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Wednesday, September 29, 2010

नारा ही देश को महान बनाता है..




सत्तर और अस्सी के दशक के सरकारी नारों को पढ़कर बड़े हुए। उस समय समझ कम थी। अब याद आता है तो बातें थोड़ी-थोड़ी समझ में आती हैं। ट्रक, बस, रेलवे स्टेशन और स्कूल की दीवारों पर लिखा गया नारा, 'अनुशासन ही देश को महान बनाता है' सबसे ज्यादा दिखाई देता था।

भविष्य में इतिहासकार जब इस नारे के बारे में खोज करेंगे तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि 'एक समय ऐसा भी आया था जब अचानक पूरे देश में अनुशासन की कमी पड़ गई थी। अब गेंहूँ की कमी होती तो अमेरिका से गेहूं का आयात कर लेते (सोवियत रूस के मना करने के बावजूद), जैसा कि पहले से होता आया था। लेकिन अनुशासन कोई गेहूं तो है नहीं।' इतिहासकार जब इस बात की खोज करेंगे कि अनुशासन की पुनर्स्थापना कैसे की गई तो शायद कुछ ऐसी रिपोर्ट आये:-

'सरकार' के माथे पर पसीने की बूँदें थीं। अब क्या किया जाय? इस तरह की समस्या पहले हुई होती तो पुराना रेकॉर्ड देखकर समाधान कर दिया जाता। चिंताग्रस्त प्रधानमंत्री ने नैतिकता और अनुशासन को बढावा देने वाली कैबिनेट कमिटी की मीटिंग बुलाई। चिंतित मंत्रियों के बीच एक 'इन्टेलीजेन्ट' अफसर भी था। सारी समस्या सुनने के बाद उसके मुँह से निकला "धत तेरी। बस, इतनी सी बात? ये लीजिये नारा"। उसके बाद उसने 'अनुशासन ही देश को महान बनाता है' नामक नारा दिया। साथ में उसने बताया; "इस नारे को जगह-जगह लिखवा दीजिए और फिर देखिए किस तरह से अनुशासन देश के लोगों में कूट-कूट कर भर जाएगा"।

मंत्रियों के चेहरे खिल गए। सभी ने एक दूसरे को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने उस अफसर की भूरि-भूरि प्रशंसा की।एक मंत्री ने नारे के सफलता को लेकर कुछ शंका जाहिर की। उस मंत्री की शंका का समाधान अफसर ने तुरंत कुछ इस तरह किया। "आप चिन्ता ना करें, नारा पूरा काम करेगा। काबिल नारों को लिखने का अपना पारिवारिक रेकॉर्ड अच्छा है। मेरे पिताजी ने ही साम्प्रदायिकता की समस्या का समाधान 'हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई' नामक नारा लिखकर किया था"।

इस अनुशासन वाले नारे ने अपना काम किया। लोगों में अनुशासन की पुनर्स्थापना हो गई। हम ऐसे निष्कर्ष पर इस लिए पहुंच सके क्योंकि नब्बे के दशक के बाद ये नारा लगभग लुप्त हो गया। ट्रकों पर नब्बे के दशक में इस नारे की जगह 'नाथ सकल सम्पदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी' जैसे नारों ने ले ली। जहाँ तक रेलवे स्टेशन की बात है तो वहाँ इस नारे की जगह 'जहर खुरानों से सावधान' और 'संदिग्ध वस्तुओं को देखकर कृपया पुलिस को सूचित करें' जैसे नारों ने ले ली। ये अनुशासन वाला नारा कहीँ पर लिखा हुआ नहीं दिखा। दिखने का कोई प्रयोजन भी नहीं था। जब अनुशासन की पुनर्स्थापना हो गई तो नारे का कोई मतलब नहीं रहा।'

ये तो थी इतिहासकारों की वो रिपोर्ट जो आज से पच्चास साल बाद प्रकाशित होगी और इस रिपोर्ट पर शोध करके छात्र 'इतिहास के डाक्टर' बनेंगे। लेकिन नब्बे के दशक से इस नारे का सही उपयोग हमने शुरू किया।

अनुशासन शब्द का व्यावहारिक अर्थ हो सकता है 'खुद के ऊपर शासन करना' या एक तरह 'लगाम लगाना'। (व्यावहारिकता की बात केवल इस लिए कर रहा हूँ क्योंकि ये नारा केवल हिंदी के डाक्टरों' के लिए नहीं लिखा गया था)। लेकिन शार्टकट खोजने की हमारी सामाजिक परम्परा के तहत हमने इस शब्द का 'शार्ट अर्थ' भी निकाल लिया। हमने इस अर्थ, यानी 'खुद के ऊपर शासन करना' में से 'के ऊपर' निकाल दिया। 'शार्ट अर्थ' का सवाल जो था। उसके बाद जो अर्थ बचा, वो था 'खुद शासन करना'। और ऐसे अर्थ का प्रभाव हमारे सामने है।

हम सभी ने खुद शासन करना शुरू कर दिया। होना भी यही चाहिए। जब अपने अन्दर 'शासक' होने की क्षमता है, तो हम सरकार या फिर किसी और को अपने ऊपर शासन क्यों करने दें? अब हम रोज पूरी लगन से अपनी शासकीय कार्यवाई करते हैं। आलम ये है कि हम सड़क पर बीचों-बीच बसें खडी करवा लेते हैं। इशारा करने पर अगर बस नहीं रुके तो गालियों की बौछार से ड्राइवर को धो देते हैं। आख़िर शासक जो ठहरे। हमारे शासन का सबसे उच्चस्तरीय नज़ारा तब देखने को मिलता है जब कोई मोटरसाईकिल सवार सिग्नल लाल होने के बावजूद सांप की तरह चलकर फुटपाथ का सही उपयोग करते हुए आगे निकल जाता है।


कभी-कभी सामूहिक शासन का नज़ारा देखने को मिलता है। हम बरात लेकर निकलते हैं। पूरी की पूरी सड़क पर कब्जा कर लेते हैं और आधा घंटे में तय कर सकने वाली दूरी को तीन घंटे में तय करते हैं। ट्रैफिक जाम करने का मौका बसों और कारों को नहीं देते। वैसे भी क्यों दें, जब हमारे अन्दर इतनी क्षमता है कि हम खुद ही जाम कर सकते हैं।

सामूहिक शासन के तहत रही सही कसर हमारे धार्मिक शासक पूरी कर देते हैं। बीच सड़क पर दुर्गा पूजा से लेकर शनि पूजा तक का प्रायोजित कार्यक्रम पूरी लगन के साथ करते हैं। पूजा ख़त्म होने के बाद मूर्तियों का भसान और उसके बाद नाच-गाने का 'कल्चरल प्रोग्राम', सब कुछ सड़क पर ही होता है। हर महीने ऐसे लोगों को देखकर हम आश्वस्त हो जाते हैं कि देश में डेमोक्रेसी है।

हमारे इस कार्यवाई में पुलिस भी कुछ नहीं बोलती। बोलेगी भी क्यों? ट्रैफिक मैनेजमेंट का तरीका भी नारों के ऊपर टिका है। रोज आफिस जाते हुए पुलिस द्वारा बिछाए गए कम से कम बीस नारे देखता हूँ। ट्रैफिक के सिपाही को उसके बडे अफसर ने हिदायत दे रखी है कि कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। हाँ, जनता को नारे दिखने चाहिए। बाक़ी तो जनता अनुशासित है ही।

मैं इस बात से पूरी तरह आश्वस्त हूँ कि 'पुलिस आफिसर आन् स्पेशल ड्यूटी' होते हैं जिनका काम केवल नारे लिखना है। नारे पढ़कर मैं कह सकता हूँ कि ये आफिसर अपना काम बडे मनोयोग के साथ करते हैं। रोज आफिस जाते हुए मेरी मुलाक़ात कोलकता पुलिस के एक साइनबोर्ड से होती है जिसपर लिखा हुआ है; 'लाइफ हैज नो स्पेयर, सो टेक वेरी गुड केयर'।

इस बोर्ड को सड़क के एक कोने में रखकर ट्रैफिक का सिपाही गप्पे हांक रहा होता है। उसे इस बात से शिक़ायत है कि पिछले मैच में मोहन बागान के स्ट्राईकर ने पास मिस कर दिया नहीं तो ईस्ट बंगाल मैच नहीं जीत पाता।

आशा है कि नारे लिखकर समस्याओं का समाधान खोजने की हमारी क्षमता भविष्य में और भी निखरेगी। नारे पुलिस के लिए भी काम करते रहेंगे। जरूरत भी है, क्योंकि आने वाले दिनों में भी ईस्ट बंगाल मोहन बगान को हराता रहेगा। हम अपने अनुशासन (या फिर शासन) में नए-नए प्रयोग करते रहेंगे।

Sunday, September 26, 2010

आप देख रहे हैं हमारा विशेष कार्यक्रम, "टूट गई खाट, लग गई वाट"




ब्लॉग चलाने में तमाम दिक्कतें आती हैं. कुछ भी हुआ नहीं कि पंद्रह मिनट बैठे और उसपर एक पोस्ट ठेल दिया. कल रात को पता चला कि कामनवेल्थ गेम्स विलेज में एक एथलीट की खाट टूट गई. अजीब चीज है ये खाट भी. जहाँ रहेगी, कुछ न कुछ करवा कर छोड़ेगी. उधर कामनवेल्थ गेम्स की खड़ी है और इधर एथलीट की टूट गई. अब कल रात को जैसे ही पता चला कि एथलीट की खाट टूट गई, उसी समय मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि आप अपने ब्लॉग पत्रकार चंदू चौरसिया को भेजकर इस एथलीट का इंटरव्यू लीजिये. आखिर खाट का तो इंटरव्यू ले नहीं सकते, कम से कम एथलीट अखिल कुमार का इंटरव्यू लीजिये. मैंने उन्हें बताया कि आज रविवार होने की वजह से चंदू चौरसिया ज़ी छुट्टी पर रहेंगे. ऐसे में अखिल कुमार ज़ी का इंटरव्यू लेने मुझे खुद दिल्ली जाना पड़ेगा.

आज सुबह दिल्ली जाने की तैयारी कर रह था कि टीवी पर 'राज तक ' चैनल पर अखिल कुमार ज़ी का इंटरव्यू दिखाया जा रह था. मुझे लगा कि बावला ज़ी जब अपने चैनल पर अखिल कुमार ज़ी का इंटरव्यू दिखा ही रहे हैं तो मुझे क्या ज़रुरत है दिल्ली जाकर अखिल कुमार का इंटरव्यू लेने की? भाई मैं ब्लॉग चलाता हूँ वे चैनल चलाते हैं लेकिन सवाल तो एक ही होंगे न. उनके संवाददाता सवाल पूछ रहे हैं. उसके बाद मैं भी वही सारे सवाल पूछकर अखिल कुमार ज़ी को क्यों बोर करूं?

मेरे मन में आया कि राजतक चैनल पर अखिल कुमार का जो इंटरव्यू हुआ उसी को आपलोगों तक पहुँचा देता हूँ. आप बांचिये कि चैनल ने क्या दिखाया.

राजतक न्यूज चैनल का स्टूडियो. सुबह के करीब ८:५८ मिनट होने वाले हैं. राजतक वालों ने पिछले १२ घंटों में न्यूज दिखा-दिखा कर इस बात को साबित कर दिया है कि मुक्केबाज अखिल कुमार की खाट टूटने की घटना भारतीय इतिहास की इस सदी की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण घटना है. पहली गाँव पीपली के नत्था दास की आत्महत्या थी. चैनल वालों ने तमाम लोगों को इस महत्वपूर्ण घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने एक लिए अपने स्टूडियो बुला रखा है. यह एक विशेष कार्यक्रम है जिसका शीर्षक है "टूट गई खाट, लग गई वाट".

चूंकि यह पीपली गाँव के नत्था दास की आत्महत्या के मामले के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण घटना है इसलिए स्टूडियो में फिल्म के प्रोड्यूसर आमिर खान आये हैं. यह खेलों का मामला है इसलिए फॉर्मर क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू हैं. यह मामला खाट से जुडा हुआ है इसलिए दिल्ली के बाहरी इलाके नजफगढ़ से झिंगुरी लोहार को स्टूडियो में बैठाया गया है. एक मुक्केबाज के बैठने की वजह से खाट टूटी थी इसलिए एक बॉक्सर को भी स्टूडियो में बुलाया गया है. और दिल्ली कामनवेल्थ गेम्स के रास्ते में शुरू से ही तमाम अड़चने आ रही हैं इसलिए ग्रहों के चक्कर वगैरह की बात करने के लिए ज्योतिषाचार्य नंदू प्रकाश महाराज को बुलाया गया था.

कार्यक्रम का संचालन राजतक चैनल के स्पोर्ट्स एडिटर सुशांत कर रहे हैं. उधर गेम्स विलेज में चैनल के संवाददाता रंदीप सोनवलकर मौजूद थे. इधर स्टूडियो से सुशांत ने शुरुआत करते हुए आवाज़ लगाई; "ज़ी हाँ, टूट गई खाट. लग गई वाट. जैसा कि आप ब्रेकिंग न्यूज में ब्रोकेन खाट के बारे में देख रहे हैं. क्यों टूटी खाट? कौन है जिम्मेदार इस टूटी खाट के लिए? आइये आपको लिए चलते हैं गेम्स विलेज जहाँ हमारे संवाददाता रंदीप सोनवलकर मौजूद है. रंदीप क्या है ये मामला? कैसे टूटी ये खाट? कौन जिम्मेदार है इस खाट को तोड़ने के लिए?"

उधर से आवाज़ आई; "ज़ी हाँ सुशांत. जैसा कि आप देख रहे हैं यह खाट टूट चुकी है. हम आपको दिखाने कि कोशिश कर रहे हैं... अगर हमारा कैमरा यहाँ से तस्वीर ले ..हाँ, अब आप देख सकते हैं कि खाट टूट गई है. कहीं न कहीं यह लापरवाही का नतीजा है सुशांत. एक बार फिर से देश को छला गया है."

"रंदीप आप की किसी से बात हुई है इस घटना पर? मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का क्या कहना है इस टूटी खाट के बारे में?"; सुशांत ने सवाल दागा.

"सुशांत मैंने कल रात से ही मुख्यमंत्री से बात करने की कोशिश की है लेकिन उन्होंने खाट के ऊपर बात करने से मना कर दिया. उनका स्टाफ कहता है कि मुख्यमंत्री इस समय मीटिंग में हैं. हाँ, हमारे साथ इस समय अखिल कुमार हैं जिनकी खाट टूट गई थी. आइये उनसे पूछते हैं"; यह कहते हुए रंदीप अखिल कुमार से मुखातिब हुए.

अखिल से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहना शुरू किया; "अखिल ज़ी ये बताइए कि..."

अभी उन्होंने यह बोलना शुरू ही किया था कि अखिल कुमार ने उन्हें रोकते हुए कहा; "एक मिनट-एक मिनट. पहले मैं कुछ कहना चाहता हूँ. वह ये है कि खबरदार अगर यह सवाल पूछा कि खाट टूटने के बाद आपको कैसा लग रहा है. अगर ऐसा सवाल पूछा तो मैं फोड़ डालूँगा. बता दे रहा हूँ. मैं बॉक्सर हूँ. ऊपर से कल रात से ही फ्रसट्रेटेड भी हूँ."

अखिल कुमार की बात सुनकर रंदीप बोले; "मैं यह सवाल पूछने ही वाला था. अच्छा हुआ आपने मुझे बता दिया नहीं तो मेरा जबड़ा टूट जाता. चलिए मैं आपसे यह सवाल नहीं पूछता. मैं आपसे यह पूछता हूँ कि आप पूरी घटना के बारे में बताइए. क्या हुआ कल?"

अखिल कुमार बोले; "बस, हमलोग आये. हम मुक्केबाजों को जो रूम मिला है उसमें घुसे और मैं आराम करने के लिए जैसे ही खाट पर बैठा कि वह टूट गई."

"तो आपको कैसे यह लगा कि खाट टूट चुकी है?"; रंदीप ने पूछा.

उसका सवाल सुनकर अखिल कुमार भड़क गए. वे बोले; "अरे बता तो रह हूँ कि मैं उसपर बैठा और वह टूट गई. मैं खाट की प्लाई के साथ फर्श पर गिर गया."

तभी स्टूडियो में बैठे आमिर खान ने सुशांत को इशारा किया कि वे अखिल कुमार से सवाल पूछना चाहते हैं. सुशांत ने रंदीप से कहा कि आमिर खान सवाल करना चाहते हैं. रंदीप ने आमिर के सवाल को सुना और अखिल कुमार के सामने वही सवाल दोहरा दिया. बोले; "अखिल ज़ी, इस समय हमारे स्टूडियो में आमिर खान बैठे हैं. वे आपसे सवाल करना चाहते हैं कि जब आप खाट पर बैठे तो क्या आप सीधा नाइंटी डिग्री पर बैठे या फिर अस्सी डिग्री पर."

सवाल सुनकर अखिल कुमार थोड़े चिढ़ गए. बोले; "वैसे तो में आमिर खान ज़ी का फैन हूँ लेकिन इतना कहना चाहता हूँ कि वे परफेक्शन के पीछे इतने क्यों पड़े रहते हैं? कोई खाट पर बैठते समय यह थोड़े न देखेगा कि कितने डिग्री पर बैठ रहा है."

उनकी बात सुनकर आमिर खान मुस्कुरा दिए. बोले; "मैं केवल यह देखना चाहता था कि जब अखिल कुमार खाट पर बैठे होंगे तो उसपर कितना भार पड़ा होगा. खैर, जाने दीजिये. उन्होंने बैठते समय एंगल नहीं मापा होगा."

तभी सुशांत ने बीच में बात शुरू की. बोले; "रंदीप, अखिल ज़ी से पूछिए कि कामनवेल्थ गेम्स वालों ने यह अफवाह फैला रखी है कि शायद अखिल कुमार का वजन कुछ बढ़ गया है. ओर्गेनाइजिन्ग कमिटी का कहना है कि वह खाट अखिल कुमार के लिए सपेसिअली बनवाई गई थी. यह सोचते हुए कि अखिल कुमार ५६ केजी वर्ग के बॉक्सर हैं. तो कहीं ऐसा तो नहीं कि अखिल कुमार का वजन कुछ बढ़ गया है? मेरा मतलब दो-ढाई सौ ग्राम उनका वजन बढ़ गया हो. ऐसा भी तो हो सकता है."

उनका सवाल सुनकर अखिल कुमार बिदक गए. बोले; "मेरा वजन जरा भी नहीं बढ़ा है. यह जो है सरासर गलत इल्जाम है. सच तो यह है कि खाट प्लाईवूड की थी ही नहीं. जैसे टूटी उसे देखते हुए लगा कि मोटे कागज़ की बनी थी."

उनकी बात सुनकर सब एक साथ हँस पड़े. सुशांत बोले; "यहाँ मैं झिंगुरी ज़ी को लाना चाहूँगा और उनसे पूछूंगा कि क्या ऐसा हो सकता है कि खाट बनाने के लिए क्या मोटे कागजों का इस्तेमाल किया जा सकता है. क्या प्लाईवूड की जगह मोटे कागज़ लगाये जा सकते हैं?"

उनकी बात सुनकर झिंगुरी ज़ी बोले; " हा हा हा. क्यों नहीं? आप पैसा खर्च नहीं करना चाहते तो किसी भी चीज से बेड तैयार हो जाएगा."

"लेकिन पैसा न खर्च करना चाहते हैं से क्या मतलब? कामनवेल्थ गेम्स के लिए इतना पैसा खर्च हुआ. मैं यहाँ सिद्धू ज़ी से पूछूँगा कि उन्हें क्या लगता है? क्या कलमाडी को उनके पद से हटाया नहीं जा सकता?"; सुशांत ने इस बार सिद्धू ज़ी से पूछ लिया.

सुशांत की तो जैसे शामत आ गई. सिद्धू ज़ी बोले; "देख सुन ले गुरु, उबले अंडे से कभी ऑमलेट नहीं बनाया जा सकता. दिल्ली में राजपथ से कुल्फी के ठेले उठवाये जा सकते हैं लेकिन इंडिया गेट नहीं उठावाया जा सकता. किसी सियासत वाले बन्दे से कभी रिजाइन नहीं करवाया जा सकता और जिन्हें चश्का हो सिर्फ चूरन चाटने का, उन्हें शहद नहीं चटाया जा सकता."

अब सुशांत की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? अकबका कर वे आचार्य चंदू प्रकाश को बीच में लाये. बोले; "आपको क्या लगता है आचार्य ज़ी? यह कामनवेल्थ गेम्स में इतनी दिक्कतें क्यों आ रही हैं?

आचार्य ज़ी बोले; "सुशांत ज़ी आप अखिल कुमार ज़ी से यह पूछिए कि खाट किस दिशा से किस दिशा में रखी हुई थी? क्या वह उत्तर से दक्खिन दिशा की तरफ थी?"

जब उन्हें यह पता लगा कि खाट उत्तर से दक्खिन नहीं बल्कि पूरब से पश्चिम दिशा की ओर रखी गई थी तब उन्होंने कहना शुरू किया; "सुशांत ज़ी यही समस्या है. दरअसल गेम्स विलेज में चीजें वास्तु के अनुसार नहीं रखी हैं. अखिल कुमार ज़ी ने खाट पर बैठने का जो समय बताया उस समय चंद्रमा राहु के घर में प्रवेश कर चुका था. मंगल और शनि की टक्कर बुध की अनुपस्थिति में हो रही थी और यही कारण है की उस समय चीजें कमज़ोर हो जाती हैं और उनके टूटने का भय रहता है......कामनवेल्थ गेम्स के बारे में मैंने मार्च २००७ में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि गेम्स के ऊपर काला साया मंडरा रहा है. आपको अगर याद हो तो जब ये गेम्स भारत को मिले थे उनदिनों अटल ज़ी प्रधानमंत्री थे और बहुत कम लोगों को पता होगा कि अटल ज़ी का वृहस्पति हमेशा से कमज़ोर रहा है....जहाँ तक कलमाडी के शनि की बात है तो वह...."

अभी वे बोल ही रहे थे कि अचानक उधर से रंदीप ज़ी ने बोलना शुरू किया कि; "सुशांत अभी-अभी प्राप्त जानकारी के अनुसार एक अफ्रीकी एथलीट के कमरे में सांप घुस आया है. मैं वहां जाकर उस खबर को लाइव दिखाता हूँ..."

उधर रंदीप ने कनेक्शन काटा और इधर सुशांत ज़ी ने प्रोग्राम ही ख़त्म कर दिया. जिस फोर्मेर बॉक्सर को बुलाया गया था वह गरम हो गया. बोला; "हमसे सवाल ही नहीं पूछना था तो हमें बुलाया क्यों? आपलोग इतने लोगों को बुला लेते हैं और उन्हें बोलने का मौका नहीं देते. मुझे यह बात याद रहेगी....मैं आइन्दा आपके प्रोग्राम में कभी नहीं......"

वो बोलता जा रह था और इधर सुशांत ने पर्दा गिराते हुए कहा; "तो ये था हमारा विशेष कार्यक्रम टू गई खाट, लग गई वाट. आगे की खबरें देखने के लिए देखते रहिये राजतक."

Wednesday, September 22, 2010

"..अमेरिका पकिस्तान को एंटी नो-बॉल मिसाइल दे."




करीब पंद्रह दिन हो गए जब इंग्लैंड के एक बुकी मज़हर मजीद ने एक अखबार के साथ मिलकर पाकिस्तान के तीन निर्दोष खिलाड़ियों को फिक्सिंग में फँसा दिया. ये खिलाड़ी निर्दोष हैं बेचारे. साथ ही टैलेंटेड भी हैं. निर्दोष और टैलेंटता के अद्भुत संगम वाले इन तीन खिलाड़ियों में से दो ने नो-बॉल फेंकी थी और एक ने फिंकवाई.

आप पूछ सकते हैं कि पुरानी घटना पर मैं आज क्यों लिख रहा हूँ? तो मैं आपको बता दूँ कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने इंग्लैंड में नो-बॉल फिक्स किया. जिस अखबार ने बेचारे निर्दोष खिलाड़ियों को फंसाया वह इंग्लैंड का था. ऐसे में यह एक ग्लोबल घटना हुई कि नहीं?

तो ग्लोबेलाइजेशन के इस युग में ग्लोबल घटना पर लोकल बात करना जायज है क्या? नहीं न? इसीलिए मैंने अपने ब्लॉग पत्रकार चंदू चौरसिया को दुनियाँ भर में भेजकर लोगों की प्रतिक्रिया लेनी चाही. आप बांचिये कि लोगों ने क्या कहा?

हिलेरी क्लिंटन, यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट्स : "वी री-टरेट आर पोजीशन दैट इंडिया इज ऐन एमर्जिंग इकॉनोमिक सुपरपॉवर इन साउथ एशिया. वी वुड आल्सो लाइक टू स्टेट दैट पाकिस्तान इज आर नेचुरल-अलाई ह्वेन इट कम्स टू एलिमिनेटिंग दिस मेनेस ऑफ नो-बॉल नॉट ओनली फ्रॉम एशिया बट शुड आई से, फ्रॉम होल वर्ल्ड ...वी विल वर्क क्लोजली विद पकिस्तान टू डिस्मैन्टेल द फोर्सेस बिहाइंड बाउलिंग नो-बॉल. दिस सॉर्ट ऑफ एक्टिविटीज...वी अवेट अ रिपोर्ट फ्रॉम आर नेटो अलाई, यूनाइटेड किंगडम टू लुक इन टू ह्वाट ट्रान्स्पायर्ड फॉर दीज यंग नो-बॉल बॉलर्स..."

आसिफ अली ज़रदारी, टेन परसेंट प्रेसिडेंट, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान: "ओ ज़ी ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. ये लड़के टैलेंटेड हैं इसलिए नो-बॉल कर दिया. और मैं आपसे पूछता हूँ कि कितनी परसेंट नो-बॉल फेंकी है बच्चे ने? अब छ बॉल का एक ओवर होता है. उसमें से एक नो-बॉल फेंक ही दे तो करीब १६ पारसेंट होती है नो-बॉल....मैं आपकी बात मानता हूँ कि बच्चों को नो-बॉल का पारसेंट कम कर के करीब दस तक लाना चाहिए. मतलब ये कि हर दास बॉल में एक नो-बॉल चलेगा. मैं खुद भी इस बात को मानता हूँ कि कोई भी काम दस पारसेंट तक ठीक है..."

एजाज बट, प्रेसिडेंट, पकिस्तान क्रिकेट बोर्ड एंड चीफ कांस्पीरेसी थेओरिस्ट, एजाज बट स्कूल ऑफ क्रिकेट मैनेजमेंट : "ये ज़ी, हमारे बच्चों को फंसाया गया है. नो-बॉल फिक्सिंग सरासर झूटी बात है. ये पाकिस्तान के खिलाफ साजिश है. कल ही एक बुकी ने मुझे बताया कि दारसल अम्पायर ने क्रीज की सामने वाली लाइन को पीछे खिसका दिया था इसलिए नो-बॉल हो गया. क्रीज की सामने वाली लाइन को पीछे खिसकाने में अम्पायर के साथ इंग्लैंड के खिलाड़ी भी इन्वोल्व हैं. इस काम के लिए अम्पायर को डेढ़ लाख पाउंड पेमेंट किया गया है. आई सी सी के पास कोई सुबूत नहीं है कि हमारे बच्चे फिक्सिंग में इन्वोल्व हैं. वहीँ मेरे बुकी के पास सुबूत है कि अम्पायर ने क्रीज -लाइन को पीछे खिसका दिया था...."

रहमान मलिक, इन्टेरियर मिनिस्टर एंड चीफ एविडेंस सीकर, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पकिस्तान: "हामने जांच की है और मैं आपको गारंटी से बता सकता हूँ कि न्यूज़ ऑफ ड वर्ल्ड के एविडेंस काफी नहीं हैं. हामने पता लगाया है कि ये पाकिस्तान टीम के खिलाफ साजिश है और इसमें हिन्दस्तान का रा ही सही लेकिन हाथ ज़रूर है. हिन्दस्तान जब पकिस्तान को बॉल में नहीं फँसा ससका तो फिर साजिश करके नो-बॉल में फंसाने की कोशिश कर रहा है. हामने चार और डोस्सियर मांगे हैं इंग्लैंड से....."

मुल्लाह ओमर, स्पिरिचुअल लीडर, तालिबान स्कूल ऑफ स्पिरिचुअलिटी: "आल्लाह ने हमें एक और तरीका दे दिया दिया है अमेरिकियों से लड़ने का. पहले जब हम ख़ुदा के सिपाही कहीं बॉल-बम रखने जाते थे तो 'स्क्यूरिटी' की वजह से पकड़ लिए जाते थे. अब पाकिस्तानी साइंस-दानों की मदद से हम नो-बॉल बम बनायेंगे. हमारे साइंस-दान और पाकिस्तानी साइंस-दान मिलकर काम कर रहे हैं और ख़ुदा के करम से हम जल्द ही नो-बॉल बम बना लेंगे. नो-बॉल बम का फायदा ये होगा कि वो दिक्खेगा ही नहीं. फिर हमें अमरीकी 'स्क्यूरिटी' वाले कैसे पकड़ेंगे...."

शाह महमूद कुरैशी, फ़ारेन मिनिस्टर एंड एड रिजेक्टर, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पकिस्तान: "हम इंडिया से कहेंगे कि हम उनके साथ मिलकर इस नो-बॉल को ख़त्म करना चाहते हैं. हम ये भी कहेंगे कि इंडिया हमारे साथ नो-बॉल पर इंटेलिजेंस शेयर करे.....हाल ही में अपने वाशिंगटन 'टूर' में मैंने प्रेसिडेंट ओबामा से डिमांड की है कि अमेरिका पकिस्तान को एंटी नो-बॉल मिसाइल दे जिससे हम नो-बॉल को कंट्रोल कर सकें...हमारी कोशिश रहेगी कि नो-बॉल को अफगानिस्तान में फैलने से रोका जाय लेकिन उसके लिए हमारी फ़ौज का नॉर्थ-वेस्टर्न बोर्डर पर रहना जुरुरी है...."

श्री मनमोहन सिंह, ऑनेस्टी पर्सानफाइड एंड लोंगेस्ट सर्विंग ऑनेस्ट प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया : "ये नो-बॉल की प्रॉब्लम कोई प्रॉब्लम नहीं है. पकिस्तान को चाहिए कि नो-बॉल से हटकर अपनी इकोनोमी के बारे में कुछ करे. केवल चार परसेंट ग्रोथ है पकिस्तान की. उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि वे कम से कम टू थाऊजैंड एलेवेन से नौ परसेंट ग्रोथ रेट ले आयें. और नो-बॉल की प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए तो ज़ी क्रिकेटिकल विल चाहिए....क्रिटिकल नहीं क्रिटिकल नहीं...मैंने कहा क्रिकेटिकल...क्रिकेटिकल...जैसे पोलिटिकल वैसे ही क्रिकेटिकल..हैं ज़ी? और फिर वे एक ज़ीओएम भी तो बना सकते हैं...ज़ीओएम से कोई भी प्रॉब्लम सॉल्व हो सकती है...."

दलेर मेहँदी, फार्मर सिंगर एंड प्रजेंट डे रिअलिटी शो जज: "मैं तो मोहम्मद आमिर से यही कहूँगा ज़ी कि पुत्तर तुझे रब्ब ने, उस मालिक ने, उस ख़ुदा ने टैलेंट दिया है नो-बॉल फेंकने का. तू तो पुत्तर ऐसे ही नो-बॉल फेंकता रह. रब राखां पुत्तर...चक दे फट्टे.."

अमिताभ बच्चन, एक्टर, मॉडल, ट्वीटर, ब्लॉगर एंड अ फादर-इन-ला : "अब देखिये मैं तो एक कलाकार हूँ. मैं इसके बारे में क्या कहूँ? वैसे अगर कुछ कहना ही है तो मैं कहूँगा कि भाई साहब, माना कि आपकी टीम प्रचंड है लेकिन नो-बॉल फेंकने की वजह से खंड-खंड है....आईं? लगी..लगी मिर्ची लगी. और फिर देखिये आप क्रिकेटर हैं. आप बालिंग कीजिये, अपना पारिश्रमिक लीजिये और घर जाइए. नो-बॉल फेंककर क्या मिलेगा आपको? कुछ एक्स्ट्रा पाऊंड? पूज्यनीय बाबूजी कहा करते थे कि जो एक बार नो-बॉल फेंककर अपनी गलती न दोहराए वही असली खिलाड़ी है.....मैंने इस नो-बॉल वाली घटना पर कल ही मधुशाला में एक रुबाई जोड़ी है...हाँ, सुनिए

बालिंग पथ पर बालिंग करने चलता है बालर आला
जोर से दौड़े या फिर धीरे दुविधा में है मतवाला
कोच बताते राहें कितनी पर मैं यह बतलाता हूँ
धीरज के संग कदम धरो तो फेंकोगे फिर नो-बॉला

बाबा रामदेव, ब्रीदिंग एक्सपर्ट, आंटरप्रेनर एंड पोलिटिसियन-इन-मेकिंग: "हे हे हे. लोग पाकिस्तान से फोन करके पूछते हैं बाबा जी, ये अपने नौजवान क्रिकेटर इतना नो-बॉल क्यों फेंक रहे हैं. मैं कहता हूँ ये नो-बॉल फेंके जाने का कारण है कि एम् एन सी का आटा. पकिस्तान लीवर जो आटा पकिस्तान में बेंच रहा है उसको खाकर ही बालर नो-बॉल फेंक रहे हैं. एम् एन सी कम्पनियाँ पाकिस्तान में करीब एक लाख करोड़ का आटा और तेल बेंचती हैं. अब कोई क्रिकेटर इन कंपनियों का आटा और तेल खायेगा तो वह जो है नो-बॉल तो फेंकेगा ही. यह बात हमारे राष्ट्र के लिए एक सन्देश है कि एम एन सी के बनाये खाद्य पदार्थों को अगर न रोका गया तो हमारा भी एक-एक क्रिकेटर नो-बॉल फेंकने लगेगा. यह जो है वह पूरे राष्ट्र के लिए बहुत ही खराब होगा. इसीलिए पतंजलि योगपीठ ने चावल, बाजरा, गेंहू और जौ को मिलाकर एक आटा बनाया है जिसकी रोटी खाने से बोलर कभी भी नो-बॉल नहीं फेंकेगा. हम तो राष्ट्र निर्माण करते हैं. उसके लिए हम कटिबद्ध हैं. आज ज़रुरत है......."

चन्दन सिंह हाठी, मैनेजर गंगोत्री यन्त्र प्रतिष्ठान: "क्या आप अपने बालिंग रन-अप से परेशान हैं? क्या आप इन-स्विंगर करते हैं और वो आउट-स्विंगर हो जाता है? क्या आप जब भी नो-बॉल फेंकना चाहते है तब नहीं फेंक पाते? क्या आपकी एल बी डब्ल्यू की अपील पर अम्पायर बैट्समैन को आउट दे देता है? क्या आप विश्व के सबसे बड़े नो-बॉलर बनना चाहते हैं? क्या नो-बॉल फिक्स करने की वजह से आप बार-बार पकड़े जाते हैं? तो पहली बार गंगोत्री यन्त्र प्रतिष्ठान लाया है नो-बॉल सुरक्षा रुद्राक्ष. यह पहनने के बाद आप जब भी चाहें नो-बॉल फेंक सकते है और पकड़े भी नहीं जायेंगे. हमारा दावा है ...."

प्रणब मुख़र्जी, फिनांस मिनिस्टर एंड पोलिटिकल मैनेजर, यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस : "दीस ईभेंट हुविच हैपेण्ड ईन इंग्लैंड शूड नाट हैभ हैपेण्ड...उई फार्मली बिलीभ दैट पकिस्तान शूड ट्राई एंड ब्रिंग डाउन दा नो-बाल बोल्ड टू आंडर एट पारसेंट...आल्दो उई आर कोंसोटेंटोली मोनिटोरिंग दा सिचुयेशान एमार्जिंग फ्रॉम...."

यह था हमारे ब्लॉग-पत्रकार चंदू चौरसिया की विश्व के तमाम बड़े नेताओं और लोगों से नो-बॉल फिक्सिंग पर बातचीत. चंदू चौरसिया का अगला असाइंमेंट है कि वे युवा-नेता, युवराज, भावी प्रधानमंत्री श्री राहुल गाँधी का इंटरव्यू लेंगे. हम जल्द ही वह इंटरव्यू अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करेंगे. तब तक हम आपसे विदा लेते हैं.

Wednesday, September 15, 2010

दिखला के यही मंज़र ब्लॉगर चला जाता है




श्री बशीर बद्र से क्षमा याचना सहित ये ब्लॉग-गजलें पेश कर रहा हूँ. ब्लॉग ग़ज़ल क्या होती है, कृपया यह न पूछें. मैं जवाब नहीं दे पाऊँगा.

हँसी-मजाक की बातें हैं. कृपया इसे सीरियसली न लें. केवल हल्की-फुल्की पैरोडी है.

ब्लॉग ग़ज़ल न.१


दिखला के यही मंज़र ब्लॉगर चला जाता है
चुटकी में शाश्वत लेखन कैसे किया जाता है

उस पोस्ट की लाइन पर झगड़े बहुत वे दोनों
जिस पोस्ट की बातों को सड़ियल कहा जाता है

दोनों से चलो पूछें उसको कहीं देखा है
जो टिप्पणी देने को आता है न जाता है

दुनियाँ में जो कुछ शाश्वत, ब्लागों पे लिखा है वो
अखबार में जो कुछ है, घर में पढ़ा जाता है

मिल जाए गर फालोवर तो नाम हुआ समझो
गर न मिले कभी तो दिल डूबता जाता है


ब्लॉग ग़ज़ल न.२


खुश रहे न कभी उदास रहे
पोस्ट लिक्खा औ बदहवाश रहे

आज टिप्पणियां मिलें कम ही सही
कल बढेंगी यही बस आस रहे

नामवाले तो आते रहते हैं
कोई बेनामी आस-पास रहे

बढ़िया, रोचक, बधाई खूब सुनी
कभी तो गालियों की बास रहे

मिली जो टिप्पणी तो खूब हँसे
नहीं जब भी मिली, उदास रहे

Tuesday, September 14, 2010

सिंगिंग रियल्टी शो- एक निबंध




एक जमाना था जब परीक्षा का प्रश्नपत्र सेट करने वाले विद्वान् विद्यार्थियों को चैलेन्ज जैसा देते थे कि वे पोस्टमैन, मेरा गाँव, रेलयात्रा जैसे विषयों पर निबंध लिख कर दिखायें. पोस्टमैन नहीं आते तो मेरा गाँव आ जाता. मेरा गाँव नहीं आता तो रेलयात्रा आ जाता. कुल मिलाकर विकट सरल दिन थे. विद्यार्थीगण बहुत जोर रटते थे और परीक्षा की कापी रंग आते थे. अब चूंकि ज़माना हर ज़माने में बदलता है इसलिए अब ऐसे पुराने विषयों पर निबंध लिखने के लिए नहीं कहा जाता. और कारण यह भी हो सकता है कि पोस्टमैन की जगह कूरियर बॉय ने ले ली है और उसके चरित्र चित्रण की बारीकियों का निर्धारण अभी तक नहीं हो पाया है.

हाल ही में एक विद्यार्थी के परीक्षा की कॉपी मिल गई. अरे भाई साहब, हाल ही में से मेरा मतलब है परसों. अब हिंदी दिवस से दो दिन पहले इतिहास की कॉपी थोड़े न मिलेगी. तो प्रस्तुत है उस विद्यार्थी द्वारा लिखा गया निबंध जिसका शीर्षक है; सिंगिंग रियलटी शो. अब मेरे ऊपर गुस्सा न होइए कि शीर्षक अंग्रेजी में क्यों है? है तो है. शीर्षक पर ध्यान मत दीजिये अब निबंध बांचिये.

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भारत में रियल्टी शो का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. हाँ, यह ज़रूर है कि तमाम तरह के रियल्टी शो में सबसे पुराना शो गाने का ही है. वैसे इतिहासकारों और विद्वानों का मानना है कि हमारे देश में भी रियल्टी शो का इतिहास पुराना हो सकता था लेकिन उनदिनों सेल फ़ोन न होने के कारण ऐसा हो नहीं सका.

विद्वानों का मानना है कि १९८५ में जब श्री वारेन एंडरसन को सरकारी कार में हवाई अड्डे ले जाया जा रहा था उस समय उनके कार में बैठाकर एयरपोर्ट प्रस्थान करने की रीयल तस्वीर टीवी कैमरे से ले ली गई थी लेकिन उनदिनों सेल फ़ोन न होने के कारण दूरदर्शन वो फूटेज दिखाकर दर्शकों से यह नहीं कह सका कि; "वारेन एंडरसन को कार में बैठाकर भगाने के लिए कौन जिम्मेदार है? आपके आप्शन हैं; (ए) राजीव गाँधी (बी) अर्जुन सिंह (सी) नरसिम्हा राव और (डी) रतन नूरा. अपना जवाब हमें पाँच शून्य शून्य सात एक पर भेज दीजिये. जवाब के आगे अपना नाम और अपना पता ज़रूर लिखिए."

ऐसा न हो सका और हम इतिहास का निर्माण नहीं कर सके. एक अदद सेल फ़ोन न होने की वजह से सब गुड़ गोबर हो गया. अगर सेल फोन होता तो हम रीयल्टी शो के आविष्कार का पेटेंट करवा लेते और फिर अमेरिकी इंटरटेनमेंट कम्पनियाँ भारत सरकार को लाइसेंस फीस देकर ही अपने देश में रीयल्टी शो कर पातीं. खैर, जो हो गया सो हो गया.

गाने का रियल्टी शो केवल गाने के बारे में नहीं होता. यह जजों के बारे में भी होता है. यह प्रतियोगी के माँ-बाप के बारे में भी होता है और यह एंकर के बारे में भी होता है. सेलेक्शन का प्रोसेस बहुत झमेले वाला होता है. (सर जी, नंबर मत काटियेगा. प्रोसेस का हिंदी शब्द दिमाग में नहीं आ रहा है) कभी-कभी सेलेक्शन में इतना झमेला हो जाता है जितना इलेक्शन में नहीं होता. (सर जी, सेलेक्शन से इलेक्शन की तुकबंदी मिला दिया है मैंने. आशा है आप उसके लिए एक नंबर ज्यादा देंगे).

जहाँ सिंगिंग रियल्टी शो के लिए सेलेक्शन होने वाला रहता है वहाँ कई घंटे पहले से ही भीड़ हो जाती है. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि प्रतियोगी के माँ-बाप एक दिन पहले शाम पाँच बजे से ही लाइन लगा देते हैं. जिन माँ-बाप को गाने और संगीत के बारे में थोड़ा-बहुत आईडिया होता है वे पाँच बजे से लाइन लगाते हैं और जिन माँ-बाप को गाने के बारे में कम जानकारी रहती है वे उनसे भी दो घंटे पहले से यानि ३ बजे शाम से ही लाइन लगा देते हैं.

सेलेक्शन के समय प्रतियोगी का कर्त्तव्य होता है कि वह जजों को अपने कर्म से रिझाए.रिझाने के इस महत्वपूर्ण काम को करने के ढेरों तरीके हैं. जैसे प्रतियोगी अगर गरीब रहे तो जज जल्द रीझते हैं. या फिर प्रतियोगी अगर सात सौ किलोमीटर चलकर सलेक्शन के लिए आडिशन देने आये तो भी जज लोग रीझ जाते हैं. सेलेक्शन प्रोसेस (सर जी, क्षमा कीजियेगा अभी तक माइंड में प्रोसेस का हिंदी शब्द नहीं घुसा) का एक महत्वपूर्ण विषय होता है प्रतियोगी का खाना न खाने की वजह से बेहोश हो जाना.

रीयल्टी शो रीयल लगे इसके लिए कई बार प्रतियोगी जजों को घटिया और निकम्मा बता देता है. कोई-कोई प्रतियोगी गाली भी दे डालता जिसे चैनल वाले आवाज़ के पैबंद से ढक देते हैं. ऐसा होने से शो करीब बावन प्रतिशत ज्यादा रीयल लगता है.

जो प्रतियोगी गाना गाकर जजों को खुश कर देता है जज उसे तुरंत सेलेक्ट कर लेता है और उसे मुंबई बुला लेता है.मुंबई बुलाने का यह सिद्धांत नया नहीं है. इतिहास गवाह है कि पिछले करीब साठ वर्षों से कोई भी भारत के किसी भी कोने से चलता है तो वह मुंबई ही पहुँचता है. भारत के हर कोने से चली हुई सड़क, रेलगाड़ी और ट्रक अक्सर मुंबई ही पहुँचती है. विद्वानों का मत है कि मुंबई पहुँचने के इस ऐतिहासिक सिद्धांत की नींव श्री देवानंद ने रखी जब वे पंजाब से निकलकर फ्रोंटियर मेल पकड़कर सीधा मुंबई पहुंचे थे.

मुंबई पहुंचकर सारे प्रतियोगी अभ्यास वगैरह करते हैं. उन्हें हमेशा कान में आई-पॉड का हेडफोन लगाये देखा जा सकता है. वे अभ्यास करके जजों के सामने गाते हैं. इस दौरान प्रतियोगी पाँव छूने का भी अभ्यास करता है. वह ऐसा इसलिए करता है जिससे प्रोग्राम में आनेवाले हर गेस्ट जज का और बाकी जजों का जब-तब पाँव छूता रहे. पाँव छूना गायक बनने के लिए गायन के रियाज से भी ज़रूरी है.

जज लोग करीब नब्बे प्रतिशत प्रतियोगियों को बताते हैं कि उनके पास प्ले-बैक की वायस है. वैसे जानकारों का ऐसा मानना है कि जजों की यह बात सही नहीं है क्योंकि अगर ऐसा होता तो अभी तक भारतवर्ष में प्ले-बैक गायकों की संख्या करीब तीन लाख सत्तावन हज़ार होती.

यह भी देखा गया है कि अपने कमेन्ट में जज लोग ऐसे स्टेटमेंट देते हैं जो किसी की समझ में नहीं आता. उनमें कुछ स्टेटमेंट हैं; "तुम्हारी आवाज़ का थ्रो बहुत बढ़िया है", "तुम्हारी वायस की टेक्सचर गज़ब है", "तुम्हारी आवाज़ जो है उसकी फैब्रिक मुझे बहुत पसंद है".

ऐसी बातें सुनकर प्रतियोगी को अपने ऊपर शंका होने लगती है. वह यह सोचने में बिजी हो जाता है कि; "वह एक गायक है या बुनकर?"

जजों के कमेन्ट के बारे में प्रतियोगियों की इस नासमझी को दूर करने के लिए हाल ही में आल इंडिया सिंगिंग रिअलिटी शो पार्टीसिपेंट्स पैरेंट्स एसोसियेशन ने यूजीसी से यह मांग रखी कि वह एक शोध करवाए जिससे प्रतियोगियों और उनके अभिभावकों को जजों के कमेन्ट समझने में आनेवाली मुश्किलों को दूर किया जा सके. सरकार पहले तो नहीं मान रही थी लेकिन जब किसी विद्वान ने उसे यह बताया कि सिंगिंग रियल्टी शो के पार्टिसिपेंट्स बहुत बड़ा वोटबैंक साबित हो सकते हैं तो सरकार ने उनकी मांग मान ली.

रियल्टी शो के दौरान जज यह बताते रहते हैं कि जैसे ही यह शो ख़त्म हुआ देश को उसकी आवाज़ मिल जायेगी. उनकी बात सुनकर लगता है जैसे यह शो नहीं होता तो देश गूंगा ही रहता. कुछ सूत्रों का यह भी मानना है कि जब चैनल वाले अपने विज्ञापनों में देश की आवाज़ खोजने का दावा करते हैं उनदिनों देश की सबसे पावरफुल नेत्री को अपनी आवाज़ पर शंका होने लगती है और वे ज्यादा बोलने लगती हैं.

कई बार ऐसा भी होता है कि शो में आनेवाले प्रतियोगी जजों से ज्यादा जानकार होते हैं. ऐसे में जब कोई प्रतियोगी शास्त्रीय संगीत पर आधारित कोई गीत, ठुमरी या टप्पा गाता है तब जज घबड़ाकर राग और सरगम के साथ-साथ अपना हाथ हिलाते-डुलाते और ऊपर-नीचे करते हैं. जानकारों का ऐसा मानना है कि जज ऐसा इसलिए करते हैं जिससे देशवासियों का यह भ्रम बना रहे कि उन्हें संगीत का ज्ञान है.

हाल ही में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जब टीवी पर रियल्टी शो देखनेवाला दर्शक जब इस बात पर स्योर हो जाता है कि कोई प्रतियोगी बहुत अच्छा गा रहा है उसी समय जज उस प्रतियोगी के गाने को घटिया बता देता है. ऐसा करने से जज और जनता के बीच ज्ञान की खाई और चौड़ी हो जाती है. मनोरंजन की दुनियाँ में इसे जजेज सरप्राइज अटैक कहते हैं.

चूंकि ऐसे शो में ज्यादातर जज फ़िल्मी दुनियाँ के चुक गए संगीतकार होते हैं इसलिए उन्हें प्रतियोगियों से यह कहते हुए शर्म नहीं आती वे अपनी अगली फिल्म में फलां प्रतियोगी से एक गाना गवाएंगे. सबको यह मालूम रहता है कि जब इस जज को ही कोई फिल्म नहीं मिलेगी तो फिर उस फिल्म में प्रतियोगी के गाना गाने का सवाल ही नहीं उठता. ऐसे में जजों द्वारा किया जानेवाला यह अनाऊँस्मेंट देशवासियों के मनोरंजन का साधन बनता है.

कम्पीटीशन से धीरे-धीरे करके प्ले-बैक की वायस वाले एक-एक प्रतियोगी का निष्कासन होता रहता है. अंत में जिसका निष्काशन नहीं हो पाता उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है और उसकी आवाज़ को ही देश की आवाज़ मान लिया जाता है. कुछ विद्वानों का मानना है कि अभी तक सारे रियल्टी शोज मिलाकर देश को करीब तीन हज़ार चार सौ तेरह आवाजें मिल चुकी हैं. शायद यही कारण है कि देश में हर मामले पर अलग-अलग आवाज़ सुनाई देती है.

प्ले-बैक वायस के मालिक प्रतियोगी जब प्रतियोगिता से निकलते हैं तो उनके माँ-बाप को भी टीवी कैमरे के सामने अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है. ये माँ-बाप अपनी हैसियत और टैलेंट के हिसाब रो लेते हैं और दुखी दीखते हैं.

प्राइसवाटर हाउस कूपर्स द्वारा हाल ही में किये गए एक सर्वे के अनुसार भारत में अगले आठ वर्षों में करीब चालीस हज़ार सात सौ सिंगिंग रियल्टी शोज बनने की संभावना है. कुछ विद्वान मानते हैं कि अगर भारत को अपने ट्वेंटी-ट्वेंटी मिशन (सर जी, यहाँ क्रिकेट की बात नहीं कर रहा हूँ मैं. यहाँ मैं कलाम साहब के इंडिया ट्वेंटी ट्वेंटी मिशन की बात कर रहा हूँ) की सफलता के लिए भारतवर्ष को कुल तीन करोड़ सिंगर तैयार करने पड़ेंगे. यह संख्या करीब सात करोड़ होती लेकिन चूंकि चार करोड़ प्रतियोगी डांसिंग रियल्टी शोज में भी भाग लेंगे इसलिए गायकों की संख्या करीब तीन करोड़ ही रखी गई है.

कुल मिलाकर भारत में सिंगिंग रियल्टी शोज का भविष्य उज्जवल है. भविष्य इतना उज्जवल है कि हर माँ-बाप अपने बेटे-बेटियों को सिंगर ही बनाना चाहता है. अब माँ-बाप भी नहीं चाहते कि बेटी/बेटे डॉक्टर-इंजिनियर बने.समाजशास्त्रियों का ऐसा मानना है कि आनेवाले वर्षों में देश में डाक्टरों और इंजीनियरों की भयंकर कमी हो सकती है.

माँ-बाप की चाहत की बात को आप निम्नलिखित संवाद से आंक सकते हैं;

"नहीं माँ, मैं डॉक्टर बनना चाहती हूँ. मुझे सिंगर नहीं बनना है"; बेटी ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा.

"क्या कहा!, डॉक्टर बनना चाहती हो? डॉक्टर बनकर हमारी नाक कटवावोगी क्या? बेटा, आजकल कोई डॉक्टर इंजीनियर बनता है भला?"; माँ कहती है.

"नहीं माँ. प्लीज मेरी बात सुनो. गाने की प्रैक्टिस करके मैं थक जाती हूँ. फिर पढाई नहीं कर पाती"; बेटी ने कहा.

"अरे बेटा, क्या जरूरत है पढाई करने की? आजकल कोई पढाई करता है भला?"; माँ कहती है.

"मेरी बात सुनो तो माँ. हमारी टीचर भी कहती हैं कि दुनियाँ में हर कोई सफल नहीं हो सकता. मैं मानती हूँ कि मैं डॉक्टर बनने से असफल कहलाऊंगी. तो क्या हुआ? मैं एवरेज बच्ची हूँ इसलिए डॉक्टर बन जाऊंगी. जो बच्ची तेज है, वो सिंगर बन जायेगी. यही तो होगा"; बच्ची कहती है.

माँ उसी जगह से पतिदेव को आवाज लगाती है; "अजी सुनते हो?"

पतिदेव वहीँ से जवाब देगे; "अरे क्या हुआ, क्यों शोर मचा रही हो?"

"शोर नहीं मचाऊंगी तो और क्या करूंगी. सुन लो, तुम्हारी लाडली बेटी क्या कह रही है. कह रही है डॉक्टर बनेगी. लो और सर पर चढ़ाकर रखो इसे. डॉक्टर बनकर हमारा नाम डूबोने के लिए ही बड़ा कर रहे हैं हम इसे"; माँ ने जवाब दिया.

अब बच्ची को समझाने की बारी पिताश्री की है; "बेटा, एक बार कांटेस्ट में पार्टीसिपेट कर लो. अगर नहीं जीत पाओगी तो हम अपने किस्मत को रो लेंगे. फिर तुम्हारी जो इच्छा हो, करना. हम तुम्हें डॉक्टर बनने से नहीं रोकेंगे."


नोट:

सर जी, अब और नहीं लिख पा रहा हूँ. पेन पकड़ने की वजह से अंगुलियाँ दर्द कर रही हैं. वैसे आपको राज की बात बताऊँ तो मैंने भी एक रियल्टी शो में ऑडिशन दिया था. मेरा सेलेक्शन हो गया है. परीक्षा के बाद मैं भी मुंबई जा रहा हूँ.

Wednesday, September 8, 2010

मुन्नी जी, कोई भी बदनामी आख़िरी नहीं होती.




बहुत हो चुका. मुन्नी की बदनामी अब और बर्दाश्त नहीं होती. पिछले एक महीने से मुन्नी है कि उठते-बैठते बदनाम हुई जा रही है. बार-बार लगातार. सुबह हुई नहीं कि रेडिओ पर बदनामी का नगाड़ा पीट दिया. दोपहर में टीवी पर बदनामी की ढोलक पीट दी. रात को, इंटरटेनमेंट चैनल पर, फ़िल्मी चैनल पर, म्यूजिक चैनल पर, न्यूज चैनल पर, बदनामी की शहनाई बजा दी. कल तो सड़क पर बदनाम हो गई. मैंने देखा कि एक रिक्शावाला अपने रिक्शे में रेडिओ टाँगे रिक्शा चलाते जा रहा था कि अचानक मुन्नी 'रिश्के' पर बदनाम होने लगी. आस-पास के लोग चौंक करके मुन्नी की बदनामी सुनने लगे. कुछ ने ऐसी भाव-भंगिमा बनाई जिसे देखकर लगा कि बन्दा सोच रहा है कि कहीं मुन्नी ने उसी को तो डार्लिंग नहीं कहा? कहीं उसी के लिए तो बदनाम नहीं हुई?

कोई जगह नहीं बची है जहाँ मुन्नी बदनाम नहीं हो रही. ऊपर से तुर्रा ये कि; 'मैंने बदनामी का यह कार्यक्रम तो डार्लिंग तेरे लिए किया है." जैसे कह रही हो कि; "बदनाम होने का मेरा कोई प्लान नहीं था लेकिन हे डार्लिंग तुम मुझे इतने क्यूट लगे कि कि मैंने नाम को छोड़कर बदनाम होने का फैसला कर डाला."

मुन्नी का डार्लिंग मुन्नी के साथ जहाँ-तहाँ बदनामी का कार्यक्रम आयोजित कर ले रहा है. होड़ सी लगी है लोगों में.देखकर लगता है जैसे आक्शन सिस्टम के तहत बोली लग रही है और मुन्नी और उसके डार्लिंग से भाई लोग सिफारिश कर रहे हैं कि; "डार्लिंग जी, आज अगर मुन्नी को हमारे चैनल पर बदनाम कर देते तो बहुत बढ़िया होता. हम बड़ी आशा लेकर आये हैं कि मुन्नी जी पहले हमारे ही चैनल पर बदनाम होंगी. ना मत कहियेगा."

या फिर इसका उल्टा भी हो सकता है यानि डार्लिंग जी चैनल वालों से कह रहें हों कि; "भाई साहब, आप इजाजत दें तो मैं अपनी मुन्नी को आपके चैनल पर प्राइम टाइम पर बदनाम कर लूँ."

कहीं-कहीं तो वे भाई भी मुन्नी को अपने चैनल पर बदनाम कर लेना चाहते हैं जिनके चैनल पर छोटे-छोटे बच्चे गाने में अपनी किस्मत और आवाज़ आजमा रहे हैं. उधर बच्चे स्टेज पर गाना गाने के लिए तैयार हुए और इधर डार्लिंग अपनी मुन्नी को लिए पहुँच गए उसे बदनाम करने के लिए. बच्चे भी मुन्नी की बदनामी की सरगम सुन ले रहे हैं ताकि अपने गाने में कभी फिट कर सकें.

एक चैनल पर देखा कि मुन्नी को बदनामी के गुर सिखाने वाली जज के रूप में बैठी थी. बस फिर क्या था, मुन्नी अपने डार्लिंग जी को पर्स की तरह दबाये पहुँच गई और फटाफट बदनाम हो ली. बदनामी का गुर सिखाने वाली फारहा जी ने भी साथ दिया तो बदनामी में चार चाँद लग गए. डार्लिंग जी भी खुश. मन ही मन सोच रहे होंगे कि; "आज तो बढ़िया बदनामी हुई. ऐसी बदनामी पिछले चैनल पर नहीं हो पाई थी."

हाँ, कभी-कभी यह ज़रूर लग रहा है जैसे मुन्नी इतनी भारी मात्रा में बदनाम होकर समाज में डिवाइड क्रियेट कर रही हैं. आखिर मुन्नी जी को भी सोचना चाहिए कि इतनी बड़ी मात्रा में बदनाम होकर वे न जाने कितनों को इन्फिरियारिटी कम्प्लेक्स दे रही होंगी और उनकी बदनामी देखकर न जाने कितने अपने भाग्य को कोस रहे होंगे कि; "हे भगवान, हमने क्या गुनाह किया था जो हमें बदनामी से महरूम रखा? मुन्नी जितनी न सही लेकिन उतनी बदनामी तो दे ही सकते थे कि हमें भी बदनाम होने पर गर्व होता."

शायद इसी इन्फिरियारिटी कम्प्लेक्स का नतीजा है कि कोई मुन्नी जी से पूछ नहीं रहा है कि; "क्या ज़रुरत है इतना बदनाम होने की? वह भी इस स्टाइल से बदनाम हुई हो कि ग्रेस पूरी तरह से एब्सेंट है. बदनाम होना है तो हो लो लेकिन ग्रेसफुली बदनाम हो. क्या तुम्हें यह नहीं पता कि बदनाम होने के बाद जब तुम झंडु बाम हो रही हो तो बहुत चीप लग रही हो? उस समय बदनामी रसातल में चली गई है?"

वैसे भी एक-दो बार कहीं बदनाम हों लें वह ठीक है लेकिन रोज-रोज हर दो घंटे पर बदनाम होना कहाँ तक जायज है? बदनामी की कोई लिमिट है कि नहीं? देखकर लगता है जैसे आपकी बदनामी ही भारत की प्रगति पर चार चाँद लगाएगी? अरे चैनल वालों का क्या है? उनके चैनल तो बदनामी पर ही चल रहे हैं. आज आपकी बदनामी है कल किसी और की होगी. हर न्यूज चैनल पर कोई न कोई नीलाभ, रोहित और अमिताभ बैठे हैं जो हर घंटे आपकी बदनामी पर विशेष झाड़े जा रहे हैं. कई बार तो लगता है जैसे चलता हुआ प्रोग्राम बंदकर ब्रेकिंग न्यूज दिखाना न शुरू कर दें कि मुन्नी पाँच मिनट पहले शाबाश चैनल पर एक बार फिर से बदनाम हो गई हैं.

तो हे मुन्नी जी, माना कि आपके हिसाब से आपने बदनामी की दुनियाँ में नया रिकार्ड बना डाला है लेकिन आप बदनामी के हथौड़े से हमारे सिर पर कितनी बार चोट करेंगी? हम आपको बताना चाहते हैं कि अब सिर तो क्या आपके बदनाम हथौड़े की चोट से हमारी आँखें भी सूज गई हैं. अब आपकी बदनामी बर्दाश्त के बाहर हो गई है. इसलिए अपनी बदनामी पर लगाम लगायें. इस बात को ध्यान में रखें कि बदनामी क्या है कल कोई और आएगा और वह आपसे भी ज्यादा बदनाम होकर दिखा देगा. कोई भी बदनामी आख़िरी नहीं होती.

Saturday, September 4, 2010

सेलिंग वुवुज़ेला थ्रू पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम




"बट बट बट मिस्टर पवार..मिस्टर पवार, टेल अस टूनाइट ऑन दिस चैनल, ह्वाट इज राँग इन ओबेयिंग सुप्रीमकोर्ट ऑर्डर? आई मीन, इजंट इट रिस्पोंसिबिलिटी ऑफ द गाव्मेंट टू डिस्चार्ज इट्स ड्यूटी?" अरनब गोस्वामी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में शरद पवार से पूछा.

अरनब की बात सुनकर पवार बोले; "यू सी मिस्टर गोस्वामी, आई एम आन्स्वरेबल नॉट ओनली टू सुप्रीम कोर्ट बट आल्सो टू द इंटर्नेशनल कम्यूनिटी. आई एम आल्सो प्रेसिडेंट ऑफ आई सी सी. इफ आई स्पेंड आल माई टाइम एक्ज्क्यूटिंग सुप्रीमकोर्ट ऑर्डर, ह्वेन विल आई वर्क फॉर आई सी सी? आल्सो, प्लीज नोट दैट जस्ट ऐज इट इज नॉट ईजी टू पनिश क्रिकेटर्स इन फिक्सिंग स्कैंडल्स, इट्स आल्सो नॉट ईजी टू डिस्ट्रीब्यूट वन ट्वेंटी टू मिलियन बुबुज़ेला थ्रो पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम".

इतना कहकर शरद पवार चुप हो गए.

बात यह थी कि टाइम्स नाऊ के प्राईम टाइम पर रोज की तरह पैनल डिस्कशन चल रहा था.

फ़ुटबाल वर्ल्डकप में वुवुज़ेला की अपार सफलता को देखते हुए और देशवासियों में खेल की भावना जागृत करने के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स की आर्गेनाइजिंग कमिटी ने किसी विदेशी कंपनी से एक करोड़ बाईस लाख बुबुज़ेला इम्पोर्ट कर लिया था. स्टेडियम वगैरह के समय पर तैयार नहीं होने की वजह से और इन गेम्स में भ्रष्टाचार की बातों की वजह से आर्गेनाइजिंग कमिटी यह भूल गई कि उसे इम्पोर्ट किये गए बुबुज़ेला को बाज़ारों में किसी रिटेल चेन के थ्रू बेंचना भी था. एक रेलवे यार्ड में खुले में रखे गए ये बुबुज़ेला बरसात की वजह से वैसे ही सड़ रहे थे जैसे सरकार द्वारा खरीदा गया गेंहू. ऊपर से खुले में रखे जाने की वजह से कोई भी यार्ड से वुवुज़ेला की चोरी कर ले रहा था.

एक दिन पी आई एल के धंधे में माहिर किसी महापुरुष को याद आया कि सरकार को घेरने का यह सही समय था. सरकार की फजीहत तो होगी ही, फ्री में प्रचार भी मिलेगा. उसने न केवल इस बात पर शोर मचाया कि रेलवे यार्ड में इतनी बड़ी मात्रा में वुवुज़ेला सड़ रहे थे बल्कि उसने कुछ जासूसी की अपनी काबिलियत और कुछ आर टी आई के सहारे यह पता भी लगाया कि जहाँ एक बुबुज़ेला बाज़ार में चार रूपये में बिकता है वहीँ कॉमनवेल्थ गेम्स आर्गेनाइजिंग कमिटी ने विदेशी कंपनी को एक बुबुज़ेला के लिए तीन सौ नब्बे रूपये चालीस पैसे पेमेंट किये थे. ऊपर से इतना पैसा खर्च करने के बाद इम्पोर्ट किया गया पूरा कन्साइन्मेन्ट रेलवे यार्ड में सड़ रहा था.

उसने इन्ही बातों के ऊपर सुप्रीमकोर्ट में एक पी आई एल फ़ाइल कर दिया था.

पी आई एल की बात सुनकर टीवी न्यूज चैनल वालों की तो जैसे चांदी हो गई थी. पंद्रह दिन बीत गए थे और कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार का एक भी नया मुद्दा नहीं आया था. इन गेम्स के लिए खरीदे गए चार हज़ार रूपये प्रति रोल के टायलेट पेपर की बात अब तक पुरानी हो गई थी. बस फिर क्या था, सारे चैनल वाले एक बार फिर से कलमाडी और सरकार के पीछे पड़ गए थे.

पी आई एल की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब माँगा कि क्यों नहीं खरीदे गए वुवुज़ेला देशवासियों को सार्वजानिक वितरण प्रणाली यानि पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के थ्रू बेंच दिए जाएँ? ऐसा करने से नुक्सान की भरपाई हो सकेगी. सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था.

सरकार ने एक ग्रूप ऑफ मिनिस्टर्स बना दिया जो मीटिंग वगैरह करके बताएगा कि वुवुज़ेला के मामले में सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए. ग्रूप ऑफ मिनिस्टर्स की मीटिंग हुई. जी ओ एम के हेड ने मीटिंग शुरू करते हुए कहा; "ऐज उइ नो, सुप्रीमकोर्ट हैज आस्क्ड दा गभारमेंट टू फाईल आ रिप्लाई ईन दी मैटार ऑफ दीस वुवुज़ेला इम्पोर्ट केस."

जी ओ एम के एम मेंबर ने कहा; "माननीय सुप्रीमकोर्ट तो आजकल हर बात में सरकार को निर्देश दे रहे हैं. लगता है जैसे विधायिका की कोई इज्ज़त ही नहीं है. अभी हाल ही में ऑर्डर दिया कि सड़ता हुआ गेंहू गरीबों में बाँट देना चाहिए. अरे ऐसे कैसे बाँट दिया जाय?"

एक और मेंबर ने कहा; "बिलकुल. अरे सरकार का काम करने का अपना तरीका है कि नहीं? जब इच्छा हुई तब गेंहू गरीबों में बाँट दो. ऐसे सरकार चलती है क्या?"

हेड बोले; "बाट, उइ हैब टू टेक ए स्टांड. उइ उविल हैब टू रिप्लाई टू दा सुप्रीमकोर्ट. इट्स मैटार ऑफ ग्रेट इम्पार्टेंस."

एक मेंबर बोले; "वो तो है. वैसे भी सुप्रीमकोर्ट इस बात पर नाराज़ है कि कृषिमंत्री ने सड़ते हुए अनाज को गरीबों में बाँट देने की बात पर दो टूक जवाब दे दिया कि वे ऐसा नहीं कर सकते. अगर माननीय सुप्रीम कोर्ट और नाराज हो गए तो सरकार की बड़ी बेइज्जती होगी."

सभी मेम्बर्स सोच रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट को कैसे शांत किया जाय? क्या जवाब दिया जाय? सरकार की नाक कैसे बचाई जाय?

तभी धीर-गंभीर श्वेत वस्त्र पहने चश्मा लगाये एक मेम्बर जो अपने ब्रेनवेव के लिए मशहूर हैं, ने कहा; "सी, ह्वाट वी कैन डू इज वी कैन रिप्लाई टू द आनरेबल सुप्रीम कोर्ट दैट वी आर रेडी टू सेल वुवुज़ेला थ्रू पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम. बाई डूइंग दिस, वी विल बी एबिल टू नॉट ओनली सेव द गोवंमेंट्स फेस बट आल्सो न्यूट्रेलाइज द इफेक्ट्स ऑफ आवर इन-एबिलिटी टू डिस्ट्रीब्यूट राटिंग ग्रेन्स टू पूअर्स."

जी ओ एम के हेड ने पूछा; "बाट इयु बिलीभ, दीस वूड बी ए नाईस आईडिया टू डू दीस?"

उस मेंबर ने कहा; "प्लीज डोंट डाऊट माई आइडीयाज. हैड आई बीन फिनांस मिनिस्टर इन योर प्लेस, आई वूड हैव इंट्रोड्यूसड नक्सल काम्बैटिंग सेस बाई नाऊ एंड गाव्मेंट वूड हैव हैड ए न्यू अवेन्यू ऑफ इनकम."

उनकी बात का समर्थन करते हुए एक और मेंबर ने कहा; "आप सही कह रहे हैं. अरे जनता को अनाज नहीं देंगे तो कुछ तो देंगे जिससे उसका मन लगा रहे. और इसके लिए वुवुज़ेला से बढ़िया और क्या होगा? जनता कॉमनवेल्थ गेम्स में मैराथन देखेगी और वुवुज़ेला बजाएगी. उसका मन भी लगा रहेगा और सरकार को भी विरोध वगैरह से राहत मिलेगी."

दो दिन बाद सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को जो रिप्लाई दिया उसमें लिखा था;

माननीय सुप्रीमकोर्ट को यह बताते हुए सरकार को प्रसन्नता हो रही हैं कि वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सहायता से कॉमनवेल्थ गेम्स आर्गेनाइजिंग कमिटी द्वारा आयात किये गए वुवुज़ेला को आम जनता को सस्ते दरों पर बेंचने के लिए लिए तैयार है. सरकार ने यह फैसला भी किया है कि चूंकि आर्गेनाइजिंग कमिटी ने केवल एक करोड़ बाईस लाख वुवुज़ेला का आयात किया है और हमारे देश की आबादी देखते हुए यह संख्या बहुत कम है इसलिए सरकार करीब तीस करोड़ वुवुज़ेला और आयात करने का प्रस्ताव रखती है. इसके लिए जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टेंडर फ्लोट किये जायेंगे जिससे देश की जनता को पर्याप्त मात्रा में वुवुज़ेला उपलब्ध कराया जा सके. सरकार देश की जनता को सस्ते दरों पर वुवुज़ेला उपलब्ध कराने के लिए कटिबद्ध है.
देश की जनता वुवुज़ेला का इंतज़ार कर रही है. कहते हैं लगातार झुनझुना बजाते हुए लोग बोर भी हो जाते हैं.