बहुत दिन बाद कल रतीराम जी की दूकान पर गया था. पान खाने. आफिस जिस दिन बंद रहता है, उस दिन पान खाने के अलावा काम ही क्या है? छुट्टी वाले दिन पान खाने में सुभीता रहता है. फ़ोन-वोन ज्यादा नहीं आते लिहाजा पान का मज़ा पूरा मिलता है. एक बार मुंह में पान घुसा नहीं कि मौज ही मौज. फ़ोन नहीं आता तो पीक थूकने की जल्दी भी नहीं रहती.
खैर, रतीराम जी से बातचीत शुरू हुई. मैंने पूछा; "कैसा चल रहा है धंधा?"
वे बोले; "ई भी कोई पूछने का बात है? पान का धंधा ससुर अमेरिका के ऊपर थोड़े न निर्भर करता है. हमें कौन सा पान लगाकर एक्सपोर्ट करना है? हमरा कस्टमर तो ईहै रहता है."
मैंने कहा; "मतलब धंधा मस्त चल रहा है."
वे बोले; "इलेक्शन का मौसम में पब्लिक का स्टेटस बढ़ गया है. ई मौसम में लोकतंत्र उसी के हाथ में रहता है. बाकी सब त पब्लिक का नौकर चाकर हो जाता है लोग. अब पब्लिक मस्त है त हमरा धंधा भी मस्त है. ओईसे नेता लोग आजकल भाषण जादा दे रहा है त ऊ लोग पान कम खा रहा है. लेकिन नेता लोग का रस-विहीन भाषण पब्लिक झेल नहीं पा रही है त उसका कन्जम्पशन बढ़ गया है. ऐसे में बैलेंस बना हुआ है. बैलेंस बना का हुआ है, धंधा बढ़ गया है. पब्लिक जादा खा रही है त भाल्यूम का गेम काम कर रहा है."
मैंने कहा; "ये बढ़िया बात है. वाल्यूम गेम ही बिजनेस का असली आईडिया है."
वे बोले; "ठीक बूझे. ओइसे आप बताईये? सुना ब्लागिंग से रूठ गए थे?"
मैंने कहा; "नहीं ऐसी बात नहीं थी. असल में कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा था. लेकिन ऐसा होता है."
वे बोले; " अरे त हमको बता दिए होते. हमी कुछ लिख देते. याद नहीं है? सिंगुर वाला हमरा पोस्ट केतना हिट हुआ था?"
मैंने कहा; "याद है रतीराम जी. लेकिन सच कहें तो हमें आपकी लिखी उस पोस्ट की वजह से आप से जलन होने लगी थी. इसीलिए मैंने आपकी लिखी हुई पोस्ट फिर पब्लिश नहीं की."
वे बोले; "बताईये, एक पानवाला का लेखन से एतना जलन है आपको त ब्लॉग-लेखकों से न जाने केतना जलते होंगे?"
मैंने कहा; "देखिये जलना तो बहुत आदमी का बेसिक कैरेक्टर होता है. वैसे आप कहते है तो दीजिये कुछ, मैं छाप दूंगा."
उन्होंने फट से पैसा रखने वाला ड्रार से तीन-चार पन्ने निकाले. बोले; "कौन सब्जेक्ट पर लेख दें आपको? कम से कम तीन सब्जेक्ट पर हाल ही में लिखे हैं. ई देखिये, ई वाला नेता लोगों का भाषा पर लिखे है.... ई वाला क्रिकेट पर लिखे है...औउर ई वाला देखिये, ई वाला जूता-काण्ड पर लिखे है. "
मैंने कहा; "कोई भी दे दीजिये. आप ने लिखा है तो बढ़िया ही लिखा होगा."
वे बोले; "त फिर जूता-काण्ड पर लेख ले जाइये."
मित्रों, उन्होंने हाल ही में हुए जूता-काण्ड पर मुझे लेख थमा दिया. मैं पब्लिश कर रहा हूँ. आप भी पढिये.
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आदमी का तकदीर ऊपर-नीचे होता रहता है. अईसा न जाने कौन बखत से होता आया है. लेकिन जूता का तकदीर? ई नहीं पता था कि जूता का तकदीर उसका ब्रांड पर निर्भर करता है. न जाने केतना बार बेटा को जूता फ़ेंक कर मारे होंगे. लेकिन मजाल है कि उसका अन्दर कोई चेंज आया हो. पिछला साल सातवीं में फेल हुआ था तब जूता फेंक कर मारे थे. लेकिन कोई असर नहीं हुआ. इस साल भी फेल हो गया. केतना चाहते है कि पढ़-लिख कर कुछ करे लेकिन इसका मन शायद बाप का फेमली बिजनेस को आगे बढ़ाने का ही है.
एक हमरा जूता है जिसको चलाने से कौनो असर नहीं होता. वहीँ पर पत्रकार लोग जूता चला देता है त तुंरत असर देखाई देता है. कल सोच रहे थे कि अईसा काहे है कि हमरा जूता असर नहीं देखाता और पत्रकार का जूता का असर ई होता है कि गुंडागर्दी पर उतारू नेता लोग भी गाँधी जी बन जाता है? तुंरत पत्रकार को माफ़ कर देता है.
बात चला त बेटा बोला; "बाबू, ई ब्रांड का असर है. आप जूता खरीदते हैं सुरेश चचा से. आर्डर देते है त सामान ओमान लाकर ऊ आपका जूता बनाते हैं. लोकल जूता फेंक कर मारने से कोई रिजल्ट नहीं आएगा. जरनैल सिंह जी ने जो जूता फेंक कर मारा था, ऊ रीबोक का जूता था. विदेशी ब्रांड. ऐसे में सरकार और नेता के ऊपर असर काहे नहीं होगा? नेता सब का ऊपर विदेशी चीज का असर ही होता है."
इच्छा त हुआ कि कह दें कि; "तुम भी त देसिये है. हमरा जूता भी देसी. तुम्हरे ऊपर काहे असर नहीं होता? ससुर इस साल पास हो जाते त आठ में चले जाते."
लेकिन चुप रहे. पता नहीं का उसके मुंह से निकल आये?
लेकिन ई बात मन में आता है कि जिस तरह से जूता-उता फेंकने का असर देखाई देता है, आनेवाला चार-पांच साल में त बहुत कुछ बदल जायेगा. बैठे-बैठे सोचे त लगा कि का नहीं हो सकता? सोचिये कैसा-कैसा सीन देखाई देगा.
पत्रकार ने कौनो अखबार में नौकरी का अर्जी दिया है. पत्रकार का बायो-डाटा को इंटरव्यू लेने वाला लोग उलट-पलट कर तीन-चार बार देख लिया है. इंटरव्यू ख़तम हो चुका है. पत्रकार हर सवाल का जवाब सही दिया है. उसका बायो-डाटा में क्वालिफिकेशन भी पूरा है. लेकिन उसको नौकरी नहीं मिला.
पत्रकार बेचारा परशान. इंटरव्यू लेने वालों से पूछेगा; " सर, हम त सब सवाल का जवाब सही दिए रहे. हमें नौकरी काहे नहीं मिल रहा है?"
इंटरव्यू लेने वाला बोलेगा; "एक बात में तुम पीछे रह गए. तुमको जूता फेंकने का एक्सपेरिएंस नहीं न है. एही खातिर नौकरी तुमको नहीं मिला. ऊ जिसको मिल रहा है उसका पास सात मंत्री और दू एमपी के ऊपर जूता फेंके का एक्सपेरिएंस है."
पत्रकार मुंह लटका लेगा. सोचने लगेगा कि; 'एक बार कोई अखबार बिना पईसा का ही रख ले. तीन-चार प्रेस कांफ्रेंस में जूता फेंककर एक्सपेरिएंस त ले सकेंगे. बाद में एक्सपेरिएंस का वजह से ही नौकरी मिलेगा.'
चिदंबरम साहेब होम मिनिस्टर हैं. उनके ऊपर सीबीआई का बजह से हुए सवाल-जवाब से जूता फेंका गया. हो सकता है दू साल उनका पार्टी उनको फाइनांस मिनिस्टर बनाना चाहे. सोचिये कैसा सीन हो सकता है.
प्रधानमंत्री बोलेंगे; "आप फाइनांस मिनिस्टर बन जाइये."
चिदंबरम साहेब बोलेंगे; "नहीं सर. हम नहीं बनेंगे."
प्रधानमंत्री पूछेंगे; "का हुआ? का दिक्कत है?"
चिदंबरम साहेब बोलेंगे; " पिछ्ला बार सीबीआई का बजह से हमरे ऊपर जूता फेंका गया था. हो सकता है फाइनांस मिनिस्टर बनने से आरबीआई का बजह से जूता फेंका जाए."
प्रधानमंत्री पूछेंगे; "ऊ काहे? ऐसा काहे सोचते हैं आप?"
चिदंबरम साहेब बोलेंगे; "हमको डर है कि ऊ फाइनांस कंपनी जो पब्लिक का पैसा री-पेमेंट नहीं कर पा रही थी त साल २००८ में सरकार में रहते हुए हम आरबीआई से लीपा-पोती करवा कर मोहलत दिला दिए थे. हमको लगता है ई फाइनांस कंपनी वाला अब की बार भी टाइम पर पब्लिक का पैसा पेमेंट नहीं कर पायेगा सब. फिर से आरबीआई से टाइम दिलाने का प्रेशर देगा. प्रेशर और पैसा या फिर पैसा का प्रेशर के चलते टाइम दिला देंगे. कोई पत्रकार पूछेगा कि ई फाइनांस कंपनी वालों को आपने टाइम काहे दिलवाया? उनका खिलाफ एक्शन काहे नहीं लिया? हम बोलेंगे कि आरबीआई भी सीबीआई का तरह ही इंडीपेंडेंट बॉडी है. इस बारे में हम कुछ नहीं किये हैं. जो किया है आर बी आई किया है. सोचिये कि अगर ऊ पत्रकार का अगर इस कंपनी में कोई डिपोजिट होगा त का हो सकता है. फिर से जूता चलने का चांस रहेगा."
प्रधानमंत्री बोलेंगे; "चिंता नहीं न करो. उस समय त इलेक्शन का बखत था त माफी-माफी खेल लिए थे. अभी त इलेक्शन होने में तीन साल का देरी है. ऐसे में पत्रकार को माफ़ नहीं करेंगे, पूरा साफ़ कर देंगे. तुम तो बस बन जाओ."
अईसा सीन भी हो सकता है.
हीरो, हीरोइन, क्रिकेटर, फुटबालर वगैरह को जूता का विज्ञापने नहीं मिलेगा. जूता बनानेवाला बड़ा-बड़ा कंपनी सब पत्रकार लोगों से जूता का विज्ञापन करवाएगा. एक-एक पत्रकार एक्स्पेरिंस का हिसाब से मॉडलिंग का फीस लेगा. पांच बार जूता फेंकने वाला पत्रकार का फीस बीस लाख होगा. जो पत्रकार का पास जूता फेंकने का एक्सपेरिएंस सात से दस बार तक होगा उसका फीस चालीस लाख होगा. सोचिये का सीन होगा?
टीवी वाला एंकर सब अपना-अपना चैनल का मालिक सब से बोलेगा; " हम स्टूडियो में एंकरिंग नहीं करेंगे. हमें फील्ड में काम दीजिये. हम प्रेस कांफ्रेंस में जाना चाहते हैं. जो लोग पहले से फील्ड में काम करके जूता-उता फेंक कर पैसा कम चुके हैं ऊन लोगन को अब स्टूडियो में बैठाईये. पैसा कमाने का हक़ त हमरा भी बनता है कि नहीं?"
अईसा भी होगा. मज़ाक नहीं कर रहे हैं.
ऊ दिखाई देगा अपने इष्टदेव सांकृत्यायन जी के ब्लॉग पर. अरे अपने इष्टदेव,... अरे ओही इयत्ता वाले. देखेंगे का? दू साल बाद ओनके ब्लॉग पर पब्लिक सब लाइन लगाये कमेन्ट पर कमेन्ट दिए जा रहा है. सब एक ही बात का शिकायत कर रहा है लोग. सब एही बात को लेकर हलकान हुए जा रहा है कि अथातो जूता जिज्ञासा का कड़ी नम्बर ५२३ काहे नहीं छपा?
का सोच रहे हैं? कड़ी नम्बर ५२३ कईसे? ता ऊ अईसे कि तब तक भारत में इतना जूता फेंका जायेगा कि इष्टदेव को ई अथातो जूता जिज्ञासा तब तक जारी रखना पड़ेगा.
औउर बहुत सा सीन दिखाई दे सकता है....का का लिखें?
नेता सब का ऊपर विदेशी चीज का असर ही होता है. ई बात सही कही, प्रधानमंतरी पर भी विदेशी मालकिन का असर होता है.
ReplyDeleteबाकि जूता काण्ड पर पनवाड़ी खूब लिखे है....धनवाद जो माँग कर ईयां छापे.
सुरेश चचा जूते बनाने भी लग गए.. हमें तो लगा था वो सिर्फ जूते भिगो भिगो के मारने में बिलीव करते है..
ReplyDeleteविदेशियों का असर तो होता ही है.. संजय जी को हम समर्थन देते है..
सोच रहे है रतिराम जी के साथ मिलकर एक ब्लॉग बना ले.. "कुश ऑर रतिराम का ब्लॉग" का ख्याल है ?
बिदेसी के जगह देसी का असर जियादा होत है। महकवा कउन को पास न आवै देत।
ReplyDeleteअर्रे बाबा ये बहुत घनघोर जूता कथा बांचे है...पनवाड़ी बहुत ज्ञानी है, उसको एक लैपटॉप दे दिया जाए...आप कब तक उसके पुर्जे छापते रहेंगे.
ReplyDeleteअरे बभुआ! रतिराम को समझाइ दे कि जूता नहीं आदमी क्वालिटी का होत है तो चर्चा का बिसय बनत हो:)
ReplyDeleteजे गलत बात है बाबू , हमारे लखनऊ मे बहुत तमीज तहजीब बसी है इहा कोई किसी को जूता नही मार सकता , अगर गुस्सा आ ही जाये तो सलीम शाही भले आपके सिर पर नवाजे पर जूता कतई नही :)
ReplyDeleteऔर ये आपकी मेरी पसंद देख कर हमे पता चला कि आप हमे पसंद नही करते सो हम भी ब्लोग पोतन को अलविदा कहने की सोच रहे है . टंकी पर क्या खाली फ़ुरस्तिया और आपका ही हक है :)
ReplyDeleteई देखिये, ई वाला नेता लोगों का भाषा पर लिखे है.... ई वाला क्रिकेट पर लिखे है...औउर ई वाला देखिये, ई वाला जूता-काण्ड पर लिखे है. "
ReplyDeleteमिश्राजी, जब जूता-कांड पोस्ट इतनी गजब लिखी है तो रतीराम जी ने बकिया क्या धांसू लिखी होगी? आप तो बाकी की दोनो भी कल लेते अईयेगा.:) मजा आ जायेगा.
रामराम.
अब तो जूता पुराण ही चलेगा .
ReplyDeleteShiv Bhai
ReplyDeleteexcellent presentation
गजब की कल्पना शक्ति …भई ये वाला तो ज्ञान जी के पास भेज ही दिजीए किसि अखबार में छपवाने के लिए। रतिराम जी को हमारा भी प्रणाम, क्या चुन कर नाम रखे हैं रतिराम्……:)
aaphu ghuma ghuma kar kahein ta bhija bhija kar jutiya diye hain , maja aa gaya .aa ee sach hai hai kaa ki amreekaa mein kauno sasur paan nahin khata hai.
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ReplyDeleteसीवभायी, हमका त ई बुझाता है, कि ज़ूतवा के बहाना से आप कुच्छौ सुरु करके गोल कर दिये..
हमरा डैगनोसिस त हियें अटक गया.. कोट कर दें का..
" रस-विहीन भाषण पब्लिक झेल नहीं पा रही है त उसका कन्जम्पशन बढ़ गया है. ऐसे में बैलेंस बना हुआ है. बैलेंस बना का हुआ है, धंधा बढ़ गया है. पब्लिक जादा खा रही है त भाल्यूम का गेम काम कर रहा है."
पिरेम से बोलिये करमजोगी किशनलाल की जय !
ReplyDeleteसीवभायी, हमका त ई बुझाता है, कि ज़ूतवा के बहाना से आप कुच्छौ सुरु करके गोल कर दिये..
हमरा डैगनोसिस त हियें अटक गया.. कोट कर दें का..
" रस-विहीन भाषण पब्लिक झेल नहीं पा रही है त उसका कन्जम्पशन बढ़ गया है. ऐसे में बैलेंस बना हुआ है. बैलेंस बना का हुआ है, धंधा बढ़ गया है. पब्लिक जादा खा रही है त भाल्यूम का गेम काम कर रहा है."
पिरेम से बोलिये करमजोगी किशनलाल की जय !
रतिरामजी को परनाम, बहोत ही धांसू विचार लिखे हैं।
ReplyDeleteरतिराम महाज्ञानी पुरुष लगते हैं। पूजा जी के उन्हें लैपटॉप दिए जाने के प्रस्ताव का मैं भी समर्थन करती हूँ। शेष दो पोस्ट भी पढ़वाई जाएँ।
ReplyDeleteअगला सीन मेरी कलम से!
घुघूती बासूती
रतिराम जी महान लेखक हैं। आप उनके बकिया लेख भी पढ़वाइये न!
ReplyDeleteपढ़कर आनंद आ गया। सरस और व्यंग्य से लबालब।
ReplyDeleteजैसन आप हमारी पोस्ट पर टिपियाने में देरी किये जा रहे हैं वैसन हम भी देर से ही सही लेकिन आपकी पोस्ट पर टिपिया रहे हैं...क्यूँ की क्षमा बढ़न को चाहिए छोटन को उत्पात....
ReplyDelete"जे देखिये देश का पनवाडी हिंदी में इतनी शानदार पोस्ट लिख सकता है तो भला हिंदी ब्लाग जगत का भविष्य जो है वो काहे उज्जवल नहीं होगा...???रति राम जी को परनाम कितना उम्दा ख्याल रखते हैं...वाह...भोत जोर का बात के गए हैं वो.... देसी बिदेशी का जो अंतर है उसे खूब ही समझाएं हैं....जय हो.
नीरज
रतिराम जी के फैन तो हम कब्बे से हैं....क्या सोचते हैं और क्या लिखते हैं.......
ReplyDeleteबड़ा पुन्न मिलेगा बचवा तुमको....ऐसे ही उनका महान विचार छपते रहो......देखो उनके पान के दूकान की तरह यह ब्लाग दुकान भी चल निकलेगी..
जियो...
ज्ञान भैया से पूछना पड़ेगा ... कौनो जूता का एनीमेशन मिलेगा क्या. और मिल गया तो उसको टिपण्णी में कैसे जोड़ा जाय.
ReplyDeleteतनिक किसी के ब्लॉग पर भी जूता मार के देखा जाय... कहीं इस चक्कर में हिट हो गए तो... रतिराम से पूछियेगा की टिपण्णी में जूता मारने से का फायदा होगा :-)
ए भाई! जो पत्रकार पूरा जूता शास्त्रे लिख रहा है, उसको आप केतना फीस दिलाइएगा? ई भी बताइए न!
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