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Friday, July 16, 2021

फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी की कंधार में मृत्यु और लिबरल मीडियाकर्मियों का ढोंग




आज खबर आई कि रॉयटर्स (Reuters) के फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी की अफगानिस्तान के कंधार में 15 जुलाई की रात मृत्यु हो गई। प्राप्त समाचारों के अनुसार उनकी मृत्यु अफगान तालिबान और अफगान सेना के स्पेशल फोर्सेज के बीच लड़ाई के दौरान हुई। सिद्दिकी पिछले कई दिनों से अफगान सेना के साथ थे और तालिबान के खिलाफ हो रही लड़ाई को कवर कर रहे थे। हाल के दिनों में ट्विटर पर उन्होंने अफगानिस्तान में हो रही इस लड़ाई के दौरान न केवल खींची गई कई तस्वीरें साझा की थी, बल्कि वहाँ हो रही लड़ाई के बारे में अपने अनुभव भी ट्विटर थ्रेड में साझा किए थे। उनके ट्विटर हैंडल से उनका अंतिम ट्वीट 13 जुलाई का है जिसमें उन्होंने अफगान स्पेशल फोर्सेज और तालिबान के बीच कंधार में हो रही लड़ाई के बारे में लिखा था। 

सिद्दिकी की मृत्यु का समाचार सोशल मीडिया पर उपस्थित लोगों के लिए चौंकाने वाला था। यह इसलिए भी था कि उनकी उम्र अभी ऐसी नहीं थी कि कोई उनकी मृत्यु के बारे में पहले से सोचता। ऐसे में अचानक आए इस समाचार की वजह से सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों से प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई। उनके फैंस ने अपनी प्रतिक्रियाओं में उन्हें एक महान फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर याद किया।

किसी भी व्यक्ति के फैन की ओर से आई ऐसी प्रतिक्रियाएँ स्वाभाविक हैं, क्योंकि किसी के भी फैंस उसके बारे में अच्छी-अच्छी बातें ही करते हैं और केवल उनके जीते जी ही नहीं, उनकी मृत्यु पर भी उन्हें एक फैन की तरह ही याद करते हैं। यही कारण था कि सिद्दिकी के कुछ फैंस ने उन्हें याद करते हुए उनके हाल के महीनों के काम को शेयर किया जिसमें भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान खींचे गए फोटो प्रमुख थे।

सिद्दिकी के तमाम फैंस की मानें तो उनकी सबसे प्रमुख उपलब्धि इसी वर्ष अप्रैल और मई में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान श्मशान में जलती हुई चिताओं की तस्वीरें हैं। यदि ऐसा न होता तो ये फैंस उन्हीं तस्वीरों को शेयर न करते क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि ये तस्वीरें ट्विटर पर उपस्थिति एक बड़े हिस्से में किस तरह की भावना पैदा कर सकती हैं। उन्हें पता है कि सिद्दिकी द्वारा खींची गई ये तस्वीरें क्यों चर्चा का विषय बन गई थी। शायद यही कारण होगा जो फैंस ने जानबूझकर इन्हीं तस्वीरों को याद किया।

इन्हीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसे भी लोग हैं जो सिद्दिकी को पसंद नहीं करते। ऐसे में इस बात की संभावना अधिक है कि उन्हें पसंद न करनेवाले भी उन्हीं तस्वीरों को याद करेंगे जिनके कारण वे उन्हें पसंद नहीं करते केवल याद करेंगे बल्कि फैंस द्वारा इन्हीं तस्वीरों को साझा किये जाने पर ऐसी प्रतिक्रिया देंगे जो उनके फैंस को पसंद नहीं आएँगी। यही हुआ पर उनकी प्रतिक्रियाओं की सिद्दिकी के फैंस द्वारा जमकर आलोचना की गई। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि सिद्दिकी के विरोधी किसी भी तरह से अपॉलिजेटिक क्यों दिखें? सिद्दिकी विरोधियों से आई प्रतिक्रियाओं को खोदकर उसमें से संस्कृति, आचरण, कपट वगैरह निकालने की कोशिश करते हुए उन्हें उलाहना देने की बात कहाँ तक जायज है?

सिद्दिकी फैंस केवल यहीं तक नहीं रुके। किसी ने उनकी लाश की फोटो शेयर कर दी तो एक पत्रकार ने उसे ऐसा न करने का अनुरोध किया। मजे की बात यह है कि सिद्दीकी की लाश की फोटो शेयर न करने का अनुरोध करने वाली इस पत्रकार ने कुछ समय पहले ही उन्हें याद करते हुए उनकी उन्हीं तस्वीरों को शेयर किया था जो श्मशान में जल रही चिंताओं की थी। बहुत बड़ी विडंबना है कि अपने जीवनकाल में सिद्दिकी ने उस तस्वीर को पूरी दुनिया के साथ साझा किया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी फैन यह पत्रकार उन्हें याद करते हुए वही तस्वीर साझा कर रही है पर दूसरों से यह अपेक्षा करती है कि वे सिद्दकी की लाश की तस्वीर शेयर न करें।

यह ढोंग की पराकाष्ठा है, खासकर इसलिए क्योंकि किसी हिन्दू द्वारा चिताओं की तसवीरें साझा न करने का अनुरोध 'पत्रकारिता के कर्त्तव्य' तले बड़े आराम से कुचल दिया जाता है। ऐसे लोगों से पूछने की आवश्यकता है कि मृत शरीरों में अंतर क्या है? बस इतना ही न कि जलती हुई चिताएँ जिनकी हैं उन्हें कोई नहीं जानता पर दूसरे केस में सब जानते हैं कि जो लाश पड़ी हुई है वह सिद्दकी की है? आखिर ऐसा क्या है कि जिन्हें दूसरों की जलती चिताएं दिखाने का रत्ती भर पछतावा नहीं है वे किसी और की लाश की तस्वीर साझा करने को बुरा मान रहे हैं?  

मानव स्वभाव ही ऐसा है कि संवेदना के प्रति बहुत सजग रहता है। प्रेम और घृणा एकतरफा हो सकती है पर संवेदना एकतरफा कभी नहीं हो सकती। संवेदना की अभिव्यक्ति पहले व्यक्त की गई किसी संवेदना के अनुसार ही होती है। हम जिससे संवेदना की अपेक्षा रखते हैं उसके प्रति भी संवेदना व्यक्त करना हमारी जिम्मेदारी होती है नहीं तो ऐसी अपेक्षा का कोई ख़ास मतलब नहीं होता। यह बात केवल सोशल मीडिया पर लागू नहीं होती बल्कि आम ज़िन्दगी में भी लागू होती है। इसे लेकर समय और आवश्यकतानुसार सेलेक्टिव नहीं हुआ जा सकता।

यही कारण है कि जब उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि 'कुछ #रामी दानिश सिद्दिकी से केवल इसलिए नफ़रत कर रहे हैं क्योंकि वह अपने काम में माहिर थे' तो अब्दुल्ला को भी पता है कि वे सच नहीं कह रहे। सिद्दिकी के विरोधी उनसे नफरत नहीं बल्कि केवल उनका विरोध करते थे। नफ़रत तो विरोध का एक आयाम भर है। ये विरोधी इसलिए विरोध नहीं करते थे क्योंकि दानिश सिद्दिकी अपने काम में माहिर थे बल्कि इसलिए विरोध करते थे क्योंकि जब इन लोगों ने सिद्दिकी से आश लगाई कि सिद्दिकी एक पूरे समुदाय के प्रति संवेदनशील दिखें तब उन्होंने ऐसा नहीं किया।

उमर अब्दुल्ला को समझने की आवश्यकता है कि अधिकतर लोग पेशेवर लोगों की उत्कृष्टता को सेलिब्रेट करते हैं और वे जिन्हें चुनकर गाली दे रहे हैं, उस समाज के लोग किसी का केवल इसलिए विरोध नहीं कर सकते क्योंकि वह अपने काम में माहिर है। उनके विरोध के पीछे ठोस कारण है। उमर अब्दुल्ला की ये बात मुझे किसी पत्रकार की ट्विस्टिंग सी लगी। पता नहीं किस पत्रकार से प्रभावित हैं वे।  

कई पत्रकार सोशल मीडिया या फिर परंपरागत मीडिया में जघन्य से जघन्य तस्वीर दिखाने से नहीं हिचकते, क्योंकि वे इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी कहते हैं पर वह दूसरों की इसी आज़ादी को लेकर शंकित रहते हैं। जैसे अभिव्यक्ति की आज़ादी की समझ केवल उन्हें ही है। सच्चाई दिखाने के नाम पर भले ही लोग सिद्दिकी द्वारा खींची गई तस्वीरें साझा करते रहे पर सच यह है कि दानिश सिद्दिकी की सच्चाई के ये फैंस यह तक कहने में हिचकते रहे कि सिद्दिकी को तालिबान ने मारा। इन्हें यह कहने में क्या हिचक है यह तो ये ही जानें पर यह एक बात सच के लिए इनकी तथाकथित लड़ाई की पोल खोल कर रख देती है।

सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आज़ादी सबके लिए है। जिस हिन्दू संस्कृति का हवाला देकर आज मृत्यु के बाद दानिश सिद्दिकी की आलोचना न करने या उनकी लाश की तस्वीर साझा न करने का अनुरोध किया जा रहा है उसी संस्कृति का हवाला देकर इन्हीं सिद्दकी से लोगों ने चिताओं की तस्वीरें न खींचने या उन्हें प्रकाशित न करने का अनुरोध किया था जिसे लेकर उन्होंने रत्ती भर संवेदना नहीं दिखाई थी। ऐसे में समझने की आवश्यकता है कि अभिव्यक्ति की जिस आज़ादी की शरण में तब दानिश सिद्दिकी गए थे, उसी की शरण में जाने का अधिकार उनके विरोधियों का भी है।