रिकार्ड्स बहुत लुभाते हैं. और अगर बात गिनीज बुक के रिकार्ड्स की हो तो फिर क्या कहना. गिनीज बुक में नाम दर्ज करवाने के लिए न जाने क्या-क्या चिरकुटई चलती रहती है. कोई नाखून बढ़ा लेता है तो मूंछ. अभी हाल में सुना कि एक एक्टर अपना नाम गिनीज बुक में डलवाना चाहते थे. गिनीज बुक वालों ने मना कर दिया.
अब कल खबर आई कि मदुराई में डॉक्टर साहब लोग सबसे कम समय में सबसे ज्यादा ऑपरेशन करने का रिकार्ड बनाने पर तुल गए. पता नहीं नाम गिनीज बुक में गया या नहीं लेकिन उनके इस कर्म से बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया. अब बताईये, तीन घंटे में चौदह ऑपरेशन? वो भी कैंसर का. क्या बात है? वाह! रोगी रहे या चल बसे, हॉस्पिटल को अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करवाने से मतलब है.
इतना भी क्या है? और फिर गिनीज बुक में नाम दर्ज ही करवाना चाहते हैं तो और भी तो रस्ते हैं. मैं कहता हूँ कि गिनीज बुक वालों से लड़ जाओ. सीधा-सीधा बोल दो कि; "मेरे हॉस्पिटल का नाम गिनीज बुक में दर्ज करवाइए."
अगर वे लोग पूछे किस कैटेगरी में तो बोल डालो कि; "हमारा हॉस्पिटल विश्व का सबसे गन्दा हॉस्पिटल है. आपको इस कैटेगरी में हमारे हॉस्पिटल का नाम डालना ही पड़ेगा."
अपने देश में सरकारी हॉस्पिटल या प्राइवेट हॉस्पिटल में क्या केवल ऑपरेशन ही होता है? और भी तो कर्म होते हैं. सरकार से मिली दवाइयाँ ब्लैक में बिक जाती हैं. उसी कैटेगरी में अपना नाम गिनीज बुक में डलवा लो. अस्पतालों में देख-भाल के अभाव में मरीज लोग धरती छोड़कर निकल लेते हैं. उस कैटेगरी में नाम डलवा लो. यह कहते हुए कि; "पिछले एक साल में हमारे हॉस्पिटल में कुल तीन हज़ार रोगी मर गए. हमने पता लगाया है. यह अभी तक का विश्व रिकार्ड है.आपको हमारी इस उपलब्धि के लिए हमारे हॉस्पिटल का नाम गिनीज बुक में डालना ही पड़ेगा."
भ्रष्टाचार के मुद्दे को पकड़ कर गिनीज वालों से भिड जाओ. कह दो कि; "हमारा हॉस्पिटल विश्व का सबसे भ्रष्ट हॉस्पिटल है. हमारे हॉस्पिटल का नाम गिनीज बुक में डालना ही पड़ेगा."
क्या-क्या रस्ते नहीं हैं. इसी बात पर गिनीज बुक से लड़ जाओ कि; "हमारे हॉस्पिटल में केवल चार सौ बेड हैं लेकिन हम हमेशा कम से कम सोलह सौ मरीज भर्ती कर के रखते हैं. आप इस कैटेगरी में हमारे हॉस्पिटल का नाम गिनीज बुक में डालिए."
गिनीज बुक वाले अगर नहीं सुनें तो उनके ऊपर मुकदमा कर डालो. मुकदमा अपने भारतीय कोर्ट में दायर करो. कोर्ट वाले भी गिनीज बुक के नाम से प्रभावित होंगे तो हो सकता है वे भी खड़े हो जाएँ. गिनीज बुक वालों से कहें कि; "जानते हैं, हमारे कोर्ट में एक मुकदमा एक सौ सत्रह सालों से चल रहा है. आपको इसके लिए हमारे कोर्ट का नाम गिनीज बुक में डालना ही पड़ेगा."
कभी सुना था कि नेता जी लोगों का नाम भी गिनीज बुक में दर्ज हो जाता है. सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीतने के लिए. क्या पता वही नेता अगली बार अपना रिकार्ड तोड़ सके या नहीं. लेकिन गिनीज बुक में नाम रखना है तो और कटेगरी में अप्लाई कर सकता है. कह सकता है; "मेरे ऊपर भ्रष्टाचार के कुल चार सौ तेरह मुकदमें चल रहे हैं. आप मेरा नाम गिनीज बुक में डालिए. मैं केवल यह चाहता हूँ कि मेरा नाम गिनीज बुक में रहे. अब जीवन का केवल एक ही लक्ष्य है कि मैं अपने नाम से गिनीज बुक को सुशोभित करूं.
वैसे ढेर सारे और लोग हैं जो ट्राई कर सकते हैं. कल को कोई कवि गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवा सकता है. यह कहते हुए कि; "मैंने आज कुल तीन सौ सात कवितायें लिखी हैं. मेरा नाम भी गिनीज बुक में आना चाहिए."
किसी राज्य की सरकार गिनीज बुक में अपने राज्य का नाम डलवाने के लिए कमर कस सकती है. गिनीज बुक वालों से कह सकती है कि; "हमारे राज्य की सड़कें सबसे खराब हैं. आपको इस कैटेगरी में हमारे राज्य का नाम गिनीज बुक में डालना पड़ेगा."
न जाने कितनी और कैटेगरी खोजनी पड़ेंगी गिनीज बुक वालों को. हो सकता है वे भारत का ही नाम गिनीज बुक में यह कहते हुए डाल दें कि "भारत वालों की वजह से गिनीज बुक में कुल अस्सी हज़ार नई कैटेगरी डालनी पड़ी. नई कैटेगरी डलवाने का रिकार्ड भारत के नाम किया जाता है."
Saturday, August 29, 2009
'ऑपरेशन-गिनीज बुक'
Saturday, August 22, 2009
एक मुलाकात कृषि मंत्री के साथ
इस वर्ष मानसून की कमी हो गई है. अपना देश ही ऐसा है. यहाँ भ्रष्टाचार को छोड़कर आये दिन किसी न किसी चीज की कमी होती रहती है. इस कमी वाली वर्तमान संस्कृति में शायद कमी के लिए और कुछ नहीं बचा था इसीलिए इस बार मानसून की कमी हो गई. दाल की कमी, चीनी की कमी, प्याज-आलू की कमी को देश कितने दिन झेलेगा? कुछ नया भी तो कम होना चाहिए.
विद्वान बता रहे हैं कि बादलों की कमी नहीं है लेकिन बादलों में पानी की कमी ज़रूर है. आश्चर्य इस बात का है कि अभी तक सरकार ने यह नहीं कहा कि मानसून की कमी के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है. शायद सरकार अभी तक इतनी काबिल नहीं हुई कि मानसून की कमी के लिए विदेशी ताकतों को जिम्मेदार बता दे.
लेकिन यह सब मैं क्यों लिख रहा हूँ? इसी को कहते हैं घटिया ब्लॉग-लेखन.
अब देखिये न, मुझे प्रस्तुत करना है हमारे कृषि मंत्री का साक्षात्कार और मैं प्रस्तावना में न जाने क्या-क्या ठेले जा रहा हूँ. इसलिए प्रस्तावना को यहीं खत्म करता हूँ और हमारे कृषि मंत्री का साक्षात्कार प्रस्तुत करता हूँ.
आप यह मत पूछियेगा कि इस साक्षात्कार के ट्रांसक्रिप्ट मुझे कहाँ मिले? मैं नहीं बताऊँगा. मैंने (ब्लॉगर) पद और गोपनीयता की कसम खाई है.आप साक्षात्कार पढिये.
.......................................................
पत्रकार: नमस्कार मंत्री जी.
मंत्री जी: नमस्कार. बाहर आसमान साफ़ है. मौसम अच्छा है....अब यहाँ कोई अंपायर तो है नहीं कि वो हाथ नीचे करके इंटरव्यू शुरू करने का इशारा करेगा. जब मैं खुद ही जसवंत सिंह बन गया हूँ तो अंपायर का रोल भी खुद ही निभा देता हूँ.....वैसे भी क्रिकेट चलाने के लिए मैं ही अध्यक्ष बना रहता हूँ. मैं ही सेलेक्टर भी बन जाता हूँ. मैं ही...इसलिए यहाँ भी मैं ही अंपायर भी बन जाता हूँ... ये लीजिये. मैंने हाथ नीचे किये. अब आप पहला सवाल फेंक सकते हैं.
पत्रकार: जसवंत सिंह? ये वही जिन्हें पार्टी से...
मंत्री जी: सॉरी सॉरी. जसदेव सिंह की जगह मेरे मुंह से जसवंत सिंह निकल गया. कोई बात नहीं. आप सवाल फेंकिये.
पत्रकार: सबसे पहले मेरा सवाल यह है कि आप कृषि मंत्री भी हैं और इस देश की क्रिकेट भी चलाते हैं. क्या आप दोनों काम एक साथ कर पाते हैं?
मंत्री जी: जी हाँ. बिलकुल कर पाता हूँ.... वैसे भी क्रिकेट में पॉलिटिक्स है और पॉलिटिक्स में क्रिकेट..कृषि मंत्रालय में भी पॉलिटिक्स है...जब सब जगह पॉलिटिक्स ही है तो फिर और क्या चाहिए? डबल रोल करने से समय का बेहतर तरीके से मैनेजमेंट होता है...
पत्रकार: वह कैसे? अपनी बात पर प्रकाश डालेंगे?
मंत्री जी: अब देखिये. अगर मैं क्रिकेट देखने दक्षिण अफ्रीका जाऊंगा तो साथ-साथ वहां की कृषि के बारे में भी जानकारी हो जायेगी...... मान लीजिये मैं श्रीलंका में कोई टूर्नामेंट देखने गया. अब हो सकता है वहां यह देखने को मिले कि श्रीलंका वालों ने समुद्र के पानी से खेती करने के लिए कोई नया कैनाल प्रोजेक्ट कर लिया हो. ऐसे में श्रीलंका जाना तो हमारे मंत्रालय के लिए लाभकारी तो साबित होगा ही न?
पत्रकार: जी हाँ. आपकी बात से सहमत हुआ जा सकता है.
मंत्री जी: सहमत हुआ जा सकता है से क्या मतलब है आपका? आपको कहना चाहिए कि आप मेरी बात से सहमत हैं.
पत्रकार: ठीक है. वही समझ लीजिये.
मंत्री जी: हाँ, ये ठीक है. अब आगे का सवाल पूछिए.
पत्रकार: मेरा सवाल यह है कि आप कृषि और क्रिकेट, दोनों को चला सकते हैं इसके बारे में आपने प्रधानमंत्री को कैसे कन्विंस किया?
मंत्री जी: फोटो खिंचवा कर.... आप मेरा यह वाला फोटो देखिये. देख लिया? अब आप बताइए, पगड़ी पहनकर मैं मिट्टी से जुडा हुआ किसान लग रहा हूँ कि नहीं? ये वाला फोटो देख लिया?... अब आप मेरा ये वाला फोटो देखिये. इस फोटो को देखने से क्या आपको नहीं लगता कि मैं आई सी सी का भावी अध्यक्ष लग रहा हूँ?
पत्रकार: जी हाँ. मैं आप की बात से सहमत हूँ. बल्कि इस फोटो में आप आईसीसी के भावी नहीं बल्कि प्रभावी अध्यक्ष लग रहे हैं.
मंत्री जी: है न. कन्विंस करना कितना इजी है, आपको समझ में आ ही गया होगा.
पत्रकार: जी हाँ, समझ में आ गया.... अब मेरा सवाल यह है कि इस वर्ष पहले चरण में मानसून पूरे बासठ प्रतिशत कम रहा. मानसून की इस कमी से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निबटने के लिए आपके मंत्रालय ने क्या किया है?
मंत्री जी: देखिये, अभी तक तो कुछ नहीं किया. और कुछ नहीं करने के पीछे एक कारण है. हम कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं करते. आपको ज्ञात हो कि जब से मैंने देश की क्रिकेट को चलाना शुरू किया है तब से अगर कोई बैट्समैन अपने पहले टेस्ट में असफल रहे तो हम उसे और मौका देते हैं. हम उसे तुंरत टीम से नहीं निकालते. इसी तरह से हम मानसून को और मौका दे रहे हैं.... अब हम दूसरे चरण के मानसून का परफॉर्मेंस देखेंगे. अगर वह दूसरे चरण में भी कम रहा फिर हम स्थिति से निबटने पर सोचेंगे. क्रिकेट चलाने की वजह से हमने बहुत कुछ नया सीखा है जिसे हम मंत्रालय में भी लागू कर रहे हैं.
पत्रकार: हाँ, वह तो दिखाई दे रहा है. अच्छा यह बताइए कि इतने वर्षों से आपकी पार्टी देश पर शासन कर रही है लेकिन किसानों के लिए आधारभूत योजनायें क्यों नहीं लागू की जा सकी?
मंत्री जी: देखिये, जहाँ तक मेरी पार्टी द्बारा देश पर शासन करने की बात है तो आपको मालूम होना चाहिए कि मेरी पार्टी तो एक रीजनल पार्टी है. मेरी पार्टी ने देश पर शासन नहीं किया है. आपको इतनी छोटी सी बात का पता नहीं है? किसने आपको पत्रकार बना दिया?
पत्रकार: नहीं...., वो तो मैं डिग्री लेकर पत्रकार बना हूँ. लेकिन एक बात तो सच है न कि आप पहले कांग्रेस पार्टी में थे तो यह कहा ही जा सकता है कि आपकी पार्टी ने वर्षों से देश पर शासन किया है.
मंत्री जी: अच्छा अच्छा. आप उस रस्ते से आ रहे हैं. तब ठीक है. आगे का सवाल पूछिए.
पत्रकार: सवाल तो मैंने पूछ ही लिया है. आधारभूत योजनायें...
मंत्री जी: यह कहना गलत है. वैसे भी जब लोन-माफी से काम चल जाए तो फिर आधारभूत योजनाओं की क्या ज़रुरत है? ....अभी हाल में ही हमारी सरकार ने किसानों द्बारा लिया गया सत्तर हज़ार करोड़ रूपये का क़र्ज़ माफ़ किया है....आपको पता है कि कर्ज माफी का यह आईडिया भी मुझे एक क्रिकेट मैच के दौरान मिला?
पत्रकार: कैसा आईडिया? आप प्रकाश डालेंगे?
मंत्री जी: वो हुआ ऐसा कि मैं नागपुर में एक क्रिकेट मैच देख रहा था. क्रिकेट मैच देखने के लिए स्टेडियम में पहुँचने से पहले मैंने विदर्भ के किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात की थी. मैच देखते हुए मैंने देखा कि बैट्समैन ने शाट मारा और उसे कवर का फील्डर नहीं रोक सका. संयोग देखिये कि सजी हुई फील्ड में एक्स्ट्रा-कवर था ही नहीं. नतीजा यह हुआ कि बाल बाउंड्री लाइन से बाहर चली गई. चौका हो गया....यह देखते हुए मुझे लगा कि अगर किसानों को एक एक्स्ट्रा-कवर दिया जाय...मेरा मतलब अगर लोन-माफी का एक्स्ट्रा-कवर उन्हें मिल जाए तो फिर...
पत्रकार: समझ गया-समझ गया. सचमुच आप क्रिकेट की वजह से बहुत कुछ सीख गए हैं...लेकिन कुछ आधारभूत योजनायें नहीं बनीं. डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन का कहना है कि...
मंत्री जी: मैं भी समझ गया कि आप क्या कहना चाहते हैं. आप डॉक्टर स्वामीनाथन के हवाले से यही कहना चाहते हैं न कि उनके सुझाव पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया?
पत्रकार: हाँ. मेरा मतलब यही है.
मंत्री जी: देखिये डॉक्टर स्वामीनाथन हरित क्रान्ति ले आये वह एक अलग बात है. लेकिन उनके सुझाव बहुत लॉन्ग टर्म प्लानिंग की बात लिए हुए हैं और यहाँ हमें चाहिए तुंरत समाधान वाले सुझाव. ऐसे में कर्ज-माफी से बेहतर और क्या हो सकता है? डॉक्टर स्वामीनाथन को यह समझने की ज़रुरत है कि अब ज़माना ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट का है. टेस्ट मैच देखकर पब्लिक बोर हो जाती है. हमें तुंरत रिजल्ट चाहिए.
पत्रकार: लेकिन डॉक्टर स्वामीनाथन की बात में प्वाइंट तो है ही.
मंत्री जी: कोई प्वाइंट नहीं है. आप जिसे प्वाइंट कह रहे हैं, वे सारे सिली प्वाइंट हैं.
पत्रकार: आपके कहने का मतलब लॉन्ग टर्म योजनायें नहीं लागू की जा सकती? यहाँ भी वही क्रिकेट?
मंत्री जी: जी बिल्कुल. अब बिना क्रिकेट के इस देश में कुछ चलता है क्या? वैसे भी डॉक्टर स्वामीनाथन की उम्र हो गई है अब....आप खुद ही सोचिये न. सचिन तेंदुलकर इतने बड़े खिलाड़ी हैं लेकिन क्या वे पचपन साल की उम्र में भी क्रिकेट खेल सकते हैं?...मानते हैं न कि नहीं खेल सकते...बस वैसा ही कुछ डॉक्टर स्वामीनाथन के साथ भी है...अब कृषि-विज्ञान के क्षेत्र में हम यंग टैलेंट लाना चाहते हैं...आप जानते हैं कि यंग टैलेंट लाने का आईडिया मुझे ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट की वजह से मिला?...मैं आपको बताता हूँ कि क्रिकेट की वजह से हमारे मंत्रालय में बहुत कुछ बदल दिया है मैंने.
वैसे, ये आप बार-बार लॉन्ग टर्म, लॉन्ग टर्म की रट क्यों लगा रहे हैं? लॉन्ग टर्म सुनने से मुझे लॉन्ग लेग, लॉन्ग ऑन, लॉन्ग ऑफ वगैरह की याद आती है.
पत्रकार: हाँ, वह तो है. वैसे एक सवाल का जवाब दीजिये. अगर मानसून दूसरे चरण में भी ढीला रहा तो आपका प्लान क्या रहेगा?
मंत्री जी: उसके लिए मैंने सेलेक्टर नियुक्त कर दिए हैं.
पत्रकार: सेलेक्टर नियुक्त कर दिया है आपने? क्या मतलब?
मंत्री जी: माफ़ कीजिये, आप पत्रकार तो हैं लेकिन आपका दिमाग नहीं चलता. केवल कलम चलाने से कोई पत्रकार नहीं हो जाता....सेलेक्टर नियुक्त करने से मेरा मतलब यह है कि मैंने अपने मंत्रालय के अफसरों को सेलेक्टर बना दिया है. वे देश के जिलों का सेलेक्शन करके एक लिस्ट देंगे. फिर मैं एक प्रेस कांफ्रेंस में उन जिलों को सूखा-ग्रस्त घोषित कर दूंगा...आपने बीसीसीआई के सचिव द्बारा टीम सेलेक्शन की सूचना वाला प्रेस कांफ्रेंस अटेंड किया है कभी?
पत्रकार: नहीं. मैं तो कृषि मामलों का पत्रकार हूँ. मैं केवल कृषि मामलों पर रिपोर्टिंग करता हूँ.
मंत्री जी: इसीलिए तो आपके अखबार का सर्कुलेशन ख़तम है...अपने एडिटर से कहें कि वे आपको क्रिकेट मामलों को कवर करने का भी मौका दें....आप देखेंगे कि आपकी एफिसिएंसी बढ़ जायेगी...जैसे मेरी बढ़ गई है...अखबार का सर्कुलेशन भी बढ़ जाएगा. क्रिकेट की वजह से एफिसिएंसी बढ़ जाती है.
पत्रकार: जी. मैं सम्पादक महोदय से आपके सुझाव के बारे में बात करूंगा. वैसे एक प्रश्न मेरा यह है कि अगर कम मानसून की वजह से देश में अनाज की कमी हुई तो क्या आप इसबार भी आस्ट्रेलिया से गेंहू का आयात करेंगे?
मंत्री जी: गेंहूँ का आयात करने के लिए देश में अनाज की कमी का होना ज़रूरी नहीं है.गेंहूँ का आयात तो हमने तब भी किया था जब अनाज की कमी नहीं थी...हाँ इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि इस बार भी आस्ट्रेलिया से ही गेंहूँ का आयात करूंगा.
पत्रकार: ऐसा क्यों? मेरा मतलब क्या ऐसा आप इसलिए करेंगे क्योंकि पिछली बार आस्ट्रलिया वालों ने सडा गेंहूँ भेज दिया था?
मंत्री जी: नहीं वो बात नहीं है....मैं ऐसा इसलिए करूंगा कि एक बार फोटो खिचाने के चक्कर में आस्ट्रलियाई खिलाड़ियों ने मुझे मंच पर धक्का दे दिया था...इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारे बीसीसीआई के पदाधिकारियों ने मुझे सजेस्ट किया कि आस्ट्रलिया से बदला लेने का यही तरीका है कि आप कृषि मंत्री के रोल में उनसे गेंहूँ मत मंगवाईये.
पत्रकार: वैसे आपको नहीं लगता कि गेंहू का आयात करके तबतक कोई फायदा नहीं होगा जब तक आप सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मेरा मतलब पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम को ठीक नहीं करेंगे. वैसे क्या कारण है कि पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा?
मंत्री जी: असल में पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम थर्ड मैन के होने की वजह से काम नहीं कर रहा.
पत्रकार: लेकिन अगर सिस्टम में थर्ड मैन हैं तो उन्हें हटाने की जिम्मेदारी भी तो आपकी ही है.
मंत्री जी: अब देखा जाय तो थर्ड मैन भी तो ज़रूरी होते हैं. पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन से थर्ड मैन हटाने के बारे में मैंने बैठक की थी लेकिन सलाहकारों का विचार था कि थर्ड मैन का रहना दोनों के लिए ज़रूरी है. क्रिकेट में भी और पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम में भी. हमने सुझाव मानते हुए थर्ड मैन नहीं हटाये...देखा आपने? डबल रोल कितने काम की चीज है?
पत्रकार: जी हाँ. वो तो मैं देख रहा हूँ. अच्छा मेरा एक और सवाल यह है कि इस बार सरकार ने किसानों के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस की घोषणा फसल होने से पहले ही कर दी. ऐसा पहले तो नहीं हुआ था. तो इसबार ऐसा करने का कारण क्या इलेक्शन था?
मंत्री जी: जी नहीं. मिनिमम सपोर्ट प्राइस पहले ही घोषणा करने का आईडिया मुझे क्रिकेट चलाने की वजह से ही मिला......आपके मन में सवाल ज़रूर उभर रहा होगा...उसका जवाब यह है कि क्रिकेट खिलाड़ियों को जब से कान्ट्रेक्ट सिस्टम के तहत पेमेंट होना शुरू हुआ है तब से फीस की घोषणा कान्ट्रेक्ट साइन करने से पहले ही हो जाती है...मिनिमम सपोर्ट प्राइस का आईडिया मुझे वहीँ से मिला...देखा आपने कि क्रिकेट...
पत्रकार: हाँ देखा मैंने कि क्रिकेट चलाने की वजह से आप एक अच्छे कृषि मंत्री बन पाए. वैसे मेरा एक आखिरी सवाल है. आये दिन क्रिकेट खिलाड़ी आपके कहने पर तमाम लोगों के सहायतार्थ मैच खेलते रहते हैं. ऐसे में आपने कभी किसानों की सहायता के लिए क्यों नहीं मैच आयोजित किये?
मंत्री जी: अरे वाह. आप एक कृषि पत्रकार होते हुए भी इतना दिमाग रखते हैं. हमने तो सोचा था कि....चलिए आपके सुझाव को मैं याद रखूँगा और आज ही अपने मंत्रालय के अफसरों की एक मीटिंग बुलाकर इस मसले पर विचार करूंगा.
पत्रकार: लेकिन इस बात पर विचार करने के लिए तो आपको बीसीसीआई की मीटिंग बुलानी चाहिए.
मंत्री जी: वही तो बात है न. मेरे लिए दोनों एक सामान हैं. मैं मंत्रालय वालों से क्रिकेट डिस्कस कर सकता हूँ और क्रिकेट वालों से कृषि...आप नहीं समझेंगे...आप समझते तो क्रिकेट के पत्रकार नहीं बन जाते...खैर, अब मेरे पास और सवाल के लिए वक्त नहीं है...मुझे क्रिकेट असोसिएशन की मीटिंग में जाना है...
Wednesday, August 19, 2009
कुर्बान जाऊं आपकी महानता पर
इतिहास पुरुषों के साथ यह बड़ा बवाल है. वे दुनियाँ से कूच करने के बाद भी लोगों को चैन से नहीं रहने देते. इतिहास पुरुषों के चक्कर में न जाने कितने इतिहास बन जाते हैं. जिन्ना जी को ही ले लीजिये. क्या कहा? कहाँ मिलेंगे? अरे भैया, ले लीजिये से मेरा मतलब है उन्हें लेकर मत जाइए. मेरा मतलब है कि उनकी बात कर लीजिये. हाँ, अब समझे.
तो मैं कह रहा था कि जिन्ना जी को ही ले लीजिये. आज इस असार संसार में नहीं है तो क्या हुआ, औरों को डुबाय दे रहे हैं. देखकर लगता है जैसे उकसाते रहते हैं कि; "मेरे बारे में यह कह दो. मेरे बारे में वह कह दो. मुझे महान बता दो."
मैं पूछता हूँ, आप महान थे तो थे. लेकिन इतना भी क्या महान होना कि दूसरों को उकसाय दें कि दूसरे पग-पग पर आपको महान कहते फिरें? जिनके ऊपर साम्प्रदायिक होने के आरोप लगते रहते हैं वे भी आपको सेकुलर बताते रहते हैं. मैं पूछता हूँ, महानता की कोई लिमिट है कि नहीं?
देखकर तो यही लगता है कि आप लिमिटलेस महान थे. आखिर आज तक ऐसा नहीं हुआ कि नेहरु जी को किसी पाकिस्तानी नेता ने महान कह दिया हो और उसकी छीछालेदर हो गई हो. ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि महानता में आप सबसे ऊपर थे. इतने ऊपर कि न जाने कितने लोगों का बुढापा खराब कर दिया आपने. हो सकता कुछ और अभी भी लाइन में हों.
कुर्बान जाऊं आपकी महानता पर.
अब तो ऐसा लगता है कि जिसे अपना बुढापा खराब करवाना हो, वो आपको महान बता कर खराब करवा लें. अब जसवंत सिंह जी को ही ले लीजिये. फिर वही सवाल? उन्हें लेकर क्या करेंगे? क्या कहा? उन्हें पार्टी में से निकाल दिया गया? अरे भैया पार्टी में से ही निकाला गया है. पार्टी कोई अफीम पीने की थोड़े न थी. पार्टी से मतलब राजनीतिक पार्टी से है न. अफीम पीने की पार्टी होती तो पेज थ्री की खबर बनती. ये खबर तो पेज वन की है. अंतर तो है ही.
हाँ तो मैं जसवंत सिंह जी की बात कर रहा था. क्या-क्या नहीं किया उन्होंने पार्टी से निकलने के लिए. पार्टी हारी तो इलेक्शन इंचार्ज नेताओं के ऊपर आरोप लगा दिया. उससे कुछ नहीं हुआ तो चिट्ठी लिख डाली. चिट्ठी से भी जब कुछ नहीं बना तो ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर डाला. उन्हें लगा होगा कि पार्टी वाले ऐसे नहीं निकालेंगे. जिन्ना को महान बता दो और फिर देखो असर. जिन्ना जी की महानता पर प्रकाश डाला और असर हो गया. निकाल दिए गए.
भारतीय संस्कृति की रक्षा का दावा करने वालों के लिए ब्रह्मास्त्र का मतलब ही बदल गया है. समझ में नहीं आता कि सालों से पॉलिटिक्स में रहने वाले पोलिटिकली करेक्ट बातें करना कब सीखेंगे?
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सिंह जी की किताब के विमोचन के अवसर पर मंच पर एक सज्जन को देखा. एकदम नामवर सिंह जी जैसे. देखकर लगा जैसे उनके जुड़वा भाई हैं. एक बार के लिए लगा कि कहीं ऐसा न हो कि कोई उन्हें नामवर सिंह समझ कर ऐसी छीछालेदर न कर दे जैसी उदय प्रकाश जी की हुई.
अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा. हो सकता था जल्दबाजी में उन्हें नामवर सिंह ही समझ लिया जाता और फिर.....
Tuesday, August 18, 2009
वाइन फ्लू - एक भविष्यात्मक (ये क्या होता है?) पोस्ट
शुक्रवार १८ अगस्त, २०८१
पूरा अमेरिका वाइन फ्लू से परेशान है. प्राप्त ताजा समाचारों के अनुसार कल रात लास वेगास में वाइन पीकर सत्रह लोग इस फ्लू के शिकार हो गए. अभी तक लगभग सात लाख लोग इस फ्लू के शिकार हो चुके हैं. अमेरिकी गृह मंत्रालय ने कल एक प्रस्ताव पारित करके भारत के उद्योग समूह यूनाइटेड वाइन के उत्पादों पर अमेरिका में इंट्री से रोक लगा दिया है. ज्ञात हो कि यूनाइटेड वाइन प्रख्यात वाइन उद्योगपति जयजय माल्या की कंपनी है.
अमेरिकी गृह मंत्रालय द्बारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारतीय समूह की इस कंपनी के उत्पादों को जानबूझ कर इस तरह से बनाया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी नागरिक वाइन फ्लू के शिकार हो जाएँ. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारतीय उद्योग समूह ऐसा करके अमेरिका से बदला लेना चाहता है. विशेषज्ञों के अनुसार इस भारतीय उद्योग समूह का ऐसा मानना है कि साल २००९ में भारत में स्वाइन फ्लू एक ख़ास अमेरिकी साजिश की वजह से फैला था.
अमेरिकी विशेषज्ञों की इस सोच का आधार इस बात को माना जा रहा है कि यूनाइटेड उद्योग समूह की गिनती देशभक्त उद्योग समूह में होती आई है. ज्ञात हो कि साल २००८ में इस उद्योग समूह के तत्कालीन मालिक ने तत्कालीन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की नीलाम होने वाली वस्तुएं जैसे चश्मा, चप्पल वगैरह खरीद कर देशभक्त होने का सबूत दिया था.
भारतीय व्यापार मंत्री सुश्री डिम्पल नाथ ने अमरीकी सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह के कदम विश्व व्यापार संगठन की नीतियों के खिलाफ हैं. सुश्री नाथ ने एक प्रेस कांफ्रेंस में बयान जारी करते हुए कहा कि; " अमेरिकी सरकार के इस फैसले की वजह से भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका की वाट लगा देगा."
ज्ञात हो कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का दबदबा दुनियाँ के तमाम देशों से ज्यादा है.
सुश्री डिम्पल नाथ ने बताया कि वाइन फ्लू पर अमेरिकी सोच एक कम्प्लेनात्मक मुद्दा हो सकता है लेकिन यूनाइटेड ग्रुप के उत्पादों पर रोक लगाकर अमरीका ने अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर ली हैं. भारतीय व्यापर मंत्री ने यहाँ तक कहा कि अमरीका अगर अपने फैसले पर टिका रहता है तो भारत अमेरिका को दी जाने वाली सहायता राशि कम करने पर विचार करेगा.
उधर अमरीकी खुफिया एजेन्सी का मानना है कि यूनाइटेड समूह की फार्मा कंपनी प्रिवेंटिस ने पिछले वर्ष से ही वाइन फ्लू की वैक्सिन पर खोज शुरू कर दी थी. एजेन्सी का मानना है कि यूनाइटेड ग्रुप ने एक साजिश के तहत पहले वाइन फ्लू के वायरस ईजाद किये और उसके बाद अपनी ही फार्मा कंपनी से वैक्सिन बनाने के लिए कहा.
वाइन फ्लू का आतंक अमेरिका में इस तरह से छाया है कि अभी तक अमेरिकी ब्लॉग स्फीयर में लगभग तीन लाख सत्तावन हज़ार ब्लॉग पोस्ट वाइन फ्लू, उसके कारणों और उससे बचने की तमाम विधियों पर लिखी जा चुकी हैं.
ज्ञात हो कि वाइन फ्लू की बीमारी फैलने का मुख्य कारण यह है कि वाइन फ्लू से बीमार लोग और ज्यादा वाइन पीना चाहते हैं. जहाँ डॉक्टर यह चाहते हैं कि लोग वाइन पीना छोड़ दें, वहीं वाइन फ्लू से बीमार लोग और ज्यादा वाइन पीना चाहते हैं.
इधर भारत के योग गुरु स्वामी ज्ञानदेव का मानना है कि वाइन फ्लू से बचने के उपायों में सबसे बढ़िया उपाय यह है कि पीड़ित व्यक्ति को सुबह तीन चम्मच तुलसी के पत्ते का रस आंवले के पत्ते के रस में मिलाकर पीना चाहिए. बाबा ज्ञानदेव ने यह भी बताया कि उनके कारखाने में तैयार तुलसी-आंवला पत्रक रस का व्यवहार करने से सुबह-सुबह मेहनत करने से बचा जा सकता है. अमेरिकी सरकार ने बाबा ज्ञानदेव की कंपनी को दो लाख लीटर पत्रक रस का आर्डर दिया है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस बार बाबा ओंड इस कंपनी का मुनाफा पूरे साढ़े सात सौ प्रतिशत से बढ़ जाएगा. इस खबर के आने के बाद कंपनी के शेयर के मूल्य में कल बत्तीस प्रतिशत का उछाल देखा गया.
प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर नामक मुहावरे से प्रभावित यूरोपीय संघ की आज बैठक होने वाली है. संघ का मानना है कि यूनाइटेड वाइन के उत्पादों पर रोक लगाने की प्रक्रिया अगर पहले ही शुरू कर दी जाय तो...........
Friday, August 14, 2009
एक मौसमी पोस्ट - स्वाइन फ्लू
ये स्वाइन फ्लू भी बड़ा जबर रोग है. इतनी दूर से चला लेकिन भारत पहुँच कर ही दम लिया. दम भी ऐसा कि भारतवासियों को दम नहीं लेने दे रहा. इससे अच्छा तो चायनीज फ्लू था जो चला तो ठीक लेकिन कहीं नहीं जा सका. जाता भी कैसे, चीन में पैदा हुई चीजें वैसे भी ज्यादा दिन नहीं चलतीं.
लेकिन स्वाइन फ्लू तो आकर ही बैठ गया. हालत यह है कि छींकना मुश्किल हो गया है. इस बात का डर रहता है कि छींक सुनकर (अब छींक को देख तो नहीं सकते न) दोस्त-यार साथ ही न छोड़ दें. किसी को एक बार खांसी आ जाए तो लोग ऐसे देखते हैं जैसे धमकी दे रहे हों कि; "अगर मुझे स्वाइन फ्लू हुआ तो मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा."
हमारे एक मित्र स्वाइन फ्लू को लेकर अति-उत्साही हो गए. इतने उत्साही जैसे कोई नया ब्लॉगर पहली पोस्ट पर चार से ज्यादा टिप्पणियां मिलने पर होता है. उत्साह ने उनके मन में घर बसाया तो मुझसे बोले; "ऐसा करें न, कि अगले दस दिन के लिए आफिस बंद कर देते हैं."
मैंने पूछा; "क्या ज़रुरत है आफिस बंद करने की? कलकत्ते में तो अभी तक स्थिति सामान्य है."
मेरी बात सुनकर उन्होंने विश्व-प्रसिद्द कहावत ठेल दी. बोले; "प्रेवेंशन इज बेटर दैन क्योर."
जब मैंने कहा कि वे ओवर रेअक्ट कर रहे हैं तो बोले; "अच्छा, ठीक है लेकिन डॉक्टर से मिलकर स्वाइन फ्लू के बारे जानकारी तो हासिल कर ही लेना चाहिए."
इतना कहते हुए तुंरत अपने डॉक्टर को फ़ोन कर दिया. बोले; "आज मैं आपसे मिलना चाहता हूँ. मुझे स्वाइन फ्लू के बारे में जानकारी चाहिए."
उन डॉक्टर साहब को मेरे दोस्त के साथ बात करने में बड़ा मज़ा आता है. वे तुंरत राजी हो गए. एक बार भी नहीं कहा कि; "मेरे पास आने की क्या ज़रुरत है? इन्टरनेट पर उसके बारे में जानकारी हासिल कर लो. टीवी देख लो. अभी सारे चैनल स्वाइन-मय हो लिए हैं."
और तो और यह भी कह सकते थे कि हिंदी ब्लॉग पढ़ लो. स्वाइन फ्लू तो क्या, उसके बाप के बारे में भी जानकारी मिल जायेगी. लेकिन नहीं.
अब मित्र के साथ ही शाम को घर के लिए निकलता हूँ तो उनके साथ डॉक्टर के पास जाना पड़ा. साढ़े आठ बजे उन्होंने डॉक्टर साहब को फ़ोन करके बता दिया कि; "आप अपने चेंबर में ही रहें. मैं आपसे मिलने आ रहा हूँ."
नौ बजे डॉक्टर साहब के पास पहुंचे. डॉक्टर साहब से मिलने में मुझे दिलचस्पी नहीं थी. इस बात का पता मेरे दोस्त को था. इसलिए वे मुझसे बोले; "आप तो जायेंगे नहीं. गाडी में बैठिये. मैं पॉँच मिनट में आता हूँ."
चले गए. चालीस मिनट बाद आये. मैंने पूछा; "क्या-क्या सावधानी के लिए कहा डॉक्टर साहब ने?"
बोले; "अरे कुछ नहीं. वही सब कहा जो टीवी में बताता है. हाथ धोकर रखिये. ज्यादा लोगों से नहीं मिलना है. स्वीमिंग बंद कर दीजिये. और ज्यादा कुछ नहीं."
मैंने कहा; "और क्या बातें हुईं?"
मित्र बोले; "वही सब. कह रहे थे कि मुझे अपना बिजनेस और आगे बढ़ाना चाहिए. फिर बोले कि कौन सी पिक्चर देखी मैंने? फिर बोले एक दिन चलिए साथ में पिक्चर देखने चलते हैं."
लीजिये. मैंने सोचा था कि स्वाइन फ्लू के बारे में जानकारी लेने गए हैं. और यहाँ पिक्चर देखने की बातें हो रही हैं. जहाँ रात को नौ बजे घर पहुँचते हैं, वहां साढ़े दस बजे घर पहुंचे.
घर पहुंचे और टीवी देखा तो वहां भी स्वाइन फ्लू से कोई बचाव नहीं. कोई चैनल खोल लीजिये आज कल हर ब्रेकिंग न्यूज स्वाइन फ्लू के बारे में है. एक हैल्थ मिनिस्टर है. बेचारा न घर का रहा न मंत्रालय का. केवल न्यूज चैनल का होकर रह गया है. पिछले सात दिनों से बयान की सफाई करते फिर रहा है. मैंने ये नहीं कहा. मैंने वो नहीं कहा. मैंने ३३ प्रतिशत वाली बात नहीं कही. टैमीफ्लू के बारे में दिए गए मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.
बेचारा यही कहते फिर रहा है. मिनिस्ट्री का बारह तो क्या साढ़े बारह बज गया है.
टीवी चैनल के संवाददाता मास्क पहने घूम रहे हैं. बड़े क्यूट लग रहे हैं. चिरकुट संवाददाता भी डॉक्टर लग रहा है. हॉस्पिटल से रिपोर्टर लोग रिपोर्टिंग कर रहे हैं. मास्क पहने संवाददाता ऐसा लग रहा है जैसे कोई डॉक्टर हो और माइक्रोफोन से ही ऑपरेशन करने के लिए कमर कसे है.
आज नीरज भैया से बात हो रही थी. मैंने कहा; "खोपोली तो पुणे और मुंबई के बीच है. ऐसे में वहां की स्थिति क्या है?"
वे बोले; " बड़ी हालत खराब है यहाँ तो. सब डरे हुए हैं. फैक्टरी में लोगों को देखकर लग रहा है जैसे डब्लूएचओ ने डॉक्टरों का एक विशिष्ट दल हमारी फैक्टरी के लिए भेज दिया है. चश्मा पहने मजदूर भी डॉक्टर दिखाई दे रहा है."
मैंने पूछा और क्या हो रहा है तो बोले; "हमें तो डर है कि कहीं कोई बुजुर्ग वायरस बाकी के वायरसों को यह न कह दे कि खोपोली में एक शायर रहता है. जाओ उनसे तरन्नुम में गजलें सुनकर आ जाओ. हम बताते हैं बंधुवर, अगर ऐसा हो गया तो खोपोली में भी स्वाइन फ्लू फैलने की आशंका है."
अब हम तो यही कहेंगे कि ऐसा न हो.
और यह कहेंगे कि स्वाइन तो जाने से रहे. भला स्वाइन फ्लू ही चला जाए.
Thursday, August 13, 2009
दुर्योधन की डायरी - पेज १७२१
हम आये दिन यह कहते रहते हैं कि द्वापर और सतयुग में सबकुछ ठीक चलता था. लेकिन कल दुर्योधन जी की डायरी पढ़कर लगा कि ऐसी बात नहीं है. द्वापर में भी सूखा पड़ता था. सर्दी भी पड़ती है. विश्वास न हो तो दुर्योधन जी की डायरी का यह पेज पढिये. उन्होंने हस्तिनापुर में सूखे की स्थिति से उत्पन्न हुई समस्याओं का जिक्र किया है. उनकी डायरी से यह भी पता चलता है कि उनदिनों भी राजा जी लोग वैसे ही काम करते थे जैसा आज करते हैं.
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समझ में नहीं आता कि प्रजा बात-बात पर परेशान क्यों होती रहती है? मैं कहता हूँ, अगर प्रजा शरीर धारण ही किया है तो फिर परेशानी से क्या डरना? परेशानी से डरना ही था तो प्रजा क्यों बने? काहे नहीं राजा बन गए? मेरी तरह राजकुमार ही बन जाते.
परेशानियों का रोना तो नहीं रहता.
गुप्तचर बता रहे हैं कि पिछले एक महीने से प्रजा सूखे से परेशान है. अजीब बात है. पिछले बरस इसी मौसम में जो प्रजा बाढ़ से परेशान थी, वही लोग इस बरस सूखे से परेशान है. सुनकर लगता है जैसे इनलोगों को परेशान होने का बहाना चाहिए. ये हर बात पर परेशान होने के लिए कमर कसे बैठे हैं. मैं कहता हूँ इस मौसम में सूखा नहीं पड़ेगा तो क्या जाड़े के मौसम में पड़ेगा?
मुझे तो लगता है कि ये लोग गर्मी के मौसम में भी इस बात के बहाने परेशान रहने के लिए तैयार हो सकते हैं कि गर्मी ढंग से नहीं पड़ रही. मैं पूछता हूँ परेशान होने की कोई लिमिट है कि नहीं?
वैसे मुझे इस बात से संतोष है कि बाढ़ आये चाहे सूखा, दोनों ही सूरत में इन्द्र की बड़ी छीछालेदर होती है. प्रजा मिलकर उन्हें ही कोसती है. जब भी गुप्तचर इस बात की जानकारी लेकर आते हैं कि फलाने इलाके से आज इन्द्र को पूरे दो सौ किलो गालियाँ मिलीं, मुझे बहुत खुशी होती है.
मेरी खुशी के दो कारण हैं. पहला तो यह कि इन्द्र ठहरे अर्जुन के मेंटर. ऐसे में उन्हें गालियों का चढ़ावा मिले तो मुझसे ज्यादा ख़ुशी और किसे होगी? दूसरी बात यह है कि सूखा झेलकर जब प्रजा इन्द्र को गरियाती है तो उसका ध्यान राजमहल के निठल्ले, निष्क्रिय कर्मचारियों और मंत्रियों की चिरकुटई पर नहीं जाता.
गुप्तचर बता रहे थे कि पानी की किल्लत की वजह से किसान आत्महत्या पर उतारू हैं. मैं पूछता हूँ, आत्महत्या करने की क्या ज़रुरत है? किसानों के इस कदम से राजमहल की कितनी बदनामी होती है, उसके बारे में ये किसान सोचते ही नहीं हैं. ठीक है, मैं मानता हूँ कि सूखे की वजह से खेती-बाड़ी में समस्या आती है लेकिन समस्या कहाँ नहीं है?
क्या हमें कम समस्याओं का सामना करना पड़ता है? जब से सूखा पड़ा है तब से हर सूबे के सूबेदार अपने इलाके को सूखा-ग्रस्त घोषित करवाने में एड़ी-छोटी का जोर लगा रहे हैं. हर सूबेदार रोज मीडिया में कुछ न कुछ बोलता रहता है. किसी के इलाके में अगर चार वर्ग किलोमीटर में भी बरसात नहीं होती तो वह चाहता है कि पूरा इलाका ही सूखा-ग्रस्त घोषित कर दिया जाए. कोई नहीं सोचता कि ऐसे में राजमहल की परेशानियाँ बढ़ जाती हैं.
अभी पिछले महीने ही चेंबर ऑफ़ कामर्स की मीटिंग में विदुर चाचा ने अपने भाषण में बताया था कि इस बार हस्तिनापुर की अर्थव्यवस्था नौ-दस प्रतिशत से ग्रो करेगी. अब सूखे की वजह से ये हाल हो गया है तो क्या ख़ाक ग्रो करेगी?
मुझे तो लगता है जैसे विदुर चाचा का भाषण सुनकर ही अर्जुन ने इन्द्र से बोलकर बरसात रोकवा दी.
खैर, ये सूखा हमारे लिए अच्छे दिन लेकर आया है. ऐसा मुझे इसलिए लगता है कि तमाम सूबेदार हमसे मिलने के लिए उतावले हो रहे हैं. ये लोग चाहते हैं कि मैं हस्तक्षेप करके उनके इलाके को सूखा-ग्रस्त घोषित करवा दूँ. कह रहे हैं कि राजमहल से जितनी भी सहायता राशि दी जायेगी, उसमें से पचीस परसेंट मुझे दे देंगे.
मुझे तो एक बार लगा कि ऐसा करना उचित नहीं रहेगा लेकिन फिर दुशासन और जयद्रथ ने बताया कि तमाम सूबों को सूखा-ग्रस्त घोषित करवाने के लिए दोनों ने कई सूबेदारों से एडवांस ले लिया है. इसी एडवांस की वजह से दुशासन ने अपनी विदेश यात्रा का कार्यक्रम बना लिया है. कह रहा था कि इस बार पूरे एक महीने के लिए उज़बेकिस्तान जाएगा ताकि वहां हो रही हरित क्रान्ति का अध्ययन कर सके.उज़बेकिस्तान में हुई हरित क्रान्ति का अध्ययन करके वो उज़बेकिस्तान का प्लान हस्तिनापुर में भी लागू करना चाहता है. उधर जयद्रथ ने प्लान बनाया है कि वो अपने किसी चमचे की पार्टनरशिप में नया धंधा शुरू करेगा.
खैर, अब सोने का समय हो गया है.
कल राजमहल में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए मीटिंग अटेंड करना है. मैंने तो सोच लिया है कि इस मीटिंग में प्रस्ताव पारित कर के सबसे पहले मौसम विभाग के पदाधिकारियों को सस्पेंड करवाना है. ये लोग कभी मौसम की जानकारी ठीक से नहीं देते. इन लोगों को वित्त विभाग में ट्रांसफर करवा दूंगा. वे लोग भी कभी अर्थव्यवस्था के बारे में कोई जानकारी ठीक से नहीं दे सकते. ऐसे में दोनों विभागों के लोगों को सज़ा भी हो जायेगी और प्रजा में यह बात भी फ़ैल जायेगी कि राजमहल सूखे की स्थिति से निपटने के लिए कमर कस चुका है.
Monday, August 3, 2009
दुर्योधन की डायरी - पेज १३६९
कहते हैं फ्रेंडशिप डे की शुरुआत अमेरिका में हुई. अब आप तो जानते ही हैं कि पश्चिम के देशों में उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में जो भी आविष्कार हुए, वे हमारी संस्कृति में हजारों साल पहले ही हो गए थे. परमाणु संरचना के बारे में विकसित देश हाल ही में बता पाए लेकिन हमलोगों के कणादि ऋषि ने सबकुछ पहले ही निबटा दिया था. इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जो हमारे पूर्वज पहले ही निबटा चुके हैं.
ऐसे में मैं भी साबित कर सकता हूँ कि फ्रेंडशिप डे का अविष्कार अमेरिका ने नहीं किया. इस मामले में अमेरिका वाले झूठे हैं. अपनी संस्कृति में पांच हज़ार साल पहले से मनाया जाता रहा है. आपको विश्वास न हो तो दुर्योधन की डायरी के वह पेज पढ़िये जो उन्होंने फ्रेंडशिप डे के दिन लिखा था....:-)
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आज फ्रेंडशिप डे है. आज सुबह जब से नींद से जागा, एस एम एस आते जा रहे हैं. न जाने कहाँ-कहाँ से. अवन्ती के राजकुमार का एस एम एस तो सबसे मजेदार था. लिखा था;
"मित्रता धोतिका में सूसू की तरह होती है. अन्य जन केवल इसे देख सकते हैं लेकिन तुम इसकी उष्णता को महसूस कर सकते हो. अब मित्रता की उष्णता को महसूस करने के लिए धोतिका में सूसू मत कर देना. (स्माइली).
फ्रेंडशिप डे की हार्दिक शुभकामनाएं."
कैसे-कैसे एस एम एस? दुशासन सुबह से ही सेल लिए बैठा था. आज किसी काम को हाथ नहीं लगाया उसने. केवल एस एम एस रिसीव कर रहा हैं और भेज रहा है. न जाने कितनी गर्लफ्रेंड हैं इसकी. सन्देश भी ऐसे-ऐसे कि पढ़कर समझ नहीं आता कि मनुष्य हँसे कि रोये?
आज तो ऐसे लोग भी मेसेज भेज रहे हैं जिनसे मेरा झगड़ा चल रहा है.
सुबह-सुबह केशव ने भी एस एम एस करके फ्रेंडशिप डे मना डाला. फ्रेंडशिप हो या नहीं, मेसेज भेजकर लोग फारिग हो ले रहे हैं.
अवंती के राजकुमार का मेसेज कर्ण को फॉरवर्ड कर दिया मैंने. पढ़कर बिदक गया. तुंरत दूरभाष करके बोला; "ये किस तरह का अहमकपना है मित्र? मित्रता को सूसू बता रहे हो? अरे मित्रता क्या किसी एस एम एस की मोहताज है?"
समझ में नहीं आया कि क्या कहूँ? वैसे भी ये बंदा इतना सीरियस रहता है. मैंने सोचा कि मेरा एस एम एस देखकर थोड़ा मुस्कुरा लेगा लेकिन ये ठहरा जन्मजात सीरियस आदमी. किसी बात का असर ही नहीं पड़ता इसके ऊपर.
आज जयद्रथ और विकर्ण खूब खुश हैं. किसी कंसल्टेंट्स के कहने पर दोनों ने आठ-दस एस एम एस बनवाकर दो-चार लोगों को फॉरवर्ड कर दिया था. उसके बाद तो लगा कि प्रजा जन को और कोई काम ही नहीं है. न तो कोई अपनी दूकान पर अपनी ड्यूटी कर रहा है और न ही कोई आफिस में. सब जयद्रथ और विकर्ण के फॉरवर्ड किये मेसेज भेजने में लगे हुए हैं.
विकर्ण इस बात से खुश है कि फ्रेंडशिप डे पर हस्तिनापुर टेलिकम्यूनिकेशन्स लिमिटेड की एस एम एस से ही कमाई बहुत होगी. बता रहा था कि फ्रेंडशिप डे पर मेसेज से इसबार कंपनी की कमाई पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुना ज्यादा होगी.
उधर जयद्रथ ने अपने किसी चमचे की पार्टनरशिप में ग्रीटिंग कार्ड्स और फ्रेंडशिप बैंड का धंधा कर लिया है. बता रहा था कि फ्रेंडशिप बैंड की बिक्री पिछले चार दिनों से खूब हुई. कार्ड्स और बैंड की दूकान के सामने ही उसने तीन-चार तथाकथित शायरों और कवियों को बैठा दिया है जो कार्ड पर चवन्नी शायरी मुफ्त में लिख रहे हैं.
शायद इसी वजह से उसका धंधा इस बार खूब जोर हुआ है.
जयद्रथ ने सुझाव दिया कि मैं एक मेसेज एकलव्य को भेजकर उससे फ्रेंडशिप कर लूँ. बता रहा था कि एकलव्य के साथ फ्रेंडशिप आगे आने वाले समय में बहुत लाभदायक होगी. एक बार तो मन में आया कि उसके साथ मित्रता कर लूँ फिर सोचा कि गुरु द्रोण ने अंगूठा तो पहले ही कटवा लिया है. ऐसे में क्या तो वो धनुष-वाण चलाएगा?
यही सोचकर मैंने जयद्रथ का यह सुझाव खारिज कर दिया.
खैर, दुशासन और जयद्रथ ने आज रात को फ्रेंडशिप डे पर पार्टी का आयोजन किया है. सुबह से ही राजमहल में लाऊड स्पीकर पर फ़िल्मी गाने बज रहे हैं. "यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी से लेकर ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे" तक कोई भी गीत छूटा नहीं है.
चलता हूँ अब. पार्टी के लिए परिधान के सेलेक्शन में ही बहुत समय लग जाएगा. उसके बाद माला, परफ्यूम वगैरह के लिए और समय.....
आज तो पार्टी में मज़ा आ जाएगा.
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फुटनोट:
आज पार्टी में जाने से पहले ही डायरी लिख डाली. क्या पता पार्टी में कोल्ड ड्रिंक्स और पिज्जा खाने के बाद डायरी लिखने का होश रहेगा या नहीं.