Show me an example

Tuesday, November 30, 2010

टेप-टेप में




टेप्स सार्वजनिक हो गए. कुछ लोगों ने संविधान के हवाले से बताया कि यह किसी इंडिविजुअल की प्राइवेसी पर हमला है. दूसरी तरफ से आवाज़ आई कि इंडिविजुअल अगर देश और उसकी जनता के बारे में बात करे तो वह पब्लिक हो जाता है. टेप्स से ही हमें पता चला कि जिन्हें हम पत्रकार समझते थे वे दरअसल कुछ और ही हैं. क्या हैं, यह सब अपने-अपने हिसाब से तय कर सकते है. जो लोग़ टेप्स में कविता पाठ करते सुने गए हैं वे सफाई दे रहे हैं. कुछ नहीं भी दे रहे.

हमारा काम है कि हम अपने ब्लॉग पत्रकार को भेजकर लोगों की प्रतिक्रिया जानें. यही कारण था कि हमारे ब्लॉग पत्रकार चंदू चौरसिया ज़ी ने लोगों से उनकी प्रतिक्रिया मांगी. आप बांचिये कि लोगों ने क्या कहा;

रॉबर्ट गिब्स, प्रेस सेक्रेटरी ह्वाईट हाउस : "वी आर ऑफ द ओपिनियन दैट इट टेक्स स्पेशल टैलेंट टू सेल समथिंग ऐट थ्री परसेंट ऑफ इट्स रीयल वैल्यू एंड इंडिया हैव डन वैरी वेल ऑन दैट काउंट. हाउ-एवर, वी स्टिल बिलीव दैट इन-स्पाईट ऑफ आल इट्स टैलेंट ऐज विजिबिल इन स्कैम्स, इंडिया हैज अ लॉन्ग वे टु गो टु क्लेम अ पर्मानेंट सीट इन यूनाईटेड नेशंस सिक्यूरिटी काउंसिल. वी ऑल्सो री-टरेट दैट आल दो इंडिया कुड मैनेज टु सेल इट्स नेशनल असेट्स ऐट थ्रो-अवे प्राइसेज, स्टिल पाकिस्तान इज आर नेचुरल अलाई व्हेन इट कम्स टु फाईट टेरोरिज्म. वी आर फार्मुलेटिंग अ न्यू टेरर पालिसी एंड सी इंडिया ऐज अ प्रोमिनेंट प्लेयर....."

अरिंदम चौधरी, डायरेक्टर आई आई पी एम : "राजा शुड हैव काऊँटेड हिज चिकेन्स...सॉरी स्पेकट्रंम्स बिफोर इट्स सेल. बट नाऊ दैट इट्स विजिबिल ही डिड नॉट, आई स्टिल होप दैट ही वुड थिंक बियोंड टूज़ी. मुझे ये लगता है कि अगर राजा एक प्रुडेंट मिनिस्टर की तरह काम करते तो उन्हें टूज़ी के लिए बिड करनेवालों को बीएसएनएल का एक-एक सेल फोन देना चाहिए था. तब झमेला केवल इस बात पर होता कि उसने बिडर्स को सेलफोन क्यों दिया? तब झमेला रेवेन्यू लॉस का न होकर.....बॉस, मैंने इंडिया में पहली बार हर एडमिशन पर एक लैपटॉप देना शुरू किया. वी आर पायनियर इन दिस फील्ड..."

राम बिलास पासवान ज़ी, दलित लीडर : "ई जो टेप आया है, उसको सुनने के बाद एक बार फिर से साबित हो गया कि जे देश में दलित, पिछड़ा, ओ बी सी, आदिवासी और माइनॉरिटी कमुनिटी का कहीं भी सुनवाई नहीं है. एतना टेप जो है रिलीज हुआ लेकिन एक में भी कोई दलित का आवाज़ नहीं है. ई जो है का दर्शाता है? सरकार जो है ऊ खाली पैसावाला सब के लिए......"

अरनब गोस्वामी, मॉडर्न डे रिवोल्यूशनरी : "दोज वेरी पीपुल हू हैड थ्रीटेंड टू स्यू योर चैनल, आर रनिंग फॉर फोर हंड्रेड मीटर्स हरडेल्स...सॉरी सॉरी...इट ऐपीयर्स दैट आई सेड समथिंग इर्रिलिवेंट...यस, ह्वाट आई वांटेड टू से इज दैट आई एम वेरी डिस्अप्वाइंटेड ऐज नन ऑफ दीज टेप्स फीचर्स सुरेश कलमाडी....बट आई वुड लाइक टू अस्योर आल आर व्यूअर्स दैट योर चैनल विल लीव नो स्टोन अनटर्न्ड टिल इट गेट्स टू रूट ऑफ द कॉजेज ऐज टू ह्वाट ट्रांस्पायर्ड नॉन इनक्लूजन ऑफ कलमाडी....."

वॉरेन बफेट, इन्वेस्टर, कैश-होर्डर, फिलेनथ्रोपिस्ट एंड ऐन आलटाइम विनर : "दीज टूज़ी टेप्स ब्रिंग ऐन एंटाइरली न्यू बिजनेस ऐंड इन्वेस्टमेंट आप्च्यूनिटी इन द फील्ड ऑफ कन्वर्शेसन रिकार्डिंग क्विपमेंट्स इन इंडिया...लुकिंग ऐट द नंबर ऑफ स्कैम्स एंड लेवल ऑफ करप्शन, आई एम स्योर इंडिया विल प्रूव टू बी अ ह्यूज मार्केट फ़ॉर दीज इक्विपमेंट्स...अमेरिकन कंपनीज हैव अ ग्रेट आप्च्यूनिटी ऐंड दे शुड स्टार्ट मैन्यूफैक्चरिंग मोर एडवांस्ड इक्विपमेंट्स टू कैटर टू द फ्यूचर डिमांड्स ह्विच मे स्टार्ट पोरिंग इन वंस रिकार्डिंग्स टू प्रॉब थ्रीज़ी टेलिकॉम लाइसेंस....देन फोरज़ी..देन..."

बिनोद शर्मा, डी-फैक्टो स्पोक्सपरसन, कांग्रेस पार्टी एंड पार्ट-टाइम एडिटर हिन्दुस्तान टाइम्स : "जो भी टेप्स अभी तक सामने आये हैं, उनको सुनकर तो यही लगता है कि इन टेप्स की वजह से नरेन्द्र मोदी की ईमेज को गहरा झटका लगा है. कुल एक सौ चार टेप्स में नरेन्द्र मोदी का नाम एक बार भी सुनाई नहीं दिया. जो बीजेपी मोदी को नेशनल लीडर के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहती थी अब वह क्या करेगी? गुजरात दंगों का भूत मोदी का पीछा नहीं छोड़ेगा. मेरा ऐसा मानना है कि कल अगर इस बात पर नीतीश कुमार बीजेपी से अपना पीछा छुड़ा लें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. इन टेप्स ने मोदी को उनकी औकात बता दी है...."

शनि महाराज, पार्ट-टाइम ज्योतिषी ऐंड फुल-टाइम मनी लांडरिंग कंसल्टेंट : "जब टेप रिकार्ड किये गए तब शनि मंगल के गृह में बैठा था. और वृहस्पति के ऊपर चन्द्रमा का साया मंडरा रहा था. इसलिए लोगों का फोन टेप हो गया. मेरे पास इसका उपाय है. अगर काली सरसों के सात दाने और लालमिर्च के तीन दाने मिलाकर शनिवार के दिन उसे नमक के पानी में धोकर और उसके बाद उसको पीसकर उस लेप को सेलफोन पर लगा दिया जाय तो फिर बातचीत को कोई टेप नहीं कर सकेगा...."

बरखा दत्त, 'जनरलिस्ट' : "टेप्स से यह बात प्रूव होती है कि जर्नलिज्म बिलकुल आसान काम नहीं है. एक न्यूज के लिए एक जर्नलिस्ट को क्या-क्या नहीं करना पड़ता. यहाँ तक कि पीआर एजेंसी चलानेवाली के साथ फालतू की बकबक करनी पड़ती है. आई टेल यू चंदू, दिस इज नॉट ईजी."

श्री राकेश झुनझुनवाला, इन्वेन्टर ऑफ ट्विटर एंड ओनर ऑफ द बिलियन डॉलर रवींद्र जडेजा फैन्स क्लब : "मुझे लगता है कि अभी तक पूरे टेप्स सामने नहीं आये हैं. सरकार कुछ छिपा रही है. मैंने बहुत खोज की लेकिन मुझे वो टेप नहीं मिला जिसमें अजित अगरकर ने टी-ट्वेंटी वर्ल्डकप से पहले रवींद्र जडेजा को क्रिकेट की कोचिंग दी है. यहाँ तक कि वह टेप भी नहीं मिला जिसमें उदय चोपड़ा और हरमन बवेजा एक कान्फरेन्स लाइन पर डीनो मोरिया को एक्टिंग लेशंस दे रहे हैं. आई टेल यू, देयर आर मोर टू दीज टेप्स देन ह्वाट हैज बीन इन पब्लिक डोमेन सो फार....."

श्री भूरेलाल, डी एस पी, तेजपुर बिहार : "ई तो स्साला होना ही था."

हलकान 'विद्रोही', ग्रेटेस्ट हिंदी ब्लॉगर : "आज समय आ गया है कि देश से भ्रष्टाचार को उखाड़ कर फेंक दिया जाय. यह देश पूरी तरह से देशद्रोहियों के हाथ में चला गया है जो गरीब जनता के हिस्से की रोटी भी खा रहे हैं. आज ज़रुरत है कि हम रोज पोस्ट और कमेन्ट लिखकर इन देशद्रोहियों का असली चेहरा सबसे सामने लायें. अब समाज को एक ही चीज दिशा दे सकती है और वह हिंदी ब्लागिंग. आज मैं पूरे हिंदी ब्लॉग समाज से यह आह्वान करता हूँ कि इतनी पोस्ट लिखी जाए कि बस पोस्ट की गूँज सुनाई दे और भ्रष्टाचार इस देश को छोड़कर हमेशा के लिए चला जाय.

भारतमाता की जय!

दीपांकर गुप्ता, समाजशास्त्री : "आज समय आ गया है कि हम इन टेप्स को सोसियो-पोलिटिकल-एकॉनोमिकल ऐंगेल से देखें. जितने भी टेप्स बाहर आये हैं उनमें से एक को भी सुनकर नहीं लगता कि हमारा समाज अभी भी पूरी तरह से इन्क्लूसिव ग्रोथ वाला समाज बन सका है. इन टेप्स में 'वीकर सेक्शन ऑफ द सोसाइटी' का रिप्रजेंटेशन नहीं है. हालाँकि प्रजेंट डे गवर्नमेंट ने काफी कोशिश की है जिससे इन्क्ल्यूसिव ग्रोथ को बढ़ावा दिया है जैसे नरेगा और लोन माफी कार्यक्रम चलाकर इस सरकार ने यह इन्स्योर किया कि पैसे का डिस्ट्रीब्यूशन कहीं न कहीं एमपी और एमएलए के अलावा रुरल लेवल पर ठेकेदारों तक भी पहुंचे. इसके अलावा सरकार ने और भी बहुत कुछ किया है लेकिन वह काफी नहीं है. इन्क्ल्यूसिव ग्रोथ का जो आईडिया है उसे और आगे ले जाने की ज़रुरत है. मेरा ऐसा माना है कि......"

जगन मोहन रेड्डी, राइजिंग सन एंड वाईजिंग पोलिटिसियन : "देयर वेयर येस्पेक्कुलेसन दैट याफ्टर दीज टेप्स यार आउट, अई वुड नॉट रिजाइन. आई हैव प्रूव्ड येवेरीबडी रॉंग येंड जस्ट रिजइन्ड ."

चंदू ज़ी ने तो और लोगों के बयान इकट्ठे किये थे लेकिन टाइप करते-करते हाथ दुःख रहे हैं. आप इतना बांचिये. जैसे सरकार ने और भी टेप्स को सार्वजनिक करने का वादा किया है वैसे ही मैं भी बाकी के बयान बाद में छाप दूंगा.

अगर पब्लिक डिमांड हुई तो.

Friday, November 26, 2010

टेपहरण काण्ड




जब सीडी चलन में नहीं आया था और कई लोग़ उसे शक की निगाह से देखते हुए यह सोचते थे कि अद्भुत दिखने वाली इस चीज को ही यूएफओ कहते हैं, तब अल्ताफ रज़ा और अताउल्लाह खान ज़ी के फैन्स उनके कालजयी गाने सुनने के लिए कैसेट खरीदते थे. खरीदने के बाद उस कैसेट को इतना चलाया जाता था कि जब कभी तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे नामक महान गीत बजता तो आने-जाने वाले लोग़ यही सोचते कि परदेसी कहकर उन्हें ही संबोधित किया जा रहा है. और जब कैसा सिला दिया तूने मेरे प्यार का जैसा प्रोटेस्ट-सूचक, पीड़ा-प्रेषक गीत बजता तो आने-जाने वाली लड़कियां टेपरेकॉर्डर बजानेवाले को आश्चर्य से देखती और मन ही मन सोचती कि; "यह चिरकुट भी मुझे प्यार करता था? मैंने तो केवल रमेश, पप्पू और राजू का नाम सुना था.

उन दिनों फी कैसेट चालीस रूपये खर्च करने वाला कैसेट स्वामी इन गानों को इतना बजाता कि लोगों के मन में संदेह पैदा होने लगता कि इन गानों का कॉपीराइट्स इसी महापुरुष के पास है और अगले घंटे से ही यह पूरे मोहल्ले से पेटेंट फी की वसूली शुरू कर देगा. ये गाने इतना बजते कि कैसेट करीब साढ़े सत्रह दिन के भित्तर ही शहीद हो जाता और उनका स्वामी बड़े दुःख के साथ अलविदा दोस्त कहते हुए उन्हें आते-जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पर फेंक आता. लेकिन कैसेट स्वामी के इस कर्म से कैसेट की मौत नहीं होती थी. दरअसल कैसेट थ्रो नामक जिस खेल में वह बिना किसी गोल्ड मेडल की आकांक्षा के उत्कृष्ट प्रदर्शन करता, उसी खेल से कैसेट को एक नया जीवन मिल जाता था और नया जीवन पाकर कैसेट यह कहते हुए धन्य हो लेता था कि बड़े भाग कैसेट तन पावा.

अपने नए जीवन के पहले चरण में ये वह कैसेट मोहल्ले के किसी कैसेट-प्रेमी बच्चे के हाथों में अठखेलियाँ करते नहीं थकता था. बच्चा उस कैसेट को हाथ में लेता और एक आँख बंद करके दूसरी से उसके आर-पार देखने की कोशिश करता. जब कुछ दिखाई न देने के कारण बोर हो जाता तो बड़े प्यार से उँगलियों के समूह से तर्जनी नामक उंगली का सेलेक्शन कर उसे कैसेट की चकरी में घुसेड़ देता और उसे इस तरह से घुमाता जैसे महाभारत सीरियल में श्रीकृष्ण बने नितीश भारद्वाज तथाकथित सुदर्शन चक्र घुमाया करते थे.

कुछ बच्चे तो इस कला में इतने माहिर होते थे कि अगर एशियन गेम्स में इस प्रतियोगिता को शामिल कर लिया जाता तो नोवी कपाडिया को इस बात की चिंता न सताती कि गोल्ड मेडल्स की टैली को दो अंकों में पंहुचाने के लिए किस प्रतियोगिता पर डिपेंड किया जाय. शर्त लगाकर कह सकता हूँ कि नाइन आउट ऑफ टेन बार गोल्ड मेडल भारत की झोली में होता और भारत की गोल्ड मेडल टैली डबल डिजिट में पहुँच जाती.

अपना नया सुदर्शन चक्र घुमाकर भगवान, (मेरी बात पर नाराज़ मत होइएगा, बच्चे भगवान का रूप होते हैं.इधर आप नाराज़ हुए और उधर आपको पाप लगा), जब बोर हो जाता तब वह कैसेट को आधे में चीर डालता और उसके भीतर के टेप को खींच डालता. बच्चे का यह कर्म कुछ समय के लिए उसे दुशासन के रूप में प्रस्तुत करता. अंतर केवल इतना रहता कि अटेंडेंस रजिस्टर में सुदर्शनचक्र धारी भगवान श्रीकृष्ण के नाम के आगे कैपिटल ए लिखा रहता. इसका परिणाम यह होता कि अगल-बगल खड़े लोग़ इस टेप-हरण काण्ड का जम कर लुफ्त उठाते. बाद में टेप को उड़ाया जाता. फैलाया जाता. लपेटा जाता. टांगा जाता. कहीं बांधकर लाँघा जाता. बच्चों के ये कर्म उन्हें और साथ में खड़े तमाम लोगों को अद्भुत आनंद वाले रोलरकोस्टर राइड्स पर ले जाते. उन्हें लगता कि टेप हरण में ही जीवन का लुत्फ़ छिपा हुआ है. कुछ दिनों बाद जब वे बोर हो जाते तो नए कैसेट की तलाश में निकल पड़ते. मोहल्ले में कैसेटों की कमी भी नहीं थी. लगभग हर दिन किसी न किसी घिसे-पिटे कैसेट को नया जीवन मिल ही जाता.

यह बात अलग थी कि कुछ टैलेंटेड बच्चे यह सोचते हुए समाज को गाली देते थे कि सभी कैसेट ही फेंकते हैं. स्साला कभी कोई टेप रेकॉर्डर नहीं फेंकता.

धत्त तेरे की. मैंने सोचा था कि आज बहुत दिनों बाद चर्चा में चल रहे टेप्स के बारे में कुछ लिखूंगा और शुरू किया तो घिसे-पिटे कैसेट के बारे में लिख दिया. खैर, अब लिख दिया है तो पब्लिश कर ही देता हूँ. टेप्स के बारे में फिर कभी लिखूँगा.

Friday, November 12, 2010

सिंथेटिक प्रगति




दिवाली आई और चली गई. साल भर जिस त्यौहार का इंतज़ार रहता है उसके आने में तो देर लगती है लेकिन जाने में बिलकुल नहीं. अब दिवाली के चले जाने से हम वैसे ही हलकान हैं जैसे कुछ लोग इस बात से हलकान हुए जा रहे हैं कि श्री बराक ओबामा ने मुंबई में भाषण तो झाड़ा लेकिन वे अपने भाषण में पाकिस्तान नामक शब्द डलवाना भूल गए. यह तो वैसा ही हो गया कि सब्जी तो बहुत बढ़िया बनी बस समस्या एक रह गई कि मास्टर शेफ अमेरिका नमक डालना भूल गए.

ओह, दिवाली की बात हो रही थी और कहाँ हम फिसल कर ओबामा पर जा पहुंचे.

हाँ तो मैं कह रहा था कि दिवाली आई और चली गई. दीये जले. लक्ष्मी और गणेश ज़ी का पूजन हुआ. एस एम एस लेन-देन का कार्यक्रम हुआ. इनोवेटिव एस एम एस लिखने के कीर्तिमान स्थापित हुए. जो नहीं हो सका वह था मिठाई भक्षण कार्यक्रम. मिठाई भक्षण की बात पर हम इस बार निरीह साबित हुए. कारण था, मिठाई टेस्ट करने के लिए हम घर में प्रयोगशाला नहीं बना सके. मिठाई की दूकान के आस-पास हमें परखनली और टिंक्चर आयोडीन की दूकान नहीं मिली लिहाजा हम ये चीजें नहीं ला सके. ऐसे में मिठाई परीक्षण नहीं हो सका. अब चूंकि सरकार हमको बार-बार बता रही थी कि जागो ग्राहक जागो और मिठाई टेस्ट करके खाओ, हमें बिना परीक्षण वाली मिठाई खाने में शर्म महसूस हुई. नतीजा यह हुआ कि हमने मिठाई नहीं खाई.

इससे पहले कि आप पूछें कि परखनली क्या लफड़ा है, हम आपको बता देते हैं कि परखनली भारतवर्ष में टेस्ट-ट्यूब के नाम से विख्यात हैं.

प्रगति में लिप्त देश के पास तमाम बातों के लिए आप्शन कम हो जाते हैं और वह निरीह हो जाता है. अब देखिये न, हम जब केवल चार प्रतिशत से ग्रो कर रहे थे तब जमकर मिठाई खाते थे. बाद में पता चला कि भारतवर्ष की कुंडली में प्रगति लिखी हुई है. अब जिसकी कुंडली में प्रगति लिखी हुई है उसे प्रगति करने से कौन रोक सकता है? ऐसे में प्रगति योग का असर यह हुआ कि हम नौ-दस परतिशत से ग्रो करने लगे. अब इतनी तेजी से ग्रो करेंगे तो सबकुछ अद्भुत ही होगा न.

और सबकुछ अद्भुत ही हो रहा है.

एक ज़माना था जब सिंथेटिक शब्द की बात होती थी तो उसके साथ केवल एक शब्द जुडा होता था और वह था साड़ी. लगता था जैसे सिंथेटिक शब्द साड़ी शब्द के साथ फेविकोल लगाकर चिपका हुआ था. बाद में हम प्रगति के ऐसे शिकार हुए कि हमने तमाम और चीजों से सिंथेटिक को जोड़ डाला जिनमें सिंथेटिक मावा, सिंथेटिक मैदा, सिंथेटिक दूध, सिंथेटिक दही. अब तो कई बार तो लोग़ सिंथेटिक शुभकामनाओं के साथ बरामद होते हैं.

बस अब केवल सिंथेटिक प्रगति का हल्ला होना बाकी है.

जब मैं छोटा था तब मिठाई में इस्तेमाल होनेवाले मावे और खोये में आलू की मिलावट होती थी. दूध में मूंगफली की. प्रगति के साथ-साथ इक्वेशन चेंज हो गया. अब मावे में सफ़ेद पेंट और टॉयलेट पेपर की मिलावट होती है और दूध में यूरिया की. टॉयलेट पेपर वाली जानकारी मेरे लिए ताज़ा है और परसों ही एक टीवी चैनल ने दी है. पत्रकार बता रहा था कि टॉयलेट पेपर मिलाने से मावा असली लगता है. इस जानकारी के बाद मुझे लगा कि पिछले चार-पाँच महीनों में देश में टॉयलेट पेपर को अभूतपूर्व इज्ज़त मिली है. ऐसी इज्ज़त जो इस पेपर को शायद ही किसी और देश में मिले.

एक मित्र से बात हो रही थी. मैंने कहा; "ये भी कोई बात है? हम मिठाई खरीदने बाज़ार जायें तो साथ में टेस्ट-ट्यूब और केमिकल भी ले आयें ताकि उसे टेस्ट कर सकें?"

मित्र बोले; "अरे ये सब ढकोसला है. मुझे तो लगता है किसी मंत्री के दूर के रिश्तेदार जैसे सास-ससुर या फिर साले-सालियों ने टेस्ट-ट्यूब और मिठाई टेस्टिंग केमिकल्स का धंधा कर लिया है. इसीलिए सरकार ने इतना बड़ा विज्ञापन अभियान चला रखा है."

आगे बोले; "और मैं पूछता हूँ कि क्या गारंटी है कि जिस केमिकल से टेस्ट होना है वह मिलावटी नहीं होगा? उसे टेस्ट करने के लिए क्या एक और चीज खरीदनी पड़ेगी?"

मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

आज बैठे-बैठे सोच रहा था कि आनेवाले दिनों में क्या-क्या दिखाई पड़ेगा? मुझे लगा कि हो सकता है पेंट बनानेवाली कोई कंपनी इस बात का प्रचार करे कि प्रसिद्द मिठाई निर्माता अपनी मिठाइयों में हमारी कंपनी के पेंट का इस्तेमाल करते हैं. मिठाई बनानेवाले सेठ ज़ी इस विज्ञापन के लिए मॉडलिंग करेंगे. कोई फर्टीलाइजर कंपनी अपने विज्ञापन में इस बात को बड़े गर्व के साथ प्रचारित करेगी कि दूध बेचने वाली फलाने कंपनी दूध सफ़ेद बनाने के लिए हमारी कंपनी के यूरिया का इस्तेमाल करती है. टॉयलेट पेपर बनानेवाली कंपनी बड़े ताम-झाम के साथ विज्ञापन बनाये कि; "ज़ी हाँ, बहनों और भाइयों, कॉमनवेल्थ गेम्स में अपार सफलता के बाद अब हमारी कंपनी के टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल प्रसिद्द मिठाई निर्माता सखाराम सूरजमल अपनी मिठाई के मावे में करते हैं.....

नकली मावे की फैक्टरी में छापा मारने वाले फ़ूड इंस्पेक्टर टीवी चैनल वालों को लेकर जाते हैं ताकि उनकी सफलता से भारतवर्ष में फ़ूड इंस्पेक्शन का इतिहास लिखा जा सके. कल कहीं ऐसा न हो कि मिठाई टेस्ट करने के लिए केमिकल्स बनानेवाली कम्पनियाँ डिमांड पूरा करने के लिए नकली केमिकल्स बनना शुरू कर दें और इन्ही इंस्पेक्टर ज़ी लोगों को उनकी फैक्टरी पर छापा मारना पड़े.......



नोट: मेरी यह पोस्ट पहले न्यूज दैट मैटर्स नॉट पर प्रकाशित हो चुकी है.

Monday, November 8, 2010

बराक ओबामा इन एक्सक्लूसिव चैट विद चंदू चौरसिया




पत्रकारिता मेहनत का काम है. ईमानदारी का काम है. अब देखिये न, बड़े-बड़े पत्रकार अपने टीवी स्टूडियो में बैठे-बैठे ही एनालिसिस करते रह गए लेकिन असली पत्रकार राष्ट्रपति ओबामा से मिलकर उनका इंटरव्यू निकाल लाया. ज़ी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ हमारे ब्लॉग पत्रकार चंदू चौरसिया की.

चंदू ने मुझे एक महीना पहले ही भरोसा दिलाया था कि चाहे जो हो जाए, वह बराक ओबामा ज़ी का इंटरव्यू लेकर रहेगा. मेहनती इतना कि पाँच तारीख से ही आगरा में डेरा जमाये था. सुबह से ही ताजमहल के सामने वाले दरवाजे पर पेन और पेपर लेकर बैठ गया. जब शाम तक ओबामा ज़ी नहीं निकले तो उसने सोचा कि कोई न कोई लफड़ा है. पूछताछ करने पर पता चला कि ओबामा ज़ी छ तारीख को आयेंगे और आगरा वाले ताजमहल में नहीं बल्कि मुंबई वाले ताजमहल में रहेंगे.
यह भी पता चला कि वे मुंबई से सीधा दिल्ली आयेंगे तो चंदू ने निश्चय किया कि वह अब दिल्ली में ही इंटरव्यू लेगा. मुंबई नहीं गया. नहीं जाने का एक कारण और भी था, उसे डर था कि मुंबई जाने के बाद उसके मन में कहीं हीरो बनने का लालच न आ जाए. उसने अपना जीवन पत्रकारिता को समर्पित कर दिया है इसलिए अब हीरो बनने में उसे शर्म आती है.

आज सुबह ही दिल्ली से कोलकाता पहुँचा. मैं इंटरव्यू टाइप कर दे रहा हूँ. आप बांचिये.

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चंदू: गुड ईविनिंग सर. वेलकम तो आवर इंटरव्यू, सर.

ओबामा: चंदू ज़ी, अंग्रेजी में बात क्यों कर रहे हैं? अरे भाई मुझे हिंदी आती है.

चंदू: सर! ये तो चमत्कार हो गया. आपको हिंदी आती है? कहाँ सीखी, सर?

ओबामा: हाँ भाई, मुझे हिंदी आती है. मैं अमेरिका का प्रेसिडेंट हूँ. और आपको बता दूँ कि अमेरिका का प्रेसिडेंट कुछ भी कर सकता है. यहाँ तक कि हिंदी भी सीख सकता है. भाई व्यापार करने निकला हूँ भाषा का ज्ञान नहीं रहेगा तो व्यापार कैसे होगा? वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैंने हिंदी सीखने के लिए टेली-शॉपिंग का महागुरु हिंदी स्पीकिंग कोर्स खरीदा और हिंदी सीख ली.

चंदू: अरे सर, आपने तो हमारी मुँह की बात छीन ली. बहुत बढ़िया कोर्स है सर.

ओबामा: अच्छा, क्या आपने भी हिंदी वहीँ से सीखी है?

चंदू: नहीं सर. हमने तो महागुरु के कोर्स से अंग्रेजी सीखी है. वैसे सर, यह बताइए कि आपने हिंदी कब और क्यों सीखी?

ओबामा: जब मैं प्रेसिडेंट बना तभी मैंने निश्चय किया कि मुझे हिंदी सीखनी है. साल २००८ में मैंने आपके तत्कालीन विदेशमंत्री द्वारा अंग्रेजी में दिया गया भाषण सुना. भाषण ख़त्म होने के बाद मैंने उसी अंग्रेजी भाषण का अंग्रेजी ट्रांसलेशन माँगा. उसे पढ़ने के बाद मैंने अपने अफसरों के साथ मीटिंग की और यह तय किया हिंदी सीखकर झमेला ख़तम किया जाय और भारतीय नेताओं के साथ हिंदी में ही बात कर ली जाय.

चंदू: सर, यह बताइए कि आप अभी अपने देश का मध्यावधि चुनाव हार गए हैं. क्या आप अपने पद से इस्तीफ़ा देंगे?

ओबामा: पद से इस्तीफ़ा? क्यों? मैं मिड-टर्म इलेक्शन हारा हूँ, उसके लिए इस्तीफ़ा क्यों दूँ?

चंदू: दरअसल सर, आपको इस्तीफ़ा देने की ज़रुरत नहीं है. मैंने यह सवाल तो पत्रकार धर्म का पालन करने के लिए पूछा है. हमारे देश में जब कोई सरकार मिड-टर्म इलेक्शन हारती है तो विपक्ष और पत्रकार दोनों उसके इस्तीफे की बात करते हैं. यह अलग बात है कि सरकार इस्तीफ़ा नहीं देती.

ओबामा: अच्छा यह बात है? आपके देश के पत्रकार तो बहुत अच्छे हैं.

चंदू: हाँ सर. एक से बढ़कर एक हैं. वैसे मेरा आपसे अगला सवाल है कि आप भारत क्यों आये? आपके आने का उद्देश्य मेरे लिए जानना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि कुछ लोग़ कह रहे हैं कि इतने सारे लोगों को भारत लेकर आये हैं इतने बड़े-बड़े व्यापार समझौते किये आपने जिसे देखकर लगता है जैसे आप साल २०१२ के लिए अपना चुनाव प्रचार मुंबई से शुरू कर रहे हैं.

ओबामा: नहीं-नहीं यह सच नहीं है. मैं यहाँ चुनाव प्रचार करने नहीं आया हूँ. दरअसल मैं यहाँ कुछ और अजेंडा लेकर आया हूँ.

चंदू: मैं आपकी बात मान गया सर. वैसे भी अगर आप चुनाव प्रचार करते तो आपके साथ हमारी फिल्म इंडस्ट्री का कोई न कोई हीरो अवश्य होता. वैसे आपका अजेंडा क्या है सर?

ओबामा: देखिये ऐसा है कि अमेरिका में तो मैं गाँधी ज़ी को कई बार महान बता चुका हूँ. अपने देश में भाषण देते हुए मैं कई बार भारत को इकॉनोमिक पावरहाउस बता चुका हूँ. कई बार आपके प्रधानमंत्री को मैं महान बता चुका हूँ. मैंने सोचा कि क्यों न यही बातें भारत में की जाएँ. उससे मेरी ईमेज भी बढ़िया होगी और आपके प्रधानमंत्री की ईमेज में भी चार चाँद लग जायेंगे.

चंदू: वैसे सर, मेरा अगला सवाल यह है कि आप पाकिस्तान को मदद पर मदद दिए जा रहे हैं. जिस पाकिस्तान में आपको सैनिक झोंकने चाहिए उसमें आप डालर झोंके जा रहे हैं. ऐसा क्यों?

ओबामा: मुझे पता था कि आप कभी न कभी यह सवाल पूछेंगे. देखिये पाकिस्तान पूरे विश्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. अमेरिका भी पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है. ऐसे में एक महत्वपूर्ण देश का धर्म बनता है कि वह दूसरे महत्वपूर्ण देश के लिए कुछ करे...... भारत एक उभरता हुआ इकॉनोमिक पॉवर हाउस है. दक्षिणी पूर्वी एशिया में ही नहीं भारत का विश्व के मंच पर एक अपना रोल है. भारत आनेवाले समय में पूरी दुनियाँ को विकास का रास्ता दिखा सकता है. आज के विश्व में भारत का जो स्थान है वह उसे मिलना चाहिए. मैं जब प्रधानमंत्री श्री सिंह से पहली बार मिला था तभी मैंने उन्हें बताया था कि मैं उनका बहुत बड़ा फैन हूँ. मुंबई में रहकर मैंने जो महसूस किया वह यह है कि आनेवाले समय में भारतीय युवा अपन रोल बखूबी समझता है. देखने वाली बात यह है कि......

चंदू: सर, आप मेरे सवाल का जवाब नहीं दे रहे हैं.

ओबामा: आपके सवाल का उचित जवाब यही है जो मैंने दिया है. अगर आपको कोई और जवाब सुनना है तो फिर मैं सच बता देता हूँ. देखिये हमारे देश में डालर प्रिंट करने वाले प्रेस अभी ओवरटाइम काम कर रहे हैं. जब हम टार्गेट से ज्यादा डालर प्रिंट कर लेते हैं तो उसमें से कुछ पाकिस्तान को दे देते हैं. हमारे यहाँ रखने की भी दिक्कत होती है न.

चंदू: अच्छा सर यह बताइए कि आप इतने बड़े-बड़े सीईओ को लेकर आये हैं. व्यापार समझौते के अलावा और किन मुद्दों पर पर समझौता करना चाहेंगे?

ओबामा: बहुत सारे और क्षेत्र हैं जिनमें भारत और अमेरिका को एक साथ आने की ज़रुरत है. मैं प्रधानमंत्री श्री सिंह से कहूँगा कि व्यापार के अलावा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी समझौते हों. जैसे कि ढेर सारे अमेरिकी टीवी प्रोग्राम की नक़ल करके आपके देश में प्रोग्राम चल रहे हैं. मेरा मानना है कि हमारे देश की टीवी इंटरटेनमेंट को और ज्यादा से ज्यादा भारत में दिखाया जा सके तो बढ़िया रहेगा. आपके हिंदी न्यूज चैनल जिस तरह से कानपुर, मेरठ, दिल्ली, सहारनपुर जैसी जगहों के आपराधिक मामले दिखाते हैं वैसे ही अब वे न्यूयार्क, लास वेगास और लास एंजेलिस के आपराधिक मामले दिखा सकते हैं. जैसे वे रामपुर, बदलापुर, नजफगढ़ जैसी जगहों के भूत-प्रेत, चुड़ैल, जिन्न आदि की कहानियां दिखाते हैं वैसे ही वे अमीरीक भूत-प्रेत, चुड़ैल वगैरह........जैसे वे राखी सावंत, सम्भावना सेठ और डाली बिंद्रा के किस्सों वाले प्रोग्राम्स दिखाते हैं वैसे ही वे अब ब्रिटनी स्पीयर, पेरिस हिल्टन वगैरह के प्रोग्राम्स दिखायें.

चंदू: अरे सर, आप राखी सावंत और डाली बिंद्रा को भी जानते हैं?

ओबामा: उन्हें कौन नहीं जानता? ह्वाईट हाउस का मेरा स्टाफ बिग बॉस और राखी का इन्साफ जैसे प्रोग्राम का बहुत बड़ा फैन है.

चंदू: दोनों देशों के बीच और किस तरह के सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो सकते हैं सर?

ओबामा: मेरा मानना है कि एक क्षेत्र और है जिसमें सांस्कृतिक आदान-प्रदान की अद्भुत सम्भावना है. मुझे लगता है कि अगर भारतीय ज्योतिषाचार्य लोग़ अमेरिका में अपनी सर्विस दें तो यह अमेरिका के लिए बहुत अच्छा रहेगा. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि हमारे देशवासियों का अब हमारे इकॉनोमिस्ट में विश्वास नहीं रहा. ऐसे में हम देश की आर्थिक समस्याओं को सॉल्व करने के लिए ज्योतिष का सहारा ले सकते हैं. दरअसल ऐसा है कि अब हमारे देश के इकॉनोमिस्ट इकॉनोमी के बारे में सही भविष्यवाणी नहीं कर पा रहे हैं. आपके देश के ज्योतिषी लोग़ हमारे बहुत काम आ सकते हैं. मुंबई में ताजमहल होटल में मैंने कुछ न्यूजपेपर देखे जिनमें आपके ज्योतिषी लोगों की भविष्यवाणियाँ पढ़ने को मिलीं जिनमें बताया गया था कि चन्द्र, सूर्य, राहु-केतु वगैरह का देश के शेयर बाज़ार पर क्या असर पड़ता है? खासकर मेटल ट्रेडिंग पर ग्रहों के प्रभाव के बार में जानकार मुझे बहुत अच्छा लगा. मैंने अपने सलाहकारों से बात कर ली है और आशा करता हूँ कि जल्द ही आपके ज्योतिषी हमारे देश के गोल्डमैन सैक्श और मेरिल लिंच को अपनी सर्विस देंगे. वैसे भी हमारे इन्वेस्टमेंट बैंकर आपके ज्योतिषियों के आगे नहीं ठहरते. मेरा....

चंदू: सर, भारतीय पत्रकारिता का आपका अनुभव कैसा रहा?

ओबामा: बहुत बढ़िया रहा. आपके पत्रकारों ने मुझे जो इज्ज़त दी, उतनी तो मैं भी खुद को नहीं देता. मैं सोच रहा था कि आपके देश से कुछ पत्रकारों को मैं अपने साथ अमेरिका ले जाऊं. पिछले कुछ न्यूज प्रोग्राम देखकर मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि अगर आपके अंग्रेजी पत्रकार हमारे देश में होते तो ग्राउंड जीरो पर मस्जिद बनने में मुझे कोई दिक्कत नहीं आती. मैं बरखा दत्त ज़ी से बहुत प्रभावित हूँ. और अरनब....मुझे आपका राष्ट्रीय चैनल इंडिया टीवी देखकर बहुत ख़ुशी हुई.

चंदू: अच्छा सर, यह बताएं कि आपकी अफगानिस्तान नीति अब क्या होगी? खासकर तब जब आप मिड-टर्म इलेक्शन हार गये हैं?

ओबामा: देखिये अफगानिस्तान में हम सफल रहे हैं. दो साल पहले तक जिस देश में गुड तालिबान और बैड तालिबान थे वहाँ अब केवल तालिबान है. ऐसे में कहा जा सकता है हम सफल रहे हैं. हम तालिबान से बात कर रहे हैं. हाँ, अब हमें यह तय करने में दिक्कत आ रही है कि असली तालिबान कौन है? हामिद करजई या हक्कानी? लेकिन सी आई ए ने केस हाथ में ले लिया है. हम जल्द ही पता लगा लेंगे कि....

चंदू: सर, मेरा एक सवाल और है कि...

ओबामा: बस-बस चंदू ज़ी बस. बाहर आपके सरकारी राष्ट्रीय चैनल इंडिया टीवी के पत्रकार भी इंतजार कर रहे हैं. उन्हें भी तो मौका मिलना चाहिए.

चंदू: अरे, सर, आप नाम पर न जाएँ. इंडिया टीवी का मतलब सरकारी टीवी नहीं है....

ओबामा: लेकिन नाम तो...

चंदू: अरे सर, नाम से धोखा हो जाता है. अब देखिये न पकिस्तान के एक नेता हैं नवाज़ शरीफ...शराफत नाम में भी है लेकिन क्या वे...

ओबामा: हा हा हा...

चंदू: अच्छा सर, नमस्कार. आपने इतना समय दिया. उसके लिए आपको धन्यवाद.

ओबामा: धन्यवाद.

Monday, November 1, 2010

दुर्योधन की डायरी - पेज २९६२




जब से स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और हॉस्टल तोड़कर अपनी प्रतिमा लगवाई है, उसका फायदा दिखाई दे रहा है.

पिछले सप्ताह मामाश्री के सुझाव पर दो दिन की पदयात्रा पर निकल गया था. प्रजा के बीच जाकर लगा जैसे ईमेज कुछ ठीक हो रही है. लेकिन मुझे बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है. मामाश्री कह रहे थे मुझे सबसे ज्यादा जरूरत इस बात पर ध्यान देने की है कि संवाददाता सम्मेलनों में मुंह से कुछ उलटा-पुल्टा न निकल आए.

पिछले महीने एक सभा में भाषण देते-देते जोश में गलती कर बैठा. कुछ पुरानी परियोजनाएं जो महाराज भरत के जमाने से चल रही हैं, उन्हें पिताश्री के द्वारा शुरू की गई परियोजनाएं बताने की गलती कर बैठा. अखबारों के सम्पादकों ने इस बात पर मेरी बहुत खिल्ली उडाई थी.

मामाश्री की कृपा से हस्तिनापुर का युवा वर्ग मुझमे अपना भविष्य देखने लगा हैं. हुआ ऐसा कि पदयात्रा के दौरान मामाश्री ने अपने 'लड़कों' की एक टोली अचानक भेज दी. एक गाँव में मेरे पहुँचने से पहले ही उनके लड़के पहुँच चुके थे. और मेरे पंहुचने के साथ-साथ इन लोगों ने नारा लगना शुरू कर दिया;

जब तक सूरज चाँद रहेगा, सुयोधन तेरा नाम रहेगा

सुयोधन तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं

हस्तिनापुर का राजा कैसा हो, सुयोधन के जैसा हो

नारे लगाते इन लड़कों को देखकर प्रजा के बीच से भी कुछ नौजवान आगे आए और उन्होंने भी नारे लगाने में मामाश्री द्वारा भेजे गए लड़कों का हाथ बटाया. बड़ी सुखद अनुभूति थी. वैसे संघर्ष करने की बात वाले नारे पर मुझे एक बार के लिए हंसी आ गई थी. मेरे मन में आया कि मैं ठहरा राजकुमार. मुझे किससे संघर्ष करने की जरूरत पड़ गई भला? फिर मामाश्री की बात याद आई.

एक बार राजनीति का पाठ पढ़ाते हुए उन्होंने कहा था; "एक बात हमेशा याद रखना वत्स दुर्योधन, राजनीति में सफल होना है तो नारों का सहारा कभी न छोड़ना. नारों का कोई मतलब निकले या न निकले. नारों में मतलब ढूढना बेवकूफ राजनीतिज्ञ की निशानी होती है."

कुछ नौजवानों से वार्तालाप करके पता चला कि वे हस्तिनापुर में नेतृत्व परिवर्तन चाहते हैं. कहते हैं राज-काज देखने वाले लोग बूढ़े हो गए हैं. वैसे ज्यादातर नौजवान यही मानते हैं कि राज-काज देखने वाले लोग, जैसे पितामह, विदुर चाचा, गुरु द्रोण वगैरह बहुत सक्षम हैं. मुझे ऐसे नौजवान अच्छे नहीं लगे.

जब मैंने ये बात मामाश्री को बताई तो उन्होंने बड़ा अच्छा सुझाव दिया. उन्होंने बताया कि मैं अपने गुप्तचरों द्वारा ये व्हिस्पर कैपेन चला दूँ कि पितामह आजकल बीमार रहते हैं. बैठे-बैठे सो जाते हैं. मामाश्री ने तो यहाँ तक कहा कि इस बात को भी फैला देना चाहिए कि विदुर चाचा पिछले महीने पन्द्रह दिन के लिए अस्पताल में भर्ती थे और उन दिनों राज-काज का सारा काम मैं देखता था. मैंने फैसला कर लिया है, मामाश्री के सुझावों का तुरंत पालन करूंगा.

मामाश्री ने एक सुझाव और दिया है. कह रहे थे कि कुछ छंटे हुए नौजवानों का एक प्रतिनिधिमंडल लेकर विदुर चाचा से मिलूं और पूरे हस्तिनापुर के नौजवानों के कल्याण के लिए कुछ योजनायें चलाने का सुझाव दूँ. ऐसे में नौजवानों के बीच मेरी छवि और अच्छी होगी. नौजवानों को लगेगा कि मैं उनके बारे में सोचता हूँ.

मुझे मामाश्री के इस प्लान पर शक हो रहा था. मुझे डर था कि कहीं ऐसा न हो कि विदुर चाचा मेरी मांग ठुकरा दें. बाद में मैंने माताश्री से इस योजना के बारे में बात की तो उन्होंने आश्वासन दिया कि वे विदुर चाचा को समझा देंगी.

प्लान ये है कि जब मैं प्रतिनिधिमंडल लेकर विदुर चाचा से मिलूंगा तो वे पत्रकारों के सामने ही मेरे प्लान की बहुत सराहना करेंगे और मेरा प्लान तुरंत मानते हुए नौजवानों के लिए सुझाई गई परियोजाओं के लिए धन मुहैया कराने का वादा कर देंगे.

मामाश्री ने और भी होमवर्क दे दिया है. कह रहे थे कि अगले सप्ताह से मुझे न केवल प्रजा के बीच जाना पड़ेगा अपितु सार्वजनिक तांगों, इक्कों और बैलगाड़ियों पर जनता के साथ यात्रा करनी पड़ेगी. ऐसा करने से जनता के बीच में मेरी ईमेज और पुख्ता होगी. कह रहे थे कि कल शाम को ही मैं संवाददाता सम्मलेन बुलाऊं और उसमें पत्रकारों को बताऊँ कि मैं अगले सप्ताह से कॉमन सवारियों पर यात्रा करूँगा जिससे आम आदमी की पीड़ा को समझ सकूँ. वैसे तो यह अपने आप में बड़ा पीड़ादायक काम है लेकिन मैं इसलिए तैयार हो गया क्योंकि मामाश्री ने मुझे अश्योर किया कि इन सार्वजनिक सवारियों के पीछे खाली पालकी और मेरा रथ चलेगा ताकि जहाँ भी मैं जनता के लोगों के बीच बैठने से बोर हो जाऊं तो फट से अपने रथ पर या फिर पालकी पर चढ़ जाऊं.

मामाश्री पर मुझे पूरा भरोसा है. वे मेरी ईमेज बनाकर ही दम लेंगे.

अब मैं सोने जा रहा हूँ. कल सुबह-सुबह ऋषि पराशर के आश्रम में उनके शिष्यों के सामने मुझे भाषण देना है. उनके कुछ शिष्य मुझसे राज-काज में मेरे रोल पर चर्चा करना चाहते हैं. इस चर्चा के लिए शिष्यों के चयन का काम पूरा हो चुका है. मामाश्री ने उन्हें प्रश्न लिख कर पहले ही दे दिय है जिससे वे छात्र सही तरीके से अपना प्रश्न दाग सकें.

नोट: यह एक पुरानी पोस्ट है.