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Thursday, October 28, 2010

भारतीय चुनाव - एक निबंध


@mishrashiv I'm reading: भारतीय चुनाव - एक निबंधTweet this (ट्वीट करें)!

हम लाख शिकायत करें, लेकिन एक विषय के तौर पर हिंदी पढ़ने का फायदा भी है. अब इस छात्र को ही ले लीजिये. स्कूल के दिनों में निबंध लिखने की ऐसी आदत पड़ी कि पोस्टमैन, रेलयात्रा, गाँव की सैर और मेरा प्रिय खेल जैसे विषयों पर निबंध लिखते-लिखते इसने अपनी इस आदत को अपना प्रोफेशन बना लिया. आजकल यह छात्र निबंध-लेखन की एक कम्पनी चला रहा है और यूरोपीय तथा अमेरिकी देशों में रहने वाले शिक्षकों और छात्रों के लिए भारतीय मुद्दों पर निबंध-लेखन की केपीओ (नॉलेज प्रॉसेस आउटसोर्सिंग) सर्विस देता है.

एक दिन मेरी नज़र इस छात्र द्वारा लिखे गए निबंध पर पड़ी जो भारतीय चुनावों के बारे में था. बिहार में लोग़ आजकल चुनावी दिन काट रहे हैं. ऐसे में मैंने सोचा कि यह निबंध अपने ब्लॉग पर पब्लिश करूं. आप निबंध बांचिये.

मैंने कंपनी चलाने वाले इस निबंध लेखक से परमीशन ले ली है.


भारत चुनावों का देश है. पहले यह किसानों का देश भी हुआ करता था लेकिन परिवर्तन सृष्टि का नियम है, इस सिद्धांत पर चलकर भारतवर्ष वाया नेताओं का देश होते हुए चुनावों का देश बन बैठा. जिन्हें चुनाव शब्द के बारे में नहीं पता, उनकी जानकारी के लिए बताया जाता है कि चुनाव शब्द दो शब्दों को मिलाकर बनाया गया है, चुन और नाव. चुनाव की प्रक्रिया के तहत जनता एक ऐसे नेता रुपी नाव को चुनती है जो जनता को विकास की वैतरणी पार करा सके.

(चुनाव शब्द के बारे में मेरा ज्ञान इतना ही है. इस शब्द के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए पाठकों को अग्रिम अर्जी देने की जरूरत है जिससे प्रसिद्ध शब्द-शास्त्री श्री अजित वडनेरकर की सेवा ली जा सके. ऐसी सेवा की फीस एक्स्ट्रा ली जायेगी.)

भारत में चुनावों का इतिहास पुराना है. वैसे तो हर चीज का इतिहास पुराना ही होता है लेकिन चुनावों का इतिहास ज़रुरत से ज्यादा पुराना है. देश में पहले जब राजाओं और सम्राटों का राज था, उस समय भी चुनाव होते थे. राजा और सम्राट लोग भावी शासक के रूप में अपने पुत्रों का चुनाव कर डालते थे. उदाहरण के तौर पर राजा दशरथ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र श्री राम का चुनाव किया था जिससे वे गद्दी पर बैठ सकें. यह बात अलग है कि कुछ लोचा होने के कारण श्री राम गद्दी पर नहीं बैठ सके.

राजाओं और सम्राटों द्वारा ऐसी चुनावी प्रक्रिया में जनता का कोई रोल नहीं होता था.

देश को जब आजादी नहीं मिली थी और भारत में अंग्रेजी शासन का झोलझाल था, उनदिनों भी चुनाव होते थे. तत्कालीन नेता अपने कर्मों से अपना चुनाव ख़ुद ही कर लेते थे. बाद में देश को आजादी मिलने का परिणाम यह हुआ कि जनता को भी चुनावी प्रक्रिया में हिस्सेदारी का मौका मिलने लगा. नेता और जनता, दोनों आजाद हो गए. जनता को वोट देने की आजादी मिली और नेता को वोट लेने की. वोट लेन-देन की इसी प्रक्रिया का नाम चुनाव है जो लोकतंत्र के स्टेटस को मेंटेन करने के काम आता है.

परिवर्तन होता है इस बात को साबित करने के लिए सन् १९५० से शुरू हुआ ये राजनैतिक कार्यक्रम कालांतर में सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में स्थापित हुआ.

सत्तर के दशक के मध्य तक भारत में चुनाव हर पाँच साल पर होते थे. ये ऐसे दिन थे जब जनता को चुनावों का बेसब्री से इंतजार करते देखा जाता था. बेसब्री से इंतज़ार के बाद जनता को एक अदद चुनाव के दर्शन होते थे. पाँच साल के अंतराल पर हुए चुनाव जब ख़त्म हो जाते थे तब जनता दुखी हो जाती थी. जैसे-जैसे समय बीता, जनता के इस दुःख से दुखी रहने वाले नेताओं को लगा कि पाँच साल में केवल एक बार चुनाव न तो देश के हित में थे और न ही जनता के हित में. ऐसे में पाँच साल में केवल एक बार वोट देकर दुखी होने वाली जनता को सुख देने का एक ही तरीका था कि चुनावों की फ्रीक्वेंसी बढ़ा दी जाय.

नेताओं की ऐसी सोच का नतीजा यह हुआ कि नेताओं ने प्लान करके सरकारों को गिराना शुरू किया जिससे चुनाव बिना रोक-टोक होते रहें. नतीजतन जनता को न सिर्फ़ केन्द्र में बल्कि प्रदेशों में भी गिरी हुई सरकारों के दर्शन हुए.

नब्बे के दशक तक जनता अपने वोट से केवल नेताओं का चुनाव करती थी जिससे उन्हें शासक बनाया जा सके. तब तक
चुनाव का खेल केवल सरकारों और नेताओं को बनाने और बिगाड़ने के लिए खेला जाता रहा. वोट देने और भाषण सुनने में बिजी जनता को इस बात का भान नहीं था कि वोट देने की उनकी क्षमता में आए निखार के साथ-साथ टैक्स और मंहगाई की मार सहने की उसकी बढ़ती क्षमता पर टीवी सीरियल बनाने वालों की भी नज़र थी. नतीजा यह हुआ कि इन लोगों ने जनता को इंडियन आइडल, स्टार वायस ऑफ़ इंडिया और नन्हें उस्तादों के चुनाव का भी भार दे डाला.

जिस जनता का वोट पाने के लिए नेता ज़ी लोग पैसे, शराब और बार-बालाओं के नाच वगैरह का लालच देते थे, उसी जनता को ऐसे प्रोग्राम बनाने वालों ने उन्ही का पैसा खर्चकर वोट देने को मजबूर कर दिया. वोट देकर और पैसे खर्च कर जनता खुश रहने लगी.

कुछ चुनावी विशेषज्ञ यह मानते हैं कि इतिहास अपने आपको दोहराता है, इस सिद्धांत का मान रखते हुए चुनाव की प्रक्रिया का वृत्तचित्र अब पूरा हो गया है. ऐसे विशेषज्ञों के कहने का मतलब यह है कि आज के नेतागण पुराने समय के राजाओं जैसे हो गए हैं और अपने पुत्र-पुत्रियों को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर लेते हैं. वैसे इस विचार के विरोधी विशेषज्ञ मानते हैं कि नेताओं के पुत्र-पुत्रियों को जिताने के लिए चूंकि जनता वोट कर देती है इसलिए आजकल के नेताओं को पुराने समय के राजाओं और सम्राटों जैसा मानना लोकतंत्र की तौहीन होगी.

अब तक भारतीय चुनावों को देश-विदेशों में भी काफी ख्यात-प्राप्ति हो चुकी है. लोकतंत्र और राजनीति के कुछ देशी विशेषज्ञों का मानना है कि देश की मजबूती के लिए चुनाव होते रहने चाहिए. हाल ही में कुछ मौसम-शास्त्रियों ने गर्मी, वर्षा, और सर्दी के साथ-साथ चुनावों के मौसम को एक नए मौसम के रूप में स्वीकार कर लिया है. टीवी न्यूज़ चैनल वालों ने चुनावों को जंग और संग्राम के पर्यायवाची शब्द के रूप में स्वीकार कर लिया है. कुछ न्यूज़ चैनलों ने चुनावों को महासंग्राम तक कहना शुरू कर दिया है. स्वीडेन में नाव बनाने वाली एक कंपनी ने 'भारतीय चुनाव' ब्रांड से एक नई नाव बाज़ार में उतारा है.

चुनावों की लोकप्रियता और बढ़ते बाज़ार को देखते हुए देश के बड़े औद्योगिक घरानों ने 'चुनावी विशेषज्ञ' बनाने के लिए एस ई जेड खोलने का प्रस्ताव रखा है. पगली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी ने अपने जालंधर कैम्पस में चुनावी विशेषज्ञ बनाने के लिए एक नया डिपार्टमेंट खोल लिया है जहाँ लोकसभा के कुछ सांसद लेक्चर भी डेलिवर करते हैं. आई आई सी एम को चुनाव की पढ़ाई के लिए एक नया इंस्टीच्यूट खोलने के लिए हाल ही में सरकार पचास एकड़ ज़मीन अलाट की है. कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि साल २०११-१२ से सरकार चुनावी शिक्षा में फ़ारेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की सीमा बढ़कर साठ प्रतिशत करने वाली है...........

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारतीय चुनाव दुनियाँ का सर्वश्रेष्ठ चुनाव है.

17 comments:

  1. बस सोच रही हूँ कि भगवान् जी ने तुम्हारा दिमाग किन किन तंतुओं को एसेम्बल कर बनाया है....

    कहाँ कहाँ तक चली जाती है तुम्हारी नजर और उनकी बयानी...उफ़ !!!

    क्या प्रतिभा पायी है तुमने....



    निबंध का लहजा व्यंग्यात्मक है तो क्या....आज का विद्रूप सत्य यही है...

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  2. मुझे तो लग रहा है कि आप को किसी बच्चे की निबंध की कापी-किताब कुछ मिल गयी है जिसमें एक से बढ़कर एक निबंध लिखे हुये हैं... :)

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  3. चुनाव का इतना वृहद विश्लेषण देख कौन न दीवाना हो जाये।

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  4. भारत में चूना तो स्थाई है। लगाने वाले लगाते रहते हैं। लगवाने के लिये जनता है न!
    और नाव? उसका क्या; आती जाती रहती है। मौके पर डूब जाती है।
    यह जो समझ गया मानो चुनाव का मर्म समझ गया।

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  5. आज तो सोच रहा था कि उस दोस्त के बारे में ही बताऊँ जिसकी निबंध लिखने वाली कंपनी है. पर पढ़ते-पढ़ते लगा कि इतने धांसू लेख उसकी कंपनी लिखने लगे तो फिर रेवेन्यु का हिसाब रखने की नौकरी कर लूँगा मैं वहीँ. और दो-चार चुरा के मैं भी अपने ब्लॉग पर छाप लिया करूँगा. लेकिन ऐसी कंपनी कहाँ संभव है ! मजा आ गया चुनावी विश्लेषण पढ़ कर. महासंग्राम वाले चुरा न लें कहीं. अखबार वाले तो चुराते ही रहते हैं. एक ठो नीबू मिर्ची की फोटो भी लटका दीजिये ब्लॉग पर :)

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  6. बिहार में हो रहा फिर से चुनाव
    शिव जी को आ गया लिखने का ताव
    लगे गिराने पटकने बे-भाव
    शब्द-शब्द चोट करते बिल्कुल सही ठाँव
    आऊटसोर्स अब कराइए भरी हुई नाव

    चूना लेकर दौड़ पड़े बोले काँव-काँव
    जनता बेचारी का नहीं रहा चाव

    जबरदस्त लिखा है जी...।

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  7. pura padhte hue thahake maar kar hasta gaya aur aakhir me ranjna ji sehmat ho kar jaa raha hu. kya lapet te ho aap vakai.

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  8. Maan gaye sir...Fir ek baar fod diya apne...Maza aa gaya...

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  9. आप जौहरी हैं, सी.ए. डी.ए. तो ऐंवे ही लिख रखा है आपने। कितने हीरे तराशे और तलाशे हैं आपने, हलकान भाई, वो जर्नलिस्ट कोई रसिया करके हैं(पैनल अंड चैनल स्पेशलिस्ट), अब ये के पी ओ वाले। और तो और आपके पान वाले तक हीरे से कम नहीं।
    निबंध एकदम झक्कास है, आखिरी दो पैरे तो आंखों में बहुरंगी सपने बिखेर गये।
    शिव भैया, आप ग्रेट हो।

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  10. रंजना, सिद्धार्थ और संजीत जी से सहमति… :)

    अरुंधती, शिवकुमार जी के लेख नहीं पढ़ती हैं… इसीलिये ऐसी हो गई हैं… :)

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  11. न सिर्फ़ केन्द्र में बल्कि प्रदेशों में भी गिरी हुई सरकारों के दर्शन हुए.

    पंच लाईन ..

    देख रहा हूँ सुरेश जी बहुत लोगो से सहमत हो रहे है.. उधर अभय तिवारी जी के ब्लॉग पर भी हुए थे,, चकक्र क्या है? :)

    वैसे मेरी इस बात से तो सुरेश जी भी सहमत होंगे.. :)

    बाकी निबंध फर्स्ट क्लास है

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  12. @ कुश - सुरेश जी इत्ते सहमत होईच नहीं सकते। उनकी आई डी किसी ने मार ली है! :)

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  13. आखिर कर दिया ना बालक ने चुनाव का सांस्कृतिक किरियाकरम :)

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  14. Pugly Professional University - I'm loving it.

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  15. आपकी परिभाषा:-
    "चुनाव की प्रक्रिया के तहत जनता एक ऐसे नेता रुपी नाव को चुनती है जो जनता को विकास की वैतरणी पार करा सके."
    हमारी परिभाषा:-
    चुनाव प्रक्रिया के तहत जनता एक ऐसे नेता रुपी नाव चुनती है जिसके पैंदे में छेद होता है और जो वैतरणी पार करवाने का झांसा दे कर यात्रियों को बीच भंवर में डुबो देती है...
    चुलबुल पांडे की परिभाषा:-
    चुनाव में जीत कर जनता हम तुम्हारी नाव में इतने छेद करेंगे के भूल जाओगे पानी कौनसे छेद से अंदर आएगा और कौनसे छेद से बाहर जायेगा...खी खी खी खी खी खी खी खी....

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  16. HaHaha..Giri hui sarkaarein, Pagli professional university....kamal ki post.. _/\_

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय