7, 2014

लंका-दहन के बाद


@mishrashiv I'm reading: लंका-दहन के बाद Tweet this (ट्वीट करें)!

हनुमान जी लंका को राख में कन्वर्ट कर आये. इधर उन्हें देखकर सब बहुत खुश हुए तो उधर रावण जी चिंतित थे. उन्होंने अपने मंत्रियों, महामंत्रियों, राज्य-मंत्रियों, सलाहकारों, उप-सलाहकारों, मीडिया मैनेजर, स्पिन डॉक्टर्स, डर्टी-ट्रिक इंजीनियर्स, कंसल्टेंट्स वगैरह की एक मीटिंग बुलाई. वे जानना चाहते थे कि ऐसा कैसे हुआ कि एक वानर लंका को राख में कन्वर्ट कर वहाँ से निकल लिया? कि लंकेश की बेइज्जती खराब हो गई? कि वीरों से भरी लंका में वीरता का बैलेंस निल निकला? कि जिस लंकेश के घर कुबेर पानी भरते थे वह लंकेश लाचार दिक्खे?

जिन्हें-जिन्हें सर्कुलर गया वे मंत्री, सलाहकार, कंसल्टेंट्स, दरबारी वगैरह आये. जिन्हें डर था कि मीटिंग के बाद लंकेश उन्हें धुनक सकते थे, उन्होंने १०८ डिग्री बुखार का बहाना बना लिया. जो बहाना बनाने लायक नहीं थे उन्हें मन मारकर उपस्थित होना पड़ा. किसी के हाथ में फाइल तो किसी के हाथ में ब्रीफकेस. स्मार्ट सलाहकार एक्सेल शीट्स, ऑडिट रिपोर्ट, वर्किंग पेपर्स और पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन वगैरह से लैस होकर आये. एक कॉपीबुक सलाहकार इसी तरह की पुरानी घटनाओं को गूगल करने लगा. उनकी इस गूगलाहट के पीछे यह सोच थी कि अगर पहले भी किसी ने लंका को राख किया होगा तो उसके बाद जो मीटिंग हुई, उसमें जो कुछ हुआ था, अगर उसका पता चल जाये तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आज क्या हो सकता है.

ये कॉपीबुक सलाहकार जब गूगल सर्च कर रहा था, उसके असिस्टेंट ने, जो इनसे स्मार्ट था, इन्हें स्पेसिफिक सर्च की सलाह दे डाली. उसकी इस सलाह का जन्म उसी की इस सोच से हुआ था कि हो सकता है लंका को किसी ने पहले राख किया हो लेकिन हमें यहाँ यह जानने की जरूरत है कि; लंका को पहले किसी वानर ने राख किया था या नहीं?

दोनों अभागे यह जानकर दुखी हो गए कि लंका इससे पहले कभी नहीं जली. कि ऐसा पहली बार हुआ था.

कुछ अति स्मार्ट सलाहकारों ने लंकेश की चिंता का अनुमान लगा चिंतित होने की ऐक्टिंग शुरू कर दी. उनका अनुमान था कि चिंतित दिखेंगे तो रावण जी यह सोचते हुए खुश होंगे कि इन सलाहकारों ने बड़ी मेहनत की है. कि चिंता की इस घड़ी में वे रावण जी के साथ है. कुछ दरबारियों का ध्यान दूसरी तरफ भी था. ये दरबारी आते-जाते चारणों को देख अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि मीटिंग के लिए नाश्ते का मेन्यू क्या था? कुछ लोभी सलाहकार तो अपना लोभ संभाल नहीं पा रहे थे. उनके मन में बार-बार आ रहा था कि इन चारणों को पकड़कर उनसे डिटेल्ड मेन्यू पूछ ही लें लेकिन फिर यह सोचकर रुक जाते कि कहीं लंकेश ने अचानक एंट्री मारी और उन्हें ऐसा करते देख लिया तो बड़ी दुर्गति करेंगे.

कुछ अपनी वोकैब्युलरी मांज रहे थे. यह सोचते हुए कि मीटिंग में ज्यादा से ज्यादा मीठे और प्यारे शब्दों का प्रयोग किया जाय ताकि लंका दहन से दुखी लंकेश के कलेजे को ठंडक पहुंचे. जिन सलाहकारों को विश्वास था कि उन्हें मात्र कोरम पूरा करने के लिए ऐसी मीटिंग्स में बुलाया जाता था, और असल में मीटिंग में उनका कोई योगदान नहीं रहता था, उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी. उन्हें पता था कि लंकेश न तो उनसे कोई प्रश्न पूछेंगे और न ही उन्हें बोलने का मौका मिलेगा. कुल मिलाकर ऐसे दरबारियों की उपस्थिति इसलिए जरूरी रहती थी ताकि रावण जी का प्रेस मैनेजर मीडिया को छापने के लिए जब विज्ञप्ति दे तो उसमें लिखा जा सके कि; "लंकेश्वर ने मंत्रियों, दरबारियों, और सलाहकारों के साथ समग्र चिंतन किया"

कुछ ढंग के सलाहकारों के मन में यह जरूर आया कि लंकेश को अपने अनुज विभीषण को भी इनवाइट करना चाहिए लेकिन वे यह सोचकर रुक गए कि विभीषण आएंगे तो सच ही बोलेंगे, सच के सिवा कुछ नहीं बोलेंगे. ऐसे में मैनेजमेंट सिद्धांत के अनुसार विभीषण को ऐसी मीटिंग में बुलाना तर्कसंगत नहीं था. सच बोलने वाला व्यक्ति हर लंका का शत्रु होता है. कुछ मानते थे कि कुंभकरण के आने से घटना पर पूरा प्रकाश पड़ता लेकिन वे यह सोचकर चुप रहे कि कुंभकरण जी को नींद से उठाने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती। वैसे भी जिन दरबारियों के लिए मेहनत का सबसे बड़ा काम लंकेश की जय-जयकार करना था, उनके लिए कुंभकरण जी को नींद से जगाना बहुत मेहनत का काम था.

इधर ये लोग मीटिंग के लिए तैयार थे तो उधर लंका की री-कंस्ट्रक्शन टीम और उसके कैप्टेन मय दानव एक जगह बैठकर कयास लगाए जा रहे थे कि पता नहीं मीटिंग में क्या फैसला हो? कहीं ऐसा न हो कि लंकेश रिजोल्यूशन पास करवा दें कि आज रात से ही लंका का री-कंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया जाय. आज रात से ही शुरू करेंगे तो फिर पता नहीं घर जाने का समय कब मिले.

कुछ इंतज़ार के बाद पास ही खड़ा चारण जोर से चिल्लाया; "सावधान! राजाओं के राजा, पुष्पक विमान के मालिक, तीनो लोकों को जीतने वाले, शिव-भक्त, कुबेरजीत, वेदों के ज्ञाता, इंद्र-विजयी, राक्षसों के सिरमौर, इंद्रजीत के पिता, दशासन लंकेश पधार रहे हैं"

वे पधारे.

दरबारी खड़े हो गए. एक सीनियर कंसल्टेंट का जूनियर असिस्टेंट, जो दो महीने पहले ही मैनेजमेंट कॉलेज से निकला था, कैंडी-क्रश खेलने में बिजी था. चारण की आवाज़ सुनते ही यह सीनियर कंसल्टेंट झट से खड़ा हो गया तब उसे महसूस हुआ कि उसका जूनियर अभी तक बैठा कैंडी-क्रश खेले जा रहा है. इस कंसल्टेंट को अपना कॉन्ट्रैक्ट जाता हुआ दिखाई दिया. उसने अपने जूनियर असिस्टेंट को उठाने के लिए इतनी जोर से कुहनी मारी कि अगर किसी क्रिकेट खिलाड़ी को उतनी चोट लगती तो वह रिटायर्ड-हर्ट होकर अगले विदेशी दौरे से बाहर हो जाता. असिस्टेंट बेचारा सी-सी करते हुए हड़बड़ा के खड़ा हो गया.

लंकेश बैठे. दरबारी खड़े रहे. उन्होंने दरबारियों को बैठने का इशारा किया। दरबारी बैठ गए. मीटिंग शुरू हुई.

रावण जी; "तुम सबको तो पता होगा ही कि मैंने तुमलोगों को यहाँ क्यों बुलाया है?"

सारे एक स्वर में चिल्लाये; "यस लंकेश"

वे आगे बोले; "लंकेश की साथ ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई बाहर से आकर उसकी लंका जला गया. और वह भी एक वानर. कोई मुझे बतायेगा कि ऐसा क्यों हुआ? क्या हम अब पहले जैसे शक्तिशाली नहीं रहे?"

एक मंत्री बोला; "हे लंकेश, एक वानर आपका क्या मुकाबला करेगा? आपसे शक्तिशाली तीनो लोकों में कोई है क्या ? यह तो अकस्मात हो गया नहीं तो .......

लंकेश ने इस मंत्री को घूरकर देखा। झल्लाते हुए बोले; "तुम! तुम तो बात ही मत करो. जब मैंने तुमसे कहा कि उस वानर को अशोक वाटिका में घुसने मत देना तो तुमने ही कहा था न कि वानर ही तो है, चार फल खायेगा और चला जाएगा. कहा था कि नहीं?"

मंत्री ने चुप रहना ही उचित समझा. मुंह लटकाकर खड़ा रहा.

महामंत्री को लगा कि स्थिति को सम्भालना चाहिए. उन्होंने बोलना शुरू किया; "हे लंकेश, वानर ही तो था. मैं एक्सेप्ट करता हूँ कि हमसे कुछ भूल अवश्य हुई लेकिन सोने की लंका जलकर ख़ाक हो गई, इसका मतलब यह कदापि नहीं कि एक वानर लंकेश को टक्कर दे सके."

रावण जी ने महामंत्री को देखते हुए गुस्से से कहा; "और आप कौन से कम हैं? मैंने कहा था न कि इस वानर की हत्या कर देनी चाहिए तो आपने कहा एक दूत की हत्या उचित नहीं। यह धर्मानुसार गलत होगा. क्या गलत होता? अरे मैं इतना बड़ा पंडित, विद्वान, वेदों का जानकार … अगर अधर्म करके धर्मानुसार न बच सकूँगा तो फिर मेरे धर्म-ज्ञान का क्या महत्व? और अगर पाप चढ़ भी जाता तो दो-ढाई साल तपस्या करके भगवान शिव से किलो भर क्षमा ले लेता"

महामंत्री बोले; "हे लंकेश, जो हो गया सो हो गया. इसबार हमलोग तैयार नहीं थे नहीं तो उस वानर की मजाल कि वह ऐसा कर पाता? आपने इंद्र को जीता है. आपने कुबेर को बंदी बनाया है. आपसे तीनों लोकों के प्राणी डरते हैं. याद कीजिये कि आपने किस तरह.... और फिर हे लंकेश, सोने की लंका ही तो राख हुई है. अरे जिसके पास मय दानव हों उन्हें सोने की लंका के राख होने का दुःख नहीं होना चाहिए. एक आर्डर देंगे और सोने की लंका की जगह हीरे की लंका खड़ी हो जायेगी. मैं तो कहता हूँ कि लंका ठीक उसी तरह और मजबूत होकर उभरेगी जैसे राजनीतिक दल के प्रवक्ता के अनुसार चुनावों में बुरी तरह हार जानेवाली पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरती है. आप निश्चिन्त रहे. आपका मुकाबला कोई नहीं कर सकता. आप खुद ही सोचिये न कि आपसे जो लड़ना चाहते हैं उन्हें वानरों के सहारे की जरूरत है. वे क्या लड़ेंगे आपसे?"

महामंत्री की बात रावण जी ने ध्यान से सुनी. फिर बातों में थोड़ी शंका की मिलावट करते हुए बोले; "कहीं हम कोई भूल तो नहीं कर रहे महामंत्री? पहले यह वानर लंका में घुसा तो हमने सोचा वानर ही तो है, चला जाएगा. फिर अशोक वाटिका में घुसा तो हमने कहा फल खाकर चला जाएगा. फिर उसने अक्षयकुमार का वध किया तो हमने सोचा कि इससे ज्यादा क्या करेगा? फिर उसने लंका को आग लगा दी तो.... गुप्तचरों ने बताया कि वह सीता से कहकर गया है कि उसकी सेना में उससे भी बड़े-बड़े योद्धा हैं. उससे से भी बड़े वानर हैं."

एक मंत्री बोला; "आप क्यों टेंशन ले रहे हैं महाराज? वह तो सीता को ढाढ़स बंधाने के लिए ऐसा कहा उसने. तीनों लोकों में जितने भी वीर हैं, सब आप ही के पास हैं. आने दीजिये उसे और उसकी वानर सेना को, देख लेंगे. कुछ नहीं कर पायेगा वह."

एक-एक करके सारे मंत्रियों और सलाहकारों ने लंकेश को यही बताया कि राम और उनकी वानर सेना उसका मुकाबला सपने में भी नहीं कर सकती. सबने रावण जी को भूतकाल में किये गए उनके पराक्रमों की याद दिलाई और उन्हें निश्चिन्त कर दिया. नाश्ता वगैरह के बाद मीटिंग ख़त्म हो गई और सब चले गए.

विभीषण के एक गुप्तचर ने जब इस मीटिंग की पूरी जानकारी उन्हें दी तो वे मन ही मन बुदबुदाये; "मीटिंग का मुद्दा होना चाहिए था सीता-हरण और बनाया गया लंका-दहन. लंकेश अंधे हो गए हैं."

9 comments:

  1. http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_7.html

    ReplyDelete
  2. पौराणिक आवरण में समसामयिक और बहुत ही सटीक लेख। समस्याओं को गहराई में न देख सुपरफिशयलिटी और लीपा पोती हमारी वर्क कल्चर की आम समस्या है। 'सच बोलने वाला व्यक्ति हर लंका का शत्रु होता है' और मीटिंग का मुद्दा होना चाहिए था सीता-हरण और बनाया गया लंका-दहन. हर लंकेश अँधा ही होता है."-बहुत सही है। पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  3. वाह! बहुत बढ़िया..

    ReplyDelete
  4. शिवकुमार जी आज अपने सबसे बढ़िया अवतार मे लिख रहे थे। हर बात ताना बाना इस तरह बुना गय कि उसके वर्तमान महत्व्वो को नाकारा नहीं ज सकता है। आशा करता हो की रावण के दरबारी उसे पढ़ेंगे और रावण को सच्चई बयां करेंगे।

    ReplyDelete
  5. बात तो सही है, वानर को कमजोर न समझा जाय.

    ReplyDelete
  6. गहरा व्यंग

    ReplyDelete
  7. गूगलाहट

    Ha ha ha ha ha ha ha ha ha ...Bhai kamaal kar diye hain aap...lajawab bemisaal likh diye hain...aanand ka sunaami laa diye hain prabhu...dhany hain aap.

    ReplyDelete
  8. लंकेश के मीडिया मैनेजर आपको खोज रहे होंगे। कहीं आपको वे लोग दीदी के हवाले न कर दें. कुलमिलाकर यह आलेख सम सामायिक है. बधाई!

    ReplyDelete
  9. कलम सिद्ध हो तुम्हारी।
    अद्वितीय लिखा है ……………

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय